“विवाहित पुत्री माता-पिता की आश्रित नहीं मानी जाएगी: सुप्रीम कोर्ट का मोटर दुर्घटना क्षतिपूर्ति पर महत्वपूर्ण निर्णय”

“विवाहित पुत्री माता-पिता की आश्रित नहीं मानी जाएगी: सुप्रीम कोर्ट का मोटर दुर्घटना क्षतिपूर्ति पर महत्वपूर्ण निर्णय”


🔎 मामला:
Deep Shikha & Anr. Versus National Insurance Company Ltd. & Ors
न्यायालय: सर्वोच्च न्यायालय, भारत
प्रकरण: मोटर वाहन दुर्घटना में मृत्यु पर आश्रित के रूप में मुआवजा प्राप्त करने की मांग


📌 मामले की पृष्ठभूमि:
दीप शिखा, एक विवाहित पुत्री, ने अपनी मृतक माता की मृत्यु के बाद मोटर दुर्घटना क्षतिपूर्ति (Motor Accident Compensation) की याचिका दाखिल की थी।
उसने दावा किया कि वह अपनी मां पर आर्थिक रूप से आश्रित थी, और इसलिए वह मुआवजे की उत्तराधिकारी और लाभार्थी मानी जाए।


⚖️ न्यायालय की टिप्पणी:

  • सुप्रीम कोर्ट ने याचिका को खारिज करते हुए कहा:

    “एक विवाहित पुत्री को सामान्यतः माता-पिता की आश्रित नहीं माना जाता।”

  • अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि:

    “केवल भावनात्मक या पारिवारिक संबंध, क्षतिपूर्ति के लिए आर्थिक निर्भरता का पर्याप्त आधार नहीं हैं।”

  • मोटर वाहन अधिनियम के अंतर्गत मुआवजे की मांग के लिए यह आवश्यक है कि याचिकाकर्ता वास्तव में आर्थिक रूप से निर्भर हो।

📖 विधिक सिद्धांत:

  • मोटर वाहन अधिनियम के अंतर्गत मुआवजा प्राप्त करने के लिए आश्रित का निर्धारण वास्तविक आर्थिक निर्भरता (Actual Financial Dependency) के आधार पर किया जाता है, न कि केवल पारिवारिक रिश्ते के आधार पर।
  • सुप्रीम कोर्ट ने माना कि एक विवाहित पुत्री सामान्य रूप से पति के परिवार में चली जाती है, और इस कारण से वह माता-पिता पर आर्थिक रूप से निर्भर नहीं मानी जाती, जब तक कि इसका ठोस प्रमाण प्रस्तुत न किया जाए।

🔚 निष्कर्ष:
यह निर्णय मोटर वाहन क्षतिपूर्ति कानून की व्याख्या में एक मील का पत्थर माना जा सकता है।
सुप्रीम कोर्ट का यह स्पष्ट संदेश है कि मुआवजे की मांग केवल भावनात्मक संबंधों के आधार पर नहीं की जा सकती, बल्कि इसके लिए आर्थिक निर्भरता के ठोस प्रमाण आवश्यक हैं।

यह फैसला न केवल कानून की सही व्याख्या करता है, बल्कि मुआवजे की अवधारणा को तार्किक एवं न्यायसंगत रूप देता है।