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सिविल वाद दायर करने की प्रक्रिया और Order 7 Rule 11 के तहत वाद कब खारिज होता है?

सिविल वाद दायर करने की प्रक्रिया और Order 7 Rule 11 के तहत वाद कब खारिज होता है?—एक विस्तृत विश्लेषण

        सिविल न्याय प्रणाली का मूल उद्देश्य पक्षकारों के बीच उत्पन्न विवादों का निष्पक्ष, प्रभावी और विधि-सम्मत समाधान सुनिश्चित करना है। जब किसी व्यक्ति के वैधानिक या नागरिक अधिकारों का उल्लंघन होता है, या किसी दायित्व के पालन में चूक होती है, तो वह सिविल न्यायालय की शरण लेकर अपने अधिकारों की रक्षा कर सकता है। सिविल Suit (Civil Suit) दायर करना एक संरचित और विधिक प्रक्रिया है, जिसमें विशिष्ट चरणों, दस्तावेजों तथा नियमों का पालन आवश्यक होता है। साथ ही, यह भी उतना ही महत्वपूर्ण है कि वाद का प्रारूप, उद्देश्य और दावे न्यायालय के दायरे में हों, अन्यथा न्यायालय के पास ऐसा वाद खारिज करने का अधिकार है। भारतीय सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 (CPC) के Order 7 Rule 11 में स्पष्ट रूप से उन परिस्थितियों का उल्लेख किया गया है, जब कोई plaint (वादपत्र) प्रारंभिक अवस्था में ही खारिज किया जा सकता है।

       यह लेख दो प्रमुख हिस्सों में विभाजित है—पहला, सिविल Suit दायर करने की पूरी प्रक्रिया; और दूसरा, Order 7 Rule 11 के तहत plaint कब और किन परिस्थितियों में खारिज होता है।


भाग 1: सिविल Suit दायर करने की प्रक्रिया

सिविल Suit दायर करना केवल एक फ़ॉर्म भरने भर का कार्य नहीं है, बल्कि कानूनी नियमों, तथ्यों की प्रस्तुति, वैधानिक दस्तावेजों के संकलन और न्यायालय की प्रक्रिया का क्रमबद्ध पालन करना होता है। आइए इसे चरणबद्ध रूप में समझते हैं:

1. कारण-ए-दावा (Cause of Action) का निर्धारण

वाद दायर करने से पहले सबसे महत्वपूर्ण है यह तय करना कि वास्तविक कारण-ए-दावा क्या है। Cause of Action वह घटना, तथ्य या परिस्थिति है जिससे वादी को यह अधिकार मिलता है कि वह न्यायालय में जाकर राहत की मांग कर सके। बिना उचित Cause of Action के वाद दायर ही नहीं किया जा सकता।

2. उचित न्यायालय का चयन (Jurisdiction)

दो प्रमुख प्रकार की jurisdiction निर्धारित की जाती है:

  • Territorial Jurisdiction: घटना जहां हुई या प्रतिवादी जहां रहता है, वहीं का न्यायालय वाद सुन सकता है।
  • Pecuniary Jurisdiction: वाद की रकम या संपत्ति का मूल्य देखकर तय होता है कि किस स्तर का न्यायालय वाद सुनेगा।

यदि वादी गलत jurisdiction में वाद दायर करता है, तो वाद खारिज किया जा सकता है।

3. वादपत्र (Plaint) का प्रारूप

Plaint वह मूल दस्तावेज है जिसमें वादी अपने दावे, तथ्य और relief को संक्षेप तथा स्पष्ट रूप में प्रस्तुत करता है। Plaint में निम्नलिखित बातें होनी चाहिए:

  • पक्षकारों का विवरण
  • विवाद का तथ्यात्मक विवरण
  • Cause of Action का उल्लेख
  • न्यायालय की jurisdiction का आधार
  • दावा की गई relief (घोषणात्मक, अनिवार्य, स्थायी प्रतिबंधक आदेश आदि)
  • मूल्यांकन (Valuation)
  • आवश्यक संलग्नक

4. दस्तावेज़ों का संकलन और संलग्न करना

वाद का आधार जिन दस्तावेजों पर टिका है, उन्हें वादपत्र के साथ संलग्न करना अनिवार्य है—जैसे:

  • समझौता, एग्रीमेंट, रसीद
  • संपत्ति के कागज़ात
  • नोटिस और जवाब
  • पत्राचार आदि

Order 7 Rule 14 CPC के अनुसार वादी को सभी मूल दस्तावेज़ों की सूची व प्रतियाँ संलग्न करनी होती हैं।

5. वाद शुल्क (Court Fee) का भुगतान

Court Fees Act के तहत आवश्यक वाद शुल्क जमा करना आवश्यक है। गलत या कम शुल्क होने पर plaint को स्वीकार ही नहीं किया जाता।

6. सत्यापन और शपथपत्र (Affidavit)

वादपत्र के साथ वादी सत्यापन करता है कि सभी तथ्य सत्य हैं। इसके साथ एक affidavit भी लगाया जाता है।

7. वाद का दाखिला और पंजीयन

वाद दायर करने के बाद न्यायालय के registry विभाग द्वारा उसकी जाँच की जाती है। दोष रहित होने पर वाद का पंजीयन किया जाता है और एक केस नंबर दिया जाता है।

8. समन जारी होना (Issue of Summons)

न्यायालय प्रतिवादी को नोटिस जारी करता है ताकि वह उपस्थित होकर अपना उत्तर प्रस्तुत कर सके।

9. Written Statement और आगे की प्रक्रिया

प्रतिवादी Written Statement देता है, मुद्दों का निर्धारण (Issues Framing), साक्ष्य, जिरह और अंततः निर्णय होता है।


भाग 2: Order 7 Rule 11 के तहत वाद कब खारिज होता है?

Order 7 Rule 11 CPC न्यायालय को शक्तियाँ प्रदान करता है कि वह Plaint को शुरुआती स्तर पर ही खारिज कर दे यदि उसमें गंभीर कानूनी कमी हो। यह प्रावधान न्यायालय का समय बचाने और बेकार, झूठे या आधारहीन दावे रोकने का एक प्रभावी उपाय है।

Order 7 Rule 11 के अंतर्गत निम्नलिखित परिस्थितियों में वादपत्र (Plaint) खारिज किया जा सकता है:


(a) जब वादपत्र Cause of Action नहीं दर्शाता हो

यदि plaint में यह नहीं बताया गया कि वादी का दावा क्यों बनता है, या किन तथ्यों के आधार पर उसे राहत चाहिए, तब यह वाद प्रारंभिक चरण में ही खारिज किया जा सकता है।

उदाहरण:
वादी कहे कि “प्रतिवादी मेरी जमीन पर कब्ज़ा करना चाहता है, इसलिए आदेश दें”—लेकिन यह न बताए कि कैसे, कब, किस घटना के आधार पर ऐसा हुआ—तो यह Cause of Action का अभाव है।

(b) जब वाद मूल्यांकन (Valuation) उचित न हो या सुधारने से इंकार हो

यदि वादी ने वाद की गलत valuation की है, और न्यायालय उसे सुधारने का अवसर देता है, किंतु वह ऐसा नहीं करता—तो plaint खारिज किया जा सकता है।

उदाहरण:
विशेष प्रदर्शन (Specific Performance) के मामलों में वाद मूल्यांकन निश्चित नियमों के आधार पर होना चाहिए।

(c) जब Court Fee अपर्याप्त हो और वादी उसे ठीक न करे

यदि कोर्ट फीस कम लगी है और न्यायालय सुधारने का अवसर देने के बाद भी वादी उसे ठीक नहीं करता, तो वाद खारिज होगा।

(d) वाद न्यायालय की Jurisdiction से बाहर हो

यदि relief ऐसा है जिसे वह न्यायालय दे ही नहीं सकता, या वाद ऐसी प्रकृति का है जो अन्य मंच के दायरे में आता है (जैसे—ट्रिब्यूनल), तो plaint खारिज किया जा सकता है।

उदाहरण:
श्रम विवाद को सिविल कोर्ट में लाना jurisdiction की स्पष्ट कमी है।

(e) कानून द्वारा निषिद्ध Suit (Barred by Law)

यदि plaint से ही यह स्पष्ट हो जाए कि वादी का दावा कानून की दृष्टि से अस्वीकार्य है या प्रतिबंधित है, तो इसे खारिज किया जा सकता है।

जैसे—

  • Limitation Act के अनुसार दावा समय-सीमा से बाहर है।
  • Rent Control Act के तहत मकान मालिक eviction suit सिविल कोर्ट में न ला सकता हो।
  • कर संबंधी विवाद, चुनाव याचिका आदि सिविल कोर्ट के अधीन नहीं आते।

(f) Plaint अस्पष्ट, छलपूर्ण या मनगढ़ंत हो

यदि plaint स्वयं में Vague है, तथ्य स्पष्ट नहीं हैं, या relief अनिश्चित है, तो वाद खारिज किया जा सकता है।


महत्वपूर्ण बिंदु: Order 7 Rule 11 का उद्देश्य

  • झूठे एवं आधारहीन वादों को रोकना
  • न्यायालय का समय बचाना
  • मुकदमेबाजी की अनावश्यक बढ़ोतरी रोकना
  • न्यायिक संसाधनों का कुशल उपयोग
  • वास्तविक वादों को शीघ्र निपटाना

     न्यायालय इस प्रावधान का उपयोग अत्यधिक सावधानी से करता है, क्योंकि वाद खारिज करना एक कठोर कदम है और वादी को न्याय से वंचित नहीं किया जा सकता। इसलिए, न्यायालय केवल plaint को पढ़ता है—प्रतिवादी का Written Statement या शपथपत्र नहीं।


निष्कर्ष

       सिविल Suit दायर करने की प्रक्रिया जटिल अवश्य है, किंतु सुव्यवस्थित और न्यायसंगत है। वादी को सुनिश्चित करना चाहिए कि उसका वाद वैधानिक हो, उचित कारण-ए-दावा रखता हो, सही jurisdiction में दायर किया गया हो, और उसमें सभी आवश्यक तथ्यों का समावेश हो। Order 7 Rule 11 CPC न्यायालय को यह शक्ति देता है कि वह प्रारंभिक स्तर पर ही ऐसा plaint खारिज कर दे जो कानून के अनुरूप नहीं है, आधारहीन है या jurisdiction से बाहर है।

       यह प्रावधान न केवल न्यायिक प्रक्रिया की पवित्रता को बनाए रखता है, बल्कि पक्षकारों को अनावश्यक मुकदमेबाजी से बचाता है। इसलिए, वाद दायर करते समय वादी को अत्यंत सावधानी, तथ्यात्मक सटीकता और कानूनी नियमों का पालन करना चाहिए, जिससे उसका वाद न्यायालय में बरकरार रहे और उसे न्याय मिलने की संभावना अधिक बनी रहे।