“न्यायिक सहिष्णुता से बढ़े राष्ट्र विरोधी मानसिकता वाले अपराध : इलाहाबाद हाई कोर्ट”

📰 शीर्षक: “न्यायिक सहिष्णुता से बढ़े राष्ट्र विरोधी मानसिकता वाले अपराध : इलाहाबाद हाई कोर्ट”


🔎 केस सारांश 

इलाहाबाद हाई कोर्ट ने “पाकिस्तान जिंदाबाद” की फेसबुक पोस्ट साझा करने के मामले में आरोपी अंसार अहमद सिद्दीकी को जमानत देने से इंकार कर दिया है। न्यायमूर्ति सिद्धार्थ की एकल पीठ ने इस अवसर पर सख्त टिप्पणी करते हुए कहा:

“इस देश में राष्ट्र विरोधी मानसिकता वाले अपराध आम होते जा रहे हैं क्योंकि अदालतें ऐसे लोगों के प्रति अत्यधिक सहिष्णु बनी हुई हैं।”


⚖️ कोर्ट की मुख्य टिप्पणियाँ:

  1. संविधान और संप्रभुता का अपमान
    आरोपी का कृत्य भारतीय संविधान और उसके मूल आदर्शों के खिलाफ है। यह भारत की संप्रभुता और अखंडता को चुनौती देने जैसा है।
  2. न्यायिक सहिष्णुता का दुरुपयोग
    अत्यधिक सहिष्णुता और उदारता राष्ट्र विरोधी गतिविधियों को बढ़ावा देती है। ऐसे मामलों में कड़ा रुख आवश्यक है।
  3. अनुच्छेद 21 का हनन नहीं
    आरोपी के आचरण को देखते हुए अनुच्छेद 21 (जीवन और स्वतंत्रता का अधिकार) की सुरक्षा की मांग न्यायोचित नहीं मानी गई।
  4. अनुच्छेद 51-A का स्मरण
    भारतीय संविधान का अनुच्छेद 51A(a) प्रत्येक नागरिक से संविधान, राष्ट्रीय ध्वज और राष्ट्रगान के सम्मान की अपेक्षा करता है। आरोपी ने इस नागरिक कर्तव्य की उल्लंघना की है।

📌 अभियोग की स्थिति:

  • मामला दर्ज: थाना छतारी, जनपद बुलंदशहर
  • धाराएँ: भारतीय न्याय संहिता (BNS), 2023 की धारा 152 और 197
  • पोस्ट का कथ्य: फेसबुक पर पाकिस्तान जिंदाबाद और जिहाद के समर्थन से संबंधित लेख साझा किया गया था।

🧠 विधिक और सामाजिक महत्व:

इस फैसले के माध्यम से न्यायालय ने यह स्पष्ट किया कि:

  • राष्ट्रविरोधी अभिव्यक्ति को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता नहीं कहा जा सकता।
  • संविधान विरोधी कार्यों के प्रति सहिष्णु दृष्टिकोण से राष्ट्र की सुरक्षा और अखंडता पर संकट उत्पन्न होता है।
  • अदालतें संविधान की मर्यादा की रक्षक हैं और उन्हें ऐसे मामलों में दृढ़ रुख अपनाना चाहिए।