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मुस्लिम उत्तराधिकार कानून में विधवा का हिस्सा : संतान होने और न होने की स्थिति में हिस्सा 1/8 या 1/4—supreme Court का महत्वपूर्ण निर्णय

मुस्लिम उत्तराधिकार कानून में विधवा का हिस्सा : संतान होने और न होने की स्थिति में हिस्सा 1/8 या 1/4—supreme Court का महत्वपूर्ण निर्णय

       मुस्लिम व्यक्तिगत कानून (Muslim Personal Law) में विरासत (Inheritance) एक अत्यंत व्यवस्थित और विस्तृत व्यवस्था है, जिसमें प्रत्येक वारिस का निश्चित हिस्सा कुरान की आयतों, सुन्नत और स्थापित फिकह के सिद्धांतों के अनुरूप निर्धारित किया गया है। इन्हीं निश्चित हिस्सों (Quranic Heirs / Sharers) में से एक महत्वपूर्ण हिस्सा विधवा (Widow) का है। इस संदर्भ में सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में एक महत्वपूर्ण टिप्पणी और निर्णय देते हुए यह स्पष्ट किया है कि—

       यदि मृतक की संतान होती है तो उसकी विधवा का हिस्सा 1/8 होता है, और यदि कोई संतान नहीं होती तो विधवा का हिस्सा 1/4 होता है।

        यह सिद्धांत भले ही मुस्लिम कानून में पहले से स्पष्ट हो, लेकिन कई जमीनी स्तर के विवादों में इसका अनुपालन ठीक तरह से नहीं किया जाता था। सुप्रीम कोर्ट ने अपने निर्णय में न केवल इस नियम की पुनः पुष्टि की बल्कि यह भी कहा कि यह हिस्सा निश्चित और बाध्यकारी है तथा इसमें मनमानी या स्थानीय प्रथाओं के आधार पर कोई बदलाव नहीं हो सकता।


पृष्ठभूमि : मुस्लिम कानून में विरासत का ढांचा

मुस्लिम उत्तराधिकार व्यवस्था दो आधारों पर चलती है—

  1. फराइज़ (Fixed Shares) : जिन वारिसों को कुरान द्वारा निश्चित हिस्सा दिया गया है।
  2. असबाह (Residues) : जिनके हिस्से फराइज़ के वितरण के बाद बची हुई संपत्ति में होते हैं।

विधवा (Widow) उन वारिसों में से है जिनका हिस्सा कुरान में स्पष्ट रूप से निर्धारित किया गया है।

कुरान की मूल व्यवस्था (Surah An-Nisa, Verse 12)

  • यदि मृतक की संतान (child/children) हो तो विधवा को कुल संपत्ति का 1/8 हिस्सा मिलेगा।
  • यदि मृतक की कोई संतान न हो तो विधवा को 1/4 हिस्सा मिलेगा।

यही नियम सुन्नी (Hanafi, Shafii, Hanbali, Maliki) और शिया विरासत व्यवस्था दोनों में मान्य है, हालांकि कुछ स्थितियों में अतिरिक्त कोणों पर अलग-अलग विचार हो सकते हैं।


 सुप्रीम कोर्ट में यह मुद्दा क्यों आया?

      सुप्रीम कोर्ट के समक्ष मामला तब पहुंचा जब एक परिवार में मृतक व्यक्ति की संपत्ति के बंटवारे को लेकर विवाद उत्पन्न हो गया।

विवाद इस बात पर केंद्रित था—

  • क्या विधवा को 1/4 हिस्सा मिलेगा?
  • या वह केवल 1/8 की हकदार है?
  • क्या सौतेले बच्चों की मौजूदगी उसके हिस्से को कम कर सकती है?
  • क्या पारिवारिक समझौते से वह अपने हिस्से से वंचित हो सकती है?

       परिवार के कुछ सदस्यों का दावा था कि मृतक की संतानें थीं, इसलिए विधवा 1/8 की हकदार है, जबकि विधवा का कहना था कि संतान से आशय केवल सीधी संतान (biological issue) से है, न कि किसी अन्य रिश्ते से।

      इस जटिल विवाद ने मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचाया, जहां अदालत ने मुस्लिम कानून के स्थापित नियमों के आधार पर स्थिति स्पष्ट की।


 Supreme Court का स्पष्ट निर्णय

सुप्रीम कोर्ट ने अपने निर्णय में कहा—

 1. यदि मृतक की संतान हो — विधवा को 1/8 हिस्सा मिलेगा

यह संतान—

  • पुत्र (son)
  • पुत्री (daughter)
  • पोते/पोती
  • किसी भी स्तर की जैविक संतान
    हो सकती है।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि संतान की मौजूदगी विधवा के हिस्से को स्वतः 1/8 कर देती है।

 2. यदि मृतक की कोई संतान न हो — विधवा को 1/4 हिस्सा मिलेगा

इसमें अदालत ने स्पष्ट किया कि “no child” का अर्थ है—

  • मृतक की खुद की कोई जैविक संतान न हो
  • चाहे वह जीवित हो या मृत, कोई फ़र्क नहीं
  • सौतेले बच्चे या गोद लिए हुए बच्चे बच्चे की परिभाषा में नहीं आते।

 3. विधवा का हिस्सा निश्चित है, बदला नहीं जा सकता

सुप्रीम कोर्ट ने कहा—

  • न सामाजिक प्रथा,
  • न परिवार का दबाव,
  • न ही किसी पंचायत/स्थानीय संस्था की राय

विधवा के हिस्से को प्रभावित कर सकती है।

 4. विधवा को पहले अपना हिस्सा मिलेगा, फिर बाकी संपत्ति बांटी जाएगी

      यह नियम “Sharers First” सिद्धांत पर आधारित है, जिसमें पहले sharers (जैसे widow, parents) का हिस्सा दिया जाता है, उसके बाद बाकियों का।

 5. यदि एक से अधिक विधवा हों — 1/8 या 1/4 का हिस्सा सभी में बराबर बांटा जाएगा

उदाहरण :

  • यदि मृतक की दो पत्नियाँ (widows) हैं और उसके बच्चे भी हैं → दोनों मिलकर 1/8 लेंगी।
    अर्थात प्रत्येक को 1/16 मिलेगा।

सुप्रीम कोर्ट ने किन सिद्धांतों पर भरोसा किया?

अदालत ने निम्नलिखित आधारों पर फैसला दिया—

1. कुरान आधारित निश्चित हिस्से (Fixed Quranic Shares)

ये हिस्से शरियत का हिस्सा हैं, जो किसी भी अन्य कानून से ऊँचे दर्जे पर माने जाते हैं।

2. शरियत अधिनियम, 1937 (Muslim Personal Law (Shariat) Application Act)

यह अधिनियम सभी मुस्लिम परिवारों के व्यक्तिगत मामलों में—

  • उत्तराधिकार
  • दान
  • वक्फ
  • विवाह
  • तलाक

के मामलों में शरियत को लागू करने को अनिवार्य बनाता है।

3. पूर्व के न्यायिक निर्णय

भारत में कई High Courts व Supreme Court के निर्णय हैं, जिन्होंने इस सिद्धांत को पहले भी दोहराया है।

4. फिकह और विद्वानों की व्याख्याएँ

SC ने कहा कि यह सिद्धांत सभी प्रमुख फिकहों में समान है।


 विधवा के हिस्से का व्यावहारिक प्रभाव

1. संपत्ति चाहे चल-अचल कोई भी हो

  • जमीन
  • मकान
  • बैंक बैलेंस
  • फिक्स्ड डिपॉजिट
  • गोल्ड
  • बिजनेस
    सब में विधवा का यही हिस्सा लागू होता है।

2. वसीयत (Will) भी विधवा के हिस्से को कम नहीं कर सकती

शरीअत के अनुसार—

  • मुसलमान अपनी संपत्ति का केवल 1/3 हिस्सा वसीयत कर सकता है
  • वह भी किसी दूसरे sharer के नुकसान में नहीं हो सकती
  • इसलिए विधवा का हिस्सा वसीयत से कम नहीं किया जा सकता।

3. मौखिक समझौता भी तभी मान्य है जब विधवा बिना दबाव के रजामंदी दे


 उदाहरणों के साथ समझें

उदाहरण 1 : बच्चे मौजूद हैं

मृतक छोड़ गया—

  • पत्नी
  • 1 बेटा
  • 1 बेटी

पत्नी का हिस्सा = 1/8

बाकी 7/8 को बेटा और बेटी 2:1 के अनुपात में बाँटेंगे।


उदाहरण 2 : कोई संतान नहीं

मृतक छोड़ गया—

  • पत्नी
  • भाई
  • बहन

पत्नी का हिस्सा = 1/4

बाकी 3/4 भाई-बहन में फिकह के अनुसार बाँटे जाएँगे।


उदाहरण 3 : दो पत्नियाँ और संतानें हैं

पत्नी 1 + पत्नी 2 का संयुक्त हिस्सा = 1/8
अर्थात हर पत्नी का हिस्सा = 1/16


 Supreme Court के निर्णय का महत्व

1. मुस्लिम महिलाओं के अधिकारों की सुरक्षा

यह फैसला सुनिश्चित करता है कि विधवा को उसके धार्मिक और कानूनी अधिकारों के अनुरूप हिस्सा मिले।

2. जमीनी स्तर पर गलतफहमियों का अंत

अदालत ने स्पष्ट किया कि—
“संतान हो → 1/8”
“संतान न हो → 1/4”

इसके अलावा कोई तीसरा विकल्प नहीं है।

3. परिवार द्वारा उत्पीड़न या दबाव पर रोक

अक्सर परिवार विधवा को हिस्सा देने से बचने की कोशिश करते हैं।
यह निर्णय ऐसे मामलों में ठोस आधार देता है।

4. कानूनी विवादों में स्पष्ट मार्गदर्शन

Lower Courts और वकीलों दोनों को स्पष्ट दिशा-निर्देश मिलते हैं।


 सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा? (सार)

  • विधवा का हिस्सा कुरान और शरीअत में निश्चित है।
  • संतान होने पर 1/8, न होने पर 1/4 देना अनिवार्य है।
  • इसे किसी भी customary practice, family tradition या oral settlement से नहीं बदला जा सकता।
  • विधवा का हिस्सा top priority में बांटा जाएगा।
  • दो या अधिक विधवाओं में हिस्सा बराबर बाँटा जाएगा।

 निष्कर्ष

सुप्रीम कोर्ट का यह निर्णय मुस्लिम उत्तराधिकार कानून की पारदर्शिता, न्यायसंगतता और निश्चितता को मजबूती प्रदान करता है।

विधवा के हिस्से को लेकर व्याप्त भ्रम, परंपराएँ और दबाव अब इस स्पष्ट आदेश के बाद समाप्त माने जा सकते हैं।

यह स्पष्ट हो चुका है कि मुस्लिम विधवा का हिस्सा—

  • संतान होने पर = 1/8
  • संतान न होने पर = 1/4

और यह हिस्सा निश्चित, वैधानिक और धार्मिक रूप से बाध्यकारी है।