Company law related short answer

प्रश्न 1: कंपनी क्या है?

उत्तर:
कंपनी एक कृत्रिम वैधानिक व्यक्ति (Artificial Legal Person) है जिसे विधि द्वारा मान्यता प्राप्त होती है। यह एक ऐसा संगठन है जिसे विशेष उद्देश्यों की पूर्ति हेतु गठित किया जाता है, जैसे व्यापार करना, लाभ अर्जित करना, आदि। कंपनी की अपनी एक स्वतंत्र पहचान होती है जो इसके सदस्यों से अलग होती है। इसके पास संपत्ति रखने, अनुबंध करने, मुकदमा दायर करने और उस पर मुकदमा चलाने का अधिकार होता है। कंपनी के सदस्य (जैसे शेयरधारक) उसके मालिक हो सकते हैं, लेकिन कंपनी की देनदारियों के लिए व्यक्तिगत रूप से उत्तरदायी नहीं होते। भारत में कंपनियों का गठन और संचालन कंपनी अधिनियम, 2013 के अंतर्गत किया जाता है। यह अधिनियम कंपनी की स्थापना, कार्यप्रणाली, निदेशकों के अधिकार एवं कर्तव्यों, लेखा परीक्षा, लिक्विडेशन आदि का प्रावधान करता है।


प्रश्न 2: कंपनी की प्रमुख विशेषताएं क्या हैं?

उत्तर:
कंपनी की प्रमुख विशेषताएं निम्नलिखित हैं:

  1. स्वतंत्र कानूनी इकाई: कंपनी का अस्तित्व उसके सदस्यों से अलग होता है।
  2. स्थायी उत्तराधिकार: कंपनी का अस्तित्व उसके सदस्यों की मृत्यु या त्यागपत्र के बाद भी बना रहता है।
  3. सीमित देयता: कंपनी के सदस्यों की देयता उनकी पूंजी तक सीमित होती है।
  4. संपत्ति रखने का अधिकार: कंपनी स्वयं अपने नाम से संपत्ति रख सकती है।
  5. सामूहिक प्रबंधन: कंपनी का संचालन निदेशक मंडल (Board of Directors) के माध्यम से होता है।
  6. कृत्रिम व्यक्ति: कंपनी मानव नहीं है, लेकिन कानून द्वारा उसे व्यक्ति का दर्जा प्राप्त है।
    इन विशेषताओं के कारण ही कंपनी व्यापार करने का एक लोकप्रिय माध्यम बन चुकी है।

प्रश्न 3: निजी कंपनी और सार्वजनिक कंपनी में क्या अंतर है?

उत्तर:
निजी कंपनी (Private Company) और सार्वजनिक कंपनी (Public Company) में निम्नलिखित मुख्य अंतर होते हैं:

  1. सदस्यों की संख्या: निजी कंपनी में न्यूनतम 2 और अधिकतम 200 सदस्य हो सकते हैं, जबकि सार्वजनिक कंपनी में न्यूनतम 7 और अधिकतम की कोई सीमा नहीं है।
  2. शेयर स्थानांतरण: निजी कंपनी में शेयरों का स्थानांतरण सीमित होता है जबकि सार्वजनिक कंपनी में यह स्वतंत्र होता है।
  3. पूंजी जुटाना: सार्वजनिक कंपनी आम जनता से शेयर जारी कर पूंजी जुटा सकती है, जबकि निजी कंपनी नहीं।
  4. न्यूनतम पूंजी: पहले निजी कंपनी के लिए ₹1 लाख और सार्वजनिक के लिए ₹5 लाख न्यूनतम पूंजी थी, परंतु अब यह अनिवार्यता समाप्त कर दी गई है।
  5. नाम में अंतर: निजी कंपनी के नाम के अंत में “Private Limited” और सार्वजनिक कंपनी में “Limited” शब्द लिखा होता है।

प्रश्न 4: कंपनी की सीमित देयता का क्या अर्थ है?

उत्तर:
कंपनी की सीमित देयता का अर्थ है कि कंपनी के सदस्य (शेयरधारक) कंपनी की हानियों या ऋणों के लिए केवल उतनी ही राशि के लिए उत्तरदायी होते हैं, जितनी उन्होंने कंपनी में निवेश की है या जितनी राशि उनके द्वारा चुकाई जानी बाकी है। यदि कंपनी दिवालिया हो जाती है, तो उसके लेनदार सदस्य की व्यक्तिगत संपत्ति पर दावा नहीं कर सकते। यह व्यवस्था निवेशकों को सुरक्षा प्रदान करती है और उन्हें जोखिम से मुक्त कर व्यवसाय में भाग लेने के लिए प्रेरित करती है। यह कंपनी की सबसे महत्वपूर्ण विशेषताओं में से एक मानी जाती है। उदाहरण के लिए, अगर किसी सदस्य ने ₹1 लाख के शेयर लिए हैं और ₹75,000 चुका चुका है, तो उसकी देयता शेष ₹25,000 तक ही सीमित होगी।


प्रश्न 5: कंपनी का पृथक कानूनी अस्तित्व क्या है?

उत्तर:
कंपनी का पृथक कानूनी अस्तित्व (Separate Legal Entity) का अर्थ है कि कंपनी का अस्तित्व उसके सदस्यों से अलग होता है। एक बार जब कोई कंपनी कंपनी अधिनियम के अंतर्गत पंजीकृत हो जाती है, तो वह एक स्वतंत्र इकाई बन जाती है जो अपने नाम से संपत्ति रख सकती है, करार कर सकती है, और मुकदमा दायर कर सकती है। इसके सदस्य इसके ऋणों या देनदारियों के लिए व्यक्तिगत रूप से जिम्मेदार नहीं होते। यह सिद्धांत प्रसिद्ध केस “Salomon v. Salomon & Co. Ltd.” (1897) में स्थापित हुआ, जिसमें अदालत ने माना कि कंपनी अपने प्रमोटर से अलग इकाई है। यह सिद्धांत कंपनी को स्थायित्व और कानूनी संरक्षण प्रदान करता है।


प्रश्न 6: निदेशक कौन होता है? उसके क्या कर्तव्य होते हैं?

उत्तर:
कंपनी का निदेशक (Director) वह व्यक्ति होता है जिसे कंपनी के कार्यों को संचालित करने, नीति निर्धारण करने और महत्वपूर्ण निर्णय लेने के लिए चुना जाता है। निदेशक कंपनी का प्रतिनिधि होता है और उसका कार्य कंपनी के हित में निर्णय लेना होता है। निदेशकों के प्रमुख कर्तव्य हैं:

  1. कंपनी के हितों की रक्षा करना।
  2. निष्पक्ष और ईमानदार रहना।
  3. हितों का टकराव न होने देना।
  4. कानूनों और अधिनियमों का पालन करना।
  5. गोपनीयता बनाए रखना।
    कंपनी अधिनियम, 2013 की धारा 166 निदेशकों के कर्तव्यों को परिभाषित करती है। यदि निदेशक अपने कर्तव्यों का उल्लंघन करता है तो उस पर जुर्माना या दंड लग सकता है।

प्रश्न 7: कंपनी की पूंजी क्या होती है? इसके प्रकार बताइए।

उत्तर:
कंपनी की पूंजी वह धनराशि होती है जिसे कंपनी अपने कार्यों को चलाने, विस्तार करने और विकास करने के लिए जुटाती है। इसे शेयर पूंजी कहते हैं और यह मुख्य रूप से सदस्यों से प्राप्त होती है। इसके मुख्य प्रकार हैं:

  1. अधिकृत पूंजी (Authorized Capital): वह अधिकतम राशि जिसे कंपनी इश्यू कर सकती है।
  2. इश्यू की गई पूंजी (Issued Capital): वह राशि जिसे कंपनी निवेशकों को शेयर के रूप में ऑफर करती है।
  3. अधिदत्त पूंजी (Subscribed Capital): वह पूंजी जिसे निवेशकों ने खरीदा है।
  4. चुकता पूंजी (Paid-up Capital): वह पूंजी जो निवेशकों ने वास्तव में भुगतान की है।
  5. आरक्षित पूंजी (Reserve Capital): वह पूंजी जिसे आपात स्थिति के लिए रखा जाता है।
    इन सभी का प्रबंधन कंपनी अधिनियम द्वारा विनियमित होता है।

प्रश्न 8: शेयर और डिबेंचर में क्या अंतर है?

उत्तर:
शेयर और डिबेंचर दोनों कंपनी द्वारा पूंजी जुटाने के साधन हैं, लेकिन इनमें कई अंतर होते हैं:

  1. स्वामित्व: शेयर धारक कंपनी के मालिक होते हैं, जबकि डिबेंचर धारक ऋणदाता होते हैं।
  2. रिटर्न: शेयर पर लाभांश मिलता है (जो लाभ पर निर्भर करता है), जबकि डिबेंचर पर निश्चित ब्याज मिलता है।
  3. जोखिम: शेयर जोखिमपूर्ण होते हैं, जबकि डिबेंचर अपेक्षाकृत सुरक्षित होते हैं।
  4. हक: शेयरधारकों को मतदान का अधिकार होता है, डिबेंचर धारकों को नहीं।
  5. परिसमापन: कंपनी बंद होने पर डिबेंचर धारकों को पहले भुगतान किया जाता है।
    इस प्रकार, निवेशक अपनी प्राथमिकता के अनुसार दोनों में से चयन करते हैं – जोखिम उठाने वाले शेयर लेते हैं और सुरक्षित आय चाहने वाले डिबेंचर।

प्रश्न 9: मेमोरेंडम ऑफ एसोसिएशन (MOA) क्या है?

उत्तर:
मेमोरेंडम ऑफ एसोसिएशन (MOA) कंपनी का संवैधानिक दस्तावेज होता है, जो कंपनी की सीमाओं, उद्देश्यों और अधिकारों को परिभाषित करता है। यह दस्तावेज कंपनी के बाहरी संबंधों को दर्शाता है और यह बताता है कि कंपनी किस उद्देश्य से बनाई गई है। MOA के प्रमुख खंड होते हैं:

  1. नाम खंड – कंपनी का नाम।
  2. पंजीकृत कार्यालय खंड – कंपनी का राज्य।
  3. उद्देश्य खंड – मुख्य एवं सहायक उद्देश्यों का विवरण।
  4. देयता खंड – सदस्यों की देयता का प्रकार।
  5. पूंजी खंड – अधिकृत पूंजी का विवरण।
    MOA में उल्लिखित उद्देश्यों से बाहर जाकर कोई कार्य करना अल्ट्रा वायर्स माना जाता है और ऐसा कार्य अमान्य होता है।

प्रश्न 10: आर्टिकल्स ऑफ एसोसिएशन (AOA) क्या है?

उत्तर:
आर्टिकल्स ऑफ एसोसिएशन (AOA) कंपनी के आंतरिक प्रबंधन का दस्तावेज होता है। यह निदेशकों, सदस्यों और कंपनी के बीच अधिकारों और कर्तव्यों को परिभाषित करता है। AOA में कंपनी के संचालन से जुड़े नियम होते हैं, जैसे – निदेशकों की नियुक्ति, बैठकें, वोटिंग प्रक्रिया, लाभांश वितरण आदि। यदि MOA कंपनी के उद्देश्य और ढांचे को परिभाषित करता है, तो AOA उसके कामकाज का तरीका बताता है। यह दस्तावेज कंपनी अधिनियम के अधीन ही होना चाहिए – यानी AOA की कोई भी धारा MOA या अधिनियम का उल्लंघन नहीं कर सकती। कंपनी AOA के अनुसार कार्य करने की बाध्य होती है। यह दस्तावेज सार्वजनिक होता है और कोई भी व्यक्ति इसकी प्रति मांग सकता है।


प्रश्न 11: कंपनी का गठन कैसे होता है?

उत्तर:
कंपनी का गठन एक वैधानिक प्रक्रिया है, जो कंपनी अधिनियम, 2013 के अंतर्गत की जाती है। इसमें निम्नलिखित चरण शामिल होते हैं:

  1. नाम की स्वीकृति: MCA (Ministry of Corporate Affairs) से कंपनी के नाम को स्वीकृति प्राप्त करना।
  2. MOA और AOA की तैयारी: कंपनी के उद्देश्य और नियमों का निर्धारण करना।
  3. प्रपत्रों की फाइलिंग: INC-32 (SPICe+), INC-33, INC-34 आदि फॉर्म भरकर ROC को जमा करना।
  4. फीस और स्टांप शुल्क जमा करना।
  5. निगम पंजीयन प्रमाण पत्र (Certificate of Incorporation) प्राप्त करना।
    यह प्रमाण पत्र मिलने के बाद कंपनी एक वैधानिक संस्था बन जाती है और उसका पृथक कानूनी अस्तित्व आरंभ होता है।

प्रश्न 12: पब्लिक कंपनी और प्राइवेट कंपनी के बीच क्या मुख्य अंतर है?

उत्तर:
पब्लिक कंपनी और प्राइवेट कंपनी के बीच प्रमुख अंतर इस प्रकार हैं:

  1. सदस्य संख्या: प्राइवेट में न्यूनतम 2 और अधिकतम 200, पब्लिक में न्यूनतम 7 और अधिकतम की कोई सीमा नहीं।
  2. शेयर स्थानांतरण: प्राइवेट कंपनी में प्रतिबंधित होता है, पब्लिक में स्वतंत्र।
  3. निवेश: पब्लिक कंपनी जनता से शेयर जारी कर सकती है, प्राइवेट नहीं।
  4. नियम: प्राइवेट कंपनियों को कुछ नियमों में छूट मिलती है, पब्लिक कंपनियों को नहीं।
  5. नाम: प्राइवेट कंपनी के नाम में “Private Limited” और पब्लिक में “Limited” शब्द होता है।
    इस प्रकार, प्राइवेट कंपनियाँ सीमित सदस्यों के लिए होती हैं जबकि पब्लिक कंपनियाँ बड़े स्तर पर पूंजी जुटाने के लिए उपयुक्त होती हैं।

प्रश्न 13: कंपनी के लेखापरीक्षक (Auditor) की भूमिका क्या होती है?

उत्तर:
कंपनी का लेखापरीक्षक एक स्वतंत्र व्यक्ति या फर्म होती है जिसे कंपनी की वित्तीय पुस्तकों और खातों की जांच हेतु नियुक्त किया जाता है। इसका मुख्य उद्देश्य यह देखना होता है कि कंपनी के वित्तीय रिकॉर्ड सत्य और निष्पक्ष हैं या नहीं। लेखापरीक्षक कंपनी के खातों की ऑडिट रिपोर्ट तैयार करता है जो सदस्यों को प्रस्तुत की जाती है। उसकी भूमिका है:

  1. सभी वित्तीय दस्तावेजों की जांच करना।
  2. किसी प्रकार की धोखाधड़ी की संभावना को उजागर करना।
  3. लेखांकन मानकों के पालन की जांच करना।
  4. वार्षिक ऑडिट रिपोर्ट तैयार करना।
    कंपनी अधिनियम, 2013 में लेखापरीक्षकों की नियुक्ति, कार्यकाल, कर्तव्यों और उनके अधिकारों का विस्तृत विवरण दिया गया है।

प्रश्न 14: वार्षिक आम बैठक (AGM) क्या होती है?

उत्तर:
वार्षिक आम बैठक (Annual General Meeting – AGM) कंपनी के सदस्यों की एक अनिवार्य बैठक होती है, जिसे प्रत्येक वित्तीय वर्ष में बुलाना आवश्यक होता है। यह सार्वजनिक कंपनियों के लिए अनिवार्य है, जबकि प्राइवेट कंपनियों को इससे छूट मिल सकती है। AGM में निदेशक बोर्ड द्वारा वर्ष भर का लेखा-जोखा सदस्यों को प्रस्तुत किया जाता है। इसमें मुख्य रूप से निम्नलिखित विषयों पर चर्चा होती है:

  1. निदेशकों की रिपोर्ट और ऑडिट रिपोर्ट।
  2. लाभांश की घोषणा।
  3. निदेशकों और लेखापरीक्षकों की नियुक्ति।
  4. वित्तीय विवरण की स्वीकृति।
    AGM का आयोजन कंपनी की पारदर्शिता और उत्तरदायित्व सुनिश्चित करने के लिए किया जाता है।

प्रश्न 15: कंपनी को समाप्त (Winding Up) कैसे किया जाता है?

उत्तर:
कंपनी को समाप्त करना या Winding Up एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें कंपनी की संपत्तियों को बेचकर उसके ऋण चुकाए जाते हैं और कंपनी का अस्तित्व समाप्त कर दिया जाता है। Winding Up के मुख्य प्रकार हैं:

  1. स्वैच्छिक समाप्ति (Voluntary Winding Up): जब कंपनी स्वयं निर्णय लेती है।
  2. अनिवार्य समाप्ति (Compulsory Winding Up): जब न्यायालय के आदेश से होता है, जैसे दिवालियापन या कानून उल्लंघन के कारण।
  3. सारांश समाप्ति (Fast Track Exit): छोटे कंपनियों के लिए सरल प्रक्रिया।
    प्रक्रिया में एक परिसमापक (Liquidator) नियुक्त होता है जो संपत्तियों को बेचता है और ऋण निपटाता है। अंतिम रूप से ROC कंपनी का नाम रजिस्टर से हटा देता है।

यह रहे प्रश्न 15 से 30 तक के Company Law से संबंधित उत्तर, प्रत्येक लगभग 100 से 150 शब्दों में हिंदी में:


प्रश्न 16: स्टेट्यूटरी मीटिंग क्या होती है?

उत्तर:
स्टेट्यूटरी मीटिंग वह पहली अनिवार्य बैठक होती है जिसे एक सार्वजनिक कंपनी को अपने गठन के बाद नियत समय में आयोजित करना होता है। यह बैठक कंपनी की स्थापना के बाद 1 से 6 माह के भीतर आयोजित की जानी चाहिए, लेकिन कंपनी के कार्यारंभ से 6 महीने से अधिक नहीं होना चाहिए। इस बैठक का उद्देश्य नए सदस्यों को कंपनी की स्थापना, पूंजी, संविदाओं और अन्य महत्त्वपूर्ण विषयों की जानकारी देना होता है। बैठक से पहले कंपनी को स्टेट्यूटरी रिपोर्ट बनानी होती है, जिसमें निदेशकों की सूची, शेयरों का विवरण, प्राप्त राशि, खर्च आदि होता है। यह रिपोर्ट सदस्यों को भेजी जाती है और रजिस्ट्रार को भी जमा करनी होती है। यह बैठक कंपनी की पारदर्शिता बनाए रखने और सदस्यों को प्रारंभिक गतिविधियों से अवगत कराने का माध्यम होती है।


प्रश्न 17: लाभांश (Dividend) क्या है?

उत्तर:
लाभांश (Dividend) कंपनी के द्वारा अपने मुनाफे का वह हिस्सा होता है जो शेयरधारकों को उनके निवेश पर प्रतिफल (Return) स्वरूप वितरित किया जाता है। यह राशि कंपनी की वार्षिक आम बैठक में निदेशक मंडल की सिफारिश पर सदस्यों की मंजूरी से दी जाती है। लाभांश नकद, शेयर, या अन्य रूपों में हो सकता है। कंपनी अधिनियम, 2013 की धारा 123 के अंतर्गत लाभांश की घोषणा केवल मुनाफे या पिछले वर्षों के संचित लाभ से ही की जा सकती है। इसके वितरण से पहले कुछ अंश आरक्षित निधि में जमा करना भी आवश्यक होता है। लाभांश का भुगतान एक निश्चित समयसीमा के भीतर किया जाना होता है, अन्यथा उस पर ब्याज देना पड़ सकता है। लाभांश कंपनी के वित्तीय स्वास्थ्य और शेयरधारकों को आकर्षित करने का प्रमुख संकेतक होता है।


प्रश्न 18: निदेशक मंडल (Board of Directors) क्या होता है?

उत्तर:
निदेशक मंडल (Board of Directors) कंपनी का ऐसा निकाय होता है जो कंपनी के नीतिगत निर्णय लेता है और उसका संचालन करता है। इसमें एक या अधिक निदेशक होते हैं जिन्हें शेयरधारकों द्वारा चुना जाता है। ये निदेशक कंपनी की कार्यवाही, वित्तीय नियंत्रण, कर्मचारियों की नियुक्ति, रणनीति निर्माण और अनुपालन की जिम्मेदारी निभाते हैं। कंपनी अधिनियम, 2013 के अनुसार, एक सार्वजनिक कंपनी में न्यूनतम 3, प्राइवेट में 2 और वन पर्सन कंपनी में 1 निदेशक अनिवार्य होते हैं। बोर्ड की बैठक नियमित अंतराल पर होती है और महत्त्वपूर्ण प्रस्तावों को पारित किया जाता है। निदेशकों को उनके कर्तव्यों और उत्तरदायित्वों के अनुसार काम करना होता है। यदि वे अपने पद का दुरुपयोग करते हैं, तो उनके विरुद्ध दंडात्मक कार्रवाई हो सकती है।


प्रश्न 19: कंपनी सचिव (Company Secretary) कौन होता है?

उत्तर:
कंपनी सचिव एक महत्वपूर्ण अधिकारी होता है जो कंपनी अधिनियम और अन्य कानूनों का पालन सुनिश्चित करता है। वह निदेशक मंडल को विधिक सलाह देता है, बैठकें आयोजित करता है, रिकॉर्ड रखता है और कंपनी के आंतरिक व बाह्य दस्तावेजों का प्रबंधन करता है। कंपनी सचिव की नियुक्ति केवल ऐसी कंपनियों में की जाती है जिनकी चुकता पूंजी ₹10 करोड़ या उससे अधिक हो। सचिव की जिम्मेदारियों में AGM, बोर्ड मीटिंग का संचालन, रजिस्ट्रार को रिटर्न फाइल करना, शेयर ट्रांसफर प्रक्रिया देखना और कानूनी सलाह देना शामिल होता है। कंपनी सचिव को ICSI (Institute of Company Secretaries of India) से प्रमाणित होना अनिवार्य है। यह पद कंपनी की कानूनी स्थिति और अनुपालन के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण होता है।


प्रश्न 20: धारा 8 कंपनी (Section 8 Company) क्या होती है?

उत्तर:
धारा 8 कंपनी एक ऐसी गैर-लाभकारी संस्था होती है जो धर्म, शिक्षा, समाज सेवा, विज्ञान, कला, खेल आदि जैसे उद्देश्यों के लिए स्थापित की जाती है। इसे कंपनी अधिनियम, 2013 की धारा 8 के अंतर्गत पंजीकृत किया जाता है। इसका उद्देश्य लाभ कमाना नहीं बल्कि सामाजिक हित के कार्य करना होता है। इस कंपनी को “लाभांश” वितरित करने की अनुमति नहीं होती, बल्कि उसका सारा लाभ उसी उद्देश्य में लगाया जाता है जिसके लिए वह स्थापित की गई है। धारा 8 कंपनी को कई कर लाभ (Tax Benefits) भी प्राप्त होते हैं, जैसे आयकर अधिनियम की धारा 12A, 80G के तहत छूट। उदाहरण: NGOs, चैरिटेबल ट्रस्ट्स, आदि। इसके लिए सरकार से विशेष अनुमति प्राप्त करनी होती है।


प्रश्न 21: शेयर प्रमाणपत्र क्या होता है?

उत्तर:
शेयर प्रमाणपत्र वह दस्तावेज होता है जो किसी व्यक्ति के कंपनी में स्वामित्व को दर्शाता है। जब कोई व्यक्ति कंपनी के शेयर खरीदता है, तो कंपनी उसे एक प्रमाणपत्र जारी करती है जिसमें धारक के नाम, शेयरों की संख्या, मूल्य और जारी करने की तिथि का उल्लेख होता है। यह प्रमाणपत्र कंपनी अधिनियम के अनुसार एक वैधानिक दस्तावेज होता है। इसे कंपनी को शेयर जारी करने के 2 माह के भीतर देना होता है। यह प्रमाणित करता है कि धारक कंपनी का सदस्य है और उसे लाभांश, मतदान का अधिकार और कंपनी की आम बैठकों में भाग लेने का हक है। वर्तमान में इलेक्ट्रॉनिक फॉर्म (Demat) में भी शेयर प्रमाणपत्र उपलब्ध होते हैं जो डीमैट अकाउंट में सुरक्षित रहते हैं।


प्रश्न 22: रिजोल्यूशन (संकल्प) क्या होता है? इसके प्रकार बताइए।

उत्तर:
रिजोल्यूशन (Resolution) कंपनी के निदेशक मंडल या सदस्यों द्वारा बैठकों में पारित औपचारिक निर्णय होता है। यह निर्णय कंपनी की विभिन्न गतिविधियों को लागू करने के लिए लिया जाता है। इसके तीन प्रमुख प्रकार होते हैं:

  1. साधारण संकल्प (Ordinary Resolution): सामान्य मामलों जैसे निदेशक की नियुक्ति, लेखापरीक्षक की नियुक्ति आदि के लिए।
  2. विशेष संकल्प (Special Resolution): MOA या AOA में परिवर्तन, नाम बदलना, शेयर पूंजी में परिवर्तन आदि जैसे महत्त्वपूर्ण निर्णयों के लिए। इसमें 75% बहुमत आवश्यक होता है।
  3. बोर्ड संकल्प (Board Resolution): निदेशक मंडल की बैठकों में पारित निर्णय, जैसे खाता खोलना, ऋण लेना आदि।
    रिजोल्यूशन कंपनी के निर्णयों की वैधानिक

यह रहे कंपनी अधिनियम से संबंधित प्रश्न 22 से 30 तक के उत्तर, प्रत्येक उत्तर 100 से 150 शब्दों में हिंदी में तैयार किया गया है:


प्रश्न 22: शेयर पूंजी में परिवर्तन कैसे किया जा सकता है?

उत्तर:
कंपनी अधिनियम, 2013 की धारा 61 के अनुसार, कंपनी अपनी अधिकृत शेयर पूंजी में परिवर्तन कर सकती है यदि उसके मेमोरेंडम ऑफ एसोसिएशन (MOA) में ऐसा प्रावधान हो। इसके लिए निम्न प्रक्रिया अपनाई जाती है:

  1. निदेशक मंडल प्रस्ताव पारित करता है।
  2. कंपनी आम सभा में विशेष प्रस्ताव पारित करती है।
  3. परिवर्तन की सूचना रजिस्ट्रार ऑफ कंपनीज़ (ROC) को प्रपत्र SH-7 में दी जाती है।
    परिवर्तन के प्रकार:
  • अधिकृत पूंजी बढ़ाना या घटाना
  • शेयरों का विभाजन या समेकन
  • शेयरों का वर्ग बदलना
    यह प्रक्रिया कंपनी को आवश्यकतानुसार पूंजी संरचना में लचीलापन देती है। परिवर्तन के बाद MOA में उपयुक्त संशोधन भी करना आवश्यक होता है।

प्रश्न 23: लाभांश (Dividend) क्या है? यह कैसे घोषित किया जाता है?

उत्तर:
लाभांश वह राशि होती है जो कंपनी अपने मुनाफे में से शेयरधारकों को उनके निवेश पर देती है। यह निदेशक मंडल द्वारा अनुशंसा के बाद आम सभा में पारित कर घोषित किया जाता है। लाभांश दो प्रकार के होते हैं:

  1. अंतरिम लाभांश (Interim Dividend): वित्तीय वर्ष के बीच में घोषित।
  2. अंतिम लाभांश (Final Dividend): वर्ष के अंत में घोषित।
    लाभांश केवल तभी दिया जा सकता है जब कंपनी के पास पर्याप्त लाभ हो और वह कंपनी अधिनियम की धारा 123 के तहत अनुमत हो। लाभांश की घोषणा के बाद उसे 30 दिनों के भीतर भुगतान करना अनिवार्य है, अन्यथा दंड का प्रावधान होता है। यह कंपनी की वित्तीय स्थिति और निवेशकों के प्रति उत्तरदायित्व को दर्शाता है।

प्रश्न 24: कंपनी सचिव (Company Secretary) कौन होता है?

उत्तर:
कंपनी सचिव वह अधिकारी होता है जो कंपनी के विधिक, प्रशासनिक और शासन से जुड़े कार्यों को संभालता है। भारत में केवल वे ही व्यक्ति कंपनी सचिव बन सकते हैं जो इंस्टीट्यूट ऑफ कंपनी सेक्रेटरीज ऑफ इंडिया (ICSI) से मान्यता प्राप्त हों। सार्वजनिक कंपनियों जिनकी चुकता पूंजी ₹10 करोड़ या अधिक हो, उनके लिए कंपनी सचिव नियुक्त करना अनिवार्य है। सचिव के कार्यों में शामिल हैं:

  • बोर्ड बैठकें और आम सभाएं आयोजित करना
  • स्टेट्यूटरी रिकॉर्ड बनाए रखना
  • ROC फाइलिंग करना
  • निदेशकों को विधिक परामर्श देना
  • कॉर्पोरेट गवर्नेंस सुनिश्चित करना
    कंपनी सचिव, कंपनी और नियामक निकायों के बीच सेतु की भूमिका निभाता है।

प्रश्न 25: शेयर प्रमाण पत्र क्या है?

उत्तर:
शेयर प्रमाण पत्र एक वैधानिक दस्तावेज होता है जो यह प्रमाणित करता है कि धारक कंपनी का निर्दिष्ट संख्या में शेयरों का मालिक है। यह दस्तावेज कंपनी द्वारा जारी किया जाता है और उस पर कंपनी की मुहर, निदेशकों के हस्ताक्षर, और जारी करने की तिथि होती है।
कंपनी अधिनियम, 2013 के तहत, कंपनी को शेयर आवंटन के 2 महीने के भीतर प्रमाण पत्र जारी करना अनिवार्य होता है। यह दस्तावेज मालिकाना हक का प्रतीक होता है और इसे एक संपत्ति के रूप में माना जाता है जिसे गिरवी रखा जा सकता है या बेचा जा सकता है। यदि प्रमाण पत्र खो जाए तो उसका डुप्लीकेट जारी कराया जा सकता है, परंतु यह प्रक्रिया नियमानुसार होती है।


प्रश्न 26: प्रॉक्सी क्या होता है?

उत्तर:
प्रॉक्सी वह व्यक्ति होता है जिसे किसी सदस्य द्वारा अधिकृत किया जाता है कि वह उसकी अनुपस्थिति में कंपनी की बैठक में भाग ले और मतदान करे। कंपनी अधिनियम, 2013 की धारा 105 में प्रॉक्सी से संबंधित प्रावधान दिए गए हैं।
मुख्य बिंदु:

  • प्रॉक्सी कोई भी व्यक्ति हो सकता है, जरूरी नहीं कि वह सदस्य हो।
  • प्रॉक्सी फॉर्म बैठक से 48 घंटे पहले जमा करना होता है।
  • वह केवल वोट डाल सकता है, चर्चा में भाग नहीं ले सकता (जब तक AOA अन्यथा न कहे)।
  • एक व्यक्ति एक से अधिक सदस्यों का प्रॉक्सी बन सकता है।
    यह प्रावधान उन सदस्यों को सुविधा देता है जो व्यक्तिगत रूप से बैठक में उपस्थित नहीं हो सकते।

प्रश्न 27: विशेष प्रस्ताव (Special Resolution) क्या होता है?

उत्तर:
विशेष प्रस्ताव कंपनी अधिनियम की धारा 114(2) के अंतर्गत आता है। यह ऐसा प्रस्ताव होता है जो कंपनी की आम बैठक में पारित किया जाता है और जिसमें उपस्थित सदस्यों द्वारा डाले गए कुल मतों में से कम से कम 75% मत पक्ष में होने चाहिए।
यह प्रस्ताव महत्वपूर्ण मामलों के लिए आवश्यक होता है, जैसे:

  • MOA या AOA में संशोधन
  • कंपनी का नाम परिवर्तन
  • अधिकृत पूंजी में परिवर्तन
  • निदेशकों को विशेष अधिकार देना
  • कंपनी का वाइंडिंग अप
    विशेष प्रस्ताव को पारित करने से पहले इसका स्पष्ट नोटिस सदस्यों को भेजा जाता है, ताकि वे गंभीरता से विचार कर सकें। यह कंपनी की नीतिगत पारदर्शिता सुनिश्चित करता है।

प्रश्न 28: अंशधारक और गारंटीधारी कंपनी में क्या अंतर है?

उत्तर:
कंपनियों को उनके गठन के आधार पर दो प्रमुख प्रकारों में बांटा जाता है:

  1. अंशधारक कंपनी (Company Limited by Shares): इसमें सदस्यों की देयता उनके द्वारा लिए गए शेयरों की राशि तक सीमित होती है। यह व्यापारिक लाभ के लिए होती है।
  2. गारंटीधारी कंपनी (Company Limited by Guarantee): इसमें सदस्य एक निश्चित राशि की गारंटी देते हैं, जो कंपनी के वाइंडिंग अप के समय दी जाती है। ये कंपनियां प्रायः गैर-लाभकारी कार्यों के लिए होती हैं, जैसे: शिक्षा, धर्म, समाज सेवा आदि।
    अंशधारक कंपनी में शेयर पूंजी होती है, जबकि गारंटीधारी कंपनी में आमतौर पर शेयर नहीं होते। दोनों का उद्देश्य, पूंजी संरचना और उत्तरदायित्व में बड़ा अंतर होता है।

प्रश्न 29: अल्ट्रा वायर्स अधिनियम क्या है?

उत्तर:
“अल्ट्रा वायर्स” लैटिन शब्द है जिसका अर्थ है “अधिकार से बाहर”। कंपनी अधिनियम के अनुसार, यदि कोई कंपनी ऐसा कार्य करती है जो उसके मेमोरेंडम ऑफ एसोसिएशन (MOA) में उल्लिखित उद्देश्यों से बाहर है, तो वह कार्य अल्ट्रा वायर्स कहलाता है।
ऐसे कार्य अवैध माने जाते हैं और उन्हें वैध नहीं बनाया जा सकता, भले ही सभी सदस्य सहमत हों। उदाहरण के लिए, यदि कंपनी का उद्देश्य शिक्षा प्रदान करना है, और वह होटल व्यवसाय शुरू करती है, तो वह अल्ट्रा वायर्स होगा।
“अल्ट्रा वायर्स” सिद्धांत का उद्देश्य यह है कि कंपनी केवल उन्हीं सीमाओं में कार्य करे जो उसके पंजीयन दस्तावेजों में निर्धारित की गई हों। यह निवेशकों और ऋणदाताओं के हितों की रक्षा करता है।


प्रश्न 30: डिबेंचर ट्रस्टी कौन होता है और उसकी भूमिका क्या होती है?

उत्तर:
डिबेंचर ट्रस्टी वह व्यक्ति या संस्था होती है जो डिबेंचर धारकों के हितों की रक्षा के लिए कंपनी द्वारा नियुक्त की जाती है। जब कोई कंपनी सार्वजनिक रूप से डिबेंचर जारी करती है, तो उसे एक डिबेंचर ट्रस्ट डीड बनानी होती है और ट्रस्टी नियुक्त करना अनिवार्य होता है (SEBI नियमों के तहत)। ट्रस्टी का कार्य यह सुनिश्चित करना है कि कंपनी समय पर ब्याज और मूलधन चुकाए। यदि कंपनी भुगतान में असफल होती है, तो ट्रस्टी डिबेंचर धारकों की ओर से कानूनी कार्रवाई कर सकता है। ट्रस्टी कंपनी की वित्तीय स्थिति की निगरानी करता है, ऋण की शर्तों के पालन पर ध्यान देता है और निवेशकों को आवश्यक सूचना देता है। वह कंपनी और डिबेंचरधारकों के बीच सेतु का कार्य करता है। इस तरह, ट्रस्टी निवेशकों के अधिकारों की रक्षा में अहम भूमिका निभाता है।


प्रश्न 31: डिबेंचर और शेयर में क्या अंतर है?

उत्तर:
डिबेंचर और शेयर दोनों कंपनी द्वारा पूंजी जुटाने के माध्यम हैं, लेकिन इनमें कई महत्वपूर्ण अंतर होते हैं।
शेयर कंपनी में मालिकाना हक दर्शाते हैं। शेयरधारक कंपनी के लाभ के हकदार होते हैं और उन्हें लाभांश मिलता है। उनके पास मतदान का अधिकार होता है और वे कंपनी के निदेशक मंडल के चुनाव में भाग ले सकते हैं।
डिबेंचर ऋण का प्रतीक होते हैं। डिबेंचरधारक कंपनी को दिया गया ऋण देते हैं और उन्हें निश्चित ब्याज मिलता है, चाहे कंपनी को लाभ हो या नहीं। डिबेंचरधारकों के पास कंपनी की स्वामित्व या मतदान का अधिकार नहीं होता।
वाइंडिंग अप की स्थिति में डिबेंचरधारकों को भुगतान प्राथमिकता से होता है, जबकि शेयरधारक अंतिम होते हैं। इस प्रकार, शेयर जोखिमपूर्ण लेकिन लाभदायक निवेश होते हैं जबकि डिबेंचर सुरक्षित निवेश माने जाते हैं।


प्रश्न 32: शेयर सर्टिफिकेट और शेयर वारंट में क्या अंतर है?

उत्तर:
शेयर सर्टिफिकेट एक वैधानिक दस्तावेज होता है जो यह प्रमाणित करता है कि धारक कंपनी का विधिक शेयरधारक है। इसे कंपनी द्वारा जारी किया जाता है और उस पर कंपनी की मुहर, निदेशक के हस्ताक्षर और जारी करने की तिथि होती है। यह नामित व्यक्ति को दिया जाता है और स्थानांतरण के लिए प्रक्रिया तय होती है।
वहीं, शेयर वारंट एक अधिदेश (instrument) होता है जो बियरर को शेयरधारक मानता है। इसमें धारक का नाम नहीं होता और यह अधिकतर फिजिकल रूप में चलता है। इसे अधिक सुविधाजनक और स्थानांतरण योग्य माना जाता है, परंतु अब इसका प्रयोग भारत में प्रतिबंधित है।
अतः, शेयर सर्टिफिकेट नाममात्र अधिकार देता है और सुरक्षित होता है, जबकि शेयर वारंट अनाम होता है लेकिन आज की तारीख में अप्रचलित है।


प्रश्न 33: फिक्स्ड और फ्लोटिंग चार्ज में अंतर स्पष्ट करें।

उत्तर:
फिक्स्ड चार्ज एक निश्चित संपत्ति पर लगाया जाता है, जैसे कि मशीनरी, जमीन, भवन आदि। इस चार्ज के अंतर्गत कंपनी उस संपत्ति को चार्जधारी (ऋणदाता) की अनुमति के बिना बेच या स्थानांतरित नहीं कर सकती। यह स्थिर होता है और ऋणदाता को अधिक सुरक्षा प्रदान करता है।
फ्लोटिंग चार्ज कंपनी की ऐसी परिसंपत्तियों पर लगाया जाता है जो लगातार बदलती रहती हैं, जैसे स्टॉक, डेब्टर्स, कच्चा माल आदि। जब तक डिफॉल्ट नहीं होता, कंपनी इन परिसंपत्तियों का उपयोग स्वतंत्र रूप से कर सकती है।
जब कंपनी भुगतान में असफल हो जाती है या वाइंडिंग अप की प्रक्रिया शुरू होती है, तो फ्लोटिंग चार्ज “क्रिस्टलाइज” होकर फिक्स्ड चार्ज में बदल जाता है।
फिक्स्ड चार्ज अधिक सुरक्षित होता है जबकि फ्लोटिंग चार्ज लचीलापन देता है लेकिन अपेक्षाकृत जोखिमपूर्ण होता है।


प्रश्न 34: निदेशक मंडल की शक्तियां और कर्तव्य क्या हैं?

उत्तर:
निदेशक मंडल कंपनी की नीति निर्धारण, प्रशासन और संचालन के लिए जिम्मेदार होता है। उनके पास व्यापक अधिकार और जिम्मेदारियाँ होती हैं जो कंपनी अधिनियम, 2013 की धारा 166 और अन्य प्रावधानों में वर्णित हैं।
शक्तियां:

  • कंपनी के खाते अनुमोदित करना
  • लाभांश घोषित करना
  • निदेशकों की नियुक्ति/हटाना
  • कंपनी के ऋण और निवेश के निर्णय लेना
  • संपत्ति खरीदना/बेचना
    कर्तव्य:
  • कंपनी और उसके हितधारकों के हित में कार्य करना
  • धोखाधड़ी या हितों के टकराव से बचना
  • गोपनीयता बनाए रखना
  • समय-समय पर मीटिंग में भाग लेना
  • कंपनी अधिनियम का पालन करना
    यदि निदेशक अपने कर्तव्यों में चूक करते हैं, तो वे दंडनीय हो सकते हैं। इस प्रकार, निदेशक मंडल कंपनी के संचालन में रीढ़ की हड्डी समान होता है।

प्रश्न 35: निजी कंपनी और सार्वजनिक कंपनी में अंतर लिखें।

उत्तर:
निजी कंपनी (Private Company) और सार्वजनिक कंपनी (Public Company) में कई आधारों पर भिन्नताएं होती हैं।
| मापदंड | निजी कंपनी | सार्वजनिक कंपनी |
|——–|————-|——————|
| सदस्य संख्या | 2 से 200 तक | न्यूनतम 7, अधिकतम असीमित |
| शेयरों का स्थानांतरण | प्रतिबंधित | स्वतंत्र |
| पूंजी बाजार से धन | नहीं उठा सकती | उठा सकती है |
| नाम | “Private Limited” | “Limited” |
| वैधानिक बैठक | आवश्यक नहीं | आवश्यक |
निजी कंपनी में निर्णय शीघ्र लिए जा सकते हैं क्योंकि इसमें कम सदस्य होते हैं। वहीं सार्वजनिक कंपनी अधिक पारदर्शिता और सार्वजनिक निवेशकों के प्रति जवाबदेही रखती है।


प्रश्न 36: प्रॉस्पेक्टस क्या होता है? इसके उद्देश्य बताइए।

उत्तर:
प्रॉस्पेक्टस एक ऐसा दस्तावेज होता है जो कंपनी द्वारा सार्वजनिक रूप से पूंजी जुटाने के लिए जारी किया जाता है। इसमें कंपनी की वित्तीय स्थिति, उद्देश्य, प्रबंधन, जोखिम, प्रस्तावित योजनाएं, और निवेश के शर्तों की विस्तृत जानकारी होती है।
उद्देश्य:

  1. संभावित निवेशकों को जानकारी देना
  2. कंपनी में पारदर्शिता सुनिश्चित करना
  3. कानून के तहत निवेशकों की सुरक्षा करना
  4. धोखाधड़ी से बचाव
    कंपनी अधिनियम, 2013 की धारा 23 से 40 तक प्रॉस्पेक्टस से संबंधित नियम दर्शाते हैं। यदि कोई कंपनी भ्रामक या गलत जानकारी के साथ प्रॉस्पेक्टस जारी करती है, तो उसे दंड भुगतना पड़ सकता है। इस दस्तावेज के माध्यम से निवेशक सूचित निर्णय ले पाते हैं।

प्रश्न 37: वैधानिक पंजीकरण (Incorporation) की प्रक्रिया क्या है?

उत्तर:
कंपनी का पंजीकरण कंपनी अधिनियम, 2013 के अंतर्गत होता है। इस प्रक्रिया को Incorporation कहा जाता है।
मुख्य चरण:

  1. नाम आरक्षण – MCA पोर्टल पर नाम के लिए आवेदन
  2. डिजिटल सिग्नेचर (DSC) और डायरेक्टर आइडेंटिफिकेशन नंबर (DIN) प्राप्त करना
  3. MOA और AOA तैयार करना
  4. INC-32 (SPICe+ फॉर्म) भरना
  5. आवश्यक दस्तावेज अपलोड कर MCA में ऑनलाइन फाइलिंग
  6. शुल्क जमा करना
  7. सत्यापन के बाद Certificate of Incorporation जारी किया जाता है
    इस प्रमाण पत्र से कंपनी एक विधिक इकाई बन जाती है। पंजीकरण के पश्चात कंपनी को PAN, TAN, बैंक खाता आदि बनाना होता है।

प्रश्न 38: कंपनी के वित्तीय विवरण क्या होते हैं?

उत्तर:
कंपनी के वित्तीय विवरण (Financial Statements) वह दस्तावेज होते हैं जिनसे कंपनी की वित्तीय स्थिति, प्रदर्शन और नकद प्रवाह का आकलन किया जाता है। कंपनी अधिनियम, 2013 की धारा 129 के अंतर्गत ये आवश्यक हैं।
मुख्य वित्तीय विवरण:

  1. तुलन पत्र (Balance Sheet)
  2. लाभ-हानि खाता (Profit & Loss A/c)
  3. कैश फ्लो स्टेटमेंट
  4. शेयरधारकों के परिवर्तन विवरण
  5. टिप्पणियां (Notes to Accounts)
    इन रिपोर्टों को बोर्ड द्वारा अनुमोदित कर ऑडिटर से ऑडिट करवाया जाता है और वार्षिक आम बैठक में प्रस्तुत किया जाता है। वित्तीय विवरण कंपनी की पारदर्शिता, जवाबदेही और वित्तीय अनुशासन का आधार होते हैं।

प्रश्न 39: ऑडिटर कौन होता है और उसकी जिम्मेदारियां क्या हैं?

उत्तर:
ऑडिटर एक स्वतंत्र पेशेवर होता है जिसे कंपनी के वित्तीय विवरणों की निष्पक्ष जांच और सत्यापन हेतु नियुक्त किया जाता है। कंपनी अधिनियम, 2013 की धारा 139 से 148 तक ऑडिटर से संबंधित प्रावधान हैं।
मुख्य जिम्मेदारियां:

  • कंपनी के खातों की ऑडिट करना
  • वित्तीय रिपोर्ट की सच्चाई और निष्पक्षता की जांच करना
  • धोखाधड़ी या गड़बड़ी की सूचना देना
  • रिपोर्ट तैयार कर बोर्ड और शेयरधारकों को प्रस्तुत करना
    ऑडिटर कंपनी के निदेशकों का कर्मचारी नहीं होता, बल्कि स्वतंत्र होता है। यदि ऑडिटर अपनी भूमिका में लापरवाही करता है तो उस पर कानूनी कार्रवाई हो सकती है। वह कॉर्पोरेट गवर्नेंस में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

प्रश्न 40: कॉर्पोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व (CSR) क्या है?

उत्तर:
कॉर्पोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व (CSR) वह सिद्धांत है जिसके अंतर्गत कंपनियाँ समाज के प्रति अपनी जिम्मेदारी को स्वीकार करती हैं। कंपनी अधिनियम, 2013 की धारा 135 के तहत यह लागू होता है।
यदि कोई कंपनी निम्न में से कोई एक शर्त पूरी करती है:

  • ₹500 करोड़ या अधिक का नेट वर्थ
  • ₹1000 करोड़ या अधिक का टर्नओवर
  • ₹5 करोड़ या अधिक का लाभ
    तो उसे CSR नीति अपनानी होती है।
    CSR के अंतर्गत कंपनियाँ शिक्षा, पर्यावरण संरक्षण, गरीबों की सहायता, स्वास्थ्य सेवा, महिला सशक्तिकरण आदि में धन खर्च करती हैं। कंपनी को अपने लाभ का कम से कम 2% CSR गतिविधियों पर खर्च करना होता है। इससे कंपनी की सामाजिक छवि बेहतर होती है और वह दीर्घकालिक सामाजिक विकास में योगदान देती है।

प्रश्न 41: निदेशक की रिपोर्ट क्या होती है और इसका महत्व क्या है?

उत्तर:
निदेशक की रिपोर्ट कंपनी अधिनियम, 2013 की धारा 134 के अंतर्गत तैयार की जाती है। यह रिपोर्ट कंपनी के निदेशकों द्वारा तैयार की जाती है और यह वार्षिक आम बैठक (AGM) में अंशधारकों को प्रस्तुत की जाती है। इसका उद्देश्य कंपनी के वित्तीय वर्ष में किए गए कार्यों, नीतियों, प्रदर्शन, लाभ-हानि, CSR गतिविधियों और भविष्य की योजनाओं की जानकारी देना होता है।
यह रिपोर्ट पारदर्शिता बनाए रखती है और अंशधारकों को सूचित करती है कि कंपनी किस दिशा में काम कर रही है। इसमें बोर्ड की बैठकें, निदेशकों की उपस्थिति, जोखिम प्रबंधन, आंतरिक नियंत्रण प्रणाली, कर अनुपालन आदि की जानकारी भी होती है।
यह रिपोर्ट कंपनी के अच्छे गवर्नेंस और जवाबदेही को दर्शाती है। ROC को भी यह रिपोर्ट फाइल की जाती है। यदि कोई जानकारी छुपाई जाती है या गलत होती है, तो कंपनी और निदेशक पर दंड लग सकता है।


प्रश्न 42: कंपनी के सचिव (Company Secretary) की भूमिका क्या होती है?

उत्तर:
कंपनी सचिव एक योग्य पेशेवर होता है जिसे कंपनी अधिनियम, 2013 के तहत कंपनी का प्रमुख अनुपालन अधिकारी माना जाता है। वह कंपनी के सभी कानूनी, नियामक और प्रशासनिक मामलों की देखरेख करता है।
उसकी मुख्य भूमिकाएं हैं:

  • बोर्ड मीटिंग और AGM की व्यवस्था करना
  • बैठक की कार्यवृत्त (minutes) तैयार करना
  • ROC फाइलिंग और MCA पोर्टल पर दस्तावेज़ जमा कराना
  • निदेशकों और अंशधारकों को सलाह देना
  • कंपनी की कानूनी स्थिति का निरीक्षण करना
    सूचीबद्ध कंपनियों में कंपनी सचिव की नियुक्ति अनिवार्य होती है। वह बोर्ड और अंशधारकों के बीच सेतु का कार्य करता है। इसके अलावा वह SEBI, स्टॉक एक्सचेंज और अन्य नियामक संस्थाओं के साथ कंपनी के अनुपालन को सुनिश्चित करता है।
    एक कुशल कंपनी सचिव कंपनी की नैतिकता और पारदर्शिता को बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

प्रश्न 43: एमओए (MOA) और एओए (AOA) में क्या अंतर है?

उत्तर:
MOA (Memorandum of Association) और AOA (Articles of Association) कंपनी के दो महत्वपूर्ण संवैधानिक दस्तावेज होते हैं, परंतु दोनों के उद्देश्य और कार्य भिन्न होते हैं।

  • MOA कंपनी का बाहरी चार्टर होता है, जो उसके उद्देश्य, क्षेत्राधिकार, अधिकृत पूंजी और सदस्यता की सीमा बताता है।
  • AOA कंपनी के आंतरिक नियमों और प्रबंधन प्रक्रिया से संबंधित होता है।
    MOA के बिना कंपनी का गठन नहीं हो सकता, जबकि AOA में समय-समय पर संशोधन किया जा सकता है।
    MOA के खंड जैसे नाम खंड, उद्देश्य खंड, स्थिति खंड आदि कानूनी रूप से अनिवार्य होते हैं। वहीं, AOA में निदेशकों की शक्तियाँ, बैठक की प्रक्रिया, लाभांश वितरण आदि का विवरण होता है।
    संक्षेप में, MOA कंपनी के उद्देश्य को निर्धारित करता है जबकि AOA उन उद्देश्यों को कार्यान्वित करने के लिए दिशा-निर्देश देता है।

प्रश्न 44: रिज़ोल्यूशन (Resolution) क्या होता है? इसके प्रकार बताइए।

उत्तर:
रिज़ोल्यूशन वह औपचारिक निर्णय होता है जो कंपनी की बैठक (Board या AGM) में सदस्यों या निदेशकों द्वारा पारित किया जाता है। यह कंपनी के महत्वपूर्ण कार्यों और निर्णयों को वैधानिक रूप देने का माध्यम होता है।
मुख्य रूप से तीन प्रकार के रिज़ोल्यूशन होते हैं:

  1. साधारण प्रस्ताव (Ordinary Resolution): इसे सामान्य बहुमत से पारित किया जाता है, जैसे निदेशक की नियुक्ति, ऑडिटर की नियुक्ति आदि।
  2. विशेष प्रस्ताव (Special Resolution): इसमें प्रस्ताव के पक्ष में कम से कम 75% वोट आवश्यक होते हैं। जैसे – नाम परिवर्तन, MOA या AOA में संशोधन।
  3. बोर्ड प्रस्ताव (Board Resolution): निदेशक मंडल द्वारा पारित किया जाता है, जैसे बैंक खाता खोलना, शेयर जारी करना आदि।
    रिज़ोल्यूशन कंपनी के रिकॉर्ड में अंकित होता है और कई मामलों में ROC को फाइल किया जाता है। यह कंपनी की विधिक क्रियाओं का आधार होता है।

प्रश्न 45: शेयरों का आवंटन (Share Allotment) क्या होता है?

उत्तर:
शेयरों का आवंटन वह प्रक्रिया है जिसके तहत कंपनी, आवेदकों को उनके द्वारा माँगे गए शेयरों में से कुछ या सभी शेयर देती है। जब कोई कंपनी शेयर जारी करती है और निवेशक आवेदन करते हैं, तो कंपनी बाद में उन आवेदनों पर विचार करके आवंटन करती है।
शेयर आवंटन के लिए बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स को प्रस्ताव पारित करना होता है। इसके बाद कंपनी आवंटन पत्र भेजती है, शेयर सर्टिफिकेट जारी करती है और ROC को Form PAS-3 फाइल करती है।
यदि आवेदन अधिक होते हैं (ओवर सब्सक्रिप्शन), तो आंशिक आवंटन किया जाता है और शेष राशि वापस की जाती है।
शेयर आवंटन एक वैधानिक प्रक्रिया है और इसके लिए SEBI तथा कंपनी अधिनियम के नियमों का पालन करना आवश्यक होता है, खासकर पब्लिक कंपनियों के मामले में। यह कंपनी के पूंजी निर्माण की मुख्य प्रक्रिया होती है।


प्रश्न 46: बोनस शेयर क्या होते हैं?

उत्तर:
बोनस शेयर वे फ्री शेयर होते हैं जो कंपनी अपने मौजूदा शेयरधारकों को उनके द्वारा रखे गए शेयरों के अनुपात में देती है। इसका उद्देश्य शेयरधारकों को उनके निवेश पर अतिरिक्त लाभ देना होता है, बिना उनसे कोई अतिरिक्त भुगतान लिए।
उदाहरण: यदि किसी शेयरधारक के पास 100 शेयर हैं और कंपनी 1:1 बोनस शेयर देती है, तो उसे 100 और शेयर मुफ्त मिलते हैं।
बोनस शेयर कंपनी के फ्री रिजर्व या सरप्लस से जारी किए जाते हैं, न कि नकद लाभांश के रूप में।
बोनस शेयर से कंपनी की कुल शेयर पूंजी बढ़ती है लेकिन निवेशकों की कुल होल्डिंग वैल्यू में तात्कालिक अंतर नहीं आता। यह शेयरधारकों का विश्वास बढ़ाने और कंपनी की सॉल्वेंसी पोजीशन को दर्शाने का माध्यम होता है।
बोनस शेयर जारी करने के लिए बोर्ड प्रस्ताव और ROC को सूचना देना आवश्यक होता है।


प्रश्न 47: राइट्स शेयर क्या होते हैं?

उत्तर:
राइट्स शेयर वे शेयर होते हैं जिन्हें कंपनी अपने मौजूदा अंशधारकों को एक विशेष अधिकार के तहत, एक निर्धारित मूल्य पर, एक निश्चित अवधि के भीतर खरीदने का अवसर देती है। इसे “राइट्स इश्यू” कहा जाता है।
इसमें कंपनी पूंजी जुटाने के लिए पहले अपने पुराने निवेशकों को ही नए शेयर खरीदने का अवसर देती है, जो उनकी मौजूदा शेयरधारिता के अनुपात में होते हैं।
उदाहरण: यदि किसी के पास 100 शेयर हैं और कंपनी 1:5 के अनुपात में राइट्स इश्यू देती है, तो उसे 20 शेयरों को खरीदने का अधिकार मिलता है।
राइट्स इश्यू आमतौर पर बाज़ार मूल्य से कम कीमत पर होते हैं, जिससे अंशधारकों को लाभ होता है। यह पूंजी जुटाने का एक पारदर्शी और नियंत्रित तरीका होता है।
राइट्स शेयर को खरीदना वैकल्पिक होता है – अंशधारक चाहें तो इसे स्वीकार करें, न करें, या अन्य को ट्रांसफर कर दें।


प्रश्न 48: पब्लिक लिमिटेड और प्राइवेट लिमिटेड कंपनी में क्या अंतर है?

उत्तर:
पब्लिक लिमिटेड कंपनी और प्राइवेट लिमिटेड कंपनी दोनों कंपनियों के अलग-अलग ढांचे, नियम और विशेषताएं होती हैं:

पहलु प्राइवेट लिमिटेड पब्लिक लिमिटेड
सदस्य 2 से 200 तक न्यूनतम 7, अधिकतम सीमा नहीं
शेयर बाजार लिस्ट नहीं होती स्टॉक एक्सचेंज में लिस्ट हो सकती है
शेयर ट्रांसफर सीमित स्वतंत्र रूप से ट्रांसफर
AGM वैकल्पिक अनिवार्य
नाम के बाद Pvt. Ltd. Ltd.

प्राइवेट कंपनी का नियंत्रण सीमित होता है और निर्णय जल्दी होते हैं, जबकि पब्लिक कंपनी में पारदर्शिता और नियामक अनुपालन अधिक होता है। निवेश और पूंजी जुटाने के लिए पब्लिक कंपनी अधिक प्रभावी मानी जाती है।


प्रश्न 49: कंपनी का विघटन (Winding Up) क्या होता है?

उत्तर:
कंपनी का विघटन वह प्रक्रिया है जिसमें कंपनी की विधिक पहचान समाप्त हो जाती है और उसकी संपत्ति बेचकर ऋण चुकता किया जाता है। यह प्रक्रिया तब अपनाई जाती है जब कंपनी व्यापार बंद करना चाहती है या दिवालिया हो जाती है।
विघटन के प्रकार:

  1. स्वैच्छिक विघटन (Voluntary): जब कंपनी खुद बोर्ड और अंशधारकों के निर्णय से बंद होती है।
  2. न्यायालयीय विघटन: जब NCLT के आदेश पर कंपनी को बंद किया जाता है, जैसे – ऋण न चुकाना, कानूनी नियमों का उल्लंघन आदि।
    विघटन की प्रक्रिया में एक परिसमापक (liquidator) नियुक्त किया जाता है जो कंपनी की संपत्तियाँ बेचकर देनदारों को भुगतान करता है।
    ROC में विघटन की सूचना दी जाती है और कंपनी का नाम रजिस्टर से हटा दिया जाता है। विघटन कंपनी के अंत की कानूनी प्रक्रिया होती है।

प्रश्न 50: एनसीएलटी (NCLT) क्या है और इसकी भूमिका क्या है?

उत्तर:
NCLT (National Company Law Tribunal) एक विशेष न्यायिक निकाय है जो कंपनी कानून से संबंधित विवादों का समाधान करता है। इसकी स्थापना कंपनी अधिनियम, 2013 के अंतर्गत की गई है।
NCLT की प्रमुख भूमिकाएं हैं:

  • कंपनी के विघटन और परिसमापन से संबंधित मामलों का निपटारा
  • निदेशकों की अयोग्यता और कदाचार की जांच
  • मर्जर, अमलगमेशन और पुनर्गठन की अनुमति देना
  • शेयरधारकों और ऋणदाताओं के विवादों को सुलझाना
  • वर्ग कार्रवाई और निवारण याचिकाओं का निपटान
    NCLT एक सिविल कोर्ट की तरह कार्य करता है और इसके आदेशों के विरुद्ध NCLAT (National Company Law Appellate Tribunal) में अपील की जा सकती है।
    NCLT का उद्देश्य कंपनी कानून से संबंधित मामलों में शीघ्र न्याय और विशेषज्ञता के साथ निर्णय देना है।

बिलकुल, यहाँ कंपनी अधिनियम (Company Law) के प्रश्न 50 से 55 तक के उत्तर सरल हिंदी में**, प्रत्येक उत्तर लगभग 150 शब्दों में दिए गए हैं:


प्रश्न 50: NCLT क्या है और इसकी भूमिका क्या है?

उत्तर:
NCLT (National Company Law Tribunal) एक विशेष न्यायिक प्राधिकरण है जिसे कंपनी अधिनियम, 2013 के अंतर्गत गठित किया गया है। यह ट्रिब्यूनल कंपनी कानून से संबंधित विवादों का समाधान करता है। NCLT की स्थापना का उद्देश्य कंपनियों से जुड़ी न्यायिक प्रक्रिया को तेज़, सरल और सुलभ बनाना है। इसकी प्रमुख भूमिकाएँ हैं:

  • कंपनी के रजिस्ट्रेशन में त्रुटियों का निवारण
  • शेयरधारकों के अधिकारों की रक्षा
  • निदेशकों की अयोग्यता या कदाचार की जांच
  • कंपनी के विलय, पुनर्गठन और परिसमापन के मामले
  • दिवालियापन (Insolvency) और ऋण समाधान

यह न्यायिक निकाय उच्च न्यायालयों का भार कम करता है। इसके आदेशों के विरुद्ध अपील NCLAT में की जा सकती है।


प्रश्न 51: NCLAT क्या है और इसकी भूमिका क्या है?

उत्तर:
NCLAT (National Company Law Appellate Tribunal) एक अपीलीय न्यायाधिकरण है जिसकी स्थापना कंपनी अधिनियम, 2013 के तहत की गई थी। यह NCLT, IBBI (Insolvency and Bankruptcy Board of India) और CCI (Competition Commission of India) द्वारा दिए गए आदेशों के विरुद्ध अपीलों की सुनवाई करता है।
यदि कोई व्यक्ति NCLT के निर्णय से असंतुष्ट होता है, तो वह NCLAT में अपील दायर कर सकता है।
NCLAT निष्पक्ष और शीघ्र न्याय देने वाला मंच है जो कंपनियों, ऋणदाताओं और अन्य संबंधित पक्षों को न्यायिक सहारा प्रदान करता है।
NCLAT के निर्णय के विरुद्ध अंतिम अपील भारत के सर्वोच्च न्यायालय में की जा सकती है। यह संस्था कंपनियों के लिए न्याय पाने की एक सुव्यवस्थित प्रक्रिया सुनिश्चित करती है।


प्रश्न 52: CSR (कॉरपोरेट सोशल रिस्पॉन्सिबिलिटी) क्या है?

उत्तर:
कॉरपोरेट सोशल रिस्पॉन्सिबिलिटी (CSR) वह जिम्मेदारी है जिसके अंतर्गत कंपनियाँ समाज और पर्यावरण के लिए सकारात्मक कार्य करती हैं। यह कंपनी अधिनियम, 2013 की धारा 135 में वर्णित है।
यदि किसी कंपनी की नेट वर्थ ₹500 करोड़, टर्नओवर ₹1000 करोड़ या शुद्ध लाभ ₹5 करोड़ से अधिक है, तो उसे अपने औसत लाभ का 2% CSR गतिविधियों में खर्च करना अनिवार्य होता है।
इन गतिविधियों में शिक्षा, स्वास्थ्य, पर्यावरण संरक्षण, महिला सशक्तिकरण, गरीबों की सहायता आदि कार्य शामिल होते हैं।
कंपनी को CSR के लिए एक समिति बनानी होती है जो योजनाओं को तय कर उन्हें लागू करती है। CSR से कंपनी की छवि सुधरती है और समाज में सकारात्मक प्रभाव पड़ता है।


प्रश्न 53: कंपनी में लेखा परीक्षक (Auditor) की भूमिका क्या होती है?

उत्तर:
लेखा परीक्षक (Auditor) एक स्वतंत्र पेशेवर होता है जिसे कंपनी के वित्तीय रिकॉर्ड और खातों की जांच के लिए नियुक्त किया जाता है।
कंपनी अधिनियम, 2013 की धारा 139 से 148 तक लेखा परीक्षकों की नियुक्ति और कार्यप्रणाली निर्धारित की गई है। ऑडिटर यह सुनिश्चित करता है कि कंपनी ने अपने सभी लेन-देन उचित तरीके से दर्ज किए हैं और सभी कानूनी मानकों का पालन किया है।
वह कंपनी की बैलेंस शीट, लाभ-हानि खाते और लेखा पुस्तकों की समीक्षा करता है और अपनी रिपोर्ट शेयरधारकों के सामने प्रस्तुत करता है।
यदि ऑडिटर अपनी जिम्मेदारी में चूक करता है या जानबूझकर गलत जानकारी देता है, तो उसे दंड या जेल की सजा हो सकती है। इस प्रकार, ऑडिटर कंपनी की वित्तीय पारदर्शिता बनाए रखने में अहम भूमिका निभाता है।


प्रश्न 54: निदेशकों की नियुक्ति की प्रक्रिया क्या है?

उत्तर:
कंपनी में निदेशकों की नियुक्ति कंपनी अधिनियम, 2013 की धारा 149 से 172 के अंतर्गत होती है। निदेशक कंपनी के निर्णय लेने और संचालन का प्रमुख होता है।
निदेशक बनने के लिए व्यक्ति को पहले DIN (Director Identification Number) प्राप्त करना अनिवार्य है। उसके बाद कंपनी की AGM (वार्षिक आम सभा) या EGM (विशेष आम सभा) में प्रस्ताव पारित कर निदेशक की नियुक्ति की जाती है।
नियुक्ति के बाद MCA पोर्टल पर DIR-12 फॉर्म फाइल करना होता है।
निदेशक का कार्यकाल आमतौर पर 5 वर्षों तक होता है, जिसे AGM में पुनः बढ़ाया जा सकता है।
स्वतंत्र निदेशकों की नियुक्ति कुछ विशेष योग्यताओं और शर्तों के आधार पर होती है। निदेशकों की नियुक्ति में पारदर्शिता और कानून का पालन अनिवार्य होता है।


प्रश्न 55: स्वतंत्र निदेशक (Independent Director) कौन होता है?

उत्तर:
स्वतंत्र निदेशक वह व्यक्ति होता है जो कंपनी के प्रबंधन या प्रवर्तकों से किसी भी प्रकार से सीधे जुड़ा नहीं होता। वह कंपनी के संचालन पर निष्पक्ष और स्वतंत्र दृष्टिकोण से निगरानी रखता है।
कंपनी अधिनियम, 2013 की धारा 149(6) में स्वतंत्र निदेशक की योग्यता और भूमिका तय की गई है।
स्वतंत्र निदेशक का मुख्य कार्य कंपनी की कॉरपोरेट गवर्नेंस, नैतिकता, आंतरिक नियंत्रण और अल्पसंख्यक शेयरधारकों के हितों की रक्षा करना है।
सूचीबद्ध कंपनियों में एक-तिहाई निदेशक स्वतंत्र होने चाहिए। उनका कार्यकाल अधिकतम 5 वर्षों का होता है, जिसे एक बार और बढ़ाया जा सकता है।
स्वतंत्र निदेशक कंपनी के हित में पारदर्शिता लाते हैं और निर्णय प्रक्रिया को निष्पक्ष बनाते हैं।


यहाँ कंपनी अधिनियम से संबंधित प्रश्न 55 से 60 तक के उत्तर सरल और स्पष्ट हिंदी में (150 शब्दों में) दिए गए हैं:


प्रश्न 56: महिला निदेशक की आवश्यकता क्या है?

उत्तर:
कंपनी अधिनियम, 2013 के अनुसार, भारत में कुछ विशिष्ट कंपनियों में कम से कम एक महिला निदेशक की नियुक्ति अनिवार्य है। यह प्रावधान धारा 149 और नियम 3, कंपनियों (नियुक्ति और योग्यता) नियम, 2014 के तहत लागू होता है।
यदि कोई कंपनी सूचीबद्ध (listed) है या उसकी चुकता पूंजी ₹100 करोड़ या वार्षिक टर्नओवर ₹300 करोड़ से अधिक है, तो उसमें एक महिला निदेशक की नियुक्ति अनिवार्य होती है।
इसका उद्देश्य कॉरपोरेट क्षेत्र में लैंगिक समानता को बढ़ावा देना और महिलाओं की भागीदारी सुनिश्चित करना है। महिला निदेशक कंपनी के बोर्ड में एक संतुलित दृष्टिकोण लाती हैं, जिससे निर्णय प्रक्रिया अधिक विविध और न्यायसंगत होती है।
इस प्रावधान के उल्लंघन पर कंपनी और अधिकारियों पर दंडात्मक कार्रवाई की जा सकती है।


प्रश्न 57: निदेशक पहचान संख्या (DIN) क्या है?

उत्तर:
DIN (Director Identification Number) एक अद्वितीय पहचान संख्या है जो भारत सरकार द्वारा किसी व्यक्ति को निदेशक के रूप में नियुक्त होने के लिए प्रदान की जाती है।
यह संख्या स्थायी होती है और जीवन भर मान्य रहती है। कोई भी व्यक्ति जो किसी कंपनी का निदेशक बनना चाहता है, उसे पहले DIN प्राप्त करना अनिवार्य होता है।
DIN के लिए DIR-3 फॉर्म भरकर Ministry of Corporate Affairs (MCA) की वेबसाइट पर आवेदन किया जाता है, जिसमें पहचान पत्र और फोटो संलग्न करनी होती है।
एक बार DIN मिलने के बाद, व्यक्ति इसका उपयोग एक से अधिक कंपनियों में निदेशक बनने के लिए कर सकता है।
यह व्यवस्था सरकार को निदेशकों पर निगरानी रखने, पारदर्शिता बढ़ाने और धोखाधड़ी रोकने में मदद करती है। यदि कोई व्यक्ति फर्जी विवरण देता है, तो उसका DIN रद्द किया जा सकता है।


प्रश्न 58: कंपनी की वार्षिक आम सभा (AGM) क्या है?

उत्तर:
AGM (Annual General Meeting) एक वार्षिक सभा है जिसे हर कंपनी को अपने शेयरधारकों के साथ आयोजित करना अनिवार्य है, सिवाय एक व्यक्ति कंपनी (OPC) के।
कंपनी अधिनियम, 2013 की धारा 96 के अनुसार, AGM प्रत्येक वित्तीय वर्ष के अंत में आयोजित की जाती है।
इस बैठक में निम्नलिखित महत्वपूर्ण कार्य किए जाते हैं:

  • कंपनी के वित्तीय विवरणों की स्वीकृति
  • निदेशकों की नियुक्ति या पुनर्नियुक्ति
  • लेखा परीक्षक की नियुक्ति
  • लाभांश की घोषणा
    AGM में निदेशक मंडल अपने कार्यों की जानकारी शेयरधारकों को देता है और कंपनी की स्थिति पर चर्चा होती है।
    AGM की तिथि, समय और स्थान का पूर्व में सभी सदस्यों को नोटिस दिया जाता है।
    यदि कोई कंपनी AGM नहीं करती है, तो उसे और उसके अधिकारियों को दंडित किया जा सकता है।

प्रश्न 59: विशेष प्रस्ताव (Special Resolution) क्या है?

उत्तर:
विशेष प्रस्ताव (Special Resolution) वह प्रस्ताव होता है जिसे कंपनी की आम सभा में उपस्थित और मतदान करने वाले 75% सदस्यों द्वारा अनुमोदित किया जाता है।
यह सामान्य प्रस्ताव से अधिक महत्त्वपूर्ण होता है और इसे तभी पारित किया जाता है जब कंपनी के कुछ विशेष या संवेदनशील कार्य करने हों।
कंपनी अधिनियम, 2013 की धारा 114(2) के अनुसार, विशेष प्रस्ताव को पास करने के लिए इसका स्पष्ट उल्लेख नोटिस में किया जाना चाहिए।
इसके अंतर्गत आने वाले कार्य हो सकते हैं:

  • कंपनी के नाम में परिवर्तन
  • पंजीकृत कार्यालय को एक राज्य से दूसरे राज्य में स्थानांतरित करना
  • निदेशकों के वेतन में परिवर्तन
  • MOA और AOA में संशोधन
    विशेष प्रस्ताव कंपनी के भविष्य को प्रभावित करने वाले महत्वपूर्ण निर्णयों के लिए आवश्यक होता है।

प्रश्न 60: लेखा परीक्षा रिपोर्ट (Audit Report) क्या होती है?

उत्तर:
लेखा परीक्षा रिपोर्ट (Audit Report) वह रिपोर्ट होती है जो कंपनी के लेखा परीक्षक (Auditor) द्वारा तैयार की जाती है। इसमें कंपनी के वित्तीय विवरणों की जांच और राय प्रस्तुत की जाती है।
कंपनी अधिनियम, 2013 की धारा 143 के तहत लेखा परीक्षक को यह रिपोर्ट तैयार करनी होती है।
इस रिपोर्ट में यह बताया जाता है कि कंपनी के खातों में दी गई जानकारी सत्य और निष्पक्ष है या नहीं।
अगर ऑडिटर को कोई त्रुटि, धोखाधड़ी या नियमों का उल्लंघन दिखाई देता है, तो वह उसे रिपोर्ट में उल्लेख करता है।
यह रिपोर्ट बोर्ड की रिपोर्ट के साथ शेयरधारकों को प्रस्तुत की जाती है और AGM में पढ़ी जाती है।
लेखा परीक्षा रिपोर्ट से कंपनी की वित्तीय पारदर्शिता सुनिश्चित होती है और यह निवेशकों तथा अन्य हितधारकों के लिए भरोसे का माध्यम बनती है।


यह रहे कंपनी अधिनियम (Company Law) के प्रश्न 60 से 65 तक के उत्तर — प्रत्येक उत्तर लगभग 150 शब्दों में, सरल और स्पष्ट हिंदी में:


प्रश्न 60: लेखा परीक्षा रिपोर्ट (Audit Report) क्या होती है?

उत्तर:
लेखा परीक्षा रिपोर्ट वह दस्तावेज होती है जिसे कंपनी के लेखा परीक्षक (Auditor) द्वारा तैयार किया जाता है। यह रिपोर्ट बताती है कि कंपनी ने अपने वित्तीय लेखाजोखा (Financial Statements) को कितनी ईमानदारी और पारदर्शिता से तैयार किया है।
कंपनी अधिनियम, 2013 की धारा 143 के अनुसार, लेखा परीक्षक को बैलेंस शीट, लाभ-हानि खाता, नकदी प्रवाह विवरण आदि की जाँच करनी होती है और अपनी राय देनी होती है कि क्या ये विवरण सही और निष्पक्ष हैं।
यदि ऑडिटर को कोई गड़बड़ी, अनियमितता या नियमों का उल्लंघन दिखे, तो वह उसे रिपोर्ट में स्पष्ट करता है।
यह रिपोर्ट AGM में शेयरधारकों को प्रस्तुत की जाती है। यह निवेशकों को निर्णय लेने में मदद करती है और कंपनी की वित्तीय पारदर्शिता बनाए रखती है। यह रिपोर्ट कंपनी की नैतिक और वित्तीय विश्वसनीयता का संकेत भी देती है।


प्रश्न 61: कंपनी के लेखा अभिलेख (Books of Accounts) क्या होते हैं?

उत्तर:
कंपनी के लेखा अभिलेख (Books of Accounts) वे वित्तीय दस्तावेज होते हैं जिनमें कंपनी की आर्थिक गतिविधियों का पूरा विवरण दर्ज होता है।
कंपनी अधिनियम, 2013 की धारा 128 के अनुसार, प्रत्येक कंपनी को अपनी लेखा पुस्तकें अपने पंजीकृत कार्यालय में इस प्रकार रखनी होती हैं कि वे किसी भी समय निरीक्षण के लिए उपलब्ध हों।
इन अभिलेखों में नकद लेन-देन, बिक्री, खरीद, लाभ-हानि, देनदारियाँ, संपत्तियाँ, बैंक स्टेटमेंट आदि का विवरण होता है।
कंपनी को अपने सभी लेखा अभिलेख कम से कम 8 वर्षों तक सुरक्षित रखना होता है।
इन अभिलेखों की जाँच लेखा परीक्षक द्वारा की जाती है और उसी के आधार पर ऑडिट रिपोर्ट तैयार होती है।
सही और पारदर्शी लेखा अभिलेख से कंपनी की आर्थिक स्थिति स्पष्ट होती है और वित्तीय धोखाधड़ी से बचा जा सकता है।


प्रश्न 62: बोर्ड की बैठक (Board Meeting) क्या है?

उत्तर:
बोर्ड की बैठक वह औपचारिक सभा होती है जिसमें कंपनी के निदेशक महत्वपूर्ण व्यावसायिक निर्णय लेते हैं। यह बैठक कंपनी अधिनियम, 2013 की धारा 173 के अंतर्गत अनिवार्य है।
प्रत्येक कंपनी को हर वित्तीय वर्ष में कम से कम चार बोर्ड बैठकें आयोजित करनी होती हैं, और दो बैठकों के बीच अधिकतम 120 दिन का अंतर होना चाहिए।
बैठक में भाग लेने वाले निदेशकों को पहले से नोटिस भेजा जाता है। बैठक में लिए गए सभी निर्णयों को कार्यवृत्त (Minutes) में लिखा जाता है।
इन बैठकों में वित्तीय निर्णय, पूंजी निवेश, ऋण, कर्मचारियों की नियुक्ति, कॉन्ट्रैक्ट्स आदि पर चर्चा होती है।
बोर्ड बैठकें कंपनी की नीति निर्माण और संचालन का प्रमुख माध्यम होती हैं। यह पारदर्शिता और उत्तरदायित्व बनाए रखने के लिए जरूरी होती हैं।


प्रश्न 63: कंपनियों के प्रकार क्या हैं?

उत्तर:
कंपनी अधिनियम, 2013 के अनुसार, कंपनियों को विभिन्न श्रेणियों में बांटा गया है। प्रमुख प्रकार निम्नलिखित हैं:

  1. एकल व्यक्ति कंपनी (OPC): इसमें एक ही व्यक्ति निदेशक और शेयरधारक होता है।
  2. प्राइवेट लिमिटेड कंपनी: कम से कम 2 और अधिकतम 200 सदस्य हो सकते हैं। इसके शेयर बाजार में नहीं बेचे जा सकते।
  3. पब्लिक लिमिटेड कंपनी: कम से कम 7 सदस्य होते हैं और अधिकतम की कोई सीमा नहीं होती। इसके शेयर सार्वजनिक रूप से बेचे जा सकते हैं।
  4. धारा 8 की कंपनी: यह गैर-लाभकारी उद्देश्य जैसे शिक्षा, धर्म, सामाजिक कार्य के लिए बनाई जाती है।
  5. सरकारी कंपनी: जिसमें सरकार की कम से कम 51% हिस्सेदारी होती है।

प्रत्येक प्रकार की कंपनी के गठन, दायित्व और कार्य में अलग-अलग नियम होते हैं।


प्रश्न 64: कंपनी के प्रॉक्सी का क्या अर्थ है?

उत्तर:
प्रॉक्सी वह व्यक्ति होता है जिसे कोई शेयरधारक अपनी अनुपस्थिति में AGM या अन्य मीटिंग में अपने स्थान पर मतदान करने के लिए नियुक्त करता है।
कंपनी अधिनियम, 2013 की धारा 105 में प्रॉक्सी से संबंधित प्रावधान दिए गए हैं।
प्रॉक्सी कोई भी व्यक्ति हो सकता है, उसे कंपनी का सदस्य होना आवश्यक नहीं है।
शेयरधारक को बैठक से 48 घंटे पहले एक लिखित फॉर्म जमा कर कंपनी को प्रॉक्सी की जानकारी देनी होती है।
प्रॉक्सी केवल मतदान में भाग ले सकता है, वह चर्चा या बहस में हिस्सा नहीं ले सकता।
यह प्रावधान उन शेयरधारकों की सुविधा के लिए है जो किसी कारणवश बैठक में स्वयं उपस्थित नहीं हो सकते।
प्रॉक्सी सिस्टम कंपनी की लोकतांत्रिक प्रक्रिया को मजबूत बनाता है और निर्णयों में अधिक भागीदारी सुनिश्चित करता है।


प्रश्न 65: निदेशक मंडल की शक्तियाँ क्या होती हैं?

उत्तर:
कंपनी अधिनियम, 2013 की धारा 179 में निदेशक मंडल की शक्तियों का विवरण दिया गया है। निदेशक मंडल कंपनी का प्रमुख नीति निर्धारक और संचालनकर्ता होता है।
उसकी मुख्य शक्तियाँ निम्नलिखित हैं:

  • कंपनी की नीति निर्धारण और रणनीति तय करना
  • ऋण लेना या देना
  • निवेश करना या संपत्ति खरीदना-बेचना
  • बैंक खाते खोलना और संचालन करना
  • कर्मचारियों की नियुक्ति
  • AGM की तिथि तय करना
  • कंपनी के नाम या उद्देश्य में परिवर्तन के लिए प्रस्ताव रखना

कुछ विशेष निर्णय जैसे विलय, बड़े निवेश या पूंजी जारी करने से पूर्व शेयरधारकों की स्वीकृति लेनी पड़ती है।
निदेशक मंडल का कार्य कंपनी के हित में पारदर्शी और विवेकपूर्ण निर्णय लेना होता है।


यह रहे कंपनी अधिनियम (Company Law) के प्रश्न 65 से 70 तक के उत्तर — प्रत्येक उत्तर लगभग 150 शब्दों में, सरल और स्पष्ट हिंदी भाषा में:


प्रश्न 65: निदेशक मंडल की शक्तियाँ क्या होती हैं?

उत्तर:
निदेशक मंडल (Board of Directors) कंपनी का प्रमुख संचालन निकाय होता है। कंपनी अधिनियम, 2013 की धारा 179 के अंतर्गत निदेशक मंडल को कई महत्वपूर्ण अधिकार दिए गए हैं।
इनकी प्रमुख शक्तियाँ हैं:

  • कंपनी की नीतियों का निर्धारण
  • ऋण लेना या देना, बैंक खाता खोलना
  • संपत्तियों की खरीद/बिक्री, निवेश से संबंधित निर्णय लेना
  • शेयर जारी करना या वापस खरीदना
  • कर्मचारियों की नियुक्ति और वेतन नीति तय करना
  • AGM की तिथि और एजेंडा तय करना
  • अन्य कंपनियों के साथ विलय या समझौता करना

हालांकि, कुछ महत्वपूर्ण मामलों में बोर्ड को शेयरधारकों की मंजूरी लेनी होती है (जैसे पूंजी संरचना में बदलाव)।
निदेशक मंडल का दायित्व होता है कि वे कंपनी के हित में निष्पक्ष, पारदर्शी और नैतिक निर्णय लें।


प्रश्न 66: कंपनी का पंजीकृत कार्यालय क्या होता है?

उत्तर:
पंजीकृत कार्यालय (Registered Office) वह स्थान होता है जो कंपनी का आधिकारिक पता होता है और जहाँ उसके सभी सरकारी व कानूनी पत्राचार किए जाते हैं।
कंपनी अधिनियम, 2013 की धारा 12 के अनुसार, हर कंपनी को पंजीकरण के 30 दिन के भीतर एक पंजीकृत कार्यालय रखना अनिवार्य है।
इस कार्यालय का पता सभी आधिकारिक दस्तावेजों, वेबसाइट और पत्राचार में उल्लेखित करना अनिवार्य होता है।
सरकारी नोटिस, समन, दस्तावेजों की सेवा आदि इसी पते पर की जाती है।
कंपनी चाहें तो इस कार्यालय को एक राज्य से दूसरे राज्य या उसी शहर में स्थानांतरित कर सकती है, पर इसके लिए ROC को सूचना देना आवश्यक होता है।
पंजीकृत कार्यालय कंपनी की कानूनी पहचान का केंद्र होता है और यह कंपनी की प्रामाणिकता का संकेत देता है।


प्रश्न 67: कंपनी का नाम परिवर्तन कैसे किया जाता है?

उत्तर:
कंपनी अधिनियम, 2013 की धारा 13 के अंतर्गत किसी कंपनी को यदि अपना नाम बदलना हो, तो उसे एक विशेष प्रस्ताव (Special Resolution) पारित करना होता है और ROC की अनुमति लेनी होती है।
नाम परिवर्तन की प्रक्रिया निम्नलिखित चरणों में होती है:

  1. नया नाम चुनना और उसकी उपलब्धता की जांच MCA की वेबसाइट पर करना।
  2. ROC को RUN (Reserve Unique Name) के माध्यम से नाम आरक्षित करने का आवेदन देना।
  3. बोर्ड की बैठक बुलाकर विशेष प्रस्ताव पास करना।
  4. ROC को MGT-14 और INC-24 फॉर्म भरकर जमा करना।
  5. ROC द्वारा नए नाम को स्वीकृति मिलने पर नया प्रमाण पत्र (Certificate of Incorporation) जारी किया जाता है।
    नाम बदलने के बाद MOA और AOA में भी संशोधन करना आवश्यक होता है।
    नाम परिवर्तन से कंपनी की पहचान, ब्रांडिंग या रणनीति में बदलाव दर्शाया जाता है।

प्रश्न 68: कंपनी के उद्देश्य में परिवर्तन कैसे किया जाता है?

उत्तर:
किसी कंपनी का उद्देश्य उसके मेमोरेंडम ऑफ असोसिएशन (MOA) में अंकित होता है। यदि कंपनी अपने कार्यक्षेत्र या उद्देश्य में परिवर्तन करना चाहती है, तो उसे कंपनी अधिनियम, 2013 की धारा 13 के अंतर्गत प्रक्रिया अपनानी होती है।
प्रक्रिया इस प्रकार है:

  1. बोर्ड बैठक बुलाकर प्रस्ताव पारित करना।
  2. सामान्य बैठक (AGM/EGM) में विशेष प्रस्ताव (Special Resolution) पारित करना।
  3. ROC को MGT-14 फॉर्म के साथ संशोधित MOA जमा करना।
  4. यदि उद्देश्य परिवर्तन राज्य से बाहर कार्य करने के लिए है, तो केंद्र सरकार की स्वीकृति आवश्यक होती है।
    ROC द्वारा मंजूरी मिलने के बाद नया MOA प्रभाव में आता है।
    यह प्रक्रिया कंपनी को नए क्षेत्र में व्यवसाय करने, विस्तार करने या रणनीति बदलने में मदद करती है।

प्रश्न 69: शेयर प्रमाणपत्र (Share Certificate) क्या होता है?

उत्तर:
शेयर प्रमाणपत्र वह दस्तावेज होता है जो किसी व्यक्ति के पास कंपनी के कितने शेयर हैं, इसका प्रमाण होता है। यह प्रमाणित करता है कि वह व्यक्ति कंपनी का शेयरधारक है।
कंपनी अधिनियम, 2013 की धारा 46 के अनुसार, कंपनी को शेयर अलॉटमेंट के 2 महीने के भीतर शेयरधारक को यह प्रमाणपत्र देना अनिवार्य है।
इसमें निम्नलिखित विवरण होते हैं:

  • शेयरधारक का नाम
  • शेयरों की संख्या
  • शेयरों का वर्ग (Class)
  • प्रमाणपत्र संख्या
  • कंपनी की मुहर और निदेशक के हस्ताक्षर

यदि शेयर प्रमाणपत्र खो जाता है, तो नया प्रमाणपत्र प्राप्त करने के लिए प्रक्रिया अपनानी होती है।
आजकल अधिकतर कंपनियाँ डिमेट फॉर्म (Demat Form) में शेयर देती हैं, जो डिजिटल रूप में होता है।
शेयर प्रमाणपत्र स्वामित्व और निवेश का प्रमाण होता है।


प्रश्न 70: बोनस शेयर क्या होते हैं?

उत्तर:
बोनस शेयर वे अतिरिक्त शेयर होते हैं जो कंपनी अपने मौजूदा शेयरधारकों को नि:शुल्क (Free of Cost) देती है। ये शेयर कंपनी की अर्जित लाभ (Reserves) से जारी किए जाते हैं, नकद भुगतान नहीं किया जाता।
कंपनी अधिनियम, 2013 और SEBI के दिशा-निर्देशों के अनुसार, कोई कंपनी तब बोनस शेयर जारी कर सकती है जब उसके पास पर्याप्त फ्री रिज़र्व, सिक्योरिटीज प्रीमियम अकाउंट, या कैपिटल रिडेम्प्शन रिजर्व हो।
बोनस शेयर जारी करने के लिए बोर्ड की सिफारिश के बाद AGM में प्रस्ताव पास करना होता है।
उदाहरण: यदि कंपनी 1:1 बोनस देती है, तो हर 1 शेयर पर 1 बोनस शेयर मिलेगा।
बोनस शेयर शेयरधारकों की होल्डिंग बढ़ाते हैं, पर कंपनी की कुल पूंजी वही रहती है। इससे बाजार में शेयर का मूल्य घट सकता है, लेकिन शेयरधारकों को लाभांश में लाभ मिल सकता है।