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IBC की धारा 7 के अंतर्गत आवेदन में शपथपत्र सम्बन्धी ‘Curable Defects’ आधार नहीं बन सकते अस्वीकृति के लिए : सुप्रीम कोर्ट

IBC की धारा 7 के अंतर्गत आवेदन में शपथपत्र सम्बन्धी ‘Curable Defects’ आधार नहीं बन सकते अस्वीकृति के लिए : सुप्रीम कोर्ट का महत्वपूर्ण निर्णय


        इंसॉल्वेंसी एंड बैंकरप्सी कोड (IBC), 2016 की धारा 7 के अंतर्गत वित्तीय ऋणदाता द्वारा दायर किए जाने वाले दिवाला आवेदन से जुड़े एक अत्यंत महत्वपूर्ण पहलू पर सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में अत्यंत स्पष्ट एवं निर्णायक टिप्पणी की है। न्यायालय ने कहा कि यदि किसी Section 7 Application में कुछ procedural defects हों—जैसे कि शपथपत्र (affidavit) का अभाव या उसमें त्रुटि—तो इसे केवल इसी आधार पर अस्वीकार (reject) नहीं किया जा सकता। ऐसे दोष curable defects हैं और इन्हें सुधारा जा सकता है। न्यायालय ने चेताया कि तकनीकी त्रुटियों के आधार पर IBC प्रक्रियाओं को बाधित करना कोड के उद्देश्य और उसकी तात्कालिक प्रकृति के विपरीत है।

        यह निर्णय केवल वर्तमान मामले के लिए ही नहीं, बल्कि देशभर में NCLT और NCLAT में लंबित हजारों दिवाला मामलों पर प्रत्यक्ष प्रभाव डालता है। इस निर्णय ने भविष्य के लिए यह सिद्धांत स्पष्ट कर दिया कि IBC की प्रक्रियाएँ substantial justice पर आधारित हैं, न कि कठोर तकनीकी औपचारिकताओं पर। इस लेख में हम इस निर्णय का विस्तृत विश्लेषण, कानूनी प्रभाव और IBC की धारा 7 को लेकर बदलते न्यायिक दृष्टिकोण को गहराई से समझेंगे।


प्रस्तावना : IBC में धारा 7 की आवेदन प्रक्रिया और शपथपत्र का महत्व

        IBC की धारा 7 वित्तीय ऋणदाताओं को यह अधिकार देती है कि यदि कोई कॉर्पोरेट देनदार (Corporate Debtor) अपने वित्तीय ऋणों के भुगतान में चूक (default) करता है, तो वित्तीय ऋणदाता दिवाला समाधान प्रक्रिया (CIRP) शुरू करने के लिए आवेदन कर सकता है। आवेदन के साथ—

  • आवश्यक दस्तावेज
  • सूचना
  • रिकॉर्ड
  • और एक विधिवत शपथपत्र (Rule 4 of AAA Rules + Form 1 Affidavit)

संलग्न करना आवश्यक होता है।

कई बार ऐसा होता है कि आवेदन में कुछ तकनीकी त्रुटियाँ रह जाती हैं—जैसे कि:

  • गलत प्रारूप का शपथपत्र
  • अधूरा सत्यापन
  • वकील द्वारा हस्ताक्षर नहीं
  • अथवा e-filing पोर्टल पर affidavit न अपलोड होना

NCLT के कुछ आदेशों में ऐसे मामलों में आवेदन को सीधे निरस्त कर दिया जाता था। इसी प्रकार के एक मामले में सुप्रीम कोर्ट ने अब निर्णय देते हुए मार्गदर्शन दिया है।

सुप्रीम कोर्ट का अवलोकन : “Curable Defects cannot defeat a Section 7 Application”

सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट कहा:

“धारा 7 के तहत दायर आवेदनों में यदि कोई procedural defect है, तो यह अस्वीकृति का आधार नहीं हो सकता। ऐसे दोष curable हैं, और निचली अदालत को आवेदक को सुधार का अवसर देना चाहिए।”

      न्यायालय ने कहा कि IBC का उद्देश्य speedy resolution है, न कि तकनीकी आधार पर आवेदनों को समाप्त करना।

    कोर्ट ने यह भी कहा कि affidavit एक procedural requirement है—
यह आवेदन के आधारभूत अधिकारों या अधिकारिता को प्रभावित नहीं करता।

      अतः यदि ऋणदाता ने default, financial debt, और debt-disbursement के साक्ष्य प्रदान कर दिए हैं, तो minor procedural mistakes को लेकर आवेदन खारिज करना कानून की भावना के विपरीत होगा।


न्यायालय का तर्क : क्यों procedural defects को curable माना गया?

सुप्रीम कोर्ट ने अपने निर्णय में कई महत्वपूर्ण कानूनी सिद्धांतों का उल्लेख किया—

(1) IBC एक ‘beneficial legislation’ है, न कि दण्डात्मक

IBC का उद्देश्य:

  • आर्थिक स्थिरता
  • ऋण वसूली
  • कंपनी पुनर्गठन
  • और व्यापारिक दक्षता

को बढ़ावा देना है। ऐसे में procedural omissions को इतना कठोर रूप नहीं दिया जा सकता कि पूरा आवेदन ही समाप्त कर दिया जाए।

(2) Procedural Law is Handmaid of Justice

न्यायालय ने पुराने सिद्धांत का हवाला दिया:

“प्रक्रिया न्याय की दासी है, मालिक नहीं।”

इसका अर्थ यह है कि प्रक्रिया न्याय के मार्ग में बाधा नहीं बन सकती।

(3) Affidavit एक formal requirement है, substantive right नहीं

Affidavit का उद्देश्य application में दी गई जानकारी की सत्यता की पुष्टि करना है।
यदि शपथपत्र में त्रुटि है, परंतु सामग्री सही है, तो इसे सुधारा जा सकता है।

(4) NCLT को सुधार का अवसर देना अनिवार्य है

कोर्ट ने कहा कि NCLT और NCLAT का दायित्व है कि वे applicant को defect removal का समय दें—जैसे नियम 11 NCLT Rules में स्पष्ट है।


यह निर्णय क्यों महत्वपूर्ण है? (Implications on Insolvency Jurisprudence)

(1) ऋणदाताओं के अधिकार मजबूत हुए

अब तकनीकी आधार पर आवेदन खारिज नहीं होगा।
यह बैंकों, NBFCs, और ARC कंपनियों के लिए बड़ी राहत है।

(2) NCLT में अनावश्यक देरी रोकी जा सकेगी

पहले कई मामलों में procedural त्रुटियों को लेकर महीनों तक विवाद चलता था।
अब यह मार्ग अवरुद्ध हो गया है।

(3) Debtor कंपनियों के लिए ‘technical defences’ कमजोर हुए

कई corporate debtor तकनीकी बिंदुओं का दुरुपयोग करके Section 7 आवेदन को खारिज करवाते थे।
अब यह संभव नहीं होगा।

(4) Resolution Process अधिक सुव्यवस्थित और पारदर्शी

यह निर्णय प्रक्रिया को सरल, व्यावहारिक और न्यायसंगत बनाता है।


पहले के निर्णयों से सामंजस्य

सुप्रीम कोर्ट ने इस निर्णय में कई पूर्ववर्ती फैसलों की भावना को दोहराया:

Innoventive Industries Ltd. v. ICICI Bank (2017)

कोर्ट ने IBC को ‘complete code’ कहा जो तेज़ समाधान सुनिश्चित करता है।

Swiss Ribbons v. Union of India (2019)

कोर्ट ने कहा कि IBC का मुख्य उद्देश्य resolution है, न कि दंड।

E.S. Krishnamurthy v. Bharath Hi-Tech Builders (2021)

कोर्ट ने कहा कि NCLT को आवेदन में defects सुधारने का अवसर देना चाहिए।

Surendra Trading Co. v. Juggilal Kamlapat Jute Mills (2017)

यह महत्वपूर्ण फैसला कहता है कि defects curable होते हैं और समय दिया जाना चाहिए।

नया निर्णय इन्हीं सिद्धांतों को आगे बढ़ाता है।


मामला : NCLT और NCLAT ने क्यों किया था आवेदन खारिज?

इस मामले में Section 7 Application दायर किया गया था, लेकिन—

  • Affidavit defective था
  • कुछ कॉलम सही नहीं भरे थे
  • सत्यापन (verification clause) भी अधूरा था

NCLT ने बिना किसी अवसर के आवेदन को खारिज कर दिया।
NCLAT ने भी इसे योग्य ठहराया।

इसके बाद मामला सुप्रीम कोर्ट पहुँचा।

सुप्रीम कोर्ट ने निचली अदालतों की कठोरता की आलोचना की और इसे ‘justice-defeating approach’ कहा।


सुप्रीम कोर्ट की प्रमुख टिप्पणियाँ

1. “IBC aims at substantial justice, not technical compliance.”

कोर्ट ने कहा कि NCLT को substance को देखना चाहिए, form को नहीं।

1. “Defects in affidavit do not affect the maintainability of Section 7 application.”

यह एक अत्यंत महत्वपूर्ण सिद्धांत है।

1.  “Opportunity to cure defects is mandatory.”

बिना अवसर दिए आवेदन खारिज करना मनमाना है।

1. “Rejection should be last resort, not first reaction.”

कोर्ट ने कहा कि NCLT को आवेदक को नोटिस देना चाहिए और समय देना चाहिए।


निर्णय से उभरते व्यापक सिद्धांत

(A) Procedural Defects ≠ Substantive Deficiency

दोनों अलग-अलग चीज़ें हैं।
Substantive deficiency होने पर आवेदन खारिज किया जा सकता है—
जैसे:

  • debt का कोई प्रमाण न होना
  • default सिद्ध न होना
  • financial relationship का अभाव

परंतु procedural defect होने पर खारिज नहीं किया जा सकता।

(B) NCLT एक summary tribunal है, लेकिन प्राकृतिक न्याय लागू होता है

तेज़ प्रक्रिया का अर्थ यह नहीं कि न्याय खो जाए।

(C) IBC की कार्यवाही civil procedure strictness पर आधारित नहीं है

IBC कोड एक व्यवसायिक न्यायाधिकार है जहाँ practicality को प्राथमिकता दी जाती है।


कॉर्पोरेट देनदारों के लिए संदेश

कॉर्पोरेट देनदारों को अब यह समझना होगा कि वे—

  • affidavit में कमी
  • technical form त्रुटि
  • या procedural irregularity

कुचल कर ऋणदाताओं के दावे को निरस्त नहीं करवा पाएंगे।

अब ध्यान केवल एक प्रश्न पर होगा:

क्या default हुआ है? हाँ या नहीं।


ऋणदाताओं (Financial Creditors) के लिए दिशा-निर्देश

सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के बाद अब Section 7 applicants को यह सुनिश्चित करना चाहिए:

  1. आवेदन के साथ सभी दस्तावेज ठीक प्रकार संलग्न हों
  2. Affidavit नियमानुसार हो
  3. Default के प्रमाण स्पष्ट हों
  4. Borrower के ledger, bank statements, loan agreements तैयार हों

लेकिन यदि कुछ त्रुटि रह भी जाए—
अब न्यायालय आवेदन को खारिज नहीं कर सकेगा।


निष्कर्ष : IBC न्यायशास्त्र में स्थिरता और व्यावहारिकता की ओर कदम

सुप्रीम कोर्ट का यह निर्णय IBC की spirit को मजबूत करता है।
IBC का उद्देश्य resolution है, न कि technicalities के जाल में मामलों को फँसाना।

यह निर्णय—

  • वित्तीय ऋणदाताओं को राहत देता है
  • कॉर्पोरेट देनदारों की तकनीकी दलीलों पर रोक लगाता है
  • NCLT/NCLAT की प्रक्रिया को सुधारता है
  • और IBC के मुख्य लक्ष्य—समयबद्ध समाधान—को मजबूत करता है

भविष्य में इस फैसले का व्यापक प्रभाव दिखेगा और insolvency न्यायशास्त्र को गति, निश्चितता और पारदर्शिता मिलेगी।