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“बाहरी रगड़ (External Rubbing) को POCSO के अंतर्गत ‘Penetrative Sexual Assault’ नहीं माना जा सकता — पटना उच्च न्यायालय”

“बाहरी रगड़ (External Rubbing) को POCSO के अंतर्गत ‘Penetrative Sexual Assault’ नहीं माना जा सकता — पटना उच्च न्यायालय”


प्रस्तावना

 ‍      बच्चों की यौन सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए पारित Protection of Children from Sexual Offences Act, 2012 (POCSO Act) क़ानून भारत में बच्चों के खिलाफ यौन अपराधों से निपटने हेतु विशेष वैधानिक ढांचा प्रदान करता है। इस अधिनियम में “penetrative sexual assault” (Section 3) तथा “sexual assault” (Section 7) जैसी धारणाएँ तय की गई हैं।

       हालाँकि, व्यवहार में ये प्रश्न बार‑बार उभरते हैं कि किन क्रियाओं को “penetration” माना जाएगा — क्या केवल पूर्ण प्रवेश (जैसे यौनांगों के भीतर यौनांग प्रवेश) ही पर्याप्त है, या किसी प्रकार की “external rubbing / rubbing over clothes / बाहरी रगड़ / स्पर्श” को भी।

        इसी संवेदनशील और विवादित विषय पर, Patna High Court (पटना उच्च न्यायालय) ने एक अहम निर्णय में यह स्पष्ट किया कि मात्र बाहरी रगड़ (external rubbing) — जब फोरेंसिक/मेडिकल या अन्य सुसंगत प्रमाण न हों — “penetrative sexual assault” के लिए पर्याप्त नहीं है। इस निर्णय ने POCSO अधिनियम की व्याख्या व अभियोजन की दायरा‑निर्धारण की दिशा में महत्वपूर्ण प्रासंगिकता हासिल की है। नीचे हम इस निर्णय का विवरण, न्यायालय की दलीलें, प्रासंगिक प्रावधान, तथा सरोकार और आलोचनाएँ विस्तार से देखेंगे।


पृष्ठभूमि: तथ्य, पोक्सो प्रावधान एवं कानूनी विवाद

POCSO अधिनियम के प्रावधान

  • अधिनियम की धारा 3 (“Penetrative Sexual Assault”) के अंतर्गत कहा गया है कि यदि कोई व्यक्ति अपने लिंग (penis) को — “किसी भी हद तक” — बालक की योनि (vagina), मुंह (mouth), मूत्रमार्ग (urethra), या गुदा (anus) में प्रवेश कराता है, या बालक को ऐसा करने के लिए मजबूर करता है — तो वह “penetrative sexual assault” किया है।
  • धारा 7 (“Sexual Assault”) अधिनियम के अंतर्गत उन कृत्यों को गिनती है जिनमें — यौन इरादे (sexual intent) से — बालक के यौनांग (vagina, penis, anus, breast) को छूना, या बालक को किसी अन्य व्यक्ति का यौनांग छूने के लिए मजबूर करना, या ऐसा “any other act … physical contact without penetration” करना शामिल है।

इस प्रकार, अधिनियम स्वयं “penetration” और “non‑penetrative physical contact / touch / other act” को अलग-अलग कृत्यों के रूप में देखता है।

व्यवहारिक विवाद — ‘skin‑to‑skin’ / external rubbing vs POCSO

पिछले कुछ वर्षों में, विभिन्न उच्च न्यायालयों में इस बात पर विवाद हुआ कि क्या सिर्फ कपड़ों越 मेज़ “ग्रोपिंग / rubbing” भी POCSO के दायरे में आती है।

  • 2021 में, Attorney General for India v. Satish में सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि “sexual intent” ही मूलभूत तत्व है; अधिनियम में “touch”, “physical contact” को skin‑to‑skin contact तक सीमित करना उचित नहीं होगा।
  • इसके अनुरूप, कई हाई कोर्ट ने यह कहा है कि पूरी penetrative entry जरूरी नहीं — “यौनांगों के बाहरी हिस्सों (external genitalia / labia/vulva)” पर भी कुछ शारीरिक संपर्क (penetration / partial insertion / rubbing) पर्याप्त हो सकता है। उदाहरण स्वरूप, Kerala High Court ने हाल ही में कहा कि पूर्ण प्रवेश नहीं, “slightest physical contact with external genitalia” भी penetrative sexual assault ठहरा सकती है।

इस पृष्ठभूमि में, जब “external rubbing / rubbing over clothes / wet pant / external mark” जैसे तथ्य होते हैं, तो पुलिस एवं अभियोजन पक्ष अक्सर धारा 3/4/6 POCSO तक ले जाते हैं। मगर क्या न्यायालय इसे स्वीकार करते हैं या नहीं — यह विवादित रहा है।


पटना उच्च न्यायालय का मामला और निर्णय

मामिला: CR. APP (DB) No. 332 of 2021 (23‑08‑2023)

  • इस मामले में अभियोजन ने आरोप लगाया कि नाबालिग पीड़िता के साथ दुष्कर्म हुआ — penetrative sexual assault एवं aggravated penetrative sexual assault — आधार पर कि उसके पैंट पर “white stain / pant wet” देखने को मिली और कथित यौन कृत्य की जानकारी पीड़िता व उसकी माँ ने दी।
  • पुलिस ने पैंट जब्त कराकर फोरेंसिक लैब (FSL) भेजी; रिपोर्ट (Exhibit‑9) में न तो कोई वीर्य (semen) मिला, न खून।
  • चिकित्सक (doctor) और पीड़िता की माँ की गवाही थी; मगर इस आधार पर कोर्ट ने तय किया कि अभियोजन ने penetrative sexual assault के लिए आवश्यक “essential ingredients” स्थापित नहीं किए — न तो penetration का पर्याप्त प्रमाण, न ही genital injury, न ही फोरेंसिक support।
  • अदालत ने यह भी कहा कि अभियोजन ने sexual assault (non‑penetrative) का पाया नहीं बनाया। क्योंकि Section 7 के तहत जो touching / physical contact / “other act” आती है — उसके लिए भी पर्याप्त factual foundation नहीं था।

निर्णय का सार

  • पटना HC ने अभियुक्त को धारा 3/4/6 (penetrative / aggravated penetrative sexual assault) से बरी किया।
  • न्यायालय ने स्पष्ट किया कि mere external rubbing (या wet pant, white stain आदि) — जब penetration या genital injury, semen detection आदि का कोई समर्थन न हो — penetrative sexual assault साबित नहीं करता।
  • इसलिए, राज्य/अभियोजन पक्ष को यह तय करना होगा कि वह Section 7 (non‑penetrative sexual assault) के अंतर्गत मामला प्रस्थापित करने की तैयारी रखें, न कि automatic रूप से Section 3/4/6।

इस प्रकार, यह फैसला POCSO अधिनियम की व्याख्या — विशेषकर “penetration” की — और अभियोजन‑दायरे को सीमित करने की दिशा में अहम है।


संवैधानिक एवं विधिक विश्लेषण

1. POCSO की संरचना और विधिक व्याख्या

  • POCSO स्पष्ट रूप से अलग करता है — penetrative assault और non‑penetrative physical contact assault। अतः कानून निर्माताओं ने “penetration” और “touch / other act” को अलग‑अलग रखा है।
  • यदि external rubbing / rubbing over clothes को penetrative assault माना जाए, तो गैर‑penetrative Section 7 का दायरा नष्ट हो जाएगा — इस तरह तथाकथित “ejusdem generis” (एक ही प्रकृति की वस्तुओं के लिए एक ही श्रेणी) की interpretation गलत होगी। इसी विचार ने सुप्रीम कोर्ट को 2021 में “skin‑to‑skin contact ज़रूरी नहीं” कहने पर मजबूर किया।

2. अभियोजन पक्ष और proof burden (दायित्व और प्रमाण)

  • POCSO अधिनियम में sexual offences की प्रकृति ऐसी है कि चिकित्सा (medical) और फोरेंसिक (forensic) साक्ष्य अवश्य नहीं होते; तथापि, जब मामले में penetration, genital injury, semen detection, आदि नहीं मिलते — तब अभियोजन पक्ष के लिए सिर्फ दलिलों (oral testimony) पर निर्भर रहना कठिन हो जाता है।
  • पटना HC ने इसी आधार पर कहा कि prosecution failed to establish essential facts for penetrative assault; और sexual assault (touch) का foundation भी नहीं बना। इस प्रकार, अदालत ने सख्ती से कहा कि conviction “beyond reasonable doubt” सिद्ध होना चाहिए — और कथित “external rubbing” पर्याप्त नहीं है।

3. पीड़िता की गवाही की विश्वसनीयता व सहिष्णुता

  • यौन अपराधों में, खासकर नाबालिगों के खिलाफ, कोर्ट अक्सर पीड़िता की गवाही को पर्याप्त मानते हैं, यदि वह सुसंगतता‑रहित, विश्वासपात्र व दृढ़ हो।
  • लेकिन यह विश्वास अदालती विवेक (judicial discretion) पर निर्भर करता है — विशेषकर जब मेडिकल / फोरेंसिक प्रमाण नहीं हों। पटना HC ने इस विवेक का उपयोग करते हुए पाया कि, मौजूदा तथ्यों के बीच conviction सही नहीं ठहराया जा सकता।

तुलना — अन्य न्यायालयों की प्रवृत्ति

  • जैसा कि ऊपर उल्लेख हुआ, Kerala HC ने 2025 में ऐसा कहा है कि external genitalia के बाहरी हिस्से (labia / vulva) पर “slightest physical contact” भी penetrative sexual assault बन सकता है।
  • इससे स्पष्ट है कि उच्च न्यायालयों में इस बिंदु पर एकरूपता नहीं है — कुछ कोर्ट अधिक व्यापक व्याख्या अपनाते हैं, तो कुछ (जैसे पटना HC) अधिक संकुचित।
  • सुप्रीम कोर्ट की 2021 की “skin‑to‑skin contact” को आवश्यक न मानने वाली व्याख्या (Attorney General for India v. Satish) ने गैर‑penetrative तथा penetrative दोनों कृत्यों के बीच अंतर को न्यायसंगत बनाए रखने की वकालत की है।

      स्तर‑अंतर (High Court → Supreme Court) की यह दिशा दर्शाती है कि मामला न्यायालय की विवेचना, प्रमाणों के तथ्य, और अधिनियम की व्याख्या पर बहुत निर्भर करता है।


इस फैसले का सरोकार — लाभ, सीमाएँ व आलोचनाएँ

लाभ और सकारात्मक पक्ष

  1. POCSO की व्याख्या में स्पष्टता: external rubbing, wet pant, stains आदि को स्वचालित रूप से penetrative assault न मानकर — कानून व न्यायिक विवेक दोनों का संतुलन।
  2. अभियोजन पक्ष के लिए चेतावनी: बिना पर्याप्त forensic / medical / other corroborative evidence के धारा 3/4/6 लागू न करें; Section 7 (non‑penetrative) के तहत मामले प्रस्तुत करें।
  3. अदालत की संवेदनशीलता: केवल आरोप व वादों पर conviction नहीं; evidence‑based adjudication पर जोर।

सीमाएँ एवं चुनौतियाँ

  1. नाबालिग की गवाही का “विश्वासमत”: अक्सर, बच्चे‑पीड़ितों की स्थिति संवेदनशील होती है; उन्हें समाजिक दिक्कतों, परिवारिक दबाव, भय आदि का सामना करना पड़ता है। यदि केवल external rubbing में conviction अस्वीकृत हो जाए, तो real abuse के मामलों में न्याय न मिले।
  2. अदालतों में व्याख्यात्मक अंतर: जैसे कि Kerala HC और Patna HC में अंतर — इससे jurisprudence में अनिश्चितता रहती है।
  3. Prosecution की कार्य‑प्रणाली: अक्सर delayed medical examination, clothing seizure आदि में खामियाँ होती हैं — जिससे forensic evidence न मिलना आसान हो जाता है।

निष्कर्ष व सुझाव

       पटना उच्च न्यायालय का यह निर्णय — “external rubbing does not amount to penetrative sexual assault under POCSO” — एक संवेदनशील और महत्वपूर्ण न्यायिक दृष्टिकोण है, जो हमें याद दिलाता है कि यौन अपराधों के मामलों में अधिनियम, तथ्य, प्रमाण, तथा न्यायिक विवेक — सभी को संतुलित रखना बेहद ज़रूरी है।

हालाँकि, यह निर्णय केवल एक विशिष्ट factual स्थिति (जहाँ forensic / medical / injury / semen कोई नहीं था, केवल alleged rubbing / wet pant / stain था) पर आधारित है। अन्य मामलों में — जहाँ genital contact, partial insertion, या external genitalia के हिस्सों पर contact हो — अन्य उच्च न्यायालयों (जैसे Kerala) ने penetrative assault माना है।

इसलिए, समाज, अभियोजन, न्यायालय और नीति निर्माताओं को चाहिए कि वे:

  • यौन अपराधों की जाँच में त्वरित और वैज्ञानिक medical examination, clothing seizure, forensic tests सुनिश्चित करें;
  • न्यायालयों में दृढ़ व सम्यक judicial scrutiny हो, न कि सिर्फ आरोपों पर conviction;
  • विधि‑व्याख्या में एकरूपता लाने के लिए सर्वोच्च न्यायालय स्तर तक मार्गदर्शन (binding precedent) हो;
  • साथ ही, child protection, victim counselling, rehabilitation जैसे समग्र संरक्षण उपायों पर जोर दें।

      इस प्रकार, यह निर्णय POCSO अधिनियम की व्याख्या व अभियोजन दायरे के लिए एक महत्वपूर्ण मिसाल है — लेकिन इसे एक व्यापक, स्थायी jurisprudence मानकर निर्भार न करना चाहिए।