शीर्षक: पशु चिकित्सकों के साथ समानता का अधिकार: मध्यप्रदेश हाई कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला
प्रस्तावना:
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 14 सभी नागरिकों को कानून के समक्ष समानता का अधिकार प्रदान करता है। इसी संवैधानिक मूल सिद्धांत की रक्षा करते हुए मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय ने एक ऐतिहासिक निर्णय में कहा कि “इंसान और पशु का इलाज करने वालों के साथ भेदभाव नहीं किया जा सकता”। यह निर्णय पशु चिकित्सकों (वेटरनरी डॉक्टरों) के रिटायरमेंट की उम्र से संबंधित एक याचिका पर आया है, जिसने चिकित्सा सेवाओं में समानता के नए मानदंड स्थापित किए हैं।
मामले की पृष्ठभूमि:
भोपाल के डॉ. केदार सिंह तोमर सहित मध्यप्रदेश के विभिन्न जिलों में कार्यरत पशु चिकित्सकों ने हाई कोर्ट में याचिका दायर की थी। याचिकाकर्ताओं का कहना था कि वे 1983 से 1988 के बीच सेवा में आए हैं और राज्य के पशुपालन एवं डेयरी विभाग में कार्यरत हैं। उन्होंने बताया कि वर्ष 2011 में केंद्र सरकार द्वारा एलोपैथिक और आयुष चिकित्सकों की सेवानिवृत्ति आयु 62 से बढ़ाकर 65 वर्ष कर दी गई, लेकिन वेटरनरी चिकित्सकों को यह लाभ नहीं दिया गया।
कोर्ट की टिप्पणियाँ और निर्णय:
मुख्य न्यायाधीश सुरेश कुमार कैत और न्यायमूर्ति विवेक जैन की खंडपीठ ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि:
- पशु चिकित्सा भी मानव स्वास्थ्य सेवा की ही तरह आवश्यक है, और उसमें संलग्न चिकित्सकों को कमतर नहीं आंका जा सकता।
- सरकार का यह तर्क कि मानव रोगियों का इलाज करने वाले चिकित्सक अधिक महत्वपूर्ण हैं, न्यायोचित नहीं है।
- यह भेदभाव भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार) का उल्लंघन है।
- एलोपैथिक और आयुष डॉक्टरों की तरह वेटरनरी डॉक्टरों की रिटायरमेंट उम्र भी 65 वर्ष की जानी चाहिए।
कोर्ट ने स्पष्ट निर्देश दिए कि राज्य सरकार अपने नियमों में आवश्यक संशोधन करे ताकि पशु चिकित्सकों को भी समान सेवा शर्तों का लाभ मिल सके।
असंवैधानिक घोषित किया गया नोटिफिकेशन:
कोर्ट ने 2011 के उस गजट नोटिफिकेशन के हिस्से को असंवैधानिक घोषित कर दिया जिसमें एलोपैथिक और आयुष चिकित्सकों की सेवा आयु तो 65 वर्ष की गई, लेकिन वेटरनरी चिकित्सकों को उस लाभ से वंचित रखा गया था।
महत्व और प्रभाव:
यह निर्णय न केवल पशु चिकित्सकों को समानता का अधिकार प्रदान करता है, बल्कि यह शासन व्यवस्था को भी यह सन्देश देता है कि सभी सेवाएं, विशेष रूप से स्वास्थ्य सेवा से जुड़ी सेवाएं, समान रूप से महत्वपूर्ण हैं। यह निर्णय भविष्य में अन्य राज्यों के लिए भी एक उदाहरण बन सकता है और पशु स्वास्थ्य सेवाओं को अधिक मान्यता और सम्मान दिलाने में सहायक होगा।
निष्कर्ष:
मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय का यह निर्णय न्याय की दृष्टि से न केवल प्रगतिशील है, बल्कि यह समाज में व्याप्त उन सूक्ष्म भेदभावों को उजागर और समाप्त करने की दिशा में एक मजबूत कदम है जो अब तक अव्यक्त रूप में कार्यरत थे। यह फैसला भारत में वेटरनरी प्रोफेशन की गरिमा को नई पहचान और कानूनी संरक्षण प्रदान करता है।