सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी: “लेख लिख सकते हैं!” – प्रोफेसर महमूदाबाद को राहत, SIT को मोबाइल-लैपटॉप जांच से रोका

शीर्षक: सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी: “लेख लिख सकते हैं!” – प्रोफेसर महमूदाबाद को राहत, SIT को मोबाइल-लैपटॉप जांच से रोका

भूमिका:

सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में एक अहम फैसला सुनाते हुए प्रोफेसर सैयद अली तौसीफ महमूदाबाद को अंतरिम राहत प्रदान की है। कोर्ट ने स्पष्ट रूप से कहा कि प्रोफेसर को अपने विचार रखने और लेख लिखने की स्वतंत्रता है, और विशेष जांच टीम (SIT) को उनके मोबाइल फोन और लैपटॉप की जांच से भी फिलहाल रोक दिया गया है। यह आदेश अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और निजता के अधिकार के संदर्भ में एक महत्वपूर्ण निर्णय माना जा रहा है।


मामले की पृष्ठभूमि:

प्रोफेसर महमूदाबाद, जो कि एक प्रतिष्ठित शिक्षाविद और लेखों के माध्यम से सामाजिक-राजनीतिक विषयों पर खुलकर राय रखने के लिए जाने जाते हैं, के खिलाफ उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा एक विशेष जांच टीम (SIT) का गठन किया गया था। आरोप था कि उन्होंने एक लेख के माध्यम से सांप्रदायिक तनाव फैलाने का प्रयास किया।


सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी:

सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा:

“वे एक प्रोफेसर हैं। वह लेख लिख सकते हैं। वह अपनी बात रख सकते हैं। उन्हें ऐसा करने से रोका नहीं जा सकता।”

यह टिप्पणी स्पष्ट रूप से अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार की पुष्टि करती है जो भारतीय संविधान के अनुच्छेद 19(1)(a) के अंतर्गत गारंटीकृत है।


मोबाइल और लैपटॉप की जांच पर रोक:

SIT द्वारा प्रोफेसर के मोबाइल और लैपटॉप की जांच की मांग पर कोर्ट ने सख्ती से कहा कि इस स्तर पर उनकी डिजिटल निजी जानकारी को खंगालने की अनुमति नहीं दी जा सकती। कोर्ट ने इसे निजता के अधिकार (Right to Privacy) का उल्लंघन मानते हुए SIT को रोक लगा दी।


न्यायिक संतुलन का उदाहरण:

यह आदेश एक तरफ सरकार को जांच करने के अधिकार और दूसरी ओर नागरिक की निजी स्वतंत्रता और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के बीच संतुलन स्थापित करने का प्रयास है। सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि बिना ठोस आधार के किसी की व्यक्तिगत जानकारी और डिजिटल उपकरणों की तलाशी संविधान सम्मत नहीं मानी जा सकती।


निष्कर्ष:

यह फैसला अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और निजता के अधिकार की रक्षा में एक नज़ीर बन सकता है। सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी न केवल कानून के शासन की पुष्टि करती है, बल्कि शिक्षकों, लेखकों और विचारशील व्यक्तियों को भी यह भरोसा देती है कि वे बिना भय के अपने विचार प्रकट कर सकते हैं। आने वाले समय में यह निर्णय अभिव्यक्ति की सीमा और राज्य की शक्ति के बीच एक संतुलनकारी मानक के रूप में उभर सकता है।