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“डिवोर्स की नई वजहें: जब अंडरवियर, ₹80,000 का फोन और गीले तौलिए बने विवाह विच्छेद का आधार”

“डिवोर्स की नई वजहें: जब अंडरवियर, ₹80,000 का फोन और गीले तौलिए बने विवाह विच्छेद का आधार”

भूमिका:

भारतीय पारिवारिक कानूनों में तलाक आमतौर पर क्रूरता, परित्याग, विवाहेतर संबंध, या धर्मांतरण जैसे गंभीर आधारों पर दायर किया जाता है। लेकिन हाल ही में एक ऐसा विचित्र मामला सामने आया है जिसने इंटरनेट पर हलचल मचा दी है। एक पत्नी ने अदालत में तलाक की याचिका यह कहकर दायर की कि वह अपने पति की जीवनशैली—खासकर उसका तीन दिन तक एक ही अंडरवियर पहनना, टॉयलेट फ्लश करना भूलना, और गीले तौलिए बिस्तर पर छोड़ना—सह नहीं सकती। साथ ही, पति का ₹80,000 का फोन खरीदना जबकि ₹500 की साड़ी के लिए विवाद करना, भी उसके असंतोष का बड़ा कारण बना।


तथ्यात्मक विवरण:

पत्नी द्वारा दायर तलाक की याचिका में लिखे गए कुछ प्रमुख बिंदु:

  • पति तीन दिन तक एक ही अंडरवियर पहनता है।
  • टॉयलेट उपयोग के बाद फ्लश नहीं करता, जिससे गंदगी फैलती है।
  • गीले तौलिए बिस्तर पर छोड़ देता है, जिससे बदबू और असुविधा होती है।
  • ₹80,000 का मोबाइल खरीद सकता है, लेकिन ₹500 की साड़ी मांगने पर झगड़ा करता है

कानूनी दृष्टिकोण:

भारतीय हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 13(1)(i-a) के तहत, यदि एक पक्ष दूसरे पक्ष के साथ क्रूरता करता है—चाहे वह मानसिक हो या शारीरिक—तो यह तलाक का वैध आधार बनता है। इस मामले में पत्नी ने जो तर्क दिए हैं, वे “मानसिक क्रूरता” की श्रेणी में रखे जा सकते हैं, क्योंकि यह व्यवहार उसकी आत्म-सम्मान, स्वच्छता और मानसिक शांति को प्रभावित कर रहा है।


सामाजिक और मनोवैज्ञानिक पहलू:

यह मामला मैरिटल इनकम्पैटिबिलिटी (वैवाहिक असंगतता) का उदाहरण है, जहां पति-पत्नी की जीवनशैली, सोच और प्राथमिकताएं इतनी अलग हैं कि साथ रहना मुश्किल हो जाता है। सामाजिक मीडिया पर इस मामले ने जबरदस्त प्रतिक्रियाएं पाई हैं:

  • एक यूजर ने लिखा: “Run, sis, run!”
  • दूसरे ने कहा: “80K का फोन और ₹500 की साड़ी पर झगड़ा? यह साफ प्राथमिकताओं का टकराव है।”

न्यायपालिका की भूमिका:

हालांकि यह मामला विचित्र लग सकता है, लेकिन यह दिखाता है कि अदालतें आजकल व्यक्तिगत गरिमा और मानसिक स्वास्थ्य को भी गंभीरता से ले रही हैं। यदि जीवनसाथी का व्यवहार व्यक्ति के मानसिक संतुलन और आत्म-सम्मान को प्रभावित करता है, तो उसे तलाक के उचित आधार के रूप में देखा जा सकता है।


निष्कर्ष:

यह प्रकरण हंसी-मजाक का विषय भले बन गया हो, लेकिन इसके पीछे छिपी सच्चाई गंभीर है — विवाह केवल साथ रहने का नाम नहीं, बल्कि सम्मान, सामंजस्य और व्यक्तिगत सीमाओं का भी मेल है। जब ये सीमाएं बार-बार तोड़ी जाएं, तो तलाक एक व्यक्तिगत मुक्ति का माध्यम बन सकता है।

इस मामले ने भारतीय समाज को यह सोचने पर विवश किया है कि छोटी-छोटी आदतें भी रिश्तों को तोड़ने में बड़ी भूमिका निभा सकती हैं — खासकर तब जब वे निरंतर मानसिक असुविधा का कारण बनें।