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सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुँचाने पर कोई भी कर सकता है शिकायत: सुप्रीम कोर्ट का महत्वपूर्ण निर्णय

सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुँचाने पर कोई भी कर सकता है शिकायत: सुप्रीम कोर्ट का महत्वपूर्ण निर्णय—पीडीपीपी अधिनियम की व्यापक व्याख्या

प्रस्तावना

        भारत में सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुँचाने की घटनाएँ अक्सर दंगों, प्रदर्शन, राजनीतिक रैलियों, भीड़ हिंसा, सार्वजनिक अशांति या विध्वंसकारी गतिविधियों के दौरान सामने आती हैं। ऐसे मामलों में अपराधियों की पहचान, अभियोजन और दंड सुनिश्चित करने के लिए संसद ने Public Property Act, 1984 यानी Prevention of Damage to Public Property Act (PDPP Act) बनाया। किंतु लंबे समय से यह प्रश्न उठता रहा है कि इस कानून के तहत शिकायत कौन कर सकता है—क्या केवल सरकार या उसकी एजेंसी ही प्राथमिकी दर्ज करा सकती है? या फिर कोई भी नागरिक, जो सार्वजनिक संपत्ति को होते हुए नुकसान को देखे या उसकी जानकारी हो, शिकायत दर्ज करा सकता है?

इसी प्रश्न पर सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण निर्णय देते हुए यह स्पष्ट कर दिया कि—

“Prevention of Damage to Public Property Act के तहत शिकायत दर्ज कराने का अधिकार केवल सरकारी अधिकारियों तक सीमित नहीं है; कोई भी व्यक्ति (anyone) इस अधिनियम के तहत शिकायत कर सकता है।”

        न्यायालय ने कहा कि इस अधिनियम का उद्देश्य सार्वजनिक संपत्ति की सुरक्षा है, और जब उद्देश्य सार्वजनिक हित से जुड़ा हो, तब शिकायत दर्ज कराने का अधिकार नागरिकों से छीनना कानून के मूल चरित्र के विपरीत होगा। यह निर्णय न केवल कानूनी रूप से महत्वपूर्ण है बल्कि लोकतांत्रिक अधिकारों, नागरिक कर्तव्यों और सार्वजनिक जवाबदेही की दृष्टि से भी ऐतिहासिक महत्व रखता है।


1. मामला क्या था?—विवाद की उत्पत्ति

         मामले की शुरुआत तब हुई जब कुछ आरोपियों के खिलाफ पीडीपीपी अधिनियम के तहत शिकायत दर्ज की गई, जो किसी सरकारी अधिकारी द्वारा नहीं बल्कि एक निजी व्यक्ति द्वारा दर्ज कराई गई थी। आरोपी पक्ष ने तर्क दिया कि—

  1. PDPP Act की धारा 3 और धारा 4 के तहत केवल सरकारी अधिकारी ही शिकायत दर्ज करा सकते हैं।
  2. निजी व्यक्ति द्वारा दायर शिकायत maintainable नहीं है।
  3. FIR को रद्द किया जाए क्योंकि शिकायतकर्ता “aggrieved person” की श्रेणी में नहीं आता।

       ट्रायल कोर्ट और हाई कोर्ट ने परिस्थितियों के आधार पर शिकायत स्वीकार की, लेकिन आरोपी पक्ष इस मुद्दे को सीधे सुप्रीम कोर्ट लेकर गया कि क्या इस अधिनियम के अंतर्गत निजी शिकायत का अधिकार मौजूद है?


2. सुप्रीम कोर्ट का स्पष्ट रुख: शिकायत कोई भी कर सकता है

सुप्रीम कोर्ट ने यह कहते हुए आरोपी की दलीलों को ख़ारिज कर दिया कि—

“PDPP Act में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है जो शिकायत दर्ज करवाने के अधिकार को केवल सरकारी अधिकारियों तक सीमित करता हो।”

न्यायालय ने इस सिद्धांत पर जोर दिया कि:

  • यह अधिनियम सार्वजनिक हित की रक्षा के लिए बना है।
  • सार्वजनिक संपत्ति किसी एक संस्था की नहीं होती; यह पूरी जनता की होती है।
  • अतः किसी भी नागरिक को इस संपत्ति की सुरक्षा का अधिकार और कर्तव्य दोनों है।

न्यायालय ने आगे कहा कि यदि शिकायत केवल सरकारी एजेंसी तक ही सीमित कर दी जाए तो—

  1. अपराधियों को बचने का अवसर मिल सकता है,
  2. कई स्थानीय घटनाएँ रिपोर्ट नहीं होंगी,
  3. पुलिस के मूल दायित्व पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा।

इसलिए PDPP Act के तहत शिकायत दर्ज कराने का दायरा विस्तृत है और किसी एक समूह तक सीमित नहीं किया जा सकता।


3. अपराध की प्रकृति ने भी निभाई महत्वपूर्ण भूमिका

PDPP Act के तहत अपराध हैं:

  • बस, ट्रेन, सार्वजनिक भवन, सरकारी वाहन, सड़क, पुल, बिजली व्यवस्था, पाइपलाइन, सरकारी दफ्तर, सार्वजनिक स्मारक आदि को नुकसान पहुँचाना।

ये अपराध न केवल सरकार को वित्तीय नुकसान पहुँचाते हैं बल्कि—

  • आम जनता की जान-माल की सुरक्षा,
  • सामाजिक व्यवस्था,
  • सार्वजनिक सुविधाओं
    को भी प्रभावित करते हैं।

न्यायालय ने कहा कि ऐसी स्थिति में शिकायत का अधिकार केवल सरकारी अधिकारियों तक सीमित कर देना अन्यायपूर्ण और अव्यावहारिक होगा।


4. न्यायालय द्वारा उपयोग किए गए प्रमुख सिद्धांत

(A) Public Interest Litigation का सिद्धांत

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि नागरिकों का “लोकहित में हस्तक्षेप” लोकतांत्रिक समाज की मेरुदंड है।
जब सार्वजनिक संपत्ति क्षतिग्रस्त हो रही हो, तो नागरिक न केवल शिकायत कर सकते हैं बल्कि ऐसा करना उनका नागरिक कर्तव्य है।

(B) CrPC की धारा 154 का व्यापक दायरा

धारा 154 स्पष्ट करती है कि—

  • कोई भी व्यक्ति,
  • चाहे वह पीड़ित हो या न हो,
  • FIR दर्ज करा सकता है।

PDPP Act CrPC को ही अपनाता है, इसलिए शिकायत का दायरा CrPC जैसा व्यापक ही रहेगा।

(C) Statutory Interpretation (Law का उद्देश्य बनाम शाब्दिक व्याख्या)

न्यायालय ने कहा—
यदि कानून शब्दशः कुछ न कह रहा हो, तो उसकी उद्देश्यगत व्याख्या (Purposive Interpretation) की जाती है।
PDPP Act का उद्देश्य अपराधों को रोकना है, न कि शिकायतकर्ताओं की संख्या सीमित करना।

(D) Public Property की अवधारणा

सार्वजनिक संपत्ति जनता की सामूहिक संपत्ति होती है; अतः जनता को इसकी रक्षा करने का अधिकार रखना आवश्यक है।


5. सुप्रीम कोर्ट ने किन पूर्व निर्णयों का हवाला दिया?

(i) Lalita Kumari v. State of Uttar Pradesh (2014)

FIR दर्ज करने के बारे में कहा गया था कि पुलिस किसी भी शिकायत पर FIR दर्ज करने से इंकार नहीं कर सकती, चाहे शिकायतकर्ता कोई भी हो।

(ii) State of Karnataka v. M. Devendrappa (2002)

लोकहित के मामलों में नागरिकों का हस्तक्षेप मान्य है।

(iii) भजन लाल केस (1992)

FIR दर्ज करने का प्रावधान अत्यंत व्यापक है।

इन निर्णयों को आधार बनाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि PDPP Act में FIR दर्ज कराने के अधिकार पर कोई विशेष प्रतिबंध नहीं लगाया गया है, अतः CrPC की सामान्य प्रक्रिया लागू होगी।


6. न्यायालय द्वारा खारिज की गई दलीलें

दलील 1: केवल सरकारी अधिकारी शिकायत कर सकते हैं

अदालत ने कहा—
यह दलील विधि में कहीं नहीं लिखी है; यह केवल “धारणा” है।

दलील 2: नागरिक शिकायत करने के लिए ‘aggrieved person’ नहीं होता

अदालत का उत्तर:
PDPP Act में “aggrieved person” की अवधारणा है ही नहीं।
यह एक public wrong है, न कि private wrong

दलील 3: शिकायतकर्ता द्वारा नुकसान झेलना आवश्यक है

उत्तर:
सार्वजनिक संपत्ति पर नुकसान पूरे समाज को प्रभावित करता है; इसलिए व्यक्तिगत क्षति की शर्त लागू नहीं होती।


7. इस निर्णय का व्यापक प्रभाव

(A) नागरिक सशक्त होंगे

अभी तक कई नागरिक यह सोचकर शिकायत नहीं करते थे कि उनके पास शिकायत दर्ज कराने का अधिकार नहीं है।
अब यह भ्रम समाप्त हो गया।

(B) पुलिस की जवाबदेही बढ़ेगी

पुलिस अब नागरिकों द्वारा दी गई शिकायत को “गवर्नमेंट प्रॉपर्टी है, आप क्यों FIR करा रहे हैं?” कहकर टाल नहीं पाएगी।

(C) दंगों और भीड़ हिंसा में अभियोजन मजबूत होगा

कई बार सरकारी अधिकारी राजनीतिक दबाव में शिकायत दर्ज नहीं करते थे।
अब नागरिक स्वयं FIR दर्ज करा सकेंगे।

(D) Public Property की रक्षा अधिक प्रभावी होगी

अब शिकायतों की संख्या बढ़ेगी, जिससे—

  • दंड प्रक्रिया मजबूत होगी,
  • अपराधियों को बचना मुश्किल होगा,
  • सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुँचाने पर सुरक्षा बढ़ेगी।

(E) न्यायिक प्रक्रिया में पारदर्शिता

नागरिक भागीदारी से जांच प्रक्रिया में पारदर्शिता आएगी।


8. व्यावहारिक परिणाम—मुकदमों में इसका उपयोग कैसे होगा?

यदि कोई व्यक्ति शिकायत करना चाहता है

  • वह सीधे पुलिस के पास जाकर FIR दर्ज करा सकता है।
  • पुलिस के इंकार करने पर वह धारा 156(3) CrPC के तहत मजिस्ट्रेट के पास जा सकता है।
  • मजिस्ट्रेट पुलिस को FIR दर्ज करने का निर्देश देगा।

यदि FIR रद्द करने की मांग की जाती है

अब आरोपी यह नहीं कह पाएगा कि शिकायतकर्ता का locus standi नहीं है।

ट्रायल कोर्ट और हाई कोर्ट

अब उन्हें इस सिद्धांत का पालन करते हुए FIR को वैध मानना होगा।


9. PDPP Act की मूल संरचना का महत्व

मुख्य अपराध (धारा 3):

सार्वजनिक संपत्ति को किसी भी रूप में नुकसान पहुँचाना।

दंड:

  • 5 वर्ष तक की सज़ा
  • आर्थिक दंड
  • नुकसान की भरपाई

धारा 4:

आरोपी के खिलाफ कठोर दंड जब—

  • नुकसान जानबूझकर किया गया हो,
  • या यह प्रदर्शन/हिंसा का हिस्सा हो।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा—
इन गंभीर अपराधों में शिकायत दर्ज करने पर प्रतिबंध लगाना कानून की आत्मा के विपरीत होगा।


10. निष्कर्ष—सार्वजनिक संपत्ति की रक्षा में नागरिकों की भूमिका अब और मज़बूत

         सुप्रीम कोर्ट के इस ऐतिहासिक निर्णय ने यह संदेह पूरी तरह मिटा दिया कि PDPP Act के तहत FIR या शिकायत दर्ज कराने के लिए सरकारी अधिकारी का होना अनिवार्य है।
न्यायालय ने स्पष्ट कहा कि—

“सार्वजनिक संपत्ति की सुरक्षा पूरी जनता की जिम्मेदारी है; अतः कोई भी व्यक्ति—नागरिक, राहगीर, समाजसेवी, पत्रकार, कर्मचारी—शिकायत कर सकता है।”

इस निर्णय से—

  • क़ानूनी स्पष्टता,
  • नागरिक अधिकार,
  • सार्वजनिक संपत्ति की रक्षा,
  • एवं दंड प्रक्रिया की दक्षता—
    सब मजबूत होगी।

यह फैसला भारतीय लोकतंत्र में नागरिक भागीदारी को बढ़ावा देने वाला अत्यंत महत्वपूर्ण निर्णय है जो आने वाले वर्षों में दंगों, हिंसा और भीड़ द्वारा की गई क्षति के मामलों में अभियोजन को मजबूत करेगा।