“धारा 161 सीआरपीसी के तहत गवाह बयान की विश्वसनीयता में पुलिस नहीं बन सकते पूर्ण साक्ष्य: सुप्रीम कोर्ट का Renuka Prasad बनाम राज्य मामला”

“धारा 161 सीआरपीसी के तहत गवाह बयान की विश्वसनीयता में पुलिस नहीं बन सकते पूर्ण साक्ष्य: सुप्रीम कोर्ट का Renuka Prasad बनाम राज्य मामला”


भूमिका:
भारतीय आपराधिक न्याय प्रणाली में पुलिस की भूमिका सबूत इकट्ठा करने और अभियोजन को मजबूत करने में अहम मानी जाती है। परंतु क्या पुलिस अधिकारी, एकमात्र गवाह के रूप में, उन बयानों की सत्यता सिद्ध करने में सक्षम हो सकते हैं जो उन्होंने धारा 161 CrPC के तहत दर्ज किए हैं? सुप्रीम कोर्ट ने इस प्रश्न का उत्तर Renuka Prasad v. The State में स्पष्ट रूप से “नहीं” में दिया है, और एक महत्वपूर्ण सिद्धांत को फिर से दोहराया है – कि धारा 161 CrPC के अंतर्गत दर्ज गवाह बयान को पुलिस अधिकारी स्वयं अदालत में प्रमाणित नहीं कर सकते।


मामले की पृष्ठभूमि:
Renuka Prasad के विरुद्ध दर्ज आपराधिक मामले में अभियोजन ने धारा 161 के अंतर्गत दर्ज गवाहों के बयानों को अदालत में प्रस्तुत किया। लेकिन उन गवाहों को अदालत में पेश नहीं किया गया, और पुलिस अधिकारियों ने ही यह गवाही दी कि उन्होंने उन गवाहों से क्या सुना था।

अभियोजन ने यह तर्क दिया कि जैसे पुलिस के बयान के आधार पर हथियार, मादक पदार्थ आदि की बरामदगी विश्वसनीय मानी जाती है, वैसे ही 161 CrPC के अंतर्गत दर्ज गवाह बयान भी पुलिस के माध्यम से स्वीकार्य और विश्वसनीय माने जाने चाहिए।


सुप्रीम कोर्ट की महत्वपूर्ण टिप्पणियाँ:

  1. बरामदगी और बयान – दो अलग प्रकृति के साक्ष्य:
    सुप्रीम कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि जब कोई अभियुक्त अपनी इच्छा से किसी हथियार, वस्तु या मादक पदार्थ की जानकारी देता है, और उसके आधार पर बरामदगी होती है, तो यह एक स्वतंत्र और भौतिक साक्ष्य बन जाता है। इसलिए पुलिस की गवाही इस स्थिति में विश्वसनीय मानी जा सकती है।
  2. धारा 161 के तहत बयान ‘हियरसे’ (Hearsay) है:
    अदालत ने यह दोहराया कि Section 161 CrPC के अंतर्गत दर्ज बयानों को सिर्फ उस स्थिति में प्रमाणित साक्ष्य माना जा सकता है जब बयान देने वाला गवाह स्वयं अदालत में पेश हो और वह उस बयान की पुष्टि करे। केवल पुलिस अधिकारी का यह कहना कि “गवाह ने मुझे ऐसा कहा था” – स्वीकार्य नहीं है।
  3. पुलिस अधिकारी गवाह का स्थान नहीं ले सकते:
    न्यायालय ने स्पष्ट किया कि किसी भी आपराधिक मुकदमे में साक्ष्य का सबसे मजबूत स्तंभ प्रत्यक्षदर्शी गवाह होता है, और पुलिस अधिकारी केवल माध्यम हो सकते हैं – स्वयं साक्ष्य नहीं।

कानूनी प्रावधानों का संक्षिप्त विश्लेषण:

  • धारा 161 CrPC:
    यह धारा पुलिस को किसी मामले की जांच के दौरान गवाहों के बयान दर्ज करने की अनुमति देती है। लेकिन यह बयान सिर्फ जांच प्रक्रिया का हिस्सा हैं, न कि प्रमाणित साक्ष्य
  • भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 60 (Oral Evidence):
    जिसके अनुसार मौखिक साक्ष्य उसी व्यक्ति द्वारा दिया जाना चाहिए जिसने वह तथ्य स्वयं देखा, सुना या अनुभव किया हो।
  • पूर्ववर्ती निर्णय:
    State v. Kartar Singh, Kalyan Kumar Gogoi v. Ashutosh Agnihotri, और Vijay @ Chinee v. State of M.P. में भी सुप्रीम कोर्ट ने इसी सिद्धांत को लागू किया है।

न्यायालय का निष्कर्ष:

धारा 161 CrPC के तहत दर्ज बयान को अदालत में मान्य साक्ष्य मानने के लिए यह आवश्यक है कि संबंधित गवाह अदालत में उपस्थित होकर अपने बयान की पुष्टि करे। पुलिस अधिकारी केवल यह कहकर कि उसने बयान लिया था, अदालत में साक्ष्य के रूप में उस बयान को स्वीकार्य नहीं बना सकता।


निष्कर्ष:
इस निर्णय से भारतीय न्याय प्रणाली को यह मार्गदर्शन प्राप्त हुआ कि जांच और साक्ष्य प्रस्तुति में अंतर है, और न्याय केवल जांच अधिकारी की रिपोर्ट पर आधारित नहीं हो सकता। Renuka Prasad बनाम State का यह निर्णय विशेष रूप से उन मामलों के लिए मील का पत्थर है जहां गवाहों की अनुपस्थिति में पुलिस गवाही को ही पर्याप्त माना जाता रहा है।

यह निर्णय अभियोजन पक्ष को अधिक जवाबदेह और न्यायालयों को अधिक साक्ष्य-केंद्रित बनाता है।