लेख शीर्षक: “Article 21 और निजता का अधिकार: Puttaswamy निर्णय की रोशनी में पुलिस की सीमाएं”
भूमिका:
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 21 प्रत्येक नागरिक को “जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के संरक्षण” का अधिकार प्रदान करता है। समय के साथ इस अनुच्छेद की व्याख्या व्यापक होती गई है, और Puttaswamy बनाम भारत संघ (2017) के ऐतिहासिक फैसले ने निजता के अधिकार को अनुच्छेद 21 के अंतर्गत मौलिक अधिकार के रूप में मान्यता दी। इस निर्णय के बाद, यह स्पष्ट हो गया कि बिना व्यक्ति की अनुमति या उचित वैधानिक प्रक्रिया के, उसकी व्यक्तिगत जानकारी, जैसे मोबाइल फोन की चैट, गैलरी, कॉल रिकॉर्ड आदि, तक पहुँचना असंवैधानिक है।
Puttaswamy केस की पृष्ठभूमि:
जस्टिस के. एस. पुट्टास्वामी (सेवानिवृत्त) द्वारा 2012 में दाखिल एक याचिका के माध्यम से यह मुद्दा उठा कि क्या निजता भारतीय नागरिक का मौलिक अधिकार है या नहीं। 24 अगस्त 2017 को नौ जजों की पीठ ने सर्वसम्मति से निर्णय दिया कि निजता का अधिकार (Right to Privacy) संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत एक मौलिक अधिकार है।
Puttaswamy बनाम भारत संघ (Justice K.S. Puttaswamy v. Union of India) का निर्णय भारत के सर्वोच्च न्यायालय (Supreme Court of India) द्वारा 24 अगस्त 2017 को दिया गया था।
इसमें 9 जजों की संविधान पीठ (Constitution Bench) ने सर्वसम्मति से निर्णय दिया कि “निजता का अधिकार” (Right to Privacy) भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 के अंतर्गत मौलिक अधिकार (Fundamental Right) है।
यह निर्णय भारतीय न्यायिक इतिहास के सबसे महत्वपूर्ण फैसलों में से एक माना जाता है।
मुख्य निष्कर्ष और प्रभाव:
- निजता का अधिकार मौलिक अधिकार है:
अब प्रत्येक नागरिक के पास अपनी व्यक्तिगत जानकारी, संवाद, गैलरी, स्थान (location), और अन्य डिजिटल डेटा को गोपनीय रखने का संवैधानिक संरक्षण है। - पुलिस की सीमाएं तय हुईं:
पुलिस अब किसी भी व्यक्ति का मोबाइल फोन, लैपटॉप या अन्य डिजिटल उपकरण उसकी मर्जी के बिना न तो जब्त कर सकती है, न ही उसकी चैट्स, कॉल रिकॉर्ड या गैलरी देख सकती है—जब तक कि उसके पास कोर्ट से प्राप्त Search Warrant (सर्च वारंट) न हो। - Search और Seizure की वैधानिक प्रक्रिया:
किसी भी प्रकार की तलाशी या जब्ती के लिए पुलिस को दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) की निर्धारित प्रक्रिया और न्यायिक अनुमति का पालन करना अनिवार्य है।
प्रासंगिक उदाहरण:
मान लीजिए किसी व्यक्ति से पुलिस मोबाइल जब्त कर उसका डेटा खंगालना चाहती है। यदि वह व्यक्ति इसकी अनुमति नहीं देता और पुलिस के पास कोर्ट का सर्च वारंट नहीं है, तो यह कृत्य उसकी निजता का उल्लंघन माना जाएगा। इसके खिलाफ वह अदालत का दरवाजा खटखटा सकता है।
न्यायपालिका की भूमिका:
Puttaswamy निर्णय ने न्यायपालिका को इस अधिकार का प्रहरी बना दिया है। अब हर उस कार्यवाही की न्यायिक समीक्षा की जा सकती है जो किसी की निजता का उल्लंघन करती हो। डिजिटल युग में जब फोन हमारी व्यक्तिगत जानकारी का भंडार बन चुका है, इस अधिकार की रक्षा और भी महत्वपूर्ण हो जाती है।
निष्कर्ष:
Puttaswamy बनाम भारत संघ का निर्णय भारतीय लोकतंत्र और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के लिए मील का पत्थर है। इसने यह सुनिश्चित किया कि संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत हर नागरिक को अपनी निजता की रक्षा का अधिकार है। पुलिस और अन्य राज्य एजेंसियों को अब यह ध्यान रखना होगा कि वे बिना न्यायिक अनुमति के किसी की व्यक्तिगत जानकारी तक पहुँच नहीं सकते। यह निर्णय न केवल नागरिकों को सशक्त बनाता है, बल्कि कानून के शासन को भी और मजबूत करता है।