सैटेलाइट लॉन्चिंग और कक्षा (Orbit) नियमन —
🔷 प्रस्तावना:
आज के वैज्ञानिक युग में सैटेलाइट लॉन्चिंग और उनकी कक्षा में स्थिति (ऑर्बिट) का नियमन वैश्विक और राष्ट्रीय दोनों स्तरों पर अत्यंत आवश्यक हो गया है। संचार, मौसम पूर्वानुमान, रक्षा, कृषि, शिक्षा और इंटरनेट सेवा जैसे अनेकों क्षेत्रों में उपग्रहों की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण है। लेकिन जैसे-जैसे अंतरिक्ष में गतिविधियाँ बढ़ रही हैं, उपग्रहों को सुरक्षित और संतुलित रूप से संचालित करने के लिए एक प्रभावशाली नियामक ढांचे की आवश्यकता भी उत्पन्न हो गई है।
🔷 सैटेलाइट लॉन्चिंग क्या है?
सैटेलाइट लॉन्चिंग का अर्थ होता है किसी कृत्रिम उपग्रह को पृथ्वी की कक्षा या उससे बाहर स्थापित करना। इसे रॉकेट या लॉन्च व्हीकल की सहायता से अंतरिक्ष में भेजा जाता है।
मुख्य चरण:
- डिज़ाइन और निर्माण
- लॉन्चिंग व्हीकल का चयन
- प्रक्षेपण स्थल (Launchpad)
- लॉन्चिंग और कक्षा में प्रवेश
- ऑर्बिटल ऑपरेशन और ट्रैकिंग
🔷 कक्षा (Orbit) का अर्थ और प्रकार:
कक्षा वह मार्ग है जिस पर उपग्रह पृथ्वी के चारों ओर घूमता है।
प्रमुख कक्षाएँ:
- Geostationary Orbit (GEO) – पृथ्वी से लगभग 36,000 किमी दूर, उपग्रह पृथ्वी के एक ही स्थान पर स्थिर प्रतीत होता है।
- Medium Earth Orbit (MEO) – लगभग 2,000 से 36,000 किमी की ऊँचाई पर। नेविगेशन सैटेलाइट जैसे GPS के लिए।
- Low Earth Orbit (LEO) – लगभग 160 से 2,000 किमी की ऊँचाई पर। निगरानी, इमेजिंग, और इंटरनेट सैटेलाइट के लिए उपयुक्त।
- Polar Orbit / Sun-Synchronous Orbit – पृथ्वी के ध्रुवों से गुजरने वाली कक्षा। मौसम और पृथ्वी निगरानी के लिए।
🔷 कक्षा नियमन की आवश्यकता:
- ऑर्बिटल टकराव से बचाव
- स्पेक्ट्रम और ऑर्बिटल स्लॉट्स का न्यायसंगत आवंटन
- स्पेस डेब्रिस (मलबा) का प्रबंधन
- राष्ट्रीय सुरक्षा और रक्षा रणनीतियाँ
- निजी क्षेत्र की सहभागिता और नियंत्रण
🔷 अंतरराष्ट्रीय नियामक ढांचा:
1. Outer Space Treaty, 1967 (UN):
- अंतरिक्ष सभी देशों की साझी विरासत है।
- कोई देश अंतरिक्ष या कक्षा पर अधिकार नहीं कर सकता।
- शांति के उद्देश्यों के लिए ही अंतरिक्ष का उपयोग किया जाना चाहिए।
2. International Telecommunication Union (ITU):
- रेडियो फ्रीक्वेंसी स्पेक्ट्रम और ऑर्बिटल स्लॉट्स का आवंटन करता है।
- उपग्रह संचार में टकराव से बचाता है।
3. UN Committee on Peaceful Uses of Outer Space (COPUOS):
- अंतरिक्ष गतिविधियों में मानक स्थापित करने के लिए कार्यरत।
- “Long-Term Sustainability Guidelines” जारी किए गए हैं।
🔷 भारत में सैटेलाइट लॉन्चिंग और ऑर्बिट नियमन:
1. ISRO (Indian Space Research Organisation):
- भारत की सरकारी अंतरिक्ष एजेंसी, जो लॉन्चिंग और मिशनों का संचालन करती है।
2. IN-SPACe (Indian National Space Promotion and Authorization Center):
- निजी कंपनियों को लॉन्चिंग की अनुमति देता है और निगरानी करता है।
- Space Reform 2020 के तहत गठित।
3. NewSpace India Ltd (NSIL):
- ISRO की वाणिज्यिक शाखा जो उपग्रह सेवाओं को निजी और अंतरराष्ट्रीय ग्राहकों को प्रदान करती है।
4. Draft Space Activities Bill (भारत का प्रस्तावित कानून):
- निजी संस्थाओं द्वारा उपग्रह प्रक्षेपण, संचालन, और कक्षा उपयोग को विनियमित करने के लिए एक कानूनी ढांचा प्रस्तावित है।
- लाइसेंसिंग, उत्तरदायित्व, बीमा, मुआवजा आदि के लिए दिशा-निर्देश शामिल हैं।
🔷 प्रमुख चुनौतियाँ:
- स्पेस डेब्रिस (Space Debris):
पुराने उपग्रह, टूटी हुई रॉकेट बॉडीज़ और अन्य टुकड़ों से टकराव की संभावना बढ़ती जा रही है। - कक्षाओं की भीड़ (Orbital Congestion):
हजारों उपग्रहों के कारण GEO और LEO कक्षाओं में भीड़ हो रही है, जिससे सुरक्षित संचालन कठिन होता जा रहा है। - प्रौद्योगिकी पर नियंत्रण और सुरक्षा:
सैन्य उपग्रहों और ड्यूल यूज़ टेक्नोलॉजी के कारण अंतरराष्ट्रीय राजनीति जटिल होती जा रही है। - निजी क्षेत्र की निगरानी:
SpaceX जैसे संस्थानों के कारण अंतरिक्ष का व्यवसायीकरण हुआ है, लेकिन निगरानी और जवाबदेही भी आवश्यक है।
🔷 समाधान और भविष्य की दिशा:
- वैश्विक सहयोग: ITU और UNOOSA को अधिक अधिकार देना।
- Space Traffic Management (STM): एक अंतरराष्ट्रीय ऑर्बिटल ट्रैफिक नियम प्रणाली बनाना।
- भारत में कानून बनाना: Draft Space Activities Bill को शीघ्र लागू करना।
- स्पेस डेब्रिस को हटाने की तकनीकें: जैसे कि Active Debris Removal (ADR), Net Mechanism, या Lasers का उपयोग।
🔷 निष्कर्ष:
सैटेलाइट लॉन्चिंग और कक्षा नियमन केवल तकनीकी नहीं बल्कि कानूनी और रणनीतिक भी हैं। आज की वैश्विक प्रतिस्पर्धा में जहां हर देश अंतरिक्ष में अपनी स्थिति मजबूत करना चाहता है, वहीं संसाधनों की सीमितता और सुरक्षा की जटिलता नियमन की अनिवार्यता को रेखांकित करती है। भारत को अपने कानूनी ढांचे को जल्द सशक्त बनाकर वैश्विक नेतृत्व की भूमिका निभानी चाहिए ताकि अंतरिक्ष का उपयोग सुरक्षित, शांतिपूर्ण और न्यायसंगत बना रहे।