मद्रास हाई कोर्ट का सशक्त निर्णय: “नाबालिग पीड़िता से विवाह के बाद भी POCSO अधिनियम के अंतर्गत आरोपी आपराधिक दायित्व से मुक्त नहीं हो सकता”

🔖 मद्रास हाई कोर्ट का सशक्त निर्णय: “नाबालिग पीड़िता से विवाह के बाद भी POCSO अधिनियम के अंतर्गत आरोपी आपराधिक दायित्व से मुक्त नहीं हो सकता”


🧾 केस संदर्भ:
मद्रास उच्च न्यायालय का निर्णय
प्रासंगिक धाराएं:

  • भारतीय दंड संहिता (IPC): धारा 363 (अपहरण), धारा 343 (ग़लत तरीके से बंधक बनाना)
  • POCSO अधिनियम, 2012: धारा 5(l), धारा 6, धारा 3 सहपठित धारा 4(1)
  • दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC): धारा 161 एवं धारा 164

🧩 निर्णय का सारांश:

मद्रास हाई कोर्ट ने स्पष्ट रूप से कहा कि किसी आरोपी का बाद में नाबालिग पीड़िता से विवाह कर लेना उसे यौन शोषण के अपराध से मुक्त नहीं करता। यह क़ानूनी रूप से मान्य बचाव (legal defence) नहीं हो सकता, क्योंकि:

“POCSO अधिनियम के तहत अपराध केवल व्यक्तिगत नहीं बल्कि समाज के विरुद्ध भी होता है।”


⚖️ प्रमुख अवलोकन एवं तर्क:

  1. विवाह अपराध को वैध नहीं बनाता:
    अदालत ने कहा कि नाबालिग के साथ विवाह करने से अपराध समाप्त नहीं हो जाता, क्योंकि अपराध पीड़िता की उम्र के समय तय होता है, न कि उसके बाद की सहमति या विवाह से।
  2. पीड़िता की सहमति या प्रेम संबंध कोई बचाव नहीं:
    “भाग जाना” (elopement) या “सहमति से संबंध” जैसे बचाव को अस्वीकार किया गया, क्योंकि नाबालिग की सहमति कानूनन वैध नहीं मानी जाती।
  3. POCSO अधिनियम का उद्देश्य:
    न्यायालय ने कहा कि यह कानून विशेष रूप से बच्चों को यौन शोषण से संरक्षण देने के लिए बनाया गया है। यदि अदालतें विवाह या सहमति के आधार पर अभियोजन को खारिज करेंगी, तो कानून की भावना का हनन होगा।
  4. दोषसिद्धि और सज़ा:
    आरोपी को IPC की धारा 363, 343 और POCSO की धारा 3 सहपठित धारा 4(1) के तहत दोषी ठहराया गया।
    उसे 10 वर्ष का सादा कारावास और ₹1,000 का जुर्माना लगाया गया।

📌 न्यायालय की टिप्पणी:

“Marriage cannot be used as a shield to wipe out the crime committed against a minor. The Court cannot permit the exploitation of a child under the garb of love or marriage.”


📚 निष्कर्ष:

✅ यह निर्णय उन मामलों में महत्वपूर्ण मार्गदर्शक सिद्ध होगा जहाँ आरोपी बाद में पीड़िता से विवाह कर बचने की कोशिश करते हैं।
✅ कोर्ट ने POCSO की शून्य सहमति (zero-consent) नीति को दोहराया, जहाँ नाबालिग की सहमति अमान्य मानी जाती है।
✅ यह बच्चों की रक्षा और समाज में यौन अपराधों के विरुद्ध सख्त संदेश देता है।