न्यायिक सेवा में अनुभव की अनिवार्यता: सुप्रीम कोर्ट का दृष्टिकोण और कानून स्नातकों की सीधी नियुक्ति पर चिंता

शीर्षक: न्यायिक सेवा में अनुभव की अनिवार्यता: सुप्रीम कोर्ट का दृष्टिकोण और कानून स्नातकों की सीधी नियुक्ति पर चिंता

प्रस्तावना:
न्यायिक व्यवस्था किसी भी लोकतंत्र की रीढ़ होती है। एक न्यायाधीश न केवल कानून की व्याख्या करता है, बल्कि लोगों के जीवन, स्वतंत्रता, संपत्ति और प्रतिष्ठा पर निर्णय लेता है। इस जिम्मेदारी के साथ न्याय करना एक गहन अनुभव और व्यावहारिक समझ की माँग करता है। हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ऑफ इंडिया ने इस संदर्भ में एक ऐतिहासिक टिप्पणी करते हुए कहा कि ताजे लॉ ग्रेजुएट्स की सीधी नियुक्ति ने न्यायिक प्रणाली के सामने अनेक समस्याएँ खड़ी कर दी हैं।

सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी का सार:

“The appointment of such fresh law graduates has led to many problems. The Judges from the very day on which they assume office have to deal with the questions of life, liberty, property and reputation of litigants. Neither knowledge derived from books nor pre-service training can be an adequate substitute for the first-hand experience of the working of the court-system and the administration of justice. This is possible only when a candidate is exposed to the atmosphere in the court by assisting the seniors and observing how the lawyers and the Judges function in the court.”

इस टिप्पणी का प्रसंग:
यह टिप्पणी सुप्रीम कोर्ट द्वारा सिविल जज (जूनियर डिविजन) की नियुक्ति के लिए न्यूनतम तीन वर्ष की अधिवक्ता प्रैक्टिस को अनिवार्य करने के निर्णय के दौरान की गई। कोर्ट ने कहा कि सीधे लॉ कॉलेज से निकल कर जज की कुर्सी पर बैठना न्याय की मूलभूत अवधारणा के लिए खतरा हो सकता है।

मुख्य बिंदु:

  1. व्यावहारिक अनुभव की कमी: सीधे नियुक्त लॉ ग्रेजुएट्स में न्यायिक कार्य के लिए आवश्यक व्यवहारिक ज्ञान का घोर अभाव होता है।
  2. असंतुलित निर्णयों की संभावना: न्यायालयों में आए दिन देखे गए निर्णय दर्शाते हैं कि अनुभव की कमी के कारण कई बार नए जज संवेदनशील मामलों को उचित रूप से नहीं समझ पाते।
  3. न्यायिक कार्य की जटिलता: एक जज को प्रथम दिन से ही जीवन, स्वतंत्रता, संपत्ति, प्रतिष्ठा जैसे अधिकारों पर फैसला देना होता है। यह दायित्व किसी अपरिपक्व, अनभिज्ञ या केवल किताबी ज्ञान पर आधारित व्यक्ति को देना गंभीर परिणाम उत्पन्न कर सकता है।
  4. सीनियर वकीलों की निगरानी में कार्य: कोर्ट ने जोर देकर कहा कि एक उम्मीदवार तभी न्यायिक सेवा के लिए तैयार होता है जब वह सीनियर अधिवक्ताओं की निगरानी में कार्य करते हुए न्यायिक वातावरण को आत्मसात करता है

प्रभाव और निहितार्थ:

  • न्यायिक प्रक्रिया की गुणवत्ता में वृद्धि: अनुभव के साथ आने वाले न्यायिक अधिकारियों से निष्पक्षता और व्यावहारिक समझ की अपेक्षा अधिक की जाती है।
  • कानून स्नातकों को संदेश: लॉ ग्रेजुएट्स को अब समझना होगा कि केवल डिग्री ही पर्याप्त नहीं है, बल्कि उन्हें न्यायालयों में वास्तविक वकालत का अनुभव अर्जित करना होगा।
  • न्यायपालिका में विश्वास बहाली: यदि न्यायिक पदों पर केवल अनुभवशील व्यक्तियों की नियुक्ति होती है, तो इससे जनता का न्यायपालिका पर विश्वास और मजबूत होगा।

निष्कर्ष:
सुप्रीम कोर्ट की यह टिप्पणी भारतीय न्यायपालिका के गुणवत्ता मानकों को बनाये रखने की दिशा में एक साहसिक और दूरदर्शी कदम है। यह केवल नियुक्ति प्रक्रिया में बदलाव नहीं है, बल्कि न्याय के उच्च आदर्शों की पुनःस्थापना का प्रयास भी है। यह निर्णय भविष्य के न्यायाधीशों को यह सिखाता है कि किताबों से ज्ञान प्राप्त करना एक प्रारंभ हो सकता है, लेकिन वास्तविक न्याय का अनुभव न्यायालय की गलियारों में ही अर्जित होता है