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“सेवानिवृत्त आईपीएस अधिकारी चुनौती — सुप्रीम कोर्ट में 2006 पूर्व पेंशन विभेदाभकारी नियम पर याचिका”

“सेवानिवृत्त आईपीएस अधिकारी चुनौती — सुप्रीम कोर्ट में 2006 पूर्व पेंशन विभेदाभकारी नियम पर याचिका”


प्रस्तावना

        हाल ही में, Forum of Retired Indian Police Service Officers (FORIPSO) की ओर से दायर एक याचिका पर Supreme Court of India (SC) ने नोटिस जारी किया है। यह याचिका 2025 में पारित हुए Finance Act, 2025 के उस भाग — “Validation of the Central Civil Services (Pension) Rules and Principles for Expenditure on Pension Liabilities from the Consolidated Fund of India” (Part IV) — को चुनौती देती है, जिसमें पेंशन भुगतान संबंधी नियमों को वैध बताते हुए 2006 से पहले सेवानिवृत्त अधिकारियों और 2006 के बाद सेवानिवृत्त अधिकारियों के बीच भेद को बनाए रखने का प्रावधान किया गया है।
FORIPSO का तर्क है कि यह प्रावधान असंवैधानिक एवं Article 14 of the Constitution of India (समानता का अधिकार) का उल्लंघन है, क्योंकि एक ही सेवा‑वर्ग (सेवानिवृत्त केंद्रीय सेवकों / आईपीएस अधिकारियों) को केवल सेवा‑समाप्ति तिथि (retirement date) के आधार पर अलग व्यवहार देना न्यायसंगत नहीं।

         इस लेख में हम इस याचिका की पृष्ठभूमि, कानूनी आधार, तर्क, सरकार की दलील, और आगे की संभावित दिशा पर विस्तृत विवेचन करेंगे।


पेंशन विवाद — पृष्ठभूमि व इतिहास

  • 2006 के बाद सेवा में आए केंद्रीय कर्मचारियों के वेतन व पेंशन संरचना बदल गई — 6th Central Pay Commission (CPC) के बाद, Office Memorandum (OM) जारी किया गया था, जिसके अंतर्गत पेंशन निर्धारण के लिए अलग प्रावधान बने। यह व्यवस्था 1 सितंबर 2008 के OM द्वारा लागू हुई।
  • इसके परिणामस्वरूप, जिन अधिकारियों ने 1 जनवरी 2006 से पहले सेवानिवृत्ति ली थी (pre‑2006 retirees), उन्हें मिलने वाली पेंशन — ख़ासकर यदि उनकी पे स्केल S‑30 थी — को इस नए फॉर्मूले के अनुसार पुनर्गठित नहीं किया गया। नतीजतन, कई मामलों में pre‑2006 रिटायर्ड अफ़सरों की पेंशन post‑2006 रिटायर्ड अफ़सरों से कम रही।
  • असंतुष्ट पेंशनभोगियों ने इस विभेद के विरोध में 2012 में Central Administrative Tribunal (CAT), Principal Bench, में एक मूल आवेदन (O.A.) दायर किया। CAT ने 15 जनवरी 2015 को उस OM को रद्द कर दिया, यह कहते हुए कि वह उन सुप्रीम कोर्ट के निर्णयों (जैसे D.S. Nakara & Others v. Union of India, 1983; Union of India v. S.P.S. Vains (Retd.) & Ors., 2008; All Manipur Pensioners Association & Ors. v. State of Manipur & Ors., 2020) के मूल सिद्धांतों के अनुरूप नहीं थी, जिनमें पेंशन में पूर्व व उत्तर retirees के बीच आयु / रिटायरमेंट‑डेट के आधार पर भेद नहीं माना गया था।
  • परंतु बाद में 7th CPC और सरकार की ओर से पुन: वही अंतर लागू करने की कोशिश की गई। इसके खिलाफ CAT में और भी आवेदन दायर हुए, जिनमें से कुछ अभी भी अधूरा है।
  • 20 मार्च 2024 को, दिल्ली उच्च न्यायालय (Delhi High Court) ने — All India S-30 Pensioners Association And Ors. v. UOI (2024) — में CAT के उस आदेश की पुष्टि की, जिसमें pre‑2006 retirees को post‑2006 वालों के समान पेंशन देने का निर्देश था। कोर्ट ने निर्देश दिया कि पुनर्विचार के बाद उत्पन्न भुगतान अंतर (arrears) को 1 जनवरी 2006 से (पेंशन सुधार/पुनरीक्षण की तिथि से) दिया जाए।
  • सरकार ने इस आदेश का अनुपालन नहीं किया, जिस पर contem​pt याचिका दायर हुई। इसी बीच, संसद ने 2025 का Finance Act पारित कर लिया — Part IV में पेंशन नियमों को वैध करना, ताकि पूर्व में कोर्ट द्वारा बैन किए गए अंतर को वैधानिक रूप दिया जा सके। यानी, सरकार ने retroactive effect से कानून बनाया कि भेदभाव वैध है, भले कोर्ट ने इसे असंवैधानिक माना हो।
  • इस बाद के कदम को ही pre‑2006 retirees और specifically रिटायर्ड आईपीएस अधिकारियों का संगठन असंवैधानिक मान रहा है, और इसलिए SC के समक्ष challenge किया गया है।

याचिका का कानूनी तर्क व संवैधानिक आधार

भेदभाव और समानता का अधिकार

  • याचिकाकर्ता कहते हैं कि संसद द्वारा retrospective effect से पूर्व में असंवैधानिक घोषित भेदभाव को वैध करना, न्यायपालिका (CAT / Delhi HC / SC) द्वारा दिए गए आदेशों का उल्लंघन है। ऐसा करना पार्लियामेंट का सिर्फ कानून बनाना है, लेकिन यदि वही कानून पहले असंवैधानिक पाया जा चुका हो — तो उसे पुनः लागू करना separation of powers (विधायिका‑न्यायपालिका पृथक्करण) के सिद्धांत के विरुद्ध है।
  • साथ ही, यह तर्क भी कि एक ही सेवा‑वर्ग (सेवानिवृत्त IPS या अन्य केंद्रीय सेवा) के पेंशनभोगियों को उनकी रिटायरमेंट‑तिथि (pre/post 2006) के आधार पर अलग करना, समानता के अधिकार (Article 14) का उल्लंघन है — क्योंकि वे समान स्थिति वाले व्यक्तियों में आते हैं।

न्यायिक निर्णयों की अवहेलना

  • पूर्व में एकाधिक न्यायाधिकरण (CAT) और उच्च न्यायालय / SC ने स्पष्ट किया है कि पेंशन में भेदभाव केवल retirement date के आधार पर नहीं हो सकता। इसलिए, इस नए वैधानिक प्रावधान को लागू करना, उन binding judicial decisions को nullify करने जैसा है — जिसे कानून की दृष्टि से स्वीकार नहीं किया जाना चाहिए।
  • याचिका में कहा गया है कि राज्य/केंद्र सरकार, जो पेंशन से जुड़ी वित्तीय जिम्मेदारी उठाती है, उसका वित्तीय बोझ (liability) बढ़ने का तर्क valid नहीं, क्योंकि इसे तय करते समय न्यायिक आदेशों व संवैधानिक रक्षा की अनदेखी की गई। retrospective validation के माध्यम से prior discrimination को जायज़ करना संविधान विरोधी है।

सुप्रीम कोर्ट ने नोटिस जारी किया — अब क्या है मामला?

  • 24 नवम्बर 2025 को, SC की बेंच — comprising Justices K. V. Viswanathan और Prasanna B. Varale — ने याचिका पर नोटिस जारी कर केंद्र (वित्त, गृह, कानून मंत्रालय), विभाग पेंशन व पेंशनभोगी कल्याण, तथा कर्मचारी विभाग (DoPT) को जवाब मांगा। याचिका को अन्य समान मामलों (जिनमें पूर्व मेंøringผู้ पेंशनभोगियों की दलीलों पर सुनवाई लंबित है) के साथ जनवरी 2026 में सुनवाई हेतु रखा गया है।
  • याचिका में मांग की गई है कि Finance Act, 2025 के Part IV को unconstitutional, ultra vires घोषित किया जाए; साथ ही अदालत को निर्देश देने को कहा गया है कि pre‑2006 आईपीएस अधिकारियों (और अन्य केंद्रीय सेवकों) को post‑2006 रिटायर्ड के बराबर पेंशन + arrears प्रदान किए जाएँ, जैसा कि 20 मार्च 2024 दिल्ली HC व SC (SLP dismissal, 4 अक्टूबर 2024) में आदेश हुआ था।

संभावित प्रभाव (Legal, Social, वित्तीय)

पेंशनभोगियों के लिए राहत

  • यदि SC याचिका स्वीकार करती है, और Finance Act, 2025 के उस भाग को रद्द करती है — तो 2006 से पहले सेवानिवृत्त आईपीएस अधिकारियों व अन्य केंद्रीय कर्मचारियों को उनके वाजिब पेंशन + arrears मिल सकेंगे। यह पहल वर्षों से चली आ रही असमानता व अन्याय को दूर करेगा।
  • विशेषकर उन अधिकारियों के लिए जो 6th CPC के बाद सेवानिवृत्त हुए थे, लेकिन पुराने फॉर्मूले के अनुसार पेंशन तथा benefits से वंचित रहे — उनकी आर्थिक स्थिति सुधरेगी।

सरकार पर वित्तीय दबाव

  • मीडिया रिपोर्टें कहती हैं कि यह कदम केंद्र सरकार पर ₹ 25,000 करोड़ तक के पेंशन भुगतान बोझ की राह खोल सकता है।
  • समानता व संवैधानिकता के आधार पर भेद‑भाव हटाने का आदेश, भविष्य में अन्य समान पेंशनभोगी वर्गों (सेना, सिविल सेवा, अन्य केंद्रीय/राज्य कर्मचारी) द्वारा भी मांगा जा सकता है — जिससे पेंशन सिस्टम पर कुल मिलाकर बड़ा आर्थिक प्रभाव हो सकता है।

संवैधानिक व न्यायिक असर

  • यदि SC ऐसा आदेश देती है, तो यह precedent बनेगा कि even retrospective legislation cannot override binding judicial pronouncements, जहां न्यायपालिका ने constitutional grounds (Article 14) पर भेदभाव को असंवैधानिक पाया हो। यह separation of powers व constitutional morality को मजबूत करेगा।
  • इसके विपरीत, यदि SC याचिका खारिज करती है, तो यह संकेत जाएगा कि संसद के पास ऐसा retrospective legislation लाने की शक्ति है — जिससे भविष्य में अन्य संविदात्मक व पेंशन सहित मामलों में समान दूरी बढ़ सकती है।

विवाद — सरकार व पेंशनभोगियों के बीच दलीलें

सरकार की दलील

  • सरकार कह सकती है कि 6th/7th CPC और संबंधित OM / नियमों को Validation देना, पेंशन liabilities का स्पष्ट गणित तय करना व वित्तीय स्थिरता सुनिश्चित करना है।
  • यदि पुराने retirees के पेंशन में post‑2006 वालों जितनी बढ़ोतरी दी गई, तो सरकारी खज़ाने पर भारी बोझ आ सकता था — इसलिए भेदभाव को वैधानिक आधार देना आवश्यक था।

पेंशनभोगियों व FORIPSO का तर्क

  • पेंशनभोगी तर्क देते हैं कि समान सेवा‑वर्ग (IPS या अन्य केंद्रीय सेवार्थी) के लिए retirement date को आधार बनाकर भेद करना arbitrary व असंवैधानिक है।
  • उन्होंने पहले ही न्यायालयों में जीत पाई है, लेकिन सरकार ने judicial order को अपनाने की बजाय retrospective legislation लाकर उसे निष्क्रिय किया — जिससे separation of powers का सिद्धांत भी झूठा साबित होता है।

निष्कर्ष व आगे की राह

       यह मसला केवल पेंशन या आर्थिक लाभ का नहीं, बल्कि संवैधानिक मूल्यों — समानता, न्याय, separation of powers, rule of law — का है। यदि सुप्रीम कोर्ट FORIPSO की याचिका स्वीकार करती है, तो यह न केवल पूर्व आईपीएस अधिकारियों को न्याय दिलाएगी, बल्कि भविष्य में पेंशन व सेवा‑नियमों में समानता की मांगों के लिए एक मजबूत आधार बनेगी। वहीं, यदि कोर्ट सरकार को सहारा देती है, तो यह संकेत होगा कि संसद retrospective amendment से पूर्व असंवैधानिकता को भी वैध बना सकती है — जो संवैधानिक संरचना के लिहाज से खतरनाक precedent साबित हो सकता है।

फिलहाल, न्यायिक प्रक्रिया चल रही है। जनवरी 2026 में अगली सुनवाई प्रस्तावित है।