Apple की CCI के ‘ग्लोबल टर्नओवर’ दंड नीति के खिलाफ दिल्ली हाईकोर्ट चुनौती: $38 बिलियन का जोखिम
परिचय
हाल के दिनों में, भारत की प्रतिस्पर्धा (Competition) की कानूनी रूपरेखा — विशेषकर दंड (penalty) निर्धारित करने के तरीके — में एक महत्वपूर्ण बदलाव हुआ है। पहले जहाँ दंड की गणना केवल उस उत्पाद या सेवा (product/service) के “प्रासंगिक (relevant)” भारत में हुए कारोबार (turnover/relevant turnover) के आधार पर होती थी, वहीं अब संशोधित नियमों (amended provisions) के तहत दंड की गणना कंपनी के वैश्विक (global) कारोबार — अर्थात् उसकी पूरी दुनिया में सेवाओं व उत्पादों के कारोबार — के आधार पर की जा सकती है।
इसी बदलाव की चुनौतियों के मद्देनज़र, Apple ने दिल्ली उच्च न्यायालय में याचिका दायर कर, इस नए ढाँचे को चुनौती दी है। Apple का कहना है कि इस नए दंड मापदंड (penalty framework) से न केवल उसका कारोबार प्रभावित होगा, बल्कि यह संवैधानिक दृष्टि से अस्वीकार्य, असंगत (irrational) और अनुपातहीन (disproportionate) है।
पृष्ठभूमि: CCI, संशोधित कानून और नया दंड ढाँचा
CCI और Competition Act
- CCI भारत की प्रमुख प्रतिस्पर्धा (antitrust / competition) नियामक संस्था है, जिसे Competition Act, 2002 (प्रतिस्पर्धा अधिनियम, 2002) द्वारा अधिकार दिए गए हैं।
- इस अधिनियम की धारा Section 27(b) of the Competition Act, 2002 के तहत, यदि किसी कंपनी को यह पाया जाता है कि उसने प्रचार‑किसी सेवा/उत्पाद के लिए अप्रभावकारी, गैर-न्यायसंगत या हानिकारक तरीके (anti‑competitive conduct / abuse of dominance) अपनाए हैं, तो उस कंपनी पर दंड (monetary penalty) लगाया जा सकता है। पहले यह दंड “relevant turnover” — अर्थात् उस सेवा/उत्पाद से भारत में हुई बिक्री या आय — के आधार पर था।
संशोधन और नए दिशानिर्देश (Guidelines)
- 2023 में अधिनियम में संशोधन किया गया और 2024 में CCI (Determination of Monetary Penalty) Guidelines, 2024 तथा CCI (Determination of Turnover or Income) Regulations, 2024 पारित की गईं। इनमें — एक “व्याख्या (Explanation)” के माध्यम से — यह व्यवस्था की गई कि यदि यह संभव न हो कि “relevant turnover” निर्धारित किया जाए, तो CCI “global turnover” आधार पर दंड तय कर सकती है।
- अर्थात् — अब दंड की गणना कंपनी के सभी उत्पादों/सेवाओं के संपूर्ण वैश्विक कारोबार (world‑wide revenue / turnover) के आधार पर हो सकती है, न कि केवल भारत में या उस उत्पाद-सेवा से जुड़ी बिक्री से।
- इसके अतिरिक्त, दंड राशि तय करते समय, CCI पिछले तीन वित्तीय वर्षों (average of preceding three years) का औसत कारोबार देखेगी।
यह बदलाव, कानूनी दंड नीति (penalty regime) में एक बड़ा मोड़ है — और कई ग़ैर‑भारतीय (multinational) कंपनियों के लिए यह असाधारण वित्तीय जोखिम पैदा कर सकता है। यदि ये व्यवस्थाएं बनाए रहती हैं, तो विश्व स्तर पर सक्रिय कंपनियों को भारत में हुए किसी एक उल्लंघन (violation) के लिए अपनी सम्पूर्ण वैश्विक आय (global revenue) के आधार पर दंड वसूलने का खतरा रहेगा।
Apple की चुनौती और उसकी दलीलें
Apple कौन और विषय — प्राथमिक स्थिति
- Apple — विश्व की प्रमुख तकनीकी कम्पनी है — वर्तमान में CCI के समक्ष एक मामले के तहत है, जिसमें यह आरोप है कि उसने अपने iOS ऐप स्टोर (App Store) के जरिये सत्ता-दुरुपयोग (abuse of dominance) किया है।
- CCI ने मार्च 2025 में Apple (और उसकी सहायक कंपनियों) से FY 2022, 2023, 2024 के ऑडिटेड वित्तीय विवरण (audited financials) जमा करने को कहा था — और अब, संशोधित नियमों के तहत वैश्विक कारोबार के आधार पर दंड तय करने की तैयारी कर रही है।
- Apple ने 26‑पेज (या 545‑पेज) की याचिका अदालत में दायर की है, जिसमें इस नए दंड ढाँचे को निरस्त (quash) करने, संबंधित Guidelines और Turnover Regulations को अवैध घोषित करने तथा CCI और सरकार को नई व्याख्या लागू करने से रोके जाने की मांग की गई है।
मुख्य दलीलें
Apple की याचिका में मुख्य रूप से निम्नलिखित दलीलें रखी गई हैं:
- ग्लोबल टर्नओवर आधारित दंड — असंगत और अनुपातहीन: Apple का कहना है कि दंड का आधार पूरी वैश्विक आय हो, जबकि उल्लंघन केवल भारत में हुई गतिविधि से जुड़ा हो, तो यह दंड “grossly disproportionate” होगा। उदाहरण के लिए, यदि कंपनी किसी छोटे-से व्यवसाय (toy business) में उल्लंघन करती है और उसकी India‑related sale कुछ ही है, तो भी CCI पूरी global turnover (जिन्हें violations से कोई लेना-देना नहीं) को दंड आधार बना सकती है — जो कि न्यायसंगत नहीं है।
- संवैधानिक असंगति (violation of Articles 14 & 21): Apple ने तर्क दिया है कि retrospective (पश्च‑क्रियात्मक) रूप से इतनी भारी दंड की व्यवस्था करना, जिसमें global turnover आधार हो — वह अस्वीकार्य, arbitrary, irrational और disproportionate है; एवं यह मूल संवैधानिक अधिकारों (equal protection, fairness, due process) के विरुद्ध है।
- विधेयक का दायरा (legislative competence) — CCI की अधिकारसीमा (jurisdiction) पर सवाल: Apple का कहना है कि CCI का अधिकार केवल भारत में सीमित होना चाहिए — वह यह नहीं तय कर सकती कि कंपनी के विश्वव्यापी कारोबार को दंड का आधार बनाया जाए। उसने कहा कि Section 32 (extraterritorial reach) केवल सीमित क्षेत्राधिकार देता है; इसका मतलब यह नहीं कि CCI global sales पर दंड लगा सके।
- उच्च न्यायिक प्रतिमान (precedent) — पूर्व का मानक (relevant turnover) बदलना: Apple ने कहा कि पहले दंड का आधार “relevant turnover” ही था, जैसा कि सर्वोच्च न्यायालय (Supreme Court) ने Excel Crop Care Ltd. vs Competition Commission of India में तय किया था। अब की व्याख्या इस दृष्टिकोण को बदल देती है — जो न्यायपालिका की पूर्व मान्यताओं (precedents) व “proportionality” के सिद्धांत के विपरीत है।
- retrospective लागूकरण का विरोध: Apple का कहना है कि ये बदलाव (amendments + guidelines) 2024 लागू हुए, और यदि उन्हें पीछे की अवधि (past years) पर लागू किया जाए — तो यह केवल दंड की दायरा (penalty exposure) बढ़ाने का असंगत तरीका होगा; विशेष रूप से जब कंपनी ने उन वर्षों में किसी स्पष्ट उल्लंघन का स्वीकार नहीं किया था।
Apple का अनुमानित जोखिम – $38 बिलियन तक?
Apple की याचिका में कहा गया है कि, यदि दंड की गणना global turnover के आधार पर की जाती है, तो कंपनी का “maximum penalty exposure” — 10% of its average global turnover (FY 2022–2024) — लगभग USD 38 बिलियन तक हो सकता है।
यह आंकड़ा न केवल Apple जैसे वैश्विक महाशक्तिशाली कम्पनी के लिए, बल्कि सभी बहुराष्ट्रीय कंपनियों के लिए — विशेष रूप से टेक्नोलॉजी कंपनियों के लिए — एक सकल चेतावनी है।
कानूनी–नीति (Legal & Policy) आयाम: क्यों यह याचिका मायने रखती है
1. प्रतिस्पर्धा कानून में precedential वापसी / बदलाव
- अगर न्यायालय इस याचिका को स्वीकार कर लेता है, तो यह तय करेगा कि क्या “global turnover” आधारित दंड (जोकि 2024 के बाद लागू हुआ) — वैध है या नहीं। इससे भविष्य में CCI के दंड प्रावधानों की दिशा तय होगी।
- इससे पूर्व, सुप्रीम कोर्ट का निर्णय (Excel Crop) एक “relevant turnover” मानक स्थापित करता था — जो दंड और उल्लंघन के बीच व्यावहारिक (proportionate) संबंध सुनिश्चित करता था। अब यदि यह मानक बदल गया, और पुन: स्वीकार्य नहीं पाया गया, तो भारतीय competition jurisprudence में एक बड़ा बदलाव होगा।
2. बहुराष्ट्रीय कंपनियों के लिए घातक वित्तीय जोखिम
- Global टेक कंपनियाँ — जिनका भारत में कारोबार हो, और साथ ही विश्व स्तर पर भी — अब भारत में हुई किसी भी उल्लंघन के लिए अपनी पूरी वैश्विक आय खोने का जोखिम झेल सकती हैं।
- यह न सिर्फ आर्थिक रूप में विनाशकारी होगा, बल्कि निवेश व व्यावसायिक रणनीतियों (business plans, international operations) में अस्थिरता ला सकता है।
3. संवैधानिक व न्यायिक सिद्धांतों का सवाल — न्याय, समानता, और अनुपात
- दंड की गणना global turnover से करना — जहाँ उल्लंघन भारत‑सीमित था — यह fairness, natural justice व proportionality के सिद्धांतों के खिलाफ है।
- यदि अदालत इस दृष्टिकोण को स्वीकार करती है, तो यह संवैधानिक लेखा‑जोखा (constitutional accountability) और न्यायिक संरक्षण (judicial oversight) के लिए नये मानक तय करेगी।
4. प्री‑संकल्पना (Regulatory / Legislative) और शासन‑नीति पर प्रभाव
- इस याचिका के फैसले से यह तय होगा कि भारत किस प्रकार अपनी प्रतिस्पर्धा नीति को बहुराष्ट्रीय कंपनियों के लिए लागू करेगा — क्या उसे global revenues पकड़ने दिया जाएगा या केवल भारत‑विशिष्ट कारोबार सीमित रहेगा।
- यह अन्य बहुराष्ट्रीय कंपनियों (न सिर्फ टेक) को भी प्रभावित करेगा — जैसे विनिर्माण, उपभोक्ता वस्तुएँ, दवाएँ, इत्यादि — जो भारत व विदेश दोनों में काम करती हों।
Apple की याचिका: सुनवाई और संभावित परिणाम
- यह याचिका दिल्ली उच्च न्यायालय के समक्ष दायर हुई है। मुख्य न्यायाधीश Devendra Kumar Upadhyaya और न्यायमूर्ति Tushar Rao Gedela की बेंच इस मामले को देखेगी। सुनवाई 3 दिसंबर, 2025 को प्रस्तावित है।
- अगर न्यायालय Apple के पक्ष में फैसला देता है, तो CCI की global turnover — आधारित दंड व कार्यप्रणाली पर बड़ा सवाल खड़ा होगा। इससे अन्य प्राधिकरणों या नियामकों के लिए भी मिसाल बनेगी कि दंड व नियंत्रण में proportionality और न्याय का ध्यान रखा जाए।
- दूसरी ओर, अगर न्यायालय CCI की दंड व्यवस्था को वैध मानती है, तो यह बहुराष्ट्रीय कंपनियों — विशेषकर टेक कंपनियों — के लिए अछूत (uncertain) भविष्य की ओर इशारा करेगा।
आलोचनात्मक विश्लेषण: दोनों पक्षों के तर्क — क्या सीधी तुलना हो सकती है?
CCI / सरकार पक्ष:
- सरकार व CCI यह तर्क दे सकती है कि डिजिटल युग में, जब कंपनियाँ — जैसे Apple — विश्व स्तर पर काम करती हैं, उनके भारतीय कारोबार के उल्लंघन का प्रभाव केवल भारत तक सीमित नहीं रहता; वैश्विक नेटवर्क, डेटा, ऐप स्टोर्स, सेवाओं का अंतरराष्ट्रीय आय-आधारित साझा स्वरूप है।
- इस दृष्टिकोण से, global turnover-based penalty उन्हें सही में दंडित करने का साधन हो सकता है, जो सिर्फ भारतीय कारोबार तक सीमित नहीं है।
- इसके अतिरिक्त, इससे कंपनियों को भविष्य में अपने व्यवहार पर सोचने के लिए मजबूर किया जा सकता है — कि वे सिर्फ भारत में नहीं, बल्कि अपने वैश्विक कारोबार का ध्यान रखें।
Apple व अन्य बहुराष्ट्रीय कंपनियों का पक्ष (as above):
- उनके लिए global turnover-based penalty असंगत, disproportionate, unfair और संवैधानिक रूप से कमजोर है।
- यह approach jurisprudential fairness व न्याय के सिद्धांतों के विरुद्ध जाता है, क्योंकि दंड का आधार उल्लंघन से असंबद्ध (unrelated) व्यवसाय‑गत global sale है।
- Moreover, retrospective application (पिछले वर्षों के लिए लागू) — बिना पूर्व सूचना या उचित legislative clarity — न्यायप्रियता और कानून की स्पष्टता (legal certainty) के सिद्धांतों के खिलाफ है।
निष्कर्ष व आगे का परिदृश्य
Apple की याचिका सिर्फ एक कम्पनी की लड़ाई नहीं है — यह भारत में प्रतिस्पर्धा कानून, दंड प्रणाली, न्यायिक संतुलन और वैश्विक व घरेलू कारोबार के बीच सामंजस्य (balance) की लड़ाई है। अदालत के इस फैसले से यह तय होगा कि भारत किस प्रकार बहुराष्ट्रीय कंपनियों की गतिविधियों के लिए कानून लागू करेगा — केवल भारत में हुए कारोबार के लिए या पूरी global आय के लिए।
अगर अदालत Apple के पक्ष में जाती है — तो यह वैश्विक कंपनियों के लिए राहत होगी, और भविष्य के मुकदमों में पेनल्टी वज़नदार, लेकिन न्यायसंगत होगी। दूसरी ओर, यदि CCI की दंड नीति बरकरार रहती है — तो बहुराष्ट्रीय कंपनियों को भारत में कारोबार संबंधी मुकदमों के समय बहुत बड़ा वित्तीय जोखिम उठाना होगा।
यहाँ यह बात भी महत्वपूर्ण है कि इस याचिका का परिणाम न सिर्फ Apple तक सीमित रहेगा, बल्कि टेक‑उद्योग, ऑनलाइन प्लेटफार्म, ऐप स्टोर्स, डिजिटल सेवाओं, मल्टीनेशनल मैन्युफैक्चरिंग आदि — सभी व्यवसायों पर असर डालेगा।
अंततः, यह मामला एक बुनियादी प्रश्न उठाता है — “दंड व दायरा (penalty & jurisdiction)” के विषय में — कि क्या केवल उल्लंघन से संबंधित कारोबार को ही दंड का आधार बनाया जाना चाहिए या सम्पूर्ण global कारोबार; और किस हद तक नियामक (regulator) को अधिकार होना चाहिए।
इसी आधार पर, अदालत का फैसला प्रतिस्पर्धा कानून के भविष्य, बहुराष्ट्रीय व्यावसायिक रणनीतियों, और भारत में निवेश‑वातावरण (investment climate) के लिए निर्णायक होगा।