नया भ्रष्टाचार निरोधक कानून प्रभाव में: रिश्वत देने पर 7 साल तक की सजा संभव


नया भ्रष्टाचार निरोधक कानून प्रभाव में: रिश्वत देने पर 7 साल तक की सजा संभव

परिचय

भ्रष्टाचार भारत की प्रशासनिक और सामाजिक व्यवस्था के लिए लंबे समय से एक बड़ी चुनौती बना हुआ है। सरकारी कार्यों में पारदर्शिता, जवाबदेही और निष्पक्षता सुनिश्चित करने हेतु केंद्र सरकार ने भ्रष्टाचार निरोधक अधिनियम, 1988 (Prevention of Corruption Act, 1988) में 2018 में एक ऐतिहासिक संशोधन किया। इस संशोधन को राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने 2018 में अपनी मंजूरी दी, जिससे यह कानून अब अधिक सख्त और व्यापक रूप में लागू हो गया है।


प्रमुख विशेषताएँ: नया क्या है इस कानून में?

1. रिश्वत देने वाला भी अब अपराधी

जहां पहले केवल रिश्वत लेने वाले (लोक सेवक) पर दंडात्मक कार्रवाई होती थी, अब संशोधित कानून के तहत रिश्वत देने वाला व्यक्ति भी अपराधी माना जाएगा

  • सजा: अधिकतम 7 साल की कैद + जुर्माना
  • यदि व्यक्ति स्वयंभू होकर रिश्वत देता है, तो वह भी अब कानून के दायरे में आएगा।

2. कॉरपोरेट और कंपनियों पर भी शिकंजा

पहली बार किसी कंपनी द्वारा दिए गए “गैर-कानूनी लाभ” (Undue Advantage) को भी आपराधिक श्रेणी में रखा गया है। यदि कोई कंपनी रिश्वत देती है, तो उस पर भी मुकदमा चलेगा और जिम्मेदार अधिकारी को सजा हो सकती है


3. लोक सेवकों को रिश्वत लेने पर कड़ी सजा

  • भ्रष्टाचार में लिप्त सरकारी अधिकारी (लोक सेवक) को अब 3 साल से 7 साल तक की सजा, और गंभीर मामलों में 10 साल तक की सजा हो सकती है।
  • इसमें नकद, उपहार, सुविधा, अनुबंध या किसी भी प्रकार का अनुचित लाभ शामिल है।

4. अभियोजन की पूर्व स्वीकृति अनिवार्य

किसी सरकारी कर्मचारी के खिलाफ भ्रष्टाचार के मामले में मुकदमा चलाने के लिए अब सरकारी स्वीकृति (Sanction for Prosecution) आवश्यक है।

  • यह प्रावधान न्यायिक प्रक्रिया की दुरुपयोग से रक्षा करता है।
  • लेकिन साथ ही यह सुनिश्चित करता है कि हर शिकायत पर गंभीरता से विचार हो।

5. समयबद्ध जांच और सुनवाई का प्रावधान

अब भ्रष्टाचार से जुड़े मामलों की जांच और ट्रायल दो साल के भीतर पूरा करना आवश्यक होगा। विशेष परिस्थितियों में यह अवधि अधिकतम 4 साल तक बढ़ाई जा सकती है।
यह प्रावधान लंबे समय तक न्याय में देरी को रोकने की दिशा में एक बड़ा कदम माना जा रहा है।


6. “उचित प्रक्रिया” और “सुविचारित न्याय” पर ज़ोर

कानून में स्पष्ट किया गया है कि रिश्वत की शिकायत मिलने पर तुरंत गिरफ्तारी नहीं की जा सकती जब तक यह साबित न हो जाए कि:

  • लोक सेवक ने जानबूझकर अनुचित लाभ प्राप्त किया है।
  • शिकायत प्रथम दृष्टया सत्य प्रतीत होती है।

7. मुखबिर और गवाहों की सुरक्षा

संशोधित कानून में Whistleblower Protection का विशेष ध्यान रखा गया है। अब भ्रष्टाचार की शिकायत करने वाले व्यक्ति की पहचान और सुरक्षा को कानूनी रूप से संरक्षित किया गया है।
इससे आम जनता को अब डर के बिना भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाने का हौसला मिलेगा।


महत्व और प्रभाव

सकारात्मक प्रभाव:

  • सरकारी कार्यालयों में पारदर्शिता और जवाबदेही बढ़ेगी।
  • रिश्वतखोरी को अब “दोनों पक्षों” से रोका जाएगा।
  • कंपनियों पर निगरानी कड़ी होगी।
  • आम जनता को न्याय की उम्मीद बढ़ेगी।

चुनौतियाँ:

  • अभियोजन की पूर्व अनुमति प्रक्रिया कहीं-कहीं भ्रष्ट लोकसेवकों के बचाव का हथियार न बन जाए।
  • पुलिस और जांच एजेंसियों को निष्पक्षता और दक्षता से कार्य करना होगा।
  • आम जनता को इस कानून की जानकारी और समझ होनी चाहिए।

निष्कर्ष

नया भ्रष्टाचार निरोधक कानून भारत में स्वच्छ प्रशासन की दिशा में एक ऐतिहासिक और निर्णायक कदम है। इसमें रिश्वत देने और लेने, दोनों को दंडनीय बनाकर कानून की धार को मजबूत किया गया है।
यदि यह कानून ईमानदारी और पारदर्शिता से लागू किया जाए, तो यह भ्रष्टाचार की जड़ें कमजोर करने में प्रभावी सिद्ध हो सकता है। इसके साथ-साथ जन जागरूकता, राजनीतिक इच्छाशक्ति और स्वतंत्र जांच प्रणाली की भी भूमिका अहम होगी।


🔎 महत्वपूर्ण तथ्य संक्षेप में:

तत्व विवरण
अधिनियम भ्रष्टाचार निरोधक (संशोधन) अधिनियम, 2018
राष्ट्रपति की मंजूरी जुलाई 2018 (रामनाथ कोविंद)
रिश्वत देने पर सजा अधिकतम 7 वर्ष कैद + जुर्माना
जांच और ट्रायल की समयसीमा 2 वर्ष (अधिकतम 4 वर्ष)
अभियोजन के लिए पूर्व अनुमति अनिवार्य (लोक सेवकों के लिए)