🔖 बॉम्बे हाई कोर्ट का ऐतिहासिक निर्णय: “परस्पर सहमति से तलाक हेतु प्रतीक्षा अवधि अनिवार्य नहीं — न्यायिक विवेक से कोर्ट इसे माफ कर सकता है”
🧾 केस शीर्षक:
2025(1) Civil Court Cases 153 (Bombay)
विषय: परस्पर सहमति से तलाक (Divorce by Mutual Consent)
प्रासंगिक कानून:
- हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 – धारा 13B(2)
- प्रतीक्षा अवधि (Cooling-Off Period)
- न्यायालय का विवेकाधिकार (Judicial Discretion)
🧩 निर्णय का सारांश:
बॉम्बे हाई कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में यह स्पष्ट किया कि यदि पति-पत्नी ने सोच-समझकर, परिपक्व निर्णय के तहत, आपसी सहमति से तलाक लेने का निर्णय लिया है और उनके बीच सुलह की कोई संभावना शेष नहीं है, तो कोर्ट को प्रतीक्षा अवधि (छह माह) माफ करने का विवेकाधिकार अवश्य प्रयोग करना चाहिए।
कोर्ट ने कहा कि प्रतीक्षा की यह अवधि अनिवार्य नहीं है, बल्कि निर्देशात्मक (directory) है, और न्यायालय के विवेक से इसकी छूट दी जा सकती है ताकि पक्षकारों को अनावश्यक मानसिक पीड़ा और प्रक्रिया में देरी से राहत मिले।
⚖️ न्यायालय की प्रमुख टिप्पणियाँ:
- प्रतीक्षा अवधि का उद्देश्य (Purpose of Cooling-Off Period):
यह समय पति-पत्नी को आपसी निर्णय पर पुनर्विचार करने का अवसर देने के लिए है, लेकिन अगर मामले में सुलह की कोई संभावना नहीं बची हो, तो इसे अनिवार्य तौर पर लागू करना न्याय के विरुद्ध होगा। - सुलह की असंभवता का मूल्यांकन:
यदि यह प्रमाणित हो जाए कि दोनों पक्ष न केवल समझदारी से निर्णय ले चुके हैं, बल्कि एक-दूसरे से अलग होकर आगे बढ़ने के लिए मानसिक रूप से तैयार भी हैं, तो प्रतीक्षा अवधि अनावश्यक हो जाती है। - कोर्ट का विवेक:
कोर्ट ने दोहराया कि धारा 13B(2) के अंतर्गत दी गई अवधि वैधानिक रूप से बाध्यकारी नहीं है, और अदालत की न्यायिक विवेकाधिकारिता के अधीन इसे माफ किया जा सकता है, जैसे कि सुप्रीम कोर्ट ने Amardeep Singh बनाम Harveen Kaur (2017) में स्पष्ट किया है।
📌 न्यायालय की टिप्पणी:
“Once the Court is satisfied that the decision to divorce is informed, voluntary and irreversible, it is not in the interest of justice to prolong the agony by insisting upon a waiting period. The discretion to waive it must be exercised to serve the ends of justice.”
📚 निष्कर्ष:
✅ यह निर्णय तलाक की प्रक्रिया को अधिक मानवीय, व्यावहारिक और संवेदनशील दृष्टिकोण से देखने की दिशा में अग्रसर करता है।
✅ यह उन मामलों में अत्यधिक सहायक सिद्ध होगा, जहां दोनों पक्ष आपसी सहमति से विवाह समाप्त करना चाहते हैं और प्रतीक्षा से उन्हें केवल मानसिक कष्ट मिलता है।
✅ यह फैसला न्यायिक व्यवस्था को लचीलापन और मानवीय संवेदनशीलता प्रदान करता है।