मणिपुर CRPF कैंप एनकाउंटर: सुप्रीम कोर्ट ने NIA जांच की वर्तमान स्थिति मांगी — 10 मौतों का फेर-फार
प्रस्तावना
मणिपुर के जिरिबाम जिला में 11 नवंबर 2024 को हुई CRPF कैंप मुठभेड़ (encounter) ने देश की नयायिक, कानूनी और सामाजिक चेतना में गहरी हलचल पैदा की थी। इस घटना में 10 लोगों के मारे जाने की खबर आई थी, जिसे राज्य और केंद्र सरकार द्वारा “विरोधी कार्रवाई” के रूप में पेश किया गया। लेकिन मृतकों के परिजनों और मानवाधिकार संगठनों ने इस मुठभेड़ की निष्पक्ष और स्वतंत्र जांच की मांग की थी। अब, सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA) द्वारा जारी जांच की स्थिति जानने के लिए केंद्र और मणिपुर सरकार से जवाब मांगा है। यह कदम न्याय व्यवस्था, पारदर्शिता और मृतकों के परिवारों के हक की लड़ाई में एक महत्वपूर्ण मोड़ माना जा रहा है।
पृष्ठभूमि — मुठभेड़ की सही कहानी
- घटना का समय और स्थान
यह कथित मुठभेड़ 11 नवंबर 2024 को मणिपुर के जिरिबाम जिले के CRPF कैंप और पास के पुलिस स्टेशन (Borobekra पुलिस स्टेशन) के आसपास हुई थी। - संघर्ष की व्याख्या
पुलिस और CRPF का दावा था कि कैंप पर हमला किया गया था और सुरक्षा बलों ने “प्रतिक्रियात्मक गोलीबारी” की। राज्य सरकार ने मृतकों को “उग्रवादी/मिलिटेंट” बताया, जबकि कुछ समुदायों और परिजनों का यह कहना था कि ये आम नागरिक थे, और उनकी हत्या एक निर्दोष मुठभेड़ नहीं बल्कि अनुचित शक्तियों का उपयोग था। - हाथ में हथियारों का दावा
मणिपुर पुलिस ने बताया कि मुठभेड़ में मारे गए लोगों के पास AK-47, SLR, INSAS राइफल और RPG जैसे हथियार मिले थे। - नियंत्रण रेखा और जांच का ट्रांसफर
बाद में, गृह मंत्रालय की संस्तुति पर राज्य सरकार ने NIA को जांच सौंप दी थी।
सुप्रीम कोर्ट में याचिका और मुख्य मांगें
- पिता-पारिवार द्वारा याचिका
मारे गए 10 व्यक्तियों के माता-पिता ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है (केस नाम: VANRAMPANI vs. Union of India, डायरी संख्या 44574/2025) । - मंजूर की गई सुनवाई
सुप्रीम कोर्ट की बेंच — मुख्य न्यायाधीश (CJI) सूर्य कांत, जस्टिस जॉयमाल्या बाघची और जस्टिस ए. एस. चंदुर्कर — ने इस याचिका पर सुनवाई की और केंद्र व मणिपुर सरकार को नोटिस जारी किया। - मूल मांग
परिजनों ने कोर्ट से कहा है कि “कम से कम स्थिति रिपोर्ट (status report)” मांगी जाए, ताकि उन्हें पता चले कि NIA जांच अभी कहाँ तक पहुंची है। उनका कहना है कि वे जानने के हकदार हैं। - कोर्ट का आदेश
सुप्रीम कोर्ट ने सीमित उद्देश्य के लिए — यानी सिर्फ जांच की “वर्तमान स्थिति” जानने के लिए — केंद्र और मणिपुर से जवाब तलब किया है। अगली सुनवाई 12 जनवरी 2026 तय की गई है।
विवाद और आलोचनाएँ
यह मामला सिर्फ कानूनी जुगाड़ भर नहीं है; इसमें राजनीतिक, जातीय और मानवाधिकार संबंधी कई गहरे प्रश्न झलकते हैं:
- जातीय तनाव
यह मुठभेड़ मणिपुर में चल रहे जातीय संघर्ष की पृष्ठभूमि में हुई है, खासकर कुकी-ज़ो और अन्य जनजातीय समूहों के बीच। - संभावित मानवाधिकार उल्लंघन
मृतकों के कुछ परिजनों और मानवाधिकार गुटों का दावा है कि गोलीबारी “पीठ से” हुई थी और यह घातक हत्याकांड मुठभेड़ का मास्क हो सकता है। - न्यायिक जांच की मांग
कुकी समुदाय और अन्य संगठनों ने न्यायिक (ईसा‑न्यायालय) जांच की मांग की है, न कि सिर्फ जांच एजेंसी द्वारा जोड़ी गई रिपोर्ट। - पारदर्शिता की कमी
जांच एजेंसी पर पारदर्शिता न होने की सख्त शिकायत है — मृतकों के परिवारों को जांच की प्रगति के बारे में जानकारी देना ही नहीं, उन्हें शामिल करना भी। - राजनीतिक निहितार्थ
यह मामला राज्य की संवेदनशील सामाजिक-राजनीतिक परिस्थिति को दर्शाता है — मणिपुर में सत्ता, संरक्षण और पहचान की लड़ाई मात्र एक कानूनी मामला नहीं बनकर रह गयी है, बल्कि यह व्यापक सामाजिक अस्थिरता की झलक है।
सुप्रीम कोर्ट की भूमिका का महत्त्व
- संवैधानिक जांच और संतुलन
सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में “न्याय की मांग” को स्वीकार करते हुए यह दिखाया है कि वह सिर्फ कानूनी प्रक्रिया नहीं देख रही, बल्कि संवैधानिक मूल्यों — जैसे संयम, जवाबदेही और मानवाधिकार — की रक्षा में सक्रिय भूमिका निभा रही है। - न्याय की भरोसा‑बहाली
जांच की स्थिति पूछकर कोर्ट न सिर्फ मृतकों के परिवारों को न्याय की उम्मीद देती है, बल्कि समाज के अन्य हिस्सों को यह संदेश भेजती है कि अधिकारों की लड़ाई में सर्वोच्च न्यायालय एक अंतिम गारंटी है। - राज्य और केंद्र पर जवाबदेही
केंद्र सरकार और राज्य सरकार दोनों को कोर्ट की तरफ से नोटिस जारी हुआ है — यह मांग करता है कि वे आपको बताएं कि जांच क्यों और कैसे की जा रही है, और क्या डेडलाइन है। - मानवाधिकार सेटिंग में नीति‑निर्देशन
अगर कोर्ट इस याचिका को आगे बढ़ाती है, तो यह मणिपुर जैसे हिंसाग्रस्त क्षेत्रों में सुरक्षा बलों की कार्रवाई और उस पर जांच की नीति (policy) बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है।
जोखिम, चुनौतियाँ और आगे का रास्ता
- जांच में देरी
NIA जांच एजेंसी होने के नाते संसाधन और प्राथमिकताओं के बीच संतुलन बनाए रखती है। कोर्ट को यह सुनिश्चित करना होगा कि यह मामला प्राथमिकता में हो और जांच धीमी न हो। - साक्ष्य और पारदर्शिता
परिवारों और समुदायों को जांच में शामिल करना ज़रूरी है — पोस्टमार्टम रिपोर्ट, स्वतंत्र गवाह, फोरेंसिक विश्लेषण आदि। - न्याय पहुंच
सिर्फ रिपोर्ट देने की बजाय, अगर कोर्ट न्यायिक जांच (judicial inquiry) के लिए सहमत होती है, तो यह मामले को सिर्फ कानूनी स्तर पर नहीं, बल्कि दोनों पक्षों की स्वीकार्यता (legitimacy) के स्तर पर भी हल कर सकती है। - राजनीतिक संवाद
मणिपुर की अस्थिरता सिर्फ सुरक्षा का सवाल नहीं है — यह पहचान, राजनीतिक प्रतिनिधित्व, सामाजिक एकता का सवाल भी है। कोर्ट की कार्रवाई संवाद-निर्माण प्रक्रिया को मजबूत कर सकती है। - लक्ष्य और समय सीमाएँ
अगली सुनवाई (12 जनवरी 2026) तक कोर्ट को स्पष्ट निर्देश देना चाहिए कि जांच को कितनी जल्दी और कैसे पूरा किया जाए, ताकि मृतकों के परिजन लंबी लड़ाई में थक न जाएँ।
निष्कर्ष
मणिपुर के जिरिबाम CRPF कैंप में 10 लोगों की मौत का मामला सिर्फ एक “मुठभेड़” का विवाद नहीं है — यह मणिपुर की जातीय असुरक्षा, मानवाधिकारों की लड़ाई और न्याय व्यवस्था की जिम्मेदारी का दर्पण है। सुप्रीम कोर्ट की मौजूदा कार्रवाई — जांच की स्थिति जानना — एक महत्वपूर्ण कदम है, लेकिन यह सिर्फ शुरुआत हो सकती है। अगर कोर्ट निष्पक्ष और पारदर्शी तरीके से आगे बढ़े, तो यह न सिर्फ मृतकों के परिवारों को न्याय दिला सकती है, बल्कि मणिपुर में लंबे समय से चले आ रहे अस्थिरता और असहिष्णुता के चक्र को भी तोड़ सकती है।