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“मुस्लिम विधि के अंतर्गत मौखिक हिबा (उपहार) के लिए न तो पंजीकरण आवश्यक और न ही स्टांप ड्यूटी देय: कर्नाटक उच्च न्यायालय का महत्वपूर्ण निर्णय”

शीर्षक:
“मुस्लिम विधि के अंतर्गत मौखिक हिबा (उपहार) के लिए न तो पंजीकरण आवश्यक और न ही स्टांप ड्यूटी देय: कर्नाटक उच्च न्यायालय का महत्वपूर्ण निर्णय”

भूमिका:
भारतीय विधिक प्रणाली में विभिन्न धर्मों की विधियों को मान्यता दी गई है। मुस्लिम विधि (Mohammedan Law) के अंतर्गत “हिबा” (Hiba) या उपहार एक विशिष्ट संस्था है, जो बिना किसी लिखित दस्तावेज के केवल मौखिक रूप से भी मान्य हो सकती है। हाल ही में कर्नाटक उच्च न्यायालय ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में यह स्पष्ट किया कि मौखिक हिबा के लिए न तो अनिवार्य पंजीकरण की आवश्यकता है, न ही बाजार मूल्य के आधार पर स्टांप शुल्क देय होता है। साथ ही, यदि इस मौखिक हिबा को लिखित रूप में दर्ज कर लिया जाए, तो भी उसकी मूल प्रकृति और कानूनी आवश्यकताएं नहीं बदलतीं।


मामले की पृष्ठभूमि:
इस मामले में विवाद मुस्लिम विधि के अंतर्गत किए गए एक मौखिक हिबा को लेकर उत्पन्न हुआ था। संपत्ति का स्वामी (donor) ने संपत्ति को मौखिक रूप से अपने रिश्तेदार को हिबा स्वरूप दे दिया था। बाद में, इस हिबा को प्रमाणित करने के लिए एक संक्षिप्त लिखित दस्तावेज भी तैयार किया गया, परंतु पंजीकरण नहीं कराया गया और न ही स्टांप ड्यूटी का भुगतान किया गया।

राजस्व विभाग और संबंधित अधिकारीगण ने यह कहते हुए दस्तावेज को अस्वीकार कर दिया कि लिखित हिबा के लिए पंजीकरण और स्टांप ड्यूटी अनिवार्य है। इस पर याचिकाकर्ता ने न्यायालय का रुख किया।


कर्नाटक उच्च न्यायालय का निर्णय:
न्यायालय ने अपने निर्णय में मौलिक रूप से निम्नलिखित बिंदुओं पर स्पष्टता प्रदान की:

1. मौखिक हिबा पूर्णतः वैध और मान्य है:

मुस्लिम विधि में तीन आवश्यक तत्व होते हैं:

  • स्वेच्छा से हिबा की घोषणा (Declaration of Gift by Donor)
  • प्राप्तकर्ता द्वारा हिबा को स्वीकार करना (Acceptance by Donee)
  • तत्काल और वास्तविक कब्जा (Delivery of Possession)

यदि ये तीन तत्व पूर्ण हो जाएं, तो मौखिक हिबा वैध और लागू मानी जाती है — इसके लिए न तो पंजीकरण की आवश्यकता है और न ही लिखित दस्तावेज अनिवार्य है।

2. लिखित रिकॉर्ड हिबा की प्रकृति को नहीं बदलता:

यदि कोई व्यक्ति इस मौखिक हिबा का दस्तावेजीकरण करता है, तो वह केवल प्रमाण के उद्देश्य से किया गया कार्य होता है। इससे यह हिबा विलेख (conveyance) नहीं बन जाती, इसलिए उस पर स्टांप ड्यूटी या पंजीकरण की कानूनी बाध्यता नहीं लगाई जा सकती।

3. भारतीय पंजीकरण अधिनियम की धारा 17 लागू नहीं होती:

न्यायालय ने माना कि भारतीय पंजीकरण अधिनियम, 1908 की धारा 17, जो स्थावर संपत्ति के अंतरण से संबंधित विलेखों के पंजीकरण को अनिवार्य बनाती है, मुस्लिम मौखिक हिबा पर लागू नहीं होती जब तक कि वह केवल मौखिक रूप से की गई हो या उसका दस्तावेज केवल प्रमाण हेतु बनाया गया हो।


न्यायालय की टिप्पणियाँ:
न्यायालय ने जोर देकर कहा:

“Under Mohammedan Law, an oral gift (Hiba) is complete and valid without a written instrument, registration, or stamp duty, provided the essential ingredients are fulfilled. Merely recording such a gift in writing does not transform it into a compulsorily registrable or taxable transaction.”


निष्कर्ष:
कर्नाटक उच्च न्यायालय का यह निर्णय मुस्लिम कानून के तहत हिबा की पारंपरिक और व्यावहारिक समझ को कानूनी रूप से मान्यता देता है। यह उन मामलों में विशेष मार्गदर्शन प्रदान करता है जहां मौखिक हिबा के दस्तावेजीकरण को लेकर भ्रम होता है। निर्णय स्पष्ट करता है कि हिबा की वैधता इसके मौखिक रूप, स्वीकृति और कब्जा पर निर्भर करती है, न कि पंजीकरण या स्टांप शुल्क पर।

यह फैसला न केवल मुस्लिम समुदाय के लिए, बल्कि सम्पत्ति कानून की समावेशिता और धार्मिक विधियों की संवैधानिक मान्यता के लिए भी एक सशक्त उदाहरण है।