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“सुप्रीम कोर्ट ने सपूर्दारी में कैश रिलीज़ करने से किया इंकार: स्वामित्व सिद्ध न होने पर S.451 CrPC/S.497 BNSS के तहत बड़ी टिप्पणी

“सुप्रीम कोर्ट ने सपूर्दारी में कैश रिलीज़ करने से किया इंकार: स्वामित्व सिद्ध न होने पर S.451 CrPC/S.497 BNSS के तहत बड़ी टिप्पणी — 


       संपत्ति की जब्ती, कब्ज़े की रिकवरी, और आपराधिक मुकदमों में मालखाने में जमा वस्तुओं की ‘सपूर्दारी’ (Sapurdari) का प्रश्न भारतीय दंड प्रक्रिया में अत्यंत महत्वपूर्ण है। विशेषतः जब मामला नकदी (Cash Seizure) का हो, तब न्यायालयों द्वारा अपनाए गए मानक और भी कठोर हो जाते हैं। हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण आदेश पारित करते हुए उस याचिका को खारिज कर दिया जिसमें आरोपी के विक्रेता (vendor) ने दावा किया था कि जब्त की गई नकदी उसकी है और उसे सपूर्दारी पर लौटाई जानी चाहिए।

सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेश को बरकरार रखते हुए माना कि—

  • याचिकाकर्ता स्वामित्व (ownership) का स्पष्ट और अप्रतिम प्रमाण देने में असफल रहा,
  • नकदी पर exclusive domain सिद्ध नहीं हुआ,
  • और इसलिए CrPC की धारा 451 तथा BNSS की धारा 497 के तहत सपूर्दारी/रिलीज़ का आदेश नहीं दिया जा सकता।

       यह फैसला इस बात को दोहराता है कि नकदी की जब्ती के मामलों में अदालतें अत्यंत सतर्क रहती हैं और केवल उन मामलों में ही धनराशि लौटाती हैं जहाँ दावा करने वाला व्यक्ति “स्वामित्व का पूर्णत: निर्विवाद, स्पष्ट और दस्तावेज़-समर्थित” प्रमाण देता है।

        सुप्रीम कोर्ट के निर्णय, तथ्य, कानूनी सिद्धांत, धारा 451 CrPC और धारा 497 BNSS का तुलनात्मक अवलोकन, न्यायालय के reasoning तथा इसके व्यापक प्रभावों का गहन अध्ययन करेंगे।


1. मामला क्या था? — तथ्य (Facts of the Case)

      एक आरोपी के खिलाफ आपराधिक मुकदमा लंबित था। जाँच के दौरान पुलिस ने काफी मात्रा में नकदी बरामद की। आरोपी ने दावा किया कि यह नकदी उसके व्यवसायिक लेन–देन से संबंधित है। लेकिन एक अन्य व्यक्ति (याचिकाकर्ता) सामने आया जिसने कहा कि—

  • वह आरोपी का vendor है,
  • यह नकदी उसे भुगतान के रूप में भेजी गई थी,
  • और पुलिस द्वारा जब्त की गई रकम उसकी निजी/व्यावसायिक सम्पत्ति है।

इस आधार पर उसने न्यायालय से मांग की—

  • कि नकदी को सपूर्दारी पर उसे दिया जाए,
  • क्योंकि आरोपी के पास इसे रखने का वैध आधार नहीं था।

मजिस्ट्रेट ने इस मांग को धारा 451 CrPC के तहत खारिज कर दिया।
सत्र न्यायालय ने भी आदेश बरकरार रखा।
हाईकोर्ट ने माना कि स्वामित्व “स्पष्ट नहीं है”।
अंततः मामला सुप्रीम कोर्ट पहुँचा।


2. सुप्रीम कोर्ट के समक्ष मुख्य प्रश्न

सुप्रीम कोर्ट को तीन प्रमुख प्रश्नों पर विचार करना था—

(1) क्या याचिकाकर्ता नकदी का वैध स्वामी सिद्ध कर पाया?

स्वामित्व सिद्ध करने के लिए कौन-कौन से दस्तावेज, लेन-देन का विवरण या बैंकिंग प्रमाण प्रस्तुत किया गया?

(2) क्या CrPC की धारा 451 और BNSS की धारा 497 नकदी की सपूर्दारी के लिए इतनी उदार है कि केवल दावे के आधार पर रकम लौटाई जा सके?

(3) क्या सपूर्दारी में नकदी को लौटाने के लिए अतिरिक्त सावधानियों की आवश्यकता है?

सुप्रीम कोर्ट ने इन तीनों प्रश्नों का विस्तार से परीक्षण किया और अंततः याचिका खारिज कर दी।


3. सुप्रीम कोर्ट का निर्णय — मुख्य आधार

A. स्वामित्व का स्पष्ट और विशुद्ध प्रमाण आवश्यक

कोर्ट ने कहा कि—

“जो व्यक्ति सपूर्दारी चाहता है, उसे अपनी पूर्ण और निर्विवाद मालिकाना स्थिति दस्तावेजों से सिद्ध करनी होगी।”

याचिकाकर्ता ऐसा नहीं कर सका क्योंकि—

  • कोई वैध इनवॉइस,
  • बैंक प्रविष्टि,
  • टैक्स रिकॉर्ड,
  • व्यापारिक लेन-देन के दस्तावेज,
  • या आरोपी से उसके संबंध का कोई सुरक्षित प्रमाण
    प्रस्तुत नहीं किया गया।

केवल मौखिक दावा करना क़ानून की दृष्टि में पर्याप्त नहीं है।


B. नकदी पर ‘Exclusive Possession and Title’ सिद्ध करना अनिवार्य

अदालत ने कहा कि—

  • नकदी (Cash) एक fungible asset है,
  • मुद्रा पर यह पहचान नहीं की जा सकती कि यह किसी विशेष व्यक्ति की है,
  • इसलिए स्वामित्व सिद्ध करना अत्यंत कठिन और इसलिए आवश्यक है।

याचिकाकर्ता यह स्थापित नहीं कर पाया कि—
यह रकम उसी की थी और आरोपी के पास केवल custody में थी।


C. धारा 451 CrPC और धारा 497 BNSS — उद्देश्य एवं व्याख्या

CrPC S.451 — Custody and Disposal of Property

इस धारा का उद्देश्य है—

  • कोर्ट में लंबी अवधि तक पड़ी वस्तुओं की सुरक्षा,
  • जिसके कारण वस्तुएँ नष्ट न हों।

लेकिन यहाँ कोर्ट ने माना कि
नकदी में ‘deterioration’ की समस्या नहीं होती,
इसलिए उसे तुरंत लौटाने की कोई बाध्यता नहीं।

BNSS S.497 — Power to Release Property

BNSS का आधुनिक प्रावधान CrPC के सिद्धांतों को ही आगे बढ़ाता है।
कोर्ट ने कहा कि—

“धारा 497 BNSS का उद्देश्य वही है—अदालत में जब्त वस्तुओं की सुरक्षित अभिरक्षा। यह स्वामित्व सिद्ध न होने की स्थिति में राशि लौटाने को बाध्य नहीं करता।”


D. नकदी केस में कोर्ट का दृष्टिकोण अधिक कठोर

अदालत ने स्पष्ट करते हुए कहा कि—

“गाड़ियों, मोबाइल, कंप्यूटर, पशु अथवा अन्य वस्तुओं के मुकदमों में सपूर्दारी सामान्यतः दी जाती है, पर नकदी का मामला अलग है। नकदी को वापस देने से आगे की जाँच या मुकदमे पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है।”


E. “Vendor of Accused” होने से स्वामित्व सिद्ध नहीं होता

याचिकाकर्ता केवल यह कह रहा था कि वह आरोपी का vendor है।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा—

  • इससे पैसा उसका सिद्ध नहीं हो जाता,
  • vendor relationship साबित करने का भी कोई credible proof नहीं था,
  • और व्यापारी संबंध साबित होने पर भी धनराशि की ‘traceability’ आवश्यक है।

4. न्यायालय का विस्तृत विश्लेषण — Reasoning

सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में 5 प्रमुख सिद्धांतों पर जोर दिया—


(1) स्वामित्व का बोझ (Burden of Proof)

भारतीय साक्ष्य अधिनियम के अनुसार
“जिस व्यक्ति को राहत चाहिए, उसे अपना दावा सिद्ध करना होता है।”

यहाँ याचिकाकर्ता—

  • व्यापारिक इनवॉइस,
  • GST विवरण,
  • बैंक स्टेटमेंट,
  • Cash Trail
    प्रस्तुत नहीं कर पाया।

(2) Cash Seizure के मामलों में ‘Possession = Suspicion’

कोर्ट ने कहा कि जाँच मामलों में नकदी मिलने पर—

  • यह presumptive suspicion पैदा करता है,
  • चाहे वह अपराध धन (proceeds of crime) हो
    या
    ग़ैर-पंजीकृत व्यापारिक नकदी हो।

ऐसी स्थिति में अदालतें नकदी की सपूर्दारी का आदेश नहीं देतीं।


(3) Criminal Case को प्रभावित करने की संभावना

यदि नकदी लौटा दी जाए तो—

  • जाँच प्रभावित होगी,
  • आरोप सिद्ध न करने में कठिनाई होगी,
  • आरोपी लाभ ले सकता है।

यही कारण है कि—
“नकदी रिलीज़ करने के लिए अदालतों को अतिरिक्त सावधानी बरतनी चाहिए।”


(4) सपूर्दारी आदेश न तो ‘राइट’ है और न ही ‘क्लेम’

याचिकाकर्ता ने इसे अपना अधिकार बताया।
कोर्ट ने स्पष्ट किया—

  • सपूर्दारी कोई अधिकार नहीं बल्कि
    “विवेकाधिकार आधारित न्यायिक राहत” है।

(5) “Vendor Claim” केवल बहाना प्रतीत हुआ

अदालत ने कहा कि—

“याचिकाकर्ता का vendor होने का दावा संदिग्ध है और इसका समर्थन करने वाला कोई credible commercial record नहीं है।”

इससे प्रतीत होता है कि—
शायद नकदी आरोपी की थी
और
याचिकाकर्ता मात्र उसे छुड़ाने का माध्यम बनकर सामने आया था।


5. निर्णय का व्यापक प्रभाव

यह निर्णय भविष्य के कई मामलों में मार्गदर्शन करेगा। प्रमुख प्रभाव—


(A) नकदी सपूर्दारी के लिए अदालतें और कठोर होंगी

अब अदालतें—

  • oral claim,
  • business relation,
  • or mere assertion
    के आधार पर नकदी नहीं लौटाएंगी।

(B) नकदी की traceability अनिवार्य होगी

निम्न प्रमाण आवश्यक होंगे—

  • बैंक लेन-देन,
  • टैक्स रिकॉर्ड,
  • invoice,
  • GST trail,
  • cash book.

(C) जाँच एजेंसियों को राहत

अब वे सपूर्दारी पर नकदी लौटाने के आदेश से सुरक्षित रहेंगे।


(D) आपराधिक मामलों में “hawala/cash व्यापार” पर अंकुश

नकदी का स्रोत बताना अनिवार्य होने से—

  • गैर-पंजीकृत व्यापार,
  • tax evasion
    पर भी असर पड़ेगा।

6. आलोचना और चिंतन

इस निर्णय से कुछ चिंताएँ भी सामने आती हैं—


(1) Genuine व्यापारी के दावे भी प्रभावित हो सकते हैं

यदि व्यापारी/documentation में कमजोर हुआ तो—
वह अपनी वास्तविक राशि भी नहीं प्राप्त कर पाएगा।


(2) Police Abuse की संभावना

कभी-कभी पुलिस बिना कारण अधिक नकदी जब्त कर लेती है।
अब courts अधिक कठोर होने से
ऐसे genuine victims को कठिनाई हो सकती है।


(3) BNSS का उद्देश्य अधिक “liberal release” था

BNSS को CrPC से अधिक modern बनाया गया था।
परंतु सुप्रीम कोर्ट द्वारा CrPC की पुरानी approach को ही अपनाया गया।


फिर भी, अदालत ने कानून और न्यायिक विवेक के बीच संतुलन बनाए रखा है।


7. निष्कर्ष

       सुप्रीम कोर्ट का यह निर्णय नकदी की सपूर्दारी के मामलों में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर है।
इसमें निम्न बिंदुओं को स्थापित किया गया—

  1. नकदी की सपूर्दारी केवल स्पष्ट और दस्तावेज़-समर्थित ownership पर ही दी जा सकती है।
  2. धारा 451 CrPC और 497 BNSS अदालत को विवेकाधिकार देती हैं, अधिकार नहीं।
  3. ‘Vendor’ होने का दावा अपने-आप में स्वामित्व सिद्ध नहीं करता।
  4. नकदी मामलों में अदालतें अधिक कठोर और सतर्क रहेंगी।

     यह आदेश भविष्य की सभी lower courts के लिए मार्गदर्शन प्रदान करेगा और नकदी जब्ती से संबंधित मामलों में एक महत्त्वपूर्ण precedent के रूप में उभरेगा।