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‘अदृश्य पीड़ितों को न्यायिक पीड़ा से केवल बार ही बचा सकता है’ — मुख्य न्यायाधीश बनने के बाद पहली सार्वजनिक टिप्पणी में CJI सुर्या कांत जी का संदेश

‘अदृश्य पीड़ितों को न्यायिक पीड़ा से केवल बार ही बचा सकता है’ — मुख्य न्यायाधीश बनने के बाद पहली सार्वजनिक टिप्पणी में CJI सुर्या कांत जी का संदेश

       भारत के नए मुख्य न्यायाधीश CJI सुर्या कांत जी ने अपने पदभार संभालने के तुरंत बाद, अपनी पहली सार्वजनिक टिप्पणी में न्याय व्यवस्था के सबसे उपेक्षित, सबसे कमजोर और अक्सर अदृश्य पीड़ितों के बारे में गहरी चिंता व्यक्त की। उनका कहना था कि न्यायपालिका के इन ‘silent sufferers’ को उनकी पीड़ा से मुक्त कराने का सबसे बड़ा दायित्व और शक्ति “बार” यानी कि वकीलों के समुदाय के पास है।

      यह संदेश न केवल संवैधानिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है बल्कि भारतीय न्याय प्रणाली की वास्तविकताओं को उजागर करता है — जहाँ लाखों लोग न्यायालयों में न्याय की प्रतीक्षा करते-करते थक जाते हैं, उनका दर्द कोई नहीं सुनता, और वे ‘अदृश्य पीड़ितों’ (Invisible Victims) की श्रेणी में चले जाते हैं। CJI सुर्या कांत की यह टिप्पणी न्यायपालिका और अधिवक्ताओं दोनों के लिए आत्ममंथन का आह्वान है।

यह विस्तृत लेख इस वक्तव्य के कानूनी, सामाजिक, नैतिक और प्रशासनिक निहितार्थों का गहन विश्लेषण प्रस्तुत करता है।


1. CJI सुर्या कांत जी का पहला संदेश: “बार ही वास्तविक रक्षक है”

अपने संबोधन में CJI सुर्या कांत जी ने कहा कि:

“Only the Bar can rescue the invisible victims of our judicial system from agony.”

उनका तात्पर्य यह था कि:

  • न्यायालयों में निर्णय तो न्यायाधीश देते हैं,
  • परंतु न्याय की नींव वकीलों की प्रतिबद्धता, संवेदनशीलता और ईमानदार वकालत पर टिकी होती है।

उन्होंने कहा कि यदि समाज के सबसे कमजोर लोग अदालत में अपनी बातें उचित रूप से रख ही नहीं पाते, तो:

  • न्यायाधीशों तक उनकी पीड़ा पहुँचती ही नहीं,
  • न्याय प्रक्रिया उन्हें समझ नहीं आती,
  • और वे ‘न्याय के उपभोक्ता’ होते हुए भी न्याय से वंचित हो जाते हैं।

2. ‘Invisible Victims’ कौन हैं? — न्यायपालिका की सबसे संवेदनशील श्रेणी

CJI सुर्या कांत द्वारा ‘अदृश्य पीड़ित’ कहा जाना एक अत्यंत महत्वपूर्ण अवधारणा है। इन पीड़ितों में शामिल हैं:

  • गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले लोग
  • अनपढ़, असहाय, ग्रामीण एवं आदिवासी समुदाय
  • घरेलू हिंसा, दहेज, उपेक्षा, कई बार ससुराल से निकाले जाने की पीड़िताएं
  • भरण-पोषण के लिए संघर्ष कर रही महिलाएं
  • छोटे अपराधों में फँसे गरीब आरोपी
  • ट्रायल का इंतजार करते-करते जेलों में सड़ते अंडरट्रायल कैदी
  • वृद्ध और विकलांग
  • कस्टोडियल हिंसा के शिकार
  • बच्चे और यौन अपराधों के पीड़ित
  • भूमि, शिक्षा, स्वास्थ्य आदि मूल अधिकारों से वंचित नागरिक

इनमें से अधिकांश अदालतों तक पहुँचते ही नहीं, और यदि पहुँचते भी हैं तो:

  • सही काउंसलिंग नहीं मिलती,
  • मुकदमों में देरी उन्हें मानसिक, आर्थिक और सामाजिक रूप से तोड़ देती है,
  • कई लोग न्याय के लिए संघर्ष करते-करते जिंदगी हार देते हैं।

3. CJI का संदर्भ: न्यायपालिका में पेंडेंसी, देरी और संरचनात्मक चुनौतियाँ

भारत में न्याय का सबसे बड़ा संकट है:

(1) लंबित मामलों का पहाड़

4.5 करोड़ से अधिक मामले लंबित हैं।
कई मामलों में 5–10 साल से निर्णय लंबित है।

(2) लोअर कोर्ट में सबसे अधिक बोझ

सबसे अधिक पीड़ित वही हैं जो निम्न न्यायालयों के चक्कर लगाते हैं।

(3) वकीलों की कमी व असमानता

बड़े शहरों में representation मजबूत है,
परंतु ग्रामीण और गरीब इलाके प्रायः कानूनी सहायता से वंचित रहते हैं।

(4) कानूनी जागरूकता का अभाव

कई लोग अपने अधिकार जानते भी नहीं, इसलिए वे अदृश्य ही रह जाते हैं।

(5) सरकारी विभागों द्वारा अनावश्यक मुकदमेबाज़ी

कई मामलों में सरकार सबसे बड़ा litigant होने के कारण अदालतें बोझ में डूब जाती हैं।

CJI सुर्या कांत का संदेश इन चुनौतियों के बीच ‘बार’ की जिम्मेदारी को केंद्र में लाता है।


4. “बार” की भूमिका क्यों सबसे महत्वपूर्ण है?

(A) वकील ही पीड़ित की आवाज हैं

न्यायालय में कोई पीड़ित तभी सुना जाता है जब कोई वकील उसकी आवाज बनकर अदालत में खड़ा होता है।

(B) वकीलों का कर्तव्य न्यायाधीशों से भी गहरा है

क्योंकि वे:

  • मुकदमे की नींव तैयार करते हैं,
  • साक्ष्य जुटाते हैं,
  • प्रतिरक्षा और अभियोजन दोनों में न्याय का सही मार्ग सुझाते हैं।

(C) कानूनी सहायता वकालत का नैतिक कर्तव्य है

गरीब और वंचित नागरिकों के लिए बगैर शुल्क (pro bono) वकालत पेशे का नैतिक स्तंभ है।

(D) वकील ही न्यायिक सुधारों को आगे बढ़ाते हैं

बार एसोसिएशन न्यायालय की नीतियों और सुधारों में महत्वपूर्ण योगदान देती हैं।


5. न्यायपालिका और बार के बीच साझेदारी की आवश्यकता

CJI सुर्या कांत ने दोहराया कि:

“Judicial reforms cannot succeed without an active and ethical Bar.”

यह कथन कई महत्वपूर्ण पहलुओं की ओर संकेत करता है:


(1) अदालतों में कार्य संस्कृति सुधारने में बार की भूमिका

  • अनावश्यक स्थगन (Adjournment) केस की उम्र बढ़ाता है।
  • वकीलों की कार्य गति सीधे केस पेंडेंसी को प्रभावित करती है।

(2) मुकदमों का सही प्रस्तुतिकरण न्याय की गति बढ़ाता है

अधूरा/गलत ड्राफ्ट, गलत साक्ष्य या अनावश्यक तर्क समय बर्बाद करते हैं।


(3) बार न्यायिक निष्पक्षता की रक्षा करता है

यदि कहीं न्यायिक प्रक्रिया में विकृति हो, तो सबसे पहले वकील ही ध्यान दिलाते हैं।


(4) कानूनी सुधारों को समाज तक पहुँचाने में वकील ही माध्यम

लोग कानून नहीं समझते — वकील समझाते हैं।


(5) संवेदनशील मामलों (POCSO, DV Act, Maintenance) में मानवीय दृष्टिकोण

आज भी महिलाएं, बच्चे और बुजुर्ग सच कहने से डरते हैं; वकील उन्हें साहस देते हैं।


6. CJI का संदेश: वकीलों का आचार, आचरण और नैतिकता सुधार की जरूरत

CJI सुर्या कांत ने अपने भाषण में कानूनी समुदाय को यह भी संदेश दिया कि:

  • वकीलों का आचरण न्यायपालिका का प्रतिबिंब है।
  • बार का सम्मान न्यायपालिका के सम्मान से जुड़ा हुआ है।
  • भ्रष्टाचार, अनैतिक प्रथाएँ, फर्जी मुकदमे, झूठे साक्ष्य — ये समाज में न्याय की नींव हिला देते हैं।

उन्होंने ज़ोर दिया कि:

नैतिक वकालत (Ethical Advocacy) ही एक मजबूत न्याय प्रणाली की आत्मा है।


7. न्यायिक संवेदनशीलता: CJI सुर्या कांत की सोच का व्यापक चित्र

CJI की न्यायिक दृष्टि कई वर्षों से सामाजिक न्याय पर केंद्रित रही है।
उनके निर्णयों में यह प्रवृत्ति स्पष्ट है:

  • गरीबों के लिए कानूनी सहायता
  • घरेलू हिंसा पीड़ितों की सुरक्षा
  • अल्पसंख्यक और हाशिए पर खड़े समूहों के अधिकार
  • बच्चों के अधिकार और POCSO मामलों की संवेदनशीलता
  • भूमि, रोजगार और सामाजिक सुरक्षा से जुड़े मामलों का मानवीय विश्लेषण

इसलिए उनका यह संदेश कोई औपचारिक टिप्पणी नहीं, बल्कि उनके न्यायिक दर्शन का सार है।


8. भारतीय न्याय तंत्र के लिए यह संदेश क्यों बेहद महत्वपूर्ण?

(1) न्याय की असल समस्या पर चोट

अदालतों की देरी से सबसे ज़्यादा पीड़ित वही होते हैं, जिनके पास संसाधन नहीं।

(2) बार और बेंच की साझेदारी की दोबारा पुष्टि

कानून तभी जीवित है जब वकील और न्यायाधीश एकसाथ काम करें।

(3) न्यायिक सुधारों की दिशा स्पष्ट हुई

CJI का रुख यह संकेत देता है कि आने वाले समय में:

  • केस मैनेजमेंट सुधरेगा,
  • टेक्नोलॉजी का उपयोग बढ़ेगा,
  • लोअर कोर्ट सुधारों पर जोर होगा,
  • वकीलों की भूमिका अधिक जवाबदेह बनेगी।

(4) जनता का न्यायपालिका पर भरोसा मजबूत होगा

पीड़ितों के दर्द को समझने वाला न्यायपालिका का चेहरा लोगों को विश्वास दिलाता है।


9. वकीलों के लिए मार्गदर्शन: क्या करना चाहिए?

CJI का संदेश बार के लिए दिशा-निर्देश भी है:


अनावश्यक स्थगन न मांगें

पीड़ित की पीड़ा लंबी न करें।

गरीबों के लिए मुफ्त या कम शुल्क में वकालत को बढ़ावा दें

कानूनी सहायता असली “सेवा” है।

फाइलिंग, ड्राफ्टिंग और तर्क में गुणवत्ता बढ़ाएं

खराब फाइलिंग केस की उम्र बढ़ाती है।

संवेदनशील मामलों में मानवीय दृष्टिकोण अपनाएं

POCSO, DV Act, Maintenance में पीड़ितों को सहयोग दें।

नैतिक आचरण सर्वोपरि रखें

बार पर समाज की नजर होती है।

न्यायिक सुधारों के साथी बनें

अदालतों के आधुनिकरण में योगदान दें।


10. निष्कर्ष: न्याय के संरक्षक के रूप में ‘बार’ की भूमिकाओं को समर्पित संदेश

मुख्य न्यायाधीश सुर्या कांत का यह पहला सार्वजनिक संदेश भारतीय न्याय व्यवस्था के लिए अत्यंत प्रेरणादायक और मार्गदर्शक है। इसमें उन्होंने स्पष्ट कहा है कि:

  • अदालतें निर्णय देती हैं,
  • पर न्याय तक पहुँच दिलाने का असली काम वकीलों का है।

अदृश्य पीड़ितों की रक्षा, न्यायिक प्रक्रिया की गति, न्याय की गुणवत्ता, कानूनी सहायता, और मानवाधिकार — इन सबकी निर्णायक शक्ति “बार” के हाथों में है।

यह भाषण न्यायिक समुदाय के लिए एक आत्ममंथन का आह्वान है और भारत के लोकतांत्रिक न्याय तंत्र को अधिक मानवीय, अधिक उत्तरदायी और अधिक न्यायपूर्ण बनाने की दिशा में एक मजबूत कदम है।