इन्सॉल्वेंसी एंड बैंकरप्सी कोड, 2016 (IBC) के तहत लागू की गई फास्ट ट्रैक इन्सॉल्वेंसी प्रक्रिया, एक ऐसी व्यवस्था है जो कुछ खास श्रेणी की कंपनियों के लिए त्वरित, कम लागत और कम समय में दिवालियापन समाधान की सुविधा देती है। इसका उद्देश्य न्यायिक प्रणाली पर भार कम करना और छोटे/मध्यम उद्यमों को जल्दी राहत प्रदान करना है।
1. फास्ट ट्रैक प्रक्रिया की अवधारणा (Concept):
IBC की धारा 55 से 58 तक इस प्रक्रिया का उल्लेख किया गया है। यह प्रक्रिया उन कंपनियों के लिए है जो साधारण संरचना रखती हैं, जिनके ऋण और परिसंपत्तियाँ सीमित हैं, और जिनके मामलों का समाधान लंबी कानूनी प्रक्रिया के बिना संभव है।
फास्ट ट्रैक प्रक्रिया की प्रमुख विशेषता यह है कि यह सामान्य कॉर्पोरेट इन्सॉल्वेंसी प्रक्रिया (180–270 दिन) की तुलना में कम अवधि – 90 दिनों (और अधिकतम 135 दिन) में पूरी की जानी होती है।
2. प्रक्रिया किन कंपनियों पर लागू होती है (Applicability):
भारत सरकार ने नोटिफिकेशन के माध्यम से फास्ट ट्रैक इन्सॉल्वेंसी प्रक्रिया को निम्नलिखित कंपनियों पर लागू करने की अनुमति दी है:
- छोटी कंपनियाँ (Small Companies): कंपनी अधिनियम, 2013 की धारा 2(85) के तहत वे कंपनियाँ जिनकी चुकता पूंजी और टर्नओवर एक निश्चित सीमा से कम है।
- स्टार्टअप (Startup Companies): विशेष रूप से वे स्टार्टअप जो निजी लिमिटेड कंपनी के रूप में पंजीकृत हैं और जिन्हें DIPP (अब DPIIT) द्वारा मान्यता प्राप्त है।
- कम परिसंपत्ति या आय वाली कंपनियाँ: जिनके लेन-देन, परिसंपत्तियाँ या कर्मचारी सीमित हैं, जिससे उनकी इन्सॉल्वेंसी प्रक्रिया सरल हो।
- सरकार द्वारा अधिसूचित अन्य संस्थाएं जो उपयुक्त मानी जाती हैं।
3. फास्ट ट्रैक प्रक्रिया की विशेषताएँ (Salient Features):
- समयबद्धता: 90 दिन की अवधि (एकमुश्त 45 दिन का विस्तार NCLT द्वारा)।
- कमplex प्रक्रिया: दावे, समाधान योजना, और परिसमापन आदि को सरलता से संभाला जाता है।
- कम लागत: लंबी कार्यवाही और कानूनी खर्चों से राहत।
- सीमित प्रतिभागी: कम संख्या में लेनदारों, निवेशकों और हितधारकों के कारण कार्यवाही शीघ्र पूर्ण होती है।
- संक्षिप्त दस्तावेज़ीकरण और मूल्यांकन: विस्तृत फोरेंसिक लेखा या ऑडिट की आवश्यकता कम होती है।
4. प्रक्रिया की मुख्य चरण (Steps Involved):
- याचिका दाखिल करना: कॉर्पोरेट डिबेटर, वित्तीय लेनदार, या परिचालन लेनदार फास्ट ट्रैक प्रक्रिया के लिए आवेदन कर सकते हैं।
- प्रारंभिक आदेश: NCLT यदि संतुष्ट हो कि मामला फास्ट ट्रैक के लिए उपयुक्त है, तो प्रक्रिया प्रारंभ कर देता है।
- आईआरपी की नियुक्ति: इंटरिम रेजोल्यूशन प्रोफेशनल (IRP) की नियुक्ति की जाती है, जो दावों को आमंत्रित करता है और CoC का गठन करता है।
- CoC की बैठकें: CoC द्वारा रेजोल्यूशन योजना का मूल्यांकन और मतदान।
- रेजोल्यूशन या परिसमापन का निर्णय: यदि योजना स्वीकार हो जाती है तो पुनर्गठन होता है, अन्यथा परिसमापन की प्रक्रिया शुरू होती है।
5. अपील की प्रक्रिया (Appeal Mechanism):
फास्ट ट्रैक प्रक्रिया में भी, यदि किसी पक्ष को किसी आदेश, योजना या कार्यवाही से असहमति हो, तो वह धारा 61 के तहत अपील कर सकता है।
अपील की प्रमुख परिस्थितियाँ:
- रेजोल्यूशन प्लान की स्वीकृति या अस्वीकृति से असंतोष।
- CoC द्वारा पारित निर्णय में पक्षपात या नियमों का उल्लंघन।
- NCLT द्वारा किसी पक्ष के दावे को अस्वीकार करना।
- दावों के सत्यापन में त्रुटियाँ।
- प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का उल्लंघन – जैसे पक्ष को सुनवाई का अवसर न देना।
अपील कहाँ और कब की जा सकती है?
- अपील NCLT के आदेश के विरुद्ध NCLAT में 30 दिनों के भीतर दायर की जाती है।
- न्यायालय कारणों से संतुष्ट हो तो 15 दिन का अतिरिक्त समय दे सकता है।
- NCLAT के आदेश के विरुद्ध सुप्रीम कोर्ट में धारा 62 के तहत अपील की जा सकती है।
6. व्यवहारिक उदाहरण:
मान लीजिए एक स्टार्टअप कंपनी पर केवल 2 करोड़ रुपये का ऋण है और उसका परिचालन सीमित है। ऐसी स्थिति में यदि वह ऋण चुकाने में असफल रहती है, तो फास्ट ट्रैक प्रक्रिया उसके लिए एक संक्षिप्त और प्रभावी उपाय है – जिससे उसे या उसके लेनदारों को वर्षों तक कोर्ट में संघर्ष नहीं करना पड़ेगा।
7. न्यायिक दृष्टिकोण (Judicial Interpretation):
हालांकि फास्ट ट्रैक प्रक्रिया में प्रमुख केस लॉ कम हैं, परंतु NCLT और NCLAT ने स्पष्ट किया है कि:
- फास्ट ट्रैक प्रक्रिया को त्वरित न्याय के उद्देश्य से लागू किया गया है और इसमें देरी को न्यूनतम किया जाना चाहिए।
- सभी हितधारकों के अधिकारों की रक्षा होनी चाहिए, चाहे वह सामान्य प्रक्रिया हो या फास्ट ट्रैक।
निष्कर्ष (Conclusion):
फास्ट ट्रैक इन्सॉल्वेंसी प्रक्रिया एक ऐसा कदम है जो भारत के कॉर्पोरेट कानून में गति, दक्षता और कम लागत को बढ़ावा देता है। यह विशेष रूप से MSME और स्टार्टअप सेक्टर के लिए एक उपयोगी समाधान प्रक्रिया है। अपील की स्पष्ट व्यवस्था यह सुनिश्चित करती है कि प्रक्रिया पारदर्शी, न्यायोचित और संतुलित बनी रहे।