Pleading Drafting long answer

1. प्लीडिंग क्या है? इसके मुख्य उद्देश्य और महत्व पर विस्तार से प्रकाश डालिए। साथ ही दीवानी वाद में प्लीडिंग के सामान्य सिद्धांतों की विवेचना कीजिए। 

प्लीडिंग क्या है?
“प्लीडिंग” (Pleading) भारतीय दीवानी प्रक्रिया संहिता, 1908 (CPC) के अंतर्गत एक महत्वपूर्ण प्रक्रिया है। इसका तात्पर्य पक्षकारों द्वारा न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत किए गए लिखित बयान से है, जिसमें वे अपने दावे, उत्तर या बचाव को स्पष्ट रूप से रखते हैं। प्लीडिंग मुख्य रूप से दो प्रकार की होती है:

  1. व plaint (वादा पत्र) – वादी द्वारा प्रस्तुत किया जाता है।
  2. Written Statement (लिखित उत्तर) – प्रतिवादी द्वारा प्रस्तुत किया जाता है।

प्लीडिंग के मुख्य उद्देश्य:

  1. विवाद के मुख्य बिंदुओं को स्पष्ट करना:
    ताकि न्यायालय यह जान सके कि वास्तव में विवाद किन बिंदुओं पर केंद्रित है।
  2. न्यायिक प्रक्रिया को सरल और त्वरित बनाना:
    प्लीडिंग के माध्यम से अनावश्यक बिंदुओं को अलग कर दिया जाता है और केवल विवादित तथ्यों पर ध्यान केंद्रित किया जाता है।
  3. न्यायिक समय की बचत:
    जब पक्षकार अपने-अपने तर्क पहले से लिखित रूप में प्रस्तुत कर देते हैं, तो न्यायालय को सुनवाई में कम समय लगता है।
  4. न्यायिक आदेश को प्रभावी बनाना:
    स्पष्ट प्लीडिंग से निर्णय देने में सहायता मिलती है क्योंकि न्यायालय को तथ्यों और कानून की स्थिति का स्पष्ट ज्ञान हो जाता है।

प्लीडिंग का महत्व:

  • न्याय के सिद्धांतों की पूर्ति में सहायक: न्यायालय बिना किसी पक्षपात के निष्पक्ष निर्णय दे सकता है।
  • साक्ष्य एकत्र करने में सहायता: प्लीडिंग से यह तय होता है कि कौन-से मुद्दे पर साक्ष्य की आवश्यकता है।
  • आपसी सुलह की संभावना: जब पक्षकारों को विवाद की वास्तविकता का ज्ञान होता है, तो वे सुलह की ओर भी अग्रसर हो सकते हैं।
  • पूर्व सूचना का माध्यम: प्रत्येक पक्षकार को यह पता चल जाता है कि दूसरे पक्ष ने क्या दावा या बचाव प्रस्तुत किया है।

दीवानी वाद में प्लीडिंग के सामान्य सिद्धांत (General Principles of Pleading):

भारतीय दीवानी प्रक्रिया संहिता की Order VI के अंतर्गत प्लीडिंग के सामान्य सिद्धांतों को बताया गया है। इसके प्रमुख बिंदु निम्नलिखित हैं:

  1. तथ्यों का उल्लेख हो, न कि कानून का (Facts, not Law):
    पक्षकारों को केवल वे तथ्य प्रस्तुत करने होते हैं जिन पर वे अपना दावा या बचाव आधारित करते हैं। कानून की व्याख्या न्यायालय स्वयं करेगा।
  2. संक्षिप्तता (Conciseness):
    प्लीडिंग को संक्षिप्त और सुस्पष्ट होना चाहिए। अनावश्यक विवरण नहीं होने चाहिए।
  3. सारगर्भित (Material Facts):
    केवल वे तथ्य प्रस्तुत किए जाएं जो वास्तव में विवाद से संबंधित हैं और जिन पर निर्णय निर्भर करेगा।
  4. साक्ष्य का उल्लेख न करें (No Evidence in Pleading):
    केवल तथ्य प्रस्तुत किए जाएं, साक्ष्य बाद में प्रस्तुत किए जाते हैं।
  5. सुसंगतता (Consistency):
    एक ही पक्ष की प्लीडिंग में विरोधाभास नहीं होना चाहिए।
  6. प्रत्येक तथ्य का पृथक उल्लेख (Separate Paragraphs):
    प्रत्येक तथ्य को अलग-अलग अनुच्छेदों में प्रस्तुत किया जाए ताकि न्यायालय को समझने में सुविधा हो।

निष्कर्ष:

प्लीडिंग दीवानी न्याय प्रणाली की नींव है। यह न केवल पक्षकारों को अपनी बात स्पष्ट रूप से प्रस्तुत करने का अवसर देती है, बल्कि न्यायालय को विवाद के मूल मुद्दे समझने और न्याय करने में सक्षम बनाती है। उचित और सटीक प्लीडिंग से मुकदमे का समय, खर्च और मानसिक तनाव — तीनों में कमी आती है। अतः इसकी विधिवत तैयारी और प्रस्तुति अत्यंत आवश्यक है।

2. सी.पी.सी. (सिविल प्रक्रिया संहिता) की धारा 26 से 35 तक की सहायता से बताइए कि एक वाद पत्र (Plaint) में किन-किन बातों का उल्लेख किया जाना आवश्यक होता है। एक उपयुक्त उदाहरण सहित वाद पत्र का प्रारूप प्रस्तुत कीजिए।

भारतीय सिविल प्रक्रिया संहिता (CPC) की धारा 26 से 35 तक दीवानी वादों के प्रारंभ, प्रस्तुति और प्रारंभिक प्रक्रिया से संबंधित प्रावधानों को विनियमित करती है। वाद पत्र (Plaint) दीवानी वाद का मूल दस्तावेज होता है जिससे वादी (Plaintiff) अपनी शिकायत न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत करता है।


🔹 धारा 26 से 35 का सारांश (वाद पत्र की दृष्टि से):

धारा विषयवस्तु वाद पत्र से सम्बन्ध
26 वादों का संस्थापन प्रत्येक दीवानी वाद वाद पत्र के माध्यम से प्रारंभ होता है, जिसमें तथ्यों का सत्यापन शपथ पत्र सहित होना चाहिए।
27 समन की प्रस्तुति प्रतिवादी को वाद की जानकारी समन द्वारा दी जाती है।
28-29 समन की सेवा प्रतिवादी तक समन की विधिवत सेवा की प्रक्रिया निर्धारित।
30-32 कार्यवाही का संचालन न्यायालय को आदेश देने का अधिकार है कि कौन-कौन दस्तावेज प्रस्तुत किए जाएं और कौन गवाह उपस्थित हो।
33 आदेश पारित करने की शक्ति न्यायालय उचित आदेश देने के लिए सक्षम है।
34 ब्याज से संबंधित प्रावधान यदि दावा राशि पर ब्याज मांगा गया हो तो उसका निर्धारण इसी धारा के अंतर्गत होता है।
35 व्यय (Costs) वाद में व्यय का निर्णय न्यायालय करता है।

🔸 वाद पत्र (Plaint) में आवश्यक बातें (Order VII Rule 1 के अनुसार):

एक वाद पत्र में निम्नलिखित तथ्यों का स्पष्ट रूप से उल्लेख आवश्यक होता है:

  1. वादपत्र का शीर्षक और न्यायालय का नाम
  2. वादियों और प्रतिवादियों का नाम, पता और विवरण
  3. कारण वाद (Cause of action) – किस कारण वाद किया गया है?
  4. अधिकार का वर्णन (Jurisdiction) – न्यायालय को इस वाद की सुनवाई का अधिकार क्यों है?
  5. दावा की राशि (Relief Claimed) – वादी क्या चाहता है?
  6. कथ्य की तारीखें और विवरण – कब क्या हुआ इसका क्रमवार विवरण
  7. ब्याज की मांग (यदि हो)
  8. प्रमाणपत्र (Verification) – वादी द्वारा सत्यापन कि तथ्यों का विवरण सत्य है।

वाद पत्र का प्रारूप (Format of Plaint in Hindi):

                               वाद पत्र

                      न्यायालय - दीवानी न्यायालय, लखनऊ

वाद संख्या: _______         प्रस्तुत करने की तिथि: __/__/20__

                            वादी बनाम प्रतिवादी

वादी: रामकुमार पुत्र श्री मोहनलाल, निवासी – 123, गांधी नगर, लखनऊ

प्रतिवादी: श्यामलाल पुत्र श्री राधेश्याम, निवासी – 456, अम्बेडकर रोड, लखनऊ

**विवरण:**  
1. वादी और प्रतिवादी दोनों लखनऊ निवासी हैं।  
2. दिनांक 01.01.2024 को प्रतिवादी ने वादी से ₹50,000 उधार लिए, जो उसने 6 माह में लौटाने का वादा किया।  
3. वादी ने यह राशि प्रतिवादी को चेक द्वारा दी थी, जिसका विवरण निम्नलिखित है:  
   - चेक संख्या: 123456  
   - दिनांक: 01.01.2024  
   - बैंक: स्टेट बैंक ऑफ इंडिया, शाखा – हजरतगंज, लखनऊ  
4. प्रतिवादी ने कई बार कहने के बावजूद राशि लौटाई नहीं।  
5. इस कारण वादी को आर्थिक हानि हुई है और उसे न्याय की आवश्यकता है।  

**वाद करने का कारण (Cause of Action):**  
वादी को 01.07.2024 को अंतिम बार प्रतिवादी से वादा तोड़ने की सूचना मिली, जिससे यह वाद उत्पन्न हुआ।

**न्यायालय की अधिकारिता:**  
चूंकि विवाद का कारण और पक्षकार लखनऊ क्षेत्र में हैं, अतः यह न्यायालय सुनवाई हेतु सक्षम है।

**वादकर्ता द्वारा मांगी गई राहत (Relief Claimed):**  
1. ₹50,000 की मूल राशि  
2. 12% वार्षिक ब्याज दिनांक 01.07.2024 से अदायगी तक  
3. मुकदमे का खर्च प्रतिवादी से दिलवाया जाए।

**प्रमाणपत्र (Verification):**  
मैं, रामकुमार, सत्यापित करता हूं कि उपरोक्त कथन मेरे ज्ञान और विश्वास के अनुसार सत्य हैं।

स्थान: लखनऊ  
दिनांक: __/__/20__  
(हस्ताक्षर)  
वादी – रामकुमार  
वकील का नाम – __________  

✴️ निष्कर्ष:

सी.पी.सी. की धारा 26 से 35 वाद पत्र की प्रस्तुति और प्रक्रिया को नियमित करती हैं। एक उचित वाद पत्र वह होता है जिसमें सभी आवश्यक तथ्यों को संक्षेप में, परंतु स्पष्ट रूप से प्रस्तुत किया गया हो। यह न केवल न्यायालय को विवाद समझने में सहायता करता है, बल्कि उचित निर्णय देने में भी सहायक होता है।

3. पक्षकार द्वारा लिखित वक्तव्य (Written Statement) क्या होता है? इसकी प्रकृति, समयसीमा, और ड्राफ्टिंग से संबंधित विधिक प्रावधानों की विस्तार से व्याख्या कीजिए।

पक्षकार द्वारा लिखित वक्तव्य (Written Statement) भारतीय दीवानी प्रक्रिया संहिता (Civil Procedure Code – CPC), 1908 का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। यह प्रतिवादी (Defendant) द्वारा न्यायालय में प्रस्तुत किया जाने वाला लिखित उत्तर होता है, जो वादी (Plaintiff) द्वारा लगाए गए आरोपों का खंडन, स्पष्टीकरण या उत्तर देता है।


🔹 1. लिखित वक्तव्य की परिभाषा (Definition of Written Statement):

लिखित वक्तव्य वह औपचारिक दस्तावेज होता है जिसे प्रतिवादी अपनी रक्षा में न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत करता है। इसमें वह वादी के आरोपों को या तो स्वीकार करता है, या इनकार करता है, या फिर अपने अधिकारों या दावों का प्रतिपादन करता है।


🔹 2. प्रकृति (Nature of Written Statement):

  • यह रक्षात्मक दस्तावेज होता है जो प्रतिवादी को अपनी बात रखने का कानूनी अवसर प्रदान करता है।
  • इसमें केवल तथ्यों का खंडन या स्वीकारोक्ति की जाती है।
  • यदि प्रतिवादी के पास कोई प्रतिदावा (Counterclaim) या प्रतिवाद (Set-off) हो, तो वह भी इसी के अंतर्गत किया जाता है।

🔹 3. समयसीमा (Time Limit):

📌 Order VIII Rule 1, CPC के अनुसार:

  • प्रतिवादी को वाद पत्र की प्रति प्राप्त होने के 30 दिनों के भीतर लिखित वक्तव्य दाखिल करना होता है।
  • विशेष परिस्थिति में न्यायालय 90 दिन तक की अधिकतम समय सीमा तक छूट दे सकता है।
  • यदि इस अवधि के भीतर उत्तर दाखिल नहीं किया गया, तो न्यायालय एकतरफा निर्णय (Ex-parte Decree) पारित कर सकता है।

🔹 4. लिखित वक्तव्य की ड्राफ्टिंग से संबंधित विधिक प्रावधान (Legal Provisions for Drafting):

📘 Order VIII CPC (Rules 1 to 10) के अंतर्गत प्रमुख नियम:

नियम विषय
Rule 1 वक्तव्य दाखिल करने की समय सीमा
Rule 2 प्रत्येक कथन का स्पष्ट उत्तर आवश्यक
Rule 3 अस्पष्ट उत्तर अमान्य माने जाएंगे
Rule 4 सुस्पष्ट उत्तर देना अनिवार्य
Rule 5 उत्तर न देने पर तथ्य स्वीकार किए गए माने जा सकते हैं
Rule 6 सेट-ऑफ (Set-off) का विवरण
Rule 6A to 6G प्रतिदावा (Counterclaim) से संबंधित प्रावधान
Rule 7 वैकल्पिक उत्तरों की अनुमति
Rule 8 विशेष मामलों में वक्तव्य की अनुमति

🔹 5. लिखित वक्तव्य ड्राफ्ट करते समय ध्यान रखने योग्य बातें:

  1. वाद पत्र के प्रत्येक अनुच्छेद का पृथक उत्तर देना चाहिए।
  2. जो तथ्य स्वीकार्य नहीं हैं, उनका स्पष्ट खंडन करना अनिवार्य है।
  3. यदि प्रतिवादी का कोई अलग दावा है, तो उसे स्पष्ट रूप से प्रस्तुत किया जाना चाहिए।
  4. दस्तावेजों और सबूतों का संक्षिप्त संदर्भ दिया जा सकता है।
  5. अंत में प्रमाण-पत्र (Verification) और हस्ताक्षर अनिवार्य हैं।

लिखित वक्तव्य का एक सामान्य प्रारूप (Specimen of Written Statement):

                        न्यायालय – दीवानी न्यायालय, लखनऊ

वाद संख्या: _______         वादी: रामकुमार  
प्रति                  प्रतिवादी: श्यामलाल  

                       **लिखित वक्तव्य (Written Statement)**

1. प्रतिवादी वादी द्वारा लगाए गए सभी आरोपों को अस्वीकार करता है, जब तक कि विशेष रूप से स्वीकार नहीं किया गया हो।

2. अनुच्छेद 1 में वर्णित तथ्यों को प्रतिवादी नकारता है।  
3. अनुच्छेद 2 में कहा गया है कि ₹50,000 ऋण लिया गया, जो असत्य है।  
4. प्रतिवादी यह स्वीकार करता है कि वादी से केवल ₹20,000 लिए गए थे, जो कि 03.01.2024 को चुका दिए गए हैं।  
5. शेष सभी कथन तथ्यहीन, मनगढ़ंत और झूठे हैं।

**अत: प्रतिवादी प्रार्थना करता है कि वाद खारिज किया जाए।**

**प्रमाण पत्र (Verification):**  
मैं, श्यामलाल, सत्यापित करता हूं कि उपरोक्त उत्तर मेरे ज्ञान और विश्वास के अनुसार सत्य है।

स्थान: लखनऊ  
दिनांक: __/__/20__  
(हस्ताक्षर)  
प्रतिवादी – श्यामलाल  
वकील का नाम – __________  

✴️ निष्कर्ष:

लिखित वक्तव्य दीवानी न्याय प्रक्रिया में पक्षकार की रक्षा का औजार है। यह न केवल प्रतिवादी को अपनी बात रखने का मौका देता है, बल्कि न्यायालय को यह समझने में मदद करता है कि वास्तव में विवाद किस बिंदु पर है। उचित समय पर और विधिवत रूप से लिखा गया लिखित वक्तव्य निष्पक्ष और त्वरित न्याय सुनिश्चित करने में सहायक होता है।

4. ‘पुनर्विचार याचिका’ (Review Petition) और ‘अपील’ (Appeal) में क्या अंतर है? पुनर्विचार याचिका का प्रारूप बनाइए और यह भी बताइए कि इसे कब और किन परिस्थितियों में दाखिल किया जा सकता है।

पुनर्विचार याचिका (Review Petition) और अपील (Appeal) दोनों ही न्यायिक निर्णयों को चुनौती देने के विधिक उपाय हैं, परंतु दोनों में प्रकृति, उद्देश्य, अधिकार क्षेत्र और प्रक्रिया के स्तर पर स्पष्ट अंतर होता है।


🔹 1. पुनर्विचार याचिका और अपील में अंतर (Difference Between Review Petition and Appeal):

बिंदु पुनर्विचार याचिका (Review) अपील (Appeal)
परिभाषा यह वही न्यायालय अपने ही निर्णय पर पुनर्विचार करता है। यह उच्च न्यायालय या अपीलीय न्यायालय में निर्णय को चुनौती दी जाती है।
उद्देश्य त्रुटि को सुधारना जो न्यायालय से अनजाने में हुई हो। निचली अदालत के निर्णय की वैधानिकता और तथ्यात्मकता की दोबारा जांच।
किसके समक्ष दायर होती है? उसी न्यायालय के समक्ष जिसने निर्णय पारित किया हो। उच्च स्तर के न्यायालय में दायर की जाती है।
कानूनी आधार धारा 114 और आदेश 47, CPC धारा 96 से 112, CPC तथा विशेष अधिनियमों के अंतर्गत
समयसीमा आमतौर पर 30 दिन के भीतर प्रथम अपील – 90 दिन, द्वितीय अपील – 60 दिन (प्रकार पर निर्भर)
प्रारूपिकता सीमित बिंदुओं पर पुनर्विचार विस्तृत रूप से पूरी कार्यवाही की जांच
दायर करने की अनुमति तब जब कोई स्पष्ट त्रुटि, नई साक्ष्य या अन्य युक्तिसंगत कारण हो तब जब पक्षकार निर्णय से असंतुष्ट हो

🔹 2. पुनर्विचार याचिका दाखिल करने की परिस्थितियाँ:

CPC की धारा 114 और Order 47 Rule 1 के अनुसार, पुनर्विचार याचिका निम्न स्थितियों में दाखिल की जा सकती है:

  1. यदि कोई स्पष्ट त्रुटि (Error Apparent on the Face of Record) न्यायालय के निर्णय में हो।
  2. कोई नया तथ्य या साक्ष्य जो पूर्व में उपलब्ध नहीं था, अब सामने आया हो।
  3. कोई अन्य पर्याप्त कारण जो न्यायालय को पुनर्विचार हेतु बाध्य करे।

ध्यान दें: केवल असहमति के आधार पर पुनर्विचार याचिका स्वीकार नहीं की जा सकती। यह “समीक्षा” है, पुनः सुनवाई नहीं।


3. पुनर्विचार याचिका का प्रारूप (Format of Review Petition):

                      न्यायालय – दीवानी न्यायालय, लखनऊ

वाद संख्या: _______         वादी: रामकुमार  
प्रति                  प्रतिवादी: श्यामलाल  

                **पुनर्विचार याचिका (Review Petition)**  
             CPC की धारा 114 तथा Order 47 Rule 1 के अंतर्गत

महोदय,

1. निवेदक (वादी/प्रतिवादी) आपके न्यायालय द्वारा दिनांक 10.04.2025 को पारित आदेश/निर्णय के विरुद्ध यह पुनर्विचार याचिका प्रस्तुत कर रहा है।

2. उक्त निर्णय में निम्नलिखित स्पष्ट त्रुटियाँ हैं:
   - आदेश में दिनांक 01.01.2024 के लेनदेन को नजरअंदाज किया गया।
   - निवेदक द्वारा प्रस्तुत प्रमाणपत्र को विचार में नहीं लिया गया।

3. अब निवेदक के पास नया दस्तावेज (चेक रिटर्न रिपोर्ट) प्राप्त हुआ है, जो निर्णय के समय उपलब्ध नहीं था।

4. उक्त तथ्यों के प्रकाश में निवेदक माननीय न्यायालय से प्रार्थना करता है कि निर्णय पर पुनर्विचार कर उचित आदेश पारित किया जाए।

**प्रमाणपत्र (Verification):**  
मैं, रामकुमार, सत्यापित करता हूं कि उपर्युक्त कथन मेरे ज्ञान और विश्वास के अनुसार सत्य हैं।

स्थान: लखनऊ  
दिनांक: __/__/20__  
(हस्ताक्षर)  
निवेदक – रामकुमार  
वकील का नाम – __________  

✴️ 4. निष्कर्ष (Conclusion):

  • पुनर्विचार याचिका एक सीमित अधिकार है, जिसका प्रयोग विशेष परिस्थितियों में ही किया जाता है।
  • अपील एक व्यापक और सामान्य उपाय है जब पक्षकार निर्णय से असंतुष्ट होता है।
  • पुनर्विचार का उद्देश्य न्यायालय द्वारा की गई स्पष्ट त्रुटियों को सुधारना है, जबकि अपील का उद्देश्य निर्णय की पूरी वैधानिकता और विवेक की पुन: समीक्षा करना होता है।

5. प्रार्थना पत्र (Application) और शपथ पत्र (Affidavit) के प्रारूप कैसे बनाए जाते हैं? दोनों के बीच क्या अंतर है? एक दंड प्रक्रिया से संबंधित प्रार्थना पत्र का नमूना ड्राफ्ट तैयार कीजिए।

प्रार्थना पत्र (Application) और शपथ पत्र (Affidavit) दोनों न्यायिक प्रक्रिया के लिए आवश्यक दस्तावेज होते हैं, लेकिन इनकी प्रकृति, उद्देश्य और उपयोग में स्पष्ट अंतर होता है।


🔹 प्रार्थना पत्र और शपथ पत्र में अंतर (Difference between Application and Affidavit):

बिंदु प्रार्थना पत्र (Application) शपथ पत्र (Affidavit)
परिभाषा न्यायालय से कोई आदेश, अनुमति या राहत माँगने के लिए दिया गया औपचारिक निवेदन न्यायालय के समक्ष सत्य तथ्यों का शपथपूर्वक दिया गया लेखबद्ध बयान
प्रकृति अनुरोधात्मक सत्यापनात्मक
उद्देश्य आदेश, छूट, तारीख, या अन्य राहत की मांग हेतु तथ्यों की पुष्टि और गवाही के रूप में
शपथ आवश्यक आवश्यक नहीं अनिवार्य रूप से शपथ पर आधारित होता है
प्रस्तुति अधिवक्ता या पक्षकार द्वारा न्यायालय में मजिस्ट्रेट, नोटरी या शपथ अधिकारी के समक्ष
उदाहरण तारीख बढ़ाने हेतु आवेदन, हस्तक्षेप प्रार्थना पत्र गवाह का हलफनामा, संपत्ति संबंधी विवरण

प्रार्थना पत्र का सामान्य प्रारूप (General Format of Application):

                     न्यायालय – मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट, लखनऊ

वाद संख्या: _______           मामला: राज्य बनाम श्यामलाल  
धारा: 379 आईपीसी के अंतर्गत  

                         प्रार्थना पत्र  

महोदय,

निवेदक इस न्यायालय से यह निवेदन करता है कि उसे दिनांक __/__/20__ को इस न्यायालय में उपस्थित होने के लिए समन प्राप्त हुआ है, किंतु उसी दिन उसकी माताजी की तबियत अत्यंत खराब है तथा उसे अस्पताल में भर्ती कराना आवश्यक है।

इसलिए निवेदक न्यायालय से प्रार्थना करता है कि उसे उक्त दिनांक पर **व्यक्तिगत उपस्थिति से छूट** प्रदान की जाए और अगली तिथि पर उपस्थिति हेतु निर्देशित किया जाए।

प्रार्थी को न्याय की पूर्ण आशा है।

दिनांक: __/__/20__  
स्थान: लखनऊ  
(हस्ताक्षर)  
नाम: रामकुमार  
पता: 123, गांधी नगर, लखनऊ  
वकील का नाम: __________

शपथ पत्र (Affidavit) का सामान्य प्रारूप:

                           शपथ पत्र (Affidavit)

मैं, रामकुमार, पुत्र श्री मोहनलाल, उम्र 35 वर्ष, निवासी – 123, गांधी नगर, लखनऊ, शपथपूर्वक यह कहता/कहती हूं कि:

1. मैं इस वाद का प्रतिवादी/वादी/गवाह हूं।  
2. मुझे दिनांक __/__/20__ को इस न्यायालय में उपस्थित होने हेतु समन प्राप्त हुआ।  
3. उक्त दिन मेरी माताजी की तबीयत अत्यंत गंभीर है, जिसे चिकित्सकीय प्रमाणित किया जा सकता है।  
4. मैं इस कारण से न्यायालय में उपस्थित नहीं हो पाऊंगा।  

यह शपथ पत्र मैंने आज दिनांक __/__/20__ को लखनऊ में शपथ अधिकारी/नोटरी के समक्ष सत्य और पूर्ण विश्वास के आधार पर दिया है।

(हस्ताक्षर)  
नाम: रामकुमार  

शपथ अधिकारी द्वारा सत्यापित:  
नाम एवं हस्ताक्षर  
सील एवं तारीख

🔸 एक दंड प्रक्रिया से संबंधित प्रार्थना पत्र का नमूना (Criminal Application Sample under CrPC):

मुद्दा: धारा 317 दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) के अंतर्गत व्यक्तिगत उपस्थिति से छूट हेतु प्रार्थना पत्र

                      न्यायालय – मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट, लखनऊ

मामला: राज्य बनाम रामकुमार  
धारा: 323/504/506 भा.द.ंसं.  
वाद संख्या: ___/2025  

                             प्रार्थना पत्र  
                      (धारा 317 सीआरपीसी के अंतर्गत)

महोदय,

निवेदक इस न्यायालय के समक्ष निवेदन करता है कि वह इस वाद का अभियुक्त है और न्यायालय द्वारा निर्धारित दिनांक __/__/2025 को न्यायालय में उपस्थित होना था।

किन्तु निवेदक को अस्वस्थता के कारण अस्पताल में भर्ती कराया गया है और चिकित्सक द्वारा विश्राम की सलाह दी गई है, जिसकी चिकित्सा प्रमाण-पत्र संलग्न है।

अतः निवेदक न्यायालय से प्रार्थना करता है कि दिनांक __/__/2025 के लिए **निजी उपस्थिति से छूट प्रदान की जाए** और उक्त तिथि पर उसके अधिवक्ता की उपस्थिति को पर्याप्त माना जाए।

न्यायालय से निवेदक को उचित राहत की आशा है।

दिनांक: __/__/2025  
स्थान: लखनऊ  

(हस्ताक्षर)  
नाम: रामकुमार  
पता: 123, गांधी नगर, लखनऊ  
वकील का नाम: __________  

✴️ निष्कर्ष (Conclusion):

  • प्रार्थना पत्र न्यायालय से राहत या आदेश माँगने का माध्यम है।
  • शपथ पत्र एक कानूनी शपथ पर आधारित तथ्यात्मक बयान है।
  • दंड प्रक्रिया (CrPC) में कई मामलों में प्रार्थना पत्र और शपथ पत्र दोनों की आवश्यकता होती है, विशेषकर जब छूट, जमानत या स्थगन (adjournment) माँगा जा रहा हो।