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नकारात्मक CIBIL रेटिंग पर विवाद: बिना लोन लिए खराब क्रेडिट स्कोर? सुप्रीम कोर्ट ने SBI और PNB से मांगे हलफनामे

नकारात्मक CIBIL रेटिंग पर विवाद: बिना लोन लिए खराब क्रेडिट स्कोर? सुप्रीम कोर्ट ने SBI और PNB से मांगे हलफनामे

परिचय

        भारतीय वित्तीय प्रणाली में क्रेडिट स्कोर एक अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। CIBIL जैसे क्रेडिट ब्यूरो द्वारा जारी किए जाने वाले ये स्कोर किसी भी व्यक्ति की वित्तीय विश्वसनीयता, कर्ज चुकाने की क्षमता, और बैंक/वित्तीय संस्थानों द्वारा दिए जाने वाले ऋण की पात्रता को निर्धारित करते हैं। आमतौर पर, किसी व्यक्ति द्वारा लिए गए लोन, क्रेडिट कार्ड की गतिविधियां, रिपेमेंट पैटर्न, और वित्तीय अनुशासन के आधार पर यह स्कोर तय होता है। लेकिन क्या हो, यदि किसी व्यक्ति का CIBIL स्कोर उस स्थिति में भी खराब दिखने लगे जब उसने कोई लोन लिया ही न हो?

        इसी प्रकार की एक गंभीर शिकायत पर सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में अत्यंत महत्वपूर्ण हस्तक्षेप किया है। एक याचिकाकर्ता ने दावा किया कि उसका नकारात्मक CIBIL स्कोर अवैध, गलत और आधारहीन है, क्योंकि उसने कभी ऐसा कोई लोन लिया ही नहीं जिसे वह चूक गया हो। इस मामले ने न केवल बैंकिंग प्रणाली बल्कि उपभोक्ता अधिकारों से जुड़े विशिष्ट पहलुओं को भी उजागर किया है।

        सुप्रीम कोर्ट ने मामले की गंभीरता को समझते हुए दो प्रमुख सरकारी बैंकों — स्टेट बैंक ऑफ इंडिया (SBI) और पंजाब नेशनल बैंक (PNB) से विस्तृत हलफनामे (Affidavits) दाखिल करने का निर्देश दिया है। इस आदेश का उद्देश्य यह जानना है कि आखिर किस आधार पर याचिकाकर्ता का CIBIL रेटिंग नकारात्मक हुआ है।

       आइए विस्तार से समझते हैं यह मामला क्या है, सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा, और इसका आम नागरिकों पर क्या प्रभाव पड़ेगा।


मामले की पृष्ठभूमि: बिना लोन लिए ‘डिफॉल्टर’ कैसे बना?

         याचिकाकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट के समक्ष यह कहते हुए याचिका दायर की कि उसका CIBIL स्कोर अचानक बहुत खराब हो गया है। वह किसी भी प्रकार का ऋण लेने के लिए अयोग्य दिखाया जा रहा है, जबकि—

  • उसने किसी बैंक से कोई लोन नहीं लिया,
  • न किसी क्रेडिट कार्ड भुगतान में चूक की,
  • न ही किसी Overdue या EMI डिफॉल्ट का कोई इतिहास है।

      इसके बावजूद, जब उसने घर खरीदने या व्यक्तिगत लोन के लिए आवेदन किया, तो उसे बताया गया कि उसका CIBIL स्कोर खराब है और वह ऋण के लिए पात्र नहीं है।

       याचिकाकर्ता का यह दावा बैंकिंग प्रक्रिया में संभावित गड़बड़ी, गलत डेटा रिपोर्टिंग या व्यक्ति की पहचान के गलत उपयोग (Identity Theft) की ओर संकेत करता है।


सुप्रीम कोर्ट का हस्तक्षेप: SBI और PNB से मांगी स्पष्टीकरण रिपोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने याचिका पर सुनवाई करते हुए माना कि:

“यदि कोई व्यक्ति यह दावा करता है कि उसने कोई लोन नहीं लिया, फिर भी उसका क्रेडिट स्कोर नकारात्मक है, तो यह अत्यंत गंभीर और जांच योग्य मुद्दा है।”

इसके बाद कोर्ट ने:

  • SBI और PNB से हलफनामे दाखिल करने का आदेश दिया कि—
    • क्या वास्तव में याचिकाकर्ता के नाम पर कोई लोन जारी हुआ था?
    • यदि हुआ, तो किस आधार पर?
    • कागजात और KYC किस प्रकार सत्यापित किए गए?
  • और यदि लोन नहीं दिया गया, तब—
    • CIBIL को गलत जानकारी किसने भेजी?
    • इस गलत रिपोर्टिंग की जिम्मेदारी किसकी है?

        सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि बैंकिंग और क्रेडिट रिपोर्टिंग सिस्टम में पारदर्शिता और सटीकता सर्वोच्च प्राथमिकता होनी चाहिए, क्योंकि गलत रिपोर्टिंग से नागरिकों के आर्थिक अवसरों पर गंभीर प्रभाव पड़ सकता है।


CIBIL रेटिंग का महत्व: क्यों यह मामला ‘राष्ट्रीय महत्व’ का बन गया?

        भारतीय वित्तीय प्रणाली में CIBIL रेटिंग एक ऐसा पासपोर्ट है जो व्यक्ति को बैंकिंग सुविधाओं का एक्सेस देता है। खराब क्रेडिट स्कोर का मतलब है:

  • होम लोन रिजेक्ट
  • कार लोन रिजेक्ट
  • बिजनेस लोन रिजेक्ट
  • उच्च ब्याज दरें
  • क्रेडिट कार्ड अप्रूवल न मिलना
  • नौकरी में दिक्कत (कुछ क्षेत्र क्रेडिट स्कोर चेक करते हैं)

       यदि किसी व्यक्ति का CIBIL स्कोर उसकी गलती के बिना गलत रिपोर्टिंग से खराब हो जाए, तो उसके साथ बहुत बड़ा वित्तीय अन्याय होता है।

        इसलिए सुप्रीम कोर्ट ने इसे सीधे तौर पर नागरिक अधिकारों तथा उपभोक्ता संरक्षण से जुड़ा मामला माना है।


क्या यह ‘मिस-रिपोर्टिंग’ का मामला है या ‘आइडेंटिटी थेफ्ट’ का?

कोर्ट ने सुनवाई में यह भी संकेत किया कि यह स्थिति दो प्रकार की समस्याओं से उत्पन्न हो सकती है:

1. मिस-रिपोर्टिंग (गलत रिपोर्टिंग)

कई बार बैंकिंग सिस्टम में—

  • पुराने डेटा अपडेट न होना,
  • EMI क्लोजर की गलत रिपोर्ट,
  • गलत PAN लिंकिंग,
  • किसी अन्य व्यक्ति के डेटा का गलती से दर्ज होना,

जैसी तकनीकी चूकें गलत CIBIL रेटिंग का कारण बनती हैं।

2. Identity Theft (पहचान की चोरी)

भारत में डिजिटल फ्रॉड बढ़ने के साथ ऐसे मामले सामने आ रहे हैं जहां—

  • किसी व्यक्ति के नाम, PAN, Aadhaar का दुरुपयोग,
  • फर्जी KYC,
  • नकली दस्तावेजों से लोन निकालना,

जैसे अपराध किए जाते हैं।

सुप्रीम कोर्ट का हलफनामा मांगना यह सुनिश्चित करेगा कि मामला किस श्रेणी में आता है।


CIBIL की भूमिका: क्या डेटा की जिम्मेदारी ब्यूरो की है?

CIBIL और अन्य क्रेडिट ब्यूरो मूल रूप से बैंक द्वारा भेजे गए डेटा को ही रिपोर्ट करते हैं। वे स्वयं किसी के नाम पर लोन जारी नहीं करते।

लेकिन CIBIL की भी यह ज़िम्मेदारी है कि—

  • गलत डेटा मिलने पर उसकी सत्यता की जांच करे,
  • उपभोक्ता की शिकायतों का समयबद्ध निवारण करे,
  • विवादित प्रविष्टियों को सुधारने की सुविधा दे।

याचिकाकर्ता ने यह भी आरोप लगाया कि उसकी शिकायत के बावजूद CIBIL ने कोई ठोस कार्रवाई नहीं की। इसी कारण उसने सीधे सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया।


सुप्रीम कोर्ट द्वारा उठाए गए मुख्य प्रश्न

कोर्ट ने सुनवाई में कई महत्वपूर्ण पहलुओं पर सवाल उठाए:

  1. क्या बैंकों ने डेटा रिपोर्टिंग की प्रक्रिया का पालन किया?
  2. क्या KYC दस्तावेज सही तरीके से सत्यापित हुए?
  3. यदि लोन नहीं दिया गया, तो गलत प्रविष्टि कैसे हुई?
  4. क्या व्यक्ति के वित्तीय अधिकारों का उल्लंघन हुआ है?
  5. क्या CIBIL ने शिकायत का समाधान किया?

इन प्रश्नों के उत्तर तय करेंगे कि आगे की कार्रवाई बैंक के खिलाफ होगी या CIBIL के खिलाफ।


लाखों उपभोक्ताओं पर प्रभाव

यदि सुप्रीम कोर्ट इस मामले में सख्त दिशानिर्देश जारी करता है, तो—

  • गलत क्रेडिट रिपोर्टिंग पर बैंक जिम्मेदार होंगे
  • उपभोक्ताओं को तेजी से सुधार का अधिकार मिलेगा
  • CIBIL को Complaint Redressal Mechanism मजबूत करना पड़ेगा
  • Identity theft के मामलों पर बैंक को कठोर जांच प्रक्रिया अपनानी होगी

यह फैसला देश की वित्तीय पारदर्शिता के लिए मील का पत्थर साबित हो सकता है।


नागरिकों के लिए महत्वपूर्ण सीख

यदि आपको भी ऐसा लगे कि आपके CIBIL स्कोर में कोई गलती है, तो आप तुरंत यह कदम उठाएं:

  1. बैंक से लिखित शिकायत करें
  2. CIBIL में ऑनलाइन शिकायत दर्ज करें
  3. क्रेडिट रिपोर्ट की सभी प्रविष्टियों को सत्यापित करें
  4. PAN और Aadhaar ट्रैकिंग चेक करें कि कहीं उनका दुरुपयोग तो नहीं हुआ
  5. यदि समाधान न मिले, तो—
    • बैंकिंग लोकपाल,
    • उपभोक्ता मंच,
    • High Court / Supreme Court तक भी जा सकते हैं

निष्कर्ष

      यह मामला केवल एक व्यक्ति के CIBIL स्कोर का मामला नहीं है; यह उन लाखों भारतीयों की समस्या है जिनकी क्रेडिट रिपोर्टिंग में त्रुटियां होती हैं और जिनका आर्थिक जीवन इससे प्रभावित होता है।

सुप्रीम कोर्ट द्वारा SBI और PNB से हलफनामा मांगना यह स्पष्ट संदेश देता है कि—

“बैंकिंग डेटा की सटीकता नागरिक का मौलिक वित्तीय अधिकार है; इसमें त्रुटि गंभीर लापरवाही मानी जाएगी।”

मामला आगे सुनवाई के लिए सूचीबद्ध है और इसके परिणाम देशभर में क्रेडिट रिपोर्टिंग प्रणाली में बड़े सुधार ला सकते हैं।