“सेना की वीरता पर राजनीति का कलंक: कर्नल सोफिया कुरैशी पर अपमानजनक टिप्पणी और सुप्रीम कोर्ट की सख्ती”

शीर्षक: “सेना की वीरता पर राजनीति का कलंक: कर्नल सोफिया कुरैशी पर अपमानजनक टिप्पणी और सुप्रीम कोर्ट की सख्ती”


प्रस्तावना (Introduction):

भारतीय सेना देश की सबसे सम्मानित और अनुशासित संस्था मानी जाती है। सेना के जवान, पुरुष और महिलाएं, हर परिस्थिति में राष्ट्र की रक्षा के लिए अपने प्राणों की आहुति देने को तत्पर रहते हैं। लेकिन जब किसी बहादुर फौजी अधिकारी को राजनीतिक स्वार्थ या दुष्प्रचार के तहत अपमानित किया जाता है, तो न केवल उस अधिकारी का बल्कि पूरे राष्ट्र का आत्मसम्मान आहत होता है। हाल ही में ऐसा ही मामला सामने आया जब मध्य प्रदेश सरकार के मंत्री विजय शाह ने सेना की महिला अधिकारी कर्नल सोफिया कुरैशी को आतंकवादियों की बहन बताने जैसा गंभीर, अपमानजनक और झूठा आरोप लगाया।


मामले की पृष्ठभूमि:

कर्नल सोफिया कुरैशी, भारतीय सेना की एक प्रतिष्ठित अधिकारी हैं, जिन्होंने यूएन मिशन में भारत का नेतृत्व करने वाली पहली महिला अधिकारी बनकर देश का गौरव बढ़ाया है। बावजूद इसके, एक सत्ताधारी दल के मंत्री द्वारा उनके खिलाफ झूठे और मानहानिकारक आरोप लगाए गए कि वह कथित तौर पर आतंकवादियों से संबंध रखती हैं। इस बयान ने देश में आक्रोश उत्पन्न कर दिया और इसकी व्यापक निंदा हुई।


सुप्रीम कोर्ट की सख्त टिप्पणी:

मंत्री विजय शाह द्वारा बाद में अदालत में माफीनामा दाखिल किया गया, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इसे ठुकरा दिया। अदालत ने स्पष्ट शब्दों में कहा –

“देश को आप पर शर्म आ रही है।”

“हाईकोर्ट ने आपको दोषी नहीं ठहराया, लेकिन प्रथम दृष्टया मामला पाया है।”

“आपको इससे स्वयं छुटकारा पाना होगा।”

इसके साथ ही अदालत ने FIR की स्वतंत्र और निष्पक्ष जांच के लिए एक विशेष जांच दल (SIT) गठित करने का आदेश दिया, जिसमें 3 वरिष्ठ IPS अधिकारियों को शामिल किया जाएगा।


मामले में भाजपा की चुप्पी:

जहाँ एक ओर न्यायपालिका ने संवैधानिक मूल्यों की रक्षा करते हुए मंत्री को फटकार लगाई, वहीं भारतीय जनता पार्टी (BJP) ने अपने मंत्री के खिलाफ कोई ठोस कार्रवाई नहीं की। FIR दर्ज होने और सुप्रीम कोर्ट की फटकार के बावजूद न तो विजय शाह से मंत्रालय का इस्तीफा लिया गया और न ही उन्हें पार्टी से निलंबित किया गया।

यह भाजपा की उस नैतिकता को प्रश्नों के घेरे में खड़ा करता है, जहाँ एक ओर “राष्ट्रवाद” और “सेना का सम्मान” उनका चुनावी मुद्दा होता है, लेकिन वहीं दूसरी ओर, एक बहादुर फौजी महिला को अपमानित करने वाले मंत्री को पार्टी का “लाडला” बनाए रखा जाता है।


प्रोफेसर अली खान महमूदाबाद का कथन:

इस प्रकरण के संदर्भ में प्रोफेसर अली खान महमूदाबाद का यह कथन पूर्णतः सत्य प्रतीत होता है –

“ये मात्र दिखावा और ढोंग है”
भाजपा द्वारा आंतरिक अनुशासनात्मक कार्रवाई के अभाव ने इस कथन को और मजबूत किया है।


सेना का अपमान, देश का अपमान:

इस मामले से एक अहम सवाल खड़ा होता है – क्या राजनीति अब इतनी नीचे गिर चुकी है कि सत्ता के लिए देश की सेना को भी अपमानित किया जा सकता है? क्या सैनिकों की जाति, धर्म या पहचान को निशाना बनाकर वोटों की राजनीति की जाएगी?

कर्नल सोफिया जैसी अधिकारी देश की बेटियों के लिए प्रेरणा हैं। उनका अपमान केवल एक व्यक्ति का नहीं बल्कि उस राष्ट्रीय गौरव का अपमान है जो हमारी सेना के साहस और बलिदान से जुड़ा है।


निष्कर्ष (Conclusion):

सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला केवल कर्नल सोफिया कुरैशी के सम्मान की रक्षा नहीं करता, बल्कि यह संदेश देता है कि राजनीति में नैतिकता और संवैधानिकता सर्वोच्च होनी चाहिए। यह आवश्यक है कि राजनीतिक दल अपने नेताओं की भाषा और व्यवहार के लिए जवाबदेह बनें।

देश को ऐसे नेताओं की नहीं, ऐसे संस्थानों की ज़रूरत है जो सच्चे वीरों का सम्मान कर सकें, न कि उन्हें अपमानित करें। कर्नल सोफिया पर लगा कलंक एक असत्य था जिसे न्यायपालिका ने हटाया, अब समय है कि राजनीतिक व्यवस्था भी उस न्याय के प्रति अपनी प्रतिबद्धता को सिद्ध करे।