IndianLawNotes.com

मणिपुर पुलिस ने एडिटेड क्लिप भेजी फॉरेंसिक जांच के लिए — कूकी संगठन की पूर्व मुख्यमंत्री बिरेन सिंह के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका

मणिपुर पुलिस ने एडिटेड क्लिप भेजी फॉरेंसिक जांच के लिए — कूकी संगठन की पूर्व मुख्यमंत्री बिरेन सिंह के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका


       मणिपुर में 2023 में Meitei और Kuki‑Zo समुदायों के बीच भड़की जातीय हिंसा की पृष्ठभूमि में एक ऐसा मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच गया है, जिसमें कथित ऑडियो क्लिप्स के जरिये पूर्व मुख्यमंत्री एन. बिरेन सिंह (N. Biren Singh) की भागीदारी पर गंभीर सवाल उठाए गए हैं। विशेष रूप से, कूकी संगठन (Kuki Organisation for Human Rights Trust, KOHUR) ने दावा किया था कि क्लिप्स में बिरेन सिंह Meitei पक्ष को संरक्षण देने और हिंसा भड़काने की रणनीति पर बातचीत करते सुनाई दे रहे हैं। इन्हीं क्लिप्स की फॉरेंसिक जांच के दौरान मणिपुर पुलिस ने केवल सीमित हिस्से यानी एडिटेड क्लिप्स ही राष्ट्रीय फॉरेंसिक प्रयोगशाला (NFSL) को भेजे — और अब उसी को लेकर सुप्रीम कोर्ट में नई जंग खड़ी हो गई है।


पृष्ठभूमि और याचिका

  • हिंसा और आरोप: मई 2023 में शुरू हुई मणिपुर हिंसा में 200 से अधिक लोगों की जान गई थी और हजारों विस्थापित हुए थे।
  • याचिकाकर्ता: Kuki Organisation for Human Rights Trust (KOHUR) ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी, जिसमें उन्होंने एक विशेष जांच टीम (SIT) की मांग की, ताकि वरिष्ठ अधिकारी और पूर्व मुख्यमंत्री बिरेन सिंह की कथित भूमिका की निष्पक्ष जांच हो सके।
  • मूल क्लिप्स: याचिका में यह कहा गया कि एक 48 मिनट लंबी क्लिप है, जो बंद कमरे में हुई बैठक की है। दावा है कि उसमें बिरेन सिंह “Meitei समुदाय को संरक्षण देने” और “हिंसा भड़काने” की बात कर रहे हैं।

फॉरेंसिक जांच: कितनी विश्वसनीय हैं क्लिप्स?

यह मामला लंबे समय से सुनवाई में है, और कोर्ट ने विभिन्न फॉरेंसिक एजेंसियों को जांच करने का निर्देश दिया है:

  1. CFSL (केंद्रीय फॉरेंसिक विज्ञान प्रयोगशाला)
    • सुप्रीम कोर्ट ने पहले CFSL से मांग की कि वे क्लिप्स की जांच करें।
    • लेकिन कोर्ट ने CFSL की प्रक्रिया पर नाखुशी व्यक्त की। जजों ने कहा कि CFSL “मिसडायरेक्टेड” काम कर रही है — उनका विश्लेषण सिर्फ ऑडियो की प्रामाणिकता तय करने तक सीमित रहा, जबकि कोर्ट असली मुद्दा यह देखना चाहती थी कि क्लिप में बोली गई आवाज़ और नियंत्रित (control) क्लिप्स में बोली गई आवाज़ मिली-जुली है या नहीं
    • कोर्ट ने कहा: “हम ये नहीं पूछना चाह रहे कि क्लिप असली है या नहीं, बल्कि यह कि क्या इस बोली को उसी व्यक्ति की बोली के साथ मेल किया जा सकता है।”
  2. NFSL (राष्ट्रीय फॉरेंसिक विज्ञान प्रयोगशाला), गांधीनगर
    • अगस्त 2025 में, सुप्रीम कोर्ट ने NFSL को क्लिप्स की जाँच के लिए भेजा, यह तय करने के लिए कि क्या क्लिपों में संशोधन (editing) या छेड़छाड़ (tampering) की गई है।
    • NFSL की रिपोर्ट में कहा गया है कि कम‑से‑कम चार नमूनों में “संशोधन और छेड़छाड़ के संकेत” मिले हैं।
    • रिपोर्ट ने निष्कर्ष दिया कि ये क्लिप “उल्‍लेखनीय स्रोत रिकॉर्डिंग नहीं हैं” और वैज्ञानिक रूप से आवाज़‑मिलान (forensic voice comparison) के लिए “उपयुक्त नहीं” ठहराई गई हैं।
    • इसलिए, NFSL ने यह कहने से इनकार किया कि ये आवाज़ “वहीं ही व्यक्ति” की है जिसे नियंत्रित क्लिप्स में माना गया था।

याचिकाकर्ता की प्रतिक्रिया और विवाद

  • Truth Labs रिपोर्ट: KOHUR की ओर से वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण ने कोर्ट में यह तर्क दिया कि Truth Labs (एक निजी फॉरेंसिक प्रयोगशाला) ने पूरी 50‑मिनट की क्लिप का विश्लेषण किया था और उनके अनुसार उसमें 93% संभावना है कि आवाज़ बिरेन सिंह की है।
  • चुनौती और सवाल: हालाँकि, NFSL रिपोर्ट ने यह दावा खारिज कर दिया कि वे पूरी क्लिप को देखा था — मणिपुर पुलिस ने केवल चार छोटे क्लिप्स (30 सेकंड से लेकर लगभग 2 मिनट के हिस्से) ही भेजे थे।
  • KOHUR ने अपनी याचिका में यह कहा है कि ये चयनात्मक प्रस्तुति “गंभीर संशय” उत्पन्न करती है और राज्य की सच्चाई को छुपाने की कोशिश हो सकती है।
  • याचिकाकर्ताओं ने कोर्ट से न्यायालय‑निगरानी वाली SIT की मांग दोहराई है, क्योंकि वे कहते हैं कि क्लिप्स में “उच्चतम स्तर की साजिश” हो सकती है — और वो सिर्फ़ फॉरेंसिक पक्ष तक सीमित नहीं है, बल्कि शांति बहाल रखने के दावे के बीच गंभीर राजनीतिक जिम्मेदारी भी है।

सुप्रीम कोर्ट की प्रतिक्रिया और अगले कदम

  • सुप्रीम कोर्ट ने NFSL की रिपोर्ट को ध्यानपूर्वक देखा और पाया कि उसमें क्लिप्स में छेड़छाड़ के स्पष्ट संकेत हैं।
  • कोर्ट ने कहा कि क्योंकि ये क्लिप्स “विज्ञान संगतता (scientific fitness)” के लिहाज से आवाज़‑मिलान के लिए ठीक नहीं हैं, इसलिए वे उस स्तर की विशिष्टता नहीं दे सकते कि आवाज़ “बिरेन सिंह की ही है”।
  • अदालत ने उन पक्षों को रिपोर्ट की प्रति सौंपने का निर्देश दिया ताकि वे जवाब दे सकें।
  • इसके अलावा, सुप्रीम कोर्ट ने मणिपुर सरकार से कहा है कि वह नया, ताज़ा फॉरेंसिक रिपोर्ट दाखिल करे।
  • कोर्ट की सुनवाई आगे 8 दिसंबर को तय की गई है, ताकि रिपोर्ट पर बहस की जाए।

महत्वपूर्ण मुद्दे और राजनीतिक प्रभाव

  1. सत्यापन का संकट
    अगर ऑडियो क्लिप्स एडिटेड और छेड़छाड़ किए गए हैं, तो उनका सबूत‑मूल्य बहुत घट जाता है। यह सवाल उठता है कि क्या शुरुआती याचिका में प्रस्तुत सामग्री पूरी, अखंड और भरोसेमंद थी।
  2. राजनीतिक जिम्मेदारी
    यदि क्लिप्स असली होतीं, तो यह बिरेन सिंह की भूमिका के आरोपों को पुष्ट कर सकती थीं। लेकिन NFSL की रिपोर्ट इन दावों के वैज्ञानिक आधार पर सवाल उठाती है। यह राजनीतिक चरित्र और सत्ता के दायरे में गंभीर सवाल खड़े करता है।
  3. न्याय और निष्पक्ष जांच
    KOHUR जैसा मानवाधिकार संगठन एक न्यायालय‑निगरानी वाली SIT चाहता है, क्योंकि वे मानते हैं कि सिर्फ़ फॉरेंसिक रिपोर्ट ही पर्याप्त नहीं है। उनका कहना है कि न्याय तभी सुनिश्चित हो सकता है जब जांच स्वतंत्र और पारदर्शी हो।
  4. शांति‑संवेदनशीलता
    मणिपुर में हिंसा और तनाव की पृष्ठभूमि में, कोर्ट को यह भी देखना होगा कि जांच कैसे शांति बनाए रखने के लक्ष्य के साथ संतुलित हो सकती है। इस मामले में न्याय की मांग और सामाजिक स्थिरता के बीच नाजुक संतुलन है।

निष्कर्ष

यह मामला सिर्फ एक सामान्य कानूनी याचिका नहीं है, बल्कि मणिपुर की जातीय हिंसा, राजनीतिक सत्ता, मानवाधिकार और न्याय की ज़िम्मेदारी का एक जटिल समय संकेत है।

  • KOHUR द्वारा प्रस्तुत ऑडियो क्लिप्स यदि सच्ची हैं, तो राष्ट्रपति‒स्तर पर राजनीतिक जिम्मेदारी तय हो सकती है।
  • दूसरी ओर, NFSL की रिपोर्ट यह दावा कर रही है कि क्लिप्स वैज्ञानिक दृष्टि से भरोसेमंद नहीं हैं।
  • सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए निर्देश — नई रिपोर्ट, पक्षों को रिपोर्ट की प्रति देना, और आगे की सुनवाई — यह दिखाते हैं कि न्याय प्रणाली इस बहस को केवल तकनीकी मामले के रूप में नहीं देख रही, बल्कि व्यापक जांच और पारदर्शिता की मांग कर रही है।

यह मामला आगे कितना गहराता है — यह इस बात पर निर्भर करेगा कि कोर्ट, फॉरेंसिक लैब्स और राजनीति किस हद तक ईमानदारी और निष्पक्षता दिखाते हैं।