“चेक अनादरण मामलों में अभियुक्त के अधिकारों की सुरक्षा: गुजरात उच्च न्यायालय द्वारा हैंडराइटिंग विशेषज्ञ की रिपोर्ट की माँग को लेकर ऐतिहासिक निर्णय”

“चेक अनादरण मामलों में अभियुक्त के अधिकारों की सुरक्षा: गुजरात उच्च न्यायालय द्वारा हैंडराइटिंग विशेषज्ञ की रिपोर्ट की माँग को लेकर ऐतिहासिक निर्णय”

प्रस्तावना

भारतीय विधि व्यवस्था में न्यायपूर्ण सुनवाई (Fair Trial) प्रत्येक नागरिक का मौलिक अधिकार है। विशेषकर चेक अनादरण (Dishonor of Cheque) के मामलों में, जहाँ अभियुक्तों पर धारा 138, 139, 118, 20 और 87 N.I. Act के अंतर्गत दायित्व आरोपित होता है, वहीं अभियुक्त को अपनी बेदाग़ी सिद्ध करने का पूरा अवसर दिया जाना भी आवश्यक होता है। गुजरात उच्च न्यायालय द्वारा पारित निर्णय LAWS(GJH)-2022-6-521 इस सिद्धांत की गहन व्याख्या करता है।


प्रकरण की पृष्ठभूमि

इस प्रकरण में आरोपी ने यह दावा किया कि उसके द्वारा सन् 2011 में जारी रिक्त चेक (Blank Cheque) को शिकायतकर्ता ने 2018 में गलत तरीके से प्रयुक्त किया है। आरोप है कि चेक शिकायतकर्ता के पास वैध रूप से नहीं था, और उसमें की गई प्रविष्टियाँ (endorsements) बाद में की गईं और वह कानूनी ऋण या दायित्व के तहत नहीं थी। शिकायतकर्ता के अनुसार, चेक बैंक में जमा कराने पर वापस लौट गया क्योंकि खाता पहले ही बंद किया जा चुका था


मुख्य विवाद: हस्तलेखन विशेषज्ञ की जांच की माँग

अभियुक्त ने अदालत से यह अनुरोध किया कि चेक को हस्तलेखन एवं स्याही विश्लेषण (Ink Dating & Handwriting Analysis) हेतु फॉरेंसिक साइंस लैब भेजा जाए ताकि यह स्थापित किया जा सके कि:

  • चेक पर किए गए हस्ताक्षर और बॉडी टेक्स्ट में प्रयुक्त स्याही अलग-अलग काल की है।
  • चेक में फर्जी प्रविष्टियाँ की गई हैं।
  • चेक में “In Full” जैसी आवश्यक एन्डोर्समेंट नहीं थी, जिससे वैधता पर प्रश्न उठता है।

अधीनस्थ अदालत (Magistrate) ने आरोपी के इस अनुरोध को अस्वीकृत कर दिया।


गुजरात उच्च न्यायालय का निर्णय

उच्च न्यायालय ने अधीनस्थ न्यायालय के निर्णय को पलटते हुए महत्वपूर्ण टिप्पणियाँ कीं:

  1. भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धाराओं के अनुसार, जब आरोप अभियुक्त पर हो और उसे दोषमुक्त होने के लिए साक्ष्य प्रस्तुत करने हों, तो उसे वह अवसर अवश्य मिलना चाहिए।
  2. धारा 243(2) CrPC स्पष्ट रूप से अभियुक्त को यह अधिकार देती है कि वह अपनी रक्षा में किसी भी दस्तावेज को विशेषज्ञ परीक्षण के लिए भेजने का अनुरोध कर सकता है।
  3. अनुच्छेद 21 (Article 21) भारतीय संविधान के तहत निष्पक्ष सुनवाई (Fair Trial) आरोपी का मौलिक अधिकार है।
  4. मजिस्ट्रेट द्वारा चेक को FSL भेजने से इंकार करना, आरोपी को उसकी रक्षा में आवश्यक साक्ष्य प्रस्तुत करने से वंचित करता है, जिससे आरोपी को न्याय से वंचित किया गया।

न्यायिक सिद्धांत और निष्कर्ष

इस निर्णय के माध्यम से उच्च न्यायालय ने निम्नलिखित सिद्धांतों को पुनः पुष्ट किया:

  • न्याय केवल किया जाना ही पर्याप्त नहीं, बल्कि होते हुए दिखना भी चाहिए
  • अभियुक्त दोषी नहीं, जब तक सिद्ध न हो जाए – यह न्याय का मूल स्तंभ है।
  • अभियुक्त को हस्तलेखन विशेषज्ञ की रिपोर्ट प्राप्त कर अपनी निर्दोषता सिद्ध करने का अवसर मिलना चाहिए।
  • फॉरेंसिक जांच न केवल वैज्ञानिक साक्ष्य को उजागर करती है, बल्कि न्याय की गुणवत्ता और विश्वसनीयता को भी बढ़ाती है

व्यापक प्रभाव

यह निर्णय भविष्य में चेक अनादरण से संबंधित मामलों में अभियुक्तों के अधिकारों की रक्षा के लिए एक मार्गदर्शक बन सकता है। साथ ही यह सुनिश्चित करता है कि फॉरेंसिक साक्ष्य का उपयोग न्याय प्रक्रिया में तकनीकी प्रगति के अनुरूप हो, जिससे गलत सजा से बचा जा सके।


निष्कर्ष

Gujarat High Court का यह निर्णय LAWS(GJH)-2022-6-521 भारतीय न्याय व्यवस्था में अभियुक्तों के मौलिक अधिकारों की रक्षा और न्याय की निष्पक्षता के लिए एक महत्वपूर्ण उदाहरण बन गया है। यह न्यायालयों को यह याद दिलाता है कि तकनीकी आधार पर साक्ष्य प्रस्तुत करने के मौकों को नकारना, कभी-कभी आरोपी के साथ अन्याय हो सकता है। ऐसे में न्यायालयों को सतर्क रहते हुए, मूल अधिकारों और विधिक प्रक्रियाओं के संतुलन को बनाए रखना चाहिए।