🔖 सुप्रीम कोर्ट का महत्वपूर्ण निर्णय: “केवल वसीयत (Will) की आयु उसकी वैधता सिद्ध नहीं करती – वसीयत को विधिसम्मत ढंग से सिद्ध किया जाना आवश्यक है”
🧾 केस संदर्भ:
वसीयत दिनांक: 16 नवंबर 1929
प्रमुख प्रावधान:
- भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 — धारा 90, धारा 68
- उत्तराधिकार अधिनियम, 1925 — धारा 63(ग) (Section 63(c))
🧩 निर्णय का सारांश:
सुप्रीम कोर्ट ने अपने इस निर्णय में यह स्पष्ट किया कि किसी वसीयत के 30 वर्ष से अधिक पुराने होने मात्र से उसकी प्रामाणिकता (genuineness) प्रमाणित नहीं मानी जा सकती। कोर्ट ने कहा कि:
“Evidence Act की धारा 90 में दी गई 30 वर्ष पुराने दस्तावेज़ की वैधता की सामान्य धारणा (presumption) वसीयतों पर लागू नहीं होती है।”
⚖️ मुख्य कानूनी निष्कर्ष:
- धारा 90 की सीमाएँ:
भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 90 के अंतर्गत 30 वर्ष से अधिक पुराने दस्तावेज़ की वैधता को कोर्ट द्वारा सहज रूप से स्वीकार किया जा सकता है, परंतु यह प्रावधान “वसीयत” पर लागू नहीं होता, क्योंकि वसीयत एकतरफा दस्तावेज़ (unilateral document) होता है और इसका प्रभाव मृत्यु के बाद होता है। - वसीयत की वैधता के लिए आवश्यक शर्तें:
कोर्ट ने दोहराया कि वसीयत को सिद्ध करने के लिए अनिवार्य है कि वह:- उत्तराधिकार अधिनियम की धारा 63(ग) के अनुसार कम से कम दो गवाहों द्वारा प्रमाणित हो
- साक्ष्य अधिनियम की धारा 68 के अनुसार कम से कम एक गवाह को न्यायालय में प्रस्तुत किया जाए जो वसीयत पर हस्ताक्षर की पुष्टि करे।
- मृत गवाहों की स्थिति में:
यदि वसीयत के गवाह मृत हों, तो कोर्ट अन्य परिस्थितिजन्य साक्ष्यों (circumstantial evidence) और दस्तावेज़ों से यह जाँच सकती है कि वसीयत वास्तव में की गई थी या नहीं।
📌 केस की पृष्ठभूमि:
- वसीयतकर्ता ने 1929 में वसीयत की थी जिसमें एक पुत्र उपेन्द्र को संपत्ति से वंचित किया गया था।
- उपेन्द्र ने बाद में विभाजन पत्र (Partition Deed) पर हस्ताक्षर करके अस्वीकृति पत्र (Disclaimer) भी दिया।
- ट्रायल कोर्ट ने वसीयत को स्वीकारते हुए वाद खारिज कर दिया।
- अपील अदालत ने वसीयत की प्रोबेट न होने की बात कहकर फैसला पलट दिया।
- सुप्रीम कोर्ट ने ट्रायल कोर्ट के निर्णय को सही ठहराया और कहा कि उपलब्ध साक्ष्य, विभाजन पत्र और दस्तावेज़ पर्याप्त हैं वसीयत की वास्तविकता को स्वीकारने के लिए।
🧷 न्यायालय की टिप्पणी:
“A will must be proved in terms of Section 63 of the Succession Act and Section 68 of the Evidence Act. The age of the document alone is not sufficient to invoke the presumption under Section 90. Wills stand on a different footing.”
📚 निष्कर्ष:
✅ सुप्रीम कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि वसीयत को उसकी आयु के आधार पर स्वतः वैध नहीं माना जा सकता, बल्कि उसे साक्ष्य और गवाही के माध्यम से विधिसम्मत ढंग से सिद्ध करना आवश्यक है।
✅ यह निर्णय वसीयतों से जुड़े मामलों में साक्ष्य की भूमिका को सुदृढ़ करता है और धारा 90 और 68 के बीच के अंतर को स्पष्ट करता है।
✅ यह निर्णय विशेष रूप से उन मामलों में मार्गदर्शक सिद्ध होगा जहां पुरानी वसीयतें विवाद का विषय होती हैं।