प्रश्न 3:
ट्रेडमार्क (Trademark) क्या होता है? ट्रेडमार्क अधिनियम, 1999 के अंतर्गत ट्रेडमार्क के पंजीकरण की प्रक्रिया, ट्रेडमार्क उल्लंघन तथा पासिंग-ऑफ (Passing Off) के सिद्धांत को समझाइए।
1. प्रस्तावना (Introduction):
वर्तमान प्रतिस्पर्धी व्यापारिक वातावरण में किसी उत्पाद या सेवा की विशिष्ट पहचान को सुरक्षित करना अत्यंत आवश्यक है। ट्रेडमार्क एक ऐसा माध्यम है जो उपभोक्ता को किसी विशेष वस्तु या सेवा को अन्य से अलग पहचानने में मदद करता है। भारत में ट्रेडमार्क से संबंधित कानून “ट्रेडमार्क अधिनियम, 1999” है, जो 30 दिसंबर 1999 को पारित हुआ और 15 सितंबर 2003 से लागू हुआ। इसका मुख्य उद्देश्य ट्रेडमार्क की सुरक्षा, रजिस्ट्रेशन, उल्लंघन से सुरक्षा तथा व्यापार प्रतिष्ठा की रक्षा करना है।
2. ट्रेडमार्क की परिभाषा (Definition of Trademark):
Section 2(zb) of the Trademark Act, 1999 के अनुसार, “ट्रेडमार्क” का अर्थ है— ऐसा चिह्न (Mark) जो किसी व्यक्ति की वस्तुओं या सेवाओं की पहचान के लिए प्रयुक्त होता है और जो उसे दूसरों की वस्तुओं या सेवाओं से भिन्न करता है।
ट्रेडमार्क में निम्नलिखित शामिल हो सकते हैं:
- नाम (Name)
- प्रतीक (Symbol)
- शब्द (Word)
- अक्षर या अंक (Letters or Numerals)
- रंग संयोजन (Color combination)
- लेबल, टैगलाइन, या पैकेजिंग
उदाहरण: Nike का “swoosh”, McDonald’s का “M”, या Amul का “Taste of India”
3. ट्रेडमार्क की विशेषताएँ (Features of Trademark):
- विशिष्टता (Distinctiveness)
- स्रोत की पहचान (Identification of origin)
- उपभोक्ताओं के बीच भरोसा निर्मित करना
- कानूनी संरक्षण प्रदान करना
- व्यापार प्रतिष्ठा बनाए रखना
4. ट्रेडमार्क का पंजीकरण (Trademark Registration Process):
ट्रेडमार्क का पंजीकरण अनिवार्य नहीं है, लेकिन यह रजिस्ट्रेशन धारक को कानूनी संरक्षण प्रदान करता है।
पंजीकरण की प्रक्रिया:
- खोज (Search):
किसी भी चिह्न को अपनाने से पहले यह सुनिश्चित करना कि वही या समान चिह्न पहले से पंजीकृत नहीं है। - आवेदन (Application) – Form TM-A:
ट्रेडमार्क रजिस्ट्री कार्यालय में आवेदन किया जाता है। आवेदन में नाम, पता, चिह्न, वर्ग (Class of goods/services) और विवरण शामिल होता है। - जांच (Examination):
रजिस्ट्री द्वारा यह देखा जाता है कि आवेदन कानून के अनुरूप है या नहीं, और कोई विरोधाभास (conflict) तो नहीं। - प्रकाशन (Publication):
ट्रेडमार्क को जर्नल में प्रकाशित किया जाता है ताकि कोई आपत्ति (opposition) होने पर उसे दर्ज किया जा सके। - विरोध (Opposition):
कोई भी तीसरा पक्ष 4 महीने की अवधि में आपत्ति दाखिल कर सकता है। - पंजीकरण (Registration):
यदि कोई विरोध नहीं होता, तो ट्रेडमार्क पंजीकृत हो जाता है और एक सर्टिफिकेट ऑफ रजिस्ट्रेशन जारी किया जाता है। - अवधि और नवीनीकरण:
ट्रेडमार्क की वैधता 10 वर्ष तक होती है और इसे अनिश्चितकाल तक हर 10 वर्ष में नवीनीकृत किया जा सकता है।
5. ट्रेडमार्क उल्लंघन (Trademark Infringement):
Section 29 of the Act के अंतर्गत यदि कोई व्यक्ति जानबूझकर किसी पंजीकृत ट्रेडमार्क के समान या भ्रमित करने वाले ट्रेडमार्क का उपयोग करता है, तो यह उल्लंघन कहलाता है।
ट्रेडमार्क उल्लंघन की शर्तें:
- ट्रेडमार्क पंजीकृत होना चाहिए
- उल्लंघनकर्ता द्वारा चिह्न का व्यापारिक उपयोग
- उपभोक्ता भ्रम (likelihood of confusion) की संभावना
- समान या मिलती-जुलती वस्तुओं/सेवाओं पर उपयोग
दंडात्मक प्रावधान:
- 3 वर्ष तक की सजा और
- 2 लाख रुपये तक का जुर्माना
6. पासिंग-ऑफ का सिद्धांत (Doctrine of Passing Off):
Passing Off एक कॉमन लॉ सिद्धांत है जिसका उद्देश्य किसी की व्यापार प्रतिष्ठा की रक्षा करना है, भले ही ट्रेडमार्क पंजीकृत न हो।
पासिंग-ऑफ के तत्व (Essential Elements):
- गुडविल (Goodwill):
वादी को यह साबित करना होगा कि उसके ब्रांड की एक अच्छी प्रतिष्ठा है। - भ्रम की संभावना (Misrepresentation):
प्रतिवादी ने उपभोक्ताओं को भ्रमित करने वाला चिह्न या नाम इस्तेमाल किया है। - हानि (Damage):
इसके कारण वादी को आर्थिक या प्रतिष्ठा की हानि हुई है।
केस लॉ:
Cadila Healthcare Ltd. v. Cadila Pharmaceuticals Ltd. (2001) – सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि उपभोक्ता भ्रम की संभावना हो तो पासिंग-ऑफ माना जाएगा, भले ही नामों की थोड़ी भिन्नता हो।
7. ट्रेडमार्क का महत्व (Importance of Trademark):
- उपभोक्ताओं में भरोसा कायम करता है
- ब्रांड वैल्यू और पहचान बढ़ाता है
- निवेशकों और भागीदारों को आकर्षित करता है
- अंतरराष्ट्रीय व्यापार को सशक्त करता है
- पायरेसी और नकली उत्पादों से सुरक्षा मिलती है
8. निष्कर्ष (Conclusion):
ट्रेडमार्क एक अमूल्य बौद्धिक संपदा है जो व्यवसाय को विशिष्ट पहचान देती है। ट्रेडमार्क अधिनियम, 1999 न केवल पंजीकरण की व्यवस्था करता है, बल्कि व्यापारिक प्रतिष्ठा की रक्षा हेतु सशक्त कानूनी उपाय भी प्रदान करता है। साथ ही, पासिंग-ऑफ का सिद्धांत यह सुनिश्चित करता है कि गैर-पंजीकृत ट्रेडमार्क भी न्यायिक संरक्षण प्राप्त कर सके। प्रत्येक व्यवसाय को अपने ट्रेडमार्क को पंजीकृत कराकर उसकी कानूनी सुरक्षा सुनिश्चित करनी चाहिए।