“Basavaraj बनाम Indira: वाद पत्र (Plaint) में संशोधन के सीमांत – Order 6 Rule 17 CPC की न्यायिक व्याख्या”
परिचय:
“Basavaraj बनाम Indira एवं अन्य” (Supreme Court of India) का यह ऐतिहासिक निर्णय भारतीय सिविल प्रक्रिया संहिता (Civil Procedure Code – CPC) के Order 6 Rule 17 के अंतर्गत वाद पत्र (plaint) में संशोधन की अनुमति की सीमा और उसके प्रभाव पर एक महत्वपूर्ण न्यायिक दृष्टिकोण प्रदान करता है। यह निर्णय बताता है कि यदि प्रस्तावित संशोधन वाद की प्रकृति (nature of the suit) को पूरी तरह से बदल देता है, तो ऐसा संशोधन स्वीकार नहीं किया जा सकता।
मामले की पृष्ठभूमि:
इस प्रकरण में वादी (Basavaraj) द्वारा दायर वाद में एक समय के बाद संशोधन की मांग की गई थी। यह संशोधन वाद पत्र की मूल प्रकृति को बदलने वाला था। प्रतिवादी (Indira एवं अन्य) ने इसका विरोध किया, और मामला सर्वोच्च न्यायालय तक पहुँचा।
मुख्य कानूनी प्रश्न:
क्या Order 6 Rule 17 CPC के तहत वाद पत्र में ऐसा संशोधन किया जा सकता है, जो मुकदमे की प्रकृति को पूरी तरह से परिवर्तित कर दे?
सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय:
सर्वोच्च न्यायालय ने यह स्पष्ट किया कि Order 6 Rule 17 CPC वादी को सीमित अधिकार देता है कि वह वाद पत्र में संशोधन कर सके, परंतु यह अधिकार असीमित नहीं है। यदि प्रस्तावित संशोधन मुकदमे की मूल प्रकृति को बदल देता है – जैसे एक संपत्ति विवाद को अनुबंध विवाद में बदलना – तो ऐसे संशोधन की अनुमति नहीं दी जा सकती।
न्यायालय ने विशेष रूप से कहा:
- वाद पत्र का संशोधन न्याय के हित में तभी स्वीकार किया जा सकता है जब वह वाद की आधारभूत प्रकृति को प्रभावित न करे।
- यदि संशोधन से नए कारण-कार्यों (cause of action) को जोड़ा जाता है जो पहले मौजूद नहीं थे, तो वह संशोधन न्यायसंगत नहीं माना जाएगा।
- अदालतों को यह देखना चाहिए कि क्या संशोधन की माँग न्याय प्राप्त करने की वास्तविक आवश्यकता है या मुकदमे को खींचने और विरोधी पक्ष को हानि पहुँचाने का प्रयास।
महत्वपूर्ण टिप्पणियाँ:
- Order 6 Rule 17 CPC दो चरणों में संशोधन की अनुमति देता है – (i) न्यायालय की अनुमति से, यदि आवश्यक हो, (ii) लेकिन यह केवल तभी स्वीकार्य है जब मामला ट्रायल की स्थिति से पहले हो।
- ‘Due diligence’ का सिद्धांत – न्यायालय यह देखेगा कि क्या संशोधन माँगने वाला पक्ष उचित परिश्रम (due diligence) के बावजूद यह बदलाव पहले नहीं कर पाया था।
- यदि मुकदमे की प्रकृति बदल जाती है, तो यह निषेध किया जाएगा, चाहे संशोधन से संबंधित तथ्य सत्य क्यों न हों।
न्यायिक प्रभाव:
यह निर्णय उन सभी निचली अदालतों और वकीलों के लिए मार्गदर्शक है जो यह समझना चाहते हैं कि वाद पत्र में किस सीमा तक संशोधन किया जा सकता है। यह न्यायिक अनुशासन स्थापित करता है ताकि मुकदमेबाजी की प्रक्रिया का दुरुपयोग न हो।
निष्कर्ष:
“Basavaraj बनाम Indira” का यह निर्णय भारतीय सिविल प्रक्रिया संहिता में Order 6 Rule 17 की व्याख्या को स्पष्ट करता है और यह सुनिश्चित करता है कि न्यायिक प्रक्रिया का दुरुपयोग न हो। यह मामला स्पष्ट करता है कि मुकदमे के मूल ढांचे में परिवर्तन करने वाला संशोधन स्वीकार्य नहीं है और इसका उद्देश्य मुकदमे की शुचिता और निष्पक्षता बनाए रखना है।