FIR करवाना आपका कानूनी अधिकार है, न कि पुलिस की मर्जी: जानिए क्या करें जब FIR दर्ज करने से मना किया जाए

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FIR करवाना आपका कानूनी अधिकार है, न कि पुलिस की मर्जी: जानिए क्या करें जब FIR दर्ज करने से मना किया जाए


भारतीय संविधान और कानून नागरिकों को अपने अधिकारों की सुरक्षा के लिए अनेक उपाय देता है। इनमें से एक महत्वपूर्ण अधिकार है FIR (First Information Report) दर्ज करवाने का। अक्सर यह देखा गया है कि जब कोई व्यक्ति किसी अपराध की शिकायत लेकर थाने जाता है, तो पुलिस कई बार FIR दर्ज करने से मना कर देती है। लेकिन ध्यान रखें – FIR करवाना नागरिक का अधिकार है, पुलिस की मर्जी नहीं।

FIR क्या है?

FIR यानी “प्रथम सूचना रिपोर्ट” – यह किसी भी संज्ञेय अपराध (Cognizable Offence) की पहली सूचना होती है, जिसे पुलिस को लिखित रूप में दर्ज करना अनिवार्य होता है।


🚨 अगर पुलिस FIR दर्ज करने से इनकार करे तो क्या करें?

🔹 1. उच्च अधिकारी को शिकायत करें

यदि थाना प्रभारी आपकी FIR नहीं लिखता है, तो आप:

  • संबंधित पुलिस अधीक्षक (SP) या वरिष्ठ पुलिस अधिकारी को शिकायत कर सकते हैं।
  • यह शिकायत लिखित रूप में करें और उसे पंजीकृत डाक (Registered Post) से भेजें।
  • शिकायत में स्पष्ट रूप से घटना, स्थान, तारीख और संबंधित पुलिसकर्मी का विवरण लिखें।

🔹 2. प्रमाण सुरक्षित रखें

  • अपनी शिकायत की एक प्रति (कॉपी) अपने पास रखें।
  • डाक की पावती रसीद (Acknowledgement Receipt) या स्पीड पोस्ट ट्रैकिंग प्रूफ संभाल कर रखें – यह भविष्य में सबूत के रूप में उपयोगी होगी।

🔹 3. न्यायिक दंडाधिकारी से गुहार लगाएं (धारा 156(3) CrPC)

यदि पुलिस अधीक्षक से भी कोई कार्रवाई नहीं होती:

  • आप दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 156(3) के अंतर्गत न्यायिक दंडाधिकारी (Judicial Magistrate) के समक्ष आवेदन कर सकते हैं।
  • मजिस्ट्रेट यदि संतुष्ट होता है कि अपराध हुआ है और FIR दर्ज करना आवश्यक है, तो वह पुलिस को FIR दर्ज करने और जांच करने का आदेश दे सकता है।

⚖️ कानूनी प्रावधान जो आपके अधिकारों की रक्षा करते हैं

प्रावधान विवरण
CrPC की धारा 154(1) संज्ञेय अपराध की सूचना मिलने पर पुलिस को FIR दर्ज करना अनिवार्य है।
CrPC की धारा 154(3) पुलिस FIR दर्ज न करे तो एसपी को शिकायत कर सकते हैं।
CrPC की धारा 156(3) मजिस्ट्रेट पुलिस को FIR दर्ज करने और जांच करने का आदेश दे सकता है।
SC के निर्देश Lalita Kumari v. Govt. of U.P. (2013) – सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि संज्ञेय अपराध की सूचना पर FIR दर्ज करना अनिवार्य है।

FIR दर्ज न करने पर पुलिस पर दंडात्मक कार्रवाई भी संभव है

यदि पुलिस अधिकारी जानबूझकर FIR दर्ज नहीं करता है, तो:

  • उसके विरुद्ध अनुशासनात्मक कार्रवाई हो सकती है।
  • पीड़ित नागरिक मानवाधिकार आयोग या पुलिस शिकायत प्राधिकरण में भी शिकायत कर सकता है।

📌 कुछ उपयोगी सुझाव

  • FIR की एक प्राप्त प्रति (कॉपी) लेना न भूलें।
  • FIR दर्ज करने से पहले घटना का स्पष्ट और तथ्यात्मक विवरण तैयार करें।
  • यदि FIR दर्ज कर भी ली जाती है लेकिन कोई जांच नहीं हो रही, तो RTI के माध्यम से जांच की स्थिति जानें।

🗣️ निष्कर्ष: FIR दर्ज करवाना आपका अधिकार है

कानून स्पष्ट रूप से कहता है कि यदि कोई संज्ञेय अपराध हुआ है, तो पुलिस FIR दर्ज करने से इनकार नहीं कर सकती। यदि वह ऐसा करती है तो आपके पास वैकल्पिक कानूनी उपाय मौजूद हैं – और उन्हें प्रयोग करना आपका संवैधानिक अधिकार है।


🔒 कानून को जानें, जागरूक बनें और अन्याय के खिलाफ आवाज उठाएं।