Biodiversity Protection Law (जैव विविधता संरक्षण कानून) पर लेख।


जैव विविधता संरक्षण कानून (Biodiversity Protection Law)


भूमिका

पृथ्वी पर जीवन की विविधता — जिसे जैव विविधता कहा जाता है — मानव अस्तित्व, खाद्य सुरक्षा, औषधीय शोध, जलवायु संतुलन और पारिस्थितिक तंत्र की स्थिरता के लिए अत्यंत आवश्यक है। आधुनिक युग में पर्यावरणीय संकट, जैसे – वनों की कटाई, प्रदूषण, जलवायु परिवर्तन और अवैध शिकार – जैव विविधता को गंभीर खतरा पहुँचा रहे हैं। ऐसे में, जैव विविधता संरक्षण कानून न केवल एक कानूनी ढांचा प्रदान करता है, बल्कि यह भारत के संवैधानिक मूल्यों, अंतरराष्ट्रीय समझौतों और सतत विकास के सिद्धांतों की पूर्ति भी करता है।


1. जैव विविधता की अवधारणा

1.1 परिभाषा:
जैव विविधता का अर्थ है पृथ्वी पर मौजूद सभी जीवधारियों — पौधे, पशु, सूक्ष्मजीव, उनकी प्रजातियाँ और पारिस्थितिक तंत्र — की विविधता। यह विविधता तीन स्तरों पर होती है:

  • प्रजातीय विविधता (Species Diversity)
  • आनुवंशिक विविधता (Genetic Diversity)
  • पारिस्थितिक विविधता (Ecosystem Diversity)

1.2 जैव विविधता का महत्व:

  • खाद्य सुरक्षा और कृषि विकास
  • औषधीय और पारंपरिक ज्ञान
  • जलवायु परिवर्तन से अनुकूलन
  • सांस्कृतिक और आध्यात्मिक मूल्य

2. भारत में जैव विविधता की स्थिति

भारत विश्व के 17 मेगा-जैवविविध देशों में एक है। यहाँ:

  • लगभग 45,000 से अधिक पौधों की प्रजातियाँ
  • 91,000 से अधिक पशु प्रजातियाँ पाई जाती हैं।
  • हिमालय, पश्चिमी घाट, पूर्वी घाट, गंगा डेल्टा, सुंदरवन, अंडमान-निकोबार जैसे क्षेत्र जैव विविधता के हॉटस्पॉट हैं।

3. जैव विविधता संरक्षण हेतु कानूनी ढांचा

3.1 संविधानिक प्रावधान
  • अनुच्छेद 48A: राज्य का कर्तव्य है कि वह पर्यावरण, वनों और वन्य जीवों की रक्षा और सुधार करे।
  • अनुच्छेद 51A(g): प्रत्येक नागरिक का कर्तव्य है कि वह प्राकृतिक पर्यावरण की रक्षा करे।
3.2 जैव विविधता अधिनियम, 2002 (Biological Diversity Act, 2002)

भारत ने 1992 में “Convention on Biological Diversity (CBD)” पर हस्ताक्षर किए। इसके अनुपालन में भारत सरकार ने Biological Diversity Act, 2002 पारित किया।

मुख्य उद्देश्य:

  • जैव विविधता का संरक्षण
  • जैव संसाधनों का सतत उपयोग
  • पारंपरिक ज्ञान के संरक्षण एवं लाभ साझा करना

प्रमुख प्रावधान:

प्रावधान विवरण
राष्ट्रीय जैवविविधता प्राधिकरण (NBA) चेन्नई स्थित केंद्रीय संस्था
राज्य जैवविविधता बोर्ड (SBB) प्रत्येक राज्य में स्थापित
स्थानीय जैवविविधता प्राधिकरण (BMC) पंचायत स्तर पर जैव संसाधन की सूची और निगरानी
नागरिकों एवं विदेशी संस्थाओं के लिए नियम विदेशियों को जैव संसाधनों तक पहुँच हेतु अनुमति लेनी होती है
पारंपरिक ज्ञान की सुरक्षा स्थानीय समुदायों को उनके ज्ञान का लाभ सुनिश्चित करना

4. जैव विविधता अधिनियम, 2002 की विशेषताएँ

  • Access and Benefit Sharing (ABS): जैव संसाधनों और पारंपरिक ज्ञान के व्यावसायिक उपयोग से उत्पन्न लाभ को स्थानीय समुदायों के साथ साझा करना।
  • People’s Biodiversity Register (PBR): स्थानीय जैव विविधता का दस्तावेजीकरण।
  • Biopiracy पर नियंत्रण: जैव संसाधनों की चोरी और पेटेंटिंग पर रोक।

5. संबंधित अन्य कानून और नीतियाँ

कानून/नीति उद्देश्य
पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986 पर्यावरण की रक्षा और प्रबंधन हेतु व्यापक कानून
वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 संकटग्रस्त प्रजातियों की रक्षा
वन संरक्षण अधिनियम, 1980 वनों की कटाई पर नियंत्रण
जैव प्रौद्योगिकी नीति जैव विविधता से जुड़ी तकनीकों का नियमन

6. अंतरराष्ट्रीय समझौते और भारत की भूमिका

समझौता भारत की भूमिका
Convention on Biological Diversity (CBD), 1992 भारत ने 1994 में अनुमोदन किया
Cartagena Protocol on Biosafety जैव-सुरक्षा हेतु भारत की प्रतिबद्धता
Nagoya Protocol on ABS, 2010 लाभ साझा करने की वैश्विक प्रणाली में भागीदारी
CITES लुप्तप्राय प्रजातियों के व्यापार पर रोक

7. न्यायिक दृष्टिकोण

भारतीय न्यायपालिका ने जैव विविधता संरक्षण को लेकर कई ऐतिहासिक फैसले दिए:

  • T.N. गॉडावर्मन केस: वनों की व्यापक व्याख्या और उनके संरक्षण के लिए कई दिशा-निर्देश।
  • Centre for Environmental Law v. Union of India (2013): वन्य जीवों की रक्षा हेतु दिशा-निर्देश।
  • Niyamgiri केस: आदिवासी समुदायों के जैव-सांस्कृतिक अधिकारों की रक्षा।

8. चुनौतियाँ

  • अवैध वन कटाई और अतिक्रमण
  • जैव विविधता का व्यवसायीकरण
  • पारंपरिक ज्ञान की चोरी (Biopiracy)
  • स्थानीय समुदायों की उपेक्षा
  • जलवायु परिवर्तन का प्रभाव
  • BMCs की कार्यकुशलता में कमी

9. समाधान और सुझाव

  • स्थानीय समुदायों को अधिकार देना
  • जन जागरूकता अभियान
  • PBRs का व्यापक दस्तावेजीकरण
  • शिक्षा में जैव विविधता विषय को शामिल करना
  • अंतर-विभागीय समन्वय
  • निजी क्षेत्र और CSR की भागीदारी

10. डिजिटल युग में जैव विविधता संरक्षण

  • GIS और सैटेलाइट तकनीक से वनों की निगरानी
  • e-PBR प्लेटफॉर्म
  • मशीन लर्निंग आधारित जैव विविधता आकलन
  • मोबाइल एप्स से नागरिक सहभागिता (जैसे – iNaturalist, India Biodiversity Portal)

निष्कर्ष

जैव विविधता केवल पर्यावरणीय विषय नहीं है, बल्कि यह मानव अस्तित्व, संस्कृति, और सामाजिक-आर्थिक न्याय से गहराई से जुड़ा हुआ है। भारत ने जैव विविधता संरक्षण के लिए कानूनी और संस्थागत ढाँचा विकसित किया है, लेकिन उसे प्रभावी बनाने के लिए राजनीतिक इच्छा, संसाधनों का आवंटन और नागरिक सहभागिता अत्यंत आवश्यक है। जैव विविधता को बचाना, दरअसल हमारे भविष्य को बचाना है।