“जबरन धर्मांतरण पर कानून: धार्मिक स्वतंत्रता की रक्षा या अधिकारों का उल्लंघन?”

लेख शीर्षक:
“जबरन धर्मांतरण पर कानून: धार्मिक स्वतंत्रता की रक्षा या अधिकारों का उल्लंघन?”


भूमिका

धर्म परिवर्तन का विषय भारत में सदियों से चर्चा का केंद्र रहा है। लेकिन जब धर्मांतरण स्वेच्छा से नहीं, बल्कि जबरन, धोखे, लालच या बलपूर्वक कराया जाए, तो यह न केवल धार्मिक स्वतंत्रता के सिद्धांतों का उल्लंघन करता है, बल्कि समाज की सांप्रदायिक संरचना और सामाजिक समरसता को भी प्रभावित करता है।
इस समस्या से निपटने के लिए कई राज्य सरकारों ने जबरन धर्मांतरण विरोधी कानून बनाए हैं। यह लेख इसी विषय पर विस्तृत कानूनी, संवैधानिक और सामाजिक विश्लेषण प्रस्तुत करता है।


1. जबरन धर्मांतरण की परिभाषा

कानून के अनुसार निम्नलिखित स्थितियों में धर्मांतरण को “जबरन धर्मांतरण” माना जाता है:

  • बल प्रयोग या हिंसा के माध्यम से कराया गया धर्म परिवर्तन
  • धोखे या गलत सूचना देकर कराया गया धर्म परिवर्तन
  • लालच (जैसे नौकरी, धन, शिक्षा आदि) देकर कराया गया धर्म परिवर्तन
  • दबाव या सामाजिक बहिष्कार की धमकी देकर धर्म परिवर्तन कराना

2. भारतीय संविधान और धार्मिक स्वतंत्रता

अनुच्छेद 25 (1) प्रत्येक व्यक्ति को “धर्म को मानने, पालन करने और प्रचार करने” की स्वतंत्रता देता है।
हालाँकि, यह स्वतंत्रता पूर्ण नहीं है — यह सार्वजनिक व्यवस्था, नैतिकता और स्वास्थ्य के अधीन है।
इसका अर्थ है कि कोई भी व्यक्ति दूसरे को जबरन धर्म परिवर्तन के लिए बाध्य नहीं कर सकता, क्योंकि यह दूसरों की धार्मिक स्वतंत्रता का उल्लंघन होगा।


3. जबरन धर्मांतरण विरोधी राज्य कानून (Anti-Conversion Laws)

भारत में अब तक केंद्र सरकार ने कोई राष्ट्रव्यापी “जबरन धर्मांतरण कानून” पारित नहीं किया है, लेकिन कई राज्य सरकारों ने अपने स्तर पर कानून बनाए हैं।
उदाहरण:

1. उत्तर प्रदेश विधि विरुद्ध धर्म परिवर्तन प्रतिषेध अधिनियम, 2021

  • बिना अनुमति धर्म परिवर्तन अपराध माना गया
  • विवाह के उद्देश्य से धर्मांतरण की मान्यता नहीं
  • 1 से 10 साल तक की सजा का प्रावधान

2. मध्य प्रदेश धर्म स्वातंत्र्य अधिनियम, 2021

  • बल, छल या लालच से धर्मांतरण को गैरकानूनी माना गया
  • धार्मिक संगठन या व्यक्ति को धर्म परिवर्तन कराने से पहले जिलाधिकारी से अनुमति अनिवार्य

3. गुजरात धर्म स्वतंत्रता अधिनियम (संशोधित 2021)

  • विवाह के लिए धर्म परिवर्तन कराने पर कठोर दंड
  • “लव जिहाद” को ध्यान में रखते हुए संशोधन

4. ओडिशा और छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों में भी इसी प्रकार के कानून मौजूद हैं।


4. इन कानूनों की प्रमुख विशेषताएं

  • धर्म परिवर्तन से पूर्व सरकारी अनुमति या सूचना देना आवश्यक
  • धर्मांतरण कराने वाले व्यक्ति/संगठन पर आपराधिक मामला दर्ज हो सकता है
  • प्रलोभन, धोखा, बल या अन्य अनुचित माध्यमों से धर्म परिवर्तन कराने पर सजा
  • विवाह हेतु धर्म परिवर्तन को संदिग्ध माना गया है

5. न्यायिक दृष्टिकोण

📌 Rev. Stainislaus v. State of Madhya Pradesh (1977)

सुप्रीम कोर्ट ने निर्णय दिया कि “धर्म प्रचार” का अधिकार धर्म परिवर्तन कराने का अधिकार नहीं है, खासकर यदि वह जबरन, धोखे या लालच से हो।

📌 Shafin Jahan v. Asokan K.M. (2018)

सुप्रीम कोर्ट ने वयस्क महिला के स्वेच्छा से धर्म परिवर्तन और विवाह को संवैधानिक अधिकार माना।

📌 इलाहाबाद हाईकोर्ट के कई फैसलों में यह कहा गया है कि “यदि धर्म परिवर्तन केवल विवाह हेतु किया गया हो, तो वह वैध नहीं माना जाएगा।”


6. आलोचना और समर्थन

समर्थकों के अनुसार:

  • ये कानून समाज को धोखे, कट्टरता और अवांछित धार्मिक प्रभाव से बचाते हैं।
  • यह जनजातीय और गरीब वर्गों की सुरक्षा के लिए आवश्यक हैं, जो अक्सर लालच या दबाव में धर्म बदलते हैं।

आलोचकों के अनुसार:

  • ये कानून मौलिक अधिकारों का हनन करते हैं, विशेषकर अनुच्छेद 25 और 21 का।
  • ये कानून व्यक्तिगत स्वतंत्रता और निजता पर आघात करते हैं।
  • कई बार ये कानून अंतर-धार्मिक विवाहों को रोकने के लिए दुरुपयोग होते हैं।

7. अंतरराष्ट्रीय दृष्टिकोण

  • संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार घोषणापत्र (UDHR) की धारा 18: प्रत्येक व्यक्ति को धर्म बदलने, मानने और प्रचार करने की स्वतंत्रता है।
  • भारत इन सिद्धांतों का समर्थन करता है, लेकिन अपने सांस्कृतिक-सामाजिक परिप्रेक्ष्य में कानून लागू करता है।

8. सुधार की दिशा में सुझाव

  • जबरन धर्मांतरण को रोकने के लिए स्पष्ट परिभाषा और प्रमाण का स्तर तय हो
  • स्वेच्छा और जबरन के बीच अंतर को स्पष्ट रूप से समझा जाए
  • कानूनों में न्यायिक निगरानी हो ताकि दुरुपयोग न हो
  • धर्म परिवर्तन से पूर्व केवल सूचना देना पर्याप्त हो, अनुमति लेना मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है
  • धर्म और विवाह को राजनीतिक मुद्दा बनने से रोका जाए

निष्कर्ष

भारत में धार्मिक स्वतंत्रता एक मूल्यवान मौलिक अधिकार है, जिसे सुरक्षित रखना आवश्यक है। लेकिन जब यह स्वतंत्रता किसी के दबाव, धोखे या प्रलोभन के अधीन हो, तो यह स्वतः ही संदेहास्पद हो जाती है।
इसलिए जबरन धर्मांतरण पर नियंत्रण आवश्यक है, बशर्ते कि यह नियंत्रण संविधान के दायरे में रहकर, न्यायसंगत और संतुलित हो। साथ ही, यह भी उतना ही आवश्यक है कि ऐसे कानूनों का राजनीतिक या धार्मिक दुरुपयोग न हो, जिससे सामाजिक सौहार्द्र और व्यक्तिगत स्वतंत्रता दोनों की रक्षा हो सके।