भारत में गर्भपात कानून का विकास और वर्तमान स्थिति: एक विस्तृत विश्लेषण
(Development and Current Status of Abortion Law in India)
प्रस्तावना
गर्भपात (Abortion) नारी के प्रजनन अधिकारों, स्वास्थ्य, और जीवन की स्वतंत्रता से गहराई से जुड़ा हुआ विषय है। यह न केवल एक चिकित्सा निर्णय है, बल्कि नैतिक, सामाजिक, धार्मिक और कानूनी जटिलताओं से भी घिरा हुआ है। भारत में गर्भपात से जुड़े कानूनों का विकास महिलाओं के अधिकारों और सामाजिक परिवर्तनों को ध्यान में रखते हुए हुआ है। इस लेख में हम गर्भपात कानून के ऐतिहासिक विकास, मुख्य कानूनी प्रावधानों, न्यायिक दृष्टिकोण और वर्तमान स्थिति का विस्तृत विश्लेषण करेंगे।
1. ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
स्वतंत्र भारत में प्रारंभिक काल में गर्भपात को भारतीय दंड संहिता, 1860 (IPC) की धारा 312 से 316 के अंतर्गत आपराधिक अपराध माना जाता था। ये धाराएं गर्भस्थ शिशु की हत्या, गर्भपात कराने की कोशिश, और ऐसे कृत्य से महिला की मृत्यु जैसी स्थितियों को दंडनीय बनाती थीं। किसी भी महिला को गर्भपात कराने की अनुमति नहीं थी, चाहे वह विवाहिता हो या बलात्कार की शिकार। इससे महिलाओं के स्वास्थ्य और जीवन को खतरा होता था, क्योंकि वे गैर-कानूनी और असुरक्षित तरीकों से गर्भपात कराती थीं।
2. मातृत्व समाप्ति अधिनियम, 1971 (Medical Termination of Pregnancy Act, 1971)
कानून का उद्देश्य
महिलाओं को सुरक्षित और वैध तरीके से गर्भपात की सुविधा देना, साथ ही चिकित्सकों को कानूनी सुरक्षा प्रदान करना।
प्रमुख प्रावधान
- गर्भावस्था की अवधि: प्रारंभिक अधिनियम के अनुसार, गर्भावस्था के 20 सप्ताह तक गर्भपात किया जा सकता था। 12 सप्ताह तक एक पंजीकृत चिकित्सक की सलाह पर्याप्त थी, और 12 से 20 सप्ताह तक दो चिकित्सकों की राय अनिवार्य थी।
- स्वास्थ्य कारण: यदि गर्भावस्था से महिला का शारीरिक या मानसिक स्वास्थ्य खतरे में हो।
- मानवता के आधार पर: बलात्कार या विवाहेतर यौन संबंधों के कारण गर्भावस्था।
- शिशु की असामान्यता: भ्रूण में किसी प्रकार की गंभीर विकृति।
- महिला की सहमति: केवल बालिग महिला की स्वेच्छा से ही गर्भपात किया जा सकता है।
3. कानून में संशोधन: MTP संशोधन अधिनियम, 2021
समय के साथ सामाजिक यथार्थ में बदलाव आया और महिला सशक्तिकरण के साथ-साथ तकनीकी प्रगति को ध्यान में रखते हुए 2021 में अधिनियम में संशोधन किया गया।
मुख्य परिवर्तन
- समय सीमा बढ़ाई गई:
- अब 20 सप्ताह तक एक चिकित्सक की सलाह पर और
- 20 से 24 सप्ताह तक दो चिकित्सकों की सलाह पर गर्भपात संभव है।
- विशेष श्रेणी की महिलाओं जैसे बलात्कार पीड़िता, अविवाहित महिलाएं, नाबालिग, मानसिक रूप से अस्वस्थ महिलाएं, आदि को इसका लाभ मिलता है।
- गोपनीयता:
महिला की पहचान और गर्भपात की जानकारी गोपनीय रखी जाएगी, इसका उल्लंघन दंडनीय होगा। - चिकित्सा बोर्ड की स्थापना:
24 सप्ताह से अधिक की स्थिति में गंभीर भ्रूण विकृति होने पर मेडिकल बोर्ड की अनुमति से गर्भपात की अनुमति दी जा सकती है।
4. न्यायपालिका की भूमिका
भारतीय न्यायपालिका ने गर्भपात के मुद्दों पर कई ऐतिहासिक फैसले दिए हैं जो महिलाओं के अधिकारों की रक्षा में सहायक रहे हैं:
(i) X बनाम भारत संघ (2022)
सुप्रीम कोर्ट ने निर्णय दिया कि विवाह की स्थिति को गर्भपात के अधिकार का आधार नहीं माना जा सकता। अविवाहित महिलाओं को भी वैसी ही सुविधाएं मिलनी चाहिए जैसी विवाहित महिलाओं को मिलती हैं।
(ii) के.एस. पुट्टस्वामी बनाम भारत संघ (2017)
इस ऐतिहासिक फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने निजता को मौलिक अधिकार घोषित किया। यह गर्भपात के अधिकार को मजबूत करता है, क्योंकि यह महिला की शारीरिक स्वायत्तता से जुड़ा है।
5. सामाजिक और नैतिक दृष्टिकोण
गर्भपात पर समाज में विभाजित राय देखने को मिलती है। कुछ इसे भ्रूण हत्या मानते हैं और धार्मिक आधार पर इसकी निंदा करते हैं, जबकि कुछ इसे महिला का बुनियादी अधिकार मानते हैं। असुरक्षित गर्भपात आज भी ग्रामीण क्षेत्रों और पिछड़े वर्गों में एक बड़ी समस्या है। समाज में जागरूकता, शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं का अभाव इस मुद्दे को और जटिल बनाता है।
6. वर्तमान स्थिति और चुनौतियाँ
सकारात्मक प्रगति
- महिलाओं को कानूनी संरक्षण मिला है।
- ग्रामीण क्षेत्रों तक MTP सेवाओं के विस्तार का प्रयास।
- महिलाओं की प्रजनन स्वतंत्रता को मान्यता।
चुनौतियाँ
- असुरक्षित गर्भपात अभी भी बड़ी संख्या में हो रहे हैं।
- स्वास्थ्य सुविधाओं की असमान उपलब्धता।
- चिकित्सकों की कानूनी भय के कारण अनिच्छा।
- गर्भपात पर सामाजिक कलंक और भ्रामक धारणाएँ।
7. सुझाव और समाधान
- चिकित्सा सेवाओं की ग्रामीण क्षेत्रों में बेहतर पहुँच।
- सभी महिलाओं के लिए गर्भपात सेवाओं की निःशुल्क उपलब्धता।
- यौन शिक्षा और जागरूकता कार्यक्रम।
- चिकित्सा स्टाफ को कानूनी और नैतिक रूप से प्रशिक्षित करना।
- ऑनलाइन और टेलीमेडिसिन सेवाओं का उपयोग बढ़ाना।
निष्कर्ष
भारत में गर्भपात कानून समय के साथ अधिक उदार और महिला-केंद्रित होता गया है। मातृत्व समाप्ति अधिनियम, 1971 से लेकर 2021 के संशोधन तक का सफर, महिलाओं के स्वास्थ्य, अधिकार और गरिमा के लिए एक महत्त्वपूर्ण कानूनी विकास है। हालांकि, समाज में व्याप्त रूढ़िवादी सोच, स्वास्थ्य सुविधाओं की असमानता और कानूनी जानकारी की कमी अब भी इस संवेदनशील विषय को चुनौतीपूर्ण बनाते हैं। आवश्यकता इस बात की है कि न केवल कानून को बल्कि मानसिकता को भी सशक्त बनाया जाए ताकि हर महिला को अपने शरीर पर अधिकार और सम्मानजनक जीवन जीने का पूर्ण अधिकार मिल सके।