लेख शीर्षक:
“डिजिटल मीडिया और फेक न्यूज़ कानून: अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता बनाम सूचना की शुद्धता”
प्रस्तावना
डिजिटल मीडिया के बढ़ते प्रभाव ने जनसंवाद, समाचार प्रसार और सामाजिक सोच को नए आयाम दिए हैं। व्हाट्सएप, फेसबुक, यूट्यूब, इंस्टाग्राम, ट्विटर (अब X) जैसे प्लेटफॉर्म्स ने जहां सूचना को लोकतांत्रिक बनाया, वहीं फेक न्यूज़ (Fake News) ने एक गंभीर संकट खड़ा कर दिया है।
फेक न्यूज़ न केवल जनता को गुमराह करती है, बल्कि सांप्रदायिक तनाव, न्यायिक अवमानना, राष्ट्रीय सुरक्षा, और लोकतंत्र की साख को भी क्षति पहुँचाती है।
यह लेख भारत में डिजिटल मीडिया से जुड़े मौजूदा कानूनों, फेक न्यूज़ की समस्या, उसके दुष्परिणाम और सरकार द्वारा उठाए गए कानूनी कदमों पर विस्तृत दृष्टि डालता है।
1. डिजिटल मीडिया की भूमिका और वृद्धि
- डिजिटल मीडिया पारंपरिक मीडिया (अखबार, टीवी) की तुलना में अधिक तेज़, सस्ता और व्यापक है।
- कोई भी व्यक्ति अपने मोबाइल फोन से “कंटेंट क्रिएटर” बन सकता है।
- यह लोकतंत्र में जनभागीदारी का प्रभावशाली माध्यम बन चुका है।
लेकिन यही सहजता फेक न्यूज़ को भी तेज़ी से फैलने का माध्यम बना देती है।
2. फेक न्यूज़ की परिभाषा और स्वरूप
फेक न्यूज़ वह जानबूझकर फैलाई गई झूठी या भ्रामक जानकारी होती है जिसका उद्देश्य:
- लोगों को गुमराह करना
- राजनीतिक/धार्मिक लाभ उठाना
- दंगे, अफवाह, आतंक, या भ्रम फैलाना
- किसी की प्रतिष्ठा को नुकसान पहुँचाना होता है।
प्रकार:
- सांप्रदायिक या धार्मिक फेक न्यूज़
- राजनीतिक उद्देश्यों वाली झूठी खबरें
- स्वास्थ्य या आपदा से जुड़ी झूठी सूचनाएं (जैसे कोविड-19 टीका अफवाहें)
- मॉर्फ्ड वीडियो/तस्वीरें
- Clickbait हेडलाइंस
3. भारत में फेक न्यूज़ से संबंधित प्रमुख कानून
🧾 सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 (IT Act, 2000)
- धारा 66D: ऑनलाइन धोखाधड़ी या व्यक्ति को छल से गुमराह करने पर दंड।
- धारा 69A: सरकार को किसी वेबसाइट या सामग्री को ब्लॉक करने का अधिकार।
- IT (Intermediary Guidelines and Digital Media Ethics Code) Rules, 2021:
- सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म को फेक न्यूज़ की शिकायतों पर 24 घंटे में कार्रवाई करनी होगी।
- ग्रिवांस ऑफिसर की नियुक्ति अनिवार्य।
- डिजिटल न्यूज़ मीडिया को प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया के दिशा-निर्देशों का पालन करना होगा।
⚖️ भारतीय दंड संहिता (IPC)
- धारा 153A: धर्म या जाति के आधार पर वैमनस्य फैलाना।
- धारा 295A: धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुँचाना।
- धारा 505(1)(b): ऐसी अफवाह या खबर फैलाना जिससे भय या अशांति फैले।
- धारा 499/500: मानहानि की कार्रवाई।
📰 प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया अधिनियम, 1978
- डिजिटल मीडिया की निगरानी इस कानून के दायरे में लाने की कोशिश की जा रही है।
4. सरकार की पहलें और नीतियाँ
✅ IT Rules, 2021 और 2023 संशोधन
- फैक्ट चेक यूनिट (Fact Check Unit – FCU) की स्थापना
- कोई भी सरकारी विभाग यदि किसी खबर को ‘फेक’ घोषित करता है, तो सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म को उसे हटाना होगा।
- इस नियम को लेकर सुप्रीम कोर्ट में चुनौती चल रही है (मामला: पत्रकारों और डिजिटल मीडिया संस्थाओं द्वारा दायर याचिका)।
✅ डिजिटल इंडिया कार्यक्रम
- डिजिटल साक्षरता के माध्यम से फेक न्यूज़ के प्रति जागरूकता बढ़ाना।
✅ PIB Fact Check
- भारत सरकार की फैक्ट चेक सेवा जो सोशल मीडिया पर वायरल हो रही खबरों की सत्यता का परीक्षण करती है।
5. न्यायपालिका का दृष्टिकोण
⚖️ Shreya Singhal v. Union of India (2015)
- सुप्रीम कोर्ट ने धारा 66A (आईटी एक्ट) को असंवैधानिक करार दिया क्योंकि यह अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता (अनुच्छेद 19(1)(a)) का उल्लंघन करती थी।
- कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि भ्रम और असहमति को प्रतिबंधित करना लोकतंत्र में उचित नहीं है।
⚖️ राजस्थान फेक न्यूज़ केस (2018)
- कोर्ट ने कहा कि “फेक न्यूज़ गंभीर अपराध है और यह सामाजिक सौहार्द्र को खतरे में डाल सकता है।”
6. फेक न्यूज़ के दुष्परिणाम
- सांप्रदायिक दंगे और हिंसा (जैसे पलघर मॉब लिंचिंग)
- जनता में डर और भ्रम (जैसे नोटबंदी, टीकाकरण पर अफवाहें)
- चुनावी प्रक्रिया पर प्रभाव
- प्रसिद्ध व्यक्तियों की छवि खराब करना
- न्यायिक प्रक्रिया में हस्तक्षेप
- मॉब लिंचिंग जैसी घटनाएं डिजिटल अफवाहों के कारण ही होती हैं।
7. अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता बनाम निगरानी का संतुलन
भारत में अनुच्छेद 19(1)(a) के तहत अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता मौलिक अधिकार है, लेकिन अनुच्छेद 19(2) में इस पर युक्तियुक्त प्रतिबंध लगाए जा सकते हैं जैसे:
- देश की सुरक्षा
- सार्वजनिक व्यवस्था
- नैतिकता
- मानहानि
- अदालत की अवमानना
सरकार की यह जिम्मेदारी है कि वह फेक न्यूज़ पर रोक लगाए, लेकिन इस प्रक्रिया में स्वतंत्र मीडिया की आवाज को दबाया न जाए।
8. सुधार हेतु सुझाव
- स्वतंत्र फैक्ट-चेकिंग एजेंसियों को सशक्त बनाना
- सोशल मीडिया उपयोगकर्ताओं के लिए डिजिटल साक्षरता कार्यक्रम
- फेक न्यूज़ फैलाने वालों के लिए त्वरित दंडात्मक प्रक्रिया
- साइबर अपराध सेल की सुदृढ़ता और प्रशिक्षित कर्मी
- पारदर्शी फैक्ट चेक यूनिट, जिसे सरकार नियंत्रित न करे
- AI और ब्लॉकचेन तकनीकों का उपयोग — सूचना की सत्यता सुनिश्चित करने हेतु
निष्कर्ष
डिजिटल मीडिया सूचना का सबसे सशक्त और लोकतांत्रिक माध्यम बन चुका है, लेकिन फेक न्यूज़ इस माध्यम की साख और शक्ति दोनों को क्षीण कर रहा है।
भारत को ऐसी कानूनी और तकनीकी व्यवस्था की आवश्यकता है जो न केवल फेक न्यूज़ पर नियंत्रण रखे, बल्कि स्वतंत्रता और जवाबदेही के बीच संतुलन भी बनाए रखे।
अंततः, जागरूक नागरिक, निष्पक्ष मीडिया, और उत्तरदायी सरकार ही इस चुनौती का स्थायी समाधान हैं।