शीर्षक: व्यक्तिगत डेटा सुरक्षा और गोपनीयता कानून: डिजिटल युग में निजता की रक्षा का कानूनी ढांचा
भूमिका:
21वीं सदी के डिजिटल युग में डेटा को “नया तेल” कहा जाता है। हर व्यक्ति का व्यक्तिगत डेटा — जैसे नाम, पता, मोबाइल नंबर, आधार, बैंक विवरण, स्वास्थ्य रिकॉर्ड, लोकेशन ट्रैकिंग, ब्राउज़िंग हिस्ट्री — विभिन्न एप्लिकेशन और वेबसाइटों द्वारा लगातार एकत्रित किया जा रहा है।
ऐसे में यह सवाल उठता है:
“क्या हमारे व्यक्तिगत डेटा की सुरक्षा सुनिश्चित है?”
“क्या कोई कानून है जो हमारी गोपनीयता की रक्षा करता है?”
इस लेख में हम भारत और विश्व के संदर्भ में व्यक्तिगत डेटा सुरक्षा और गोपनीयता कानून की आवश्यकता, वर्तमान स्थिति, चुनौतियाँ और समाधान की विस्तार से चर्चा करेंगे।
1. व्यक्तिगत डेटा और गोपनीयता क्या है?
व्यक्तिगत डेटा वह सूचना होती है जिससे किसी व्यक्ति की पहचान प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से की जा सकती है। जैसे:
- नाम, पहचान संख्या (जैसे आधार), IP पता
- बायोमेट्रिक जानकारी (फिंगरप्रिंट, रेटिना स्कैन)
- स्वास्थ्य, वित्तीय, यौन अभिरुचि, जाति, धर्म, लोकेशन इत्यादि
गोपनीयता (Privacy) वह मूल अधिकार है जिसके अंतर्गत व्यक्ति यह नियंत्रित करता है कि उसकी निजी जानकारी कौन, कब और कैसे उपयोग करे।
2. भारत में गोपनीयता का संवैधानिक आधार
सुप्रीम कोर्ट का Puttaswamy निर्णय (2017)
- नौ-न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने गोपनीयता को अनुच्छेद 21 के तहत मौलिक अधिकार माना।
- न्यायालय ने स्पष्ट किया कि सरकार या निजी संस्थाएं नागरिकों की जानकारी एकत्र करते समय संविधान के अनुरूप व्यवहार करें।
3. भारत का डेटा सुरक्षा कानून: डिजिटल पर्सनल डेटा प्रोटेक्शन एक्ट, 2023 (DPDP Act, 2023)
भारत ने 2023 में डिजिटल व्यक्तिगत डेटा संरक्षण अधिनियम पारित किया, जो अब तक देश का सबसे व्यापक डेटा सुरक्षा कानून है।
प्रमुख प्रावधान:
✅ डेटा प्रिंसिपल और डेटा फिड्यूशियरी:
- डेटा प्रिंसिपल = व्यक्ति जिसका डेटा एकत्र किया जा रहा है
- डेटा फिड्यूशियरी = संस्था जो डेटा को नियंत्रित करती है
✅ सहमति आधारित प्रणाली:
- किसी भी डेटा के उपयोग से पहले स्पष्ट और सूचित सहमति आवश्यक है।
- व्यक्ति कभी भी अपनी सहमति वापस ले सकता है।
✅ डाटा के उपयोग की सीमाएं:
- केवल उस उद्देश्य के लिए डेटा का उपयोग हो सकता है जिसके लिए अनुमति दी गई हो।
- अनावश्यक या अनिश्चितकालीन डेटा संग्रह पर रोक।
✅ डेटा अधिकार:
- व्यक्ति को अपना डेटा देखने, सुधारने, हटाने और ट्रांसफर कराने का अधिकार।
✅ डेटा सुरक्षा बोर्ड:
- कानून के उल्लंघन की स्थिति में शिकायत निपटान के लिए स्वतंत्र बोर्ड की स्थापना।
✅ जुर्माना और दंड:
- कंपनियों द्वारा उल्लंघन पर ₹250 करोड़ तक का जुर्माना संभव।
4. किन समस्याओं के समाधान के लिए यह कानून लाया गया?
- ऑनलाइन धोखाधड़ी, डेटा चोरी, अनधिकृत ट्रैकिंग
- कंपनियों द्वारा अनावश्यक डेटा संग्रह और बिक्री
- विदेशी कंपनियों द्वारा भारतीय नागरिकों की जानकारी का निर्यात
- सरकारी निगरानी तंत्र का दुरुपयोग
5. कानून की सीमाएँ और आलोचनाएँ
❌ सरकारी छूट:
सरकार को राष्ट्रीय सुरक्षा, आपदा प्रबंधन, कानून व्यवस्था आदि के मामलों में कानून से छूट प्राप्त है — जिससे निजता के उल्लंघन की आशंका बनी रहती है।
❌ डेटा लोकलाइजेशन का प्रावधान नहीं:
डेटा को भारत में संग्रहित करने की अनिवार्यता नहीं है, जिससे विदेशी कंपनियाँ डेटा विदेश भेज सकती हैं।
❌ स्वतंत्रता की निगरानी:
डेटा सुरक्षा बोर्ड की स्वतंत्रता और प्रभावशीलता पर सवाल उठते हैं, क्योंकि उसका गठन सरकार करती है।
6. वैश्विक परिप्रेक्ष्य: अन्य देशों के डेटा सुरक्षा कानून
देश | कानून | विशेषता |
---|---|---|
यूरोपीय संघ | GDPR (2018) | दुनिया का सबसे कड़ा डेटा सुरक्षा कानून |
अमेरिका | CCPA, HIPAA | अलग-अलग राज्य आधारित कानून |
चीन | PIPL (2021) | राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए कड़े नियंत्रण |
ब्राजील | LGPD (2020) | GDPR के समान व्यापक कानून |
भारत का DPDP Act भी GDPR से प्रेरित है, लेकिन उसमें कुछ ढील और सरकारी छूट शामिल है।
7. भविष्य की दिशा और सुझाव
✅ स्वतंत्र रेगुलेटरी बॉडी:
डेटा सुरक्षा बोर्ड को संसद के अधीन स्वतंत्र निकाय बनाया जाए।
✅ सरकार की निगरानी पर न्यायिक समीक्षा:
सरकार द्वारा डेटा एक्सेस के मामलों में न्यायालय की पूर्व अनुमति अनिवार्य हो।
✅ डेटा साक्षरता अभियान:
जनता को यह जानने का अधिकार और शिक्षा हो कि उनके डेटा के साथ क्या हो रहा है।
✅ डेटा संप्रभुता का सिद्धांत:
भारतीय नागरिकों का डेटा भारत में ही संग्रहित और संरक्षित हो।
8. निष्कर्ष
व्यक्तिगत डेटा और गोपनीयता केवल तकनीकी विषय नहीं है, यह न्याय, स्वतंत्रता और गरिमा से जुड़ा मौलिक अधिकार है।
भारत का DPDP कानून एक महत्वपूर्ण कदम है, लेकिन इसे लगातार सुधारने, पारदर्शिता और स्वतंत्र निगरानी से ही प्रभावी बनाया जा सकता है।
अंतिम प्रश्न:
क्या हम डिजिटल विकास के साथ निजता की रक्षा कर पाएंगे, या तकनीक के नाम पर हर नागरिक पर एक अदृश्य निगरानी बैठ जाएगी?
उत्तर सिर्फ कानून में नहीं, उसे लागू करने की ईमानदारी में है।