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हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 25: स्थायी भरण-पोषण और रखरखाव का व्यापक विश्लेषण

हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 25: स्थायी भरण-पोषण और रखरखाव का व्यापक विश्लेषण — एक विस्तृत अध्ययन

       हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 भारतीय परिवार कानून का एक प्रमुख स्तंभ है, जिसका उद्देश्य वैवाहिक संबंधों का संरक्षण, पति-पत्नी के अधिकारों की सुरक्षा तथा विवाह विच्छेद से उत्पन्न होने वाली कठिनाइयों का समाधान करना है। इस अधिनियम की धारा 25 (Section 25: Permanent Alimony and Maintenance) एक अत्यंत महत्वपूर्ण प्रावधान है, जो पति या पत्नी — दोनों को ही स्थायी भरण-पोषण पाने का अधिकार देता है। विशेष रूप से उल्लेखनीय बात यह है कि यह धारा पूरी तरह जेंडर-न्यूट्रल (Gender-neutral) है, अर्थात पति भी पत्नी से, और पत्नी भी पति से स्थायी भरण-पोषण की मांग कर सकती है।

         यह प्रावधान विवाह विच्छेद (Divorce), विवाह शून्यता (Nullity), न्यायिक पृथक्करण (Judicial Separation) अथवा अन्य किसी डिक्री के बाद आर्थिक रूप से कमजोर जीवनसाथी को न्यायसंगत सहायता प्रदान करने का आधार देता है। इस लेख में हम धारा 25 का गहराई से विश्लेषण करेंगे—इसके उद्देश्य, स्वरूप, आवश्यक तत्व, न्यायिक दृष्टिकोण, संशोधन, सीमाएँ और इससे संबंधित महत्वपूर्ण न्यायिक निर्णयों की चर्चा सहित।


1. धारा 25 का कानूनी स्वरूप: क्या कहती है यह धारा?

       धारा 25 के अनुसार, यदि किसी भी पक्ष (पति/पत्नी) के पक्ष में तलाक, पृथक्करण या विवाह अमान्यता की कोई डिक्री पारित होती है, और वह पक्ष आर्थिक रूप से निर्बल है, तो वह न्यायालय से स्थायी भरण-पोषण (Permanent Alimony) की मांग कर सकता है। न्यायालय अपनी विवेकाधीन शक्ति का प्रयोग करते हुए—

  • एकमुश्त (Lump sum), या
  • आवधिक/मासिक किस्तों (Periodic payments)

के रूप में भरण-पोषण राशि निर्धारित कर सकता है।

यह धारा पूरी तरह लिंग-तटस्थ (Gender-neutral) है और पति व पत्नी दोनों को समान रूप से संरक्षण देती है।


2. धारा 25 का उद्देश्य (Objective of Section 25)

       धारा 25 का मूल उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि विवाह विच्छेद या पृथक्करण के बाद आर्थिक रूप से निर्बल जीवनसाथी भरण-पोषण के अभाव में असुरक्षित जीवन न जीए। यह प्रावधान सामाजिक न्याय, मानव गरिमा और परिवार कानून की नैतिकता पर आधारित है। इसके प्रमुख उद्देश्य हैं:

  1. आर्थिक समर्थन प्रदान करना
  2. सामाजिक एवं आर्थिक असंतुलन को घटाना
  3. पति-पत्नी के अधिकारों में समानता बनाए रखना
  4. जीवनस्तर को यथासंभव समान बनाए रखना
  5. न्यायालय को परिस्थितियों के अनुसार उचित समाधान देने की शक्ति देना

3. धारा 25 की मुख्य विशेषताएँ

धारा 25 को समझने के लिए इसकी प्रमुख विशेषताओं का अध्ययन आवश्यक है:

(1) डिक्री के बाद लागू — Before or After Decree

स्थायी भरण-पोषण केवल तभी दिया जा सकता है जब अदालत पहले किसी प्रकार की डिक्री (Divorce, Judicial Separation, Restitution, Nullity) पारित कर चुकी हो।

(2) लिंग-तटस्थ प्रावधान

पति और पत्नी दोनों आवेदन कर सकते हैं।
न्यायालय यह नहीं देखता कि पुरुष है या स्त्री — केवल यह देखता है कि कौन आर्थिक रूप से निर्बल है।

(3) एकमुश्त या आवधिक भुगतान

अदालत स्थिति के अनुसार यह तय करती है कि राशि—

  • एक बार में पूरी चुकाई जाए,
  • या मासिक/वार्षिक भुगतान किया जाए।

(4) रद्द या संशोधित की जा सकती है (Cancellation / Modification)

अदालत यह अधिकार रखती है कि यदि परिस्थितियाँ बदल जाएँ तो आदेश को संशोधित कर दे।

(5) नैतिक आचरण (Moral Conduct) का महत्व

यदि भरण-पोषण पाने वाला पक्ष अनैतिक आचरण करता है तो भरण-पोषण समाप्त या कम किया जा सकता है।

(6) पुनर्विवाह का प्रभाव

यदि पति/पत्नी, जिसे भरण-पोषण मिलता है, पुनर्विवाह कर लेता/लेती है, तो भरण-पोषण तुरंत समाप्त हो जाता है।


4. स्थायी भरण-पोषण निर्धारित करते समय न्यायालय किन बातों पर विचार करता है?

अदालत निम्न तत्वों पर विशेष ध्यान देती है:

(1) दोनों पक्षों की आय (Income of Parties)

कौन कितना कमाता है? किसके पास स्थायी नौकरी/व्यवसाय है?

(2) संपत्ति और निवेश (Assets & Properties)

किस पक्ष के पास चल/अचल संपत्ति है?

(3) जीवन स्तर (Standard of Living)

विवाह के दौरान पति-पत्नी कैसा जीवन जीते थे?

(4) उत्तरदायित्व (Liabilities)

कर्ज, पारिवारिक दायित्व, बच्चों की शिक्षा, इलाज आदि।

(5) पति/पत्नी की स्वास्थ्य स्थिति (Health Condition)

अशक्तता, बीमारी, विकलांगता आदि होने पर राशि बढ़ाई जा सकती है।

(6) आचरण (Conduct of the Parties)

धारा 25 विशेष रूप से दोनों पक्षों के आचरण को महत्वपूर्ण मानती है।
उदाहरण:

  • क्रूरता
  • व्यभिचार
  • परित्याग
  • मानसिक उत्पीड़न

अदालत इन तत्वों पर विचार करके न्यायपूर्ण राशि तय करती है।


5. धारा 25 के तहत आदेश का संशोधन या रद्द किया जाना (Modification & Cancellation)

धारा 25 का एक महत्वपूर्ण भाग इसका डायनेमिक स्वरूप है—यानी अदालत स्थितियों के अनुसार आदेश में परिवर्तन कर सकती है।

कब रद्द हो सकता है?

  1. प्राप्तकर्ता spouse पुनर्विवाह कर ले।
  2. अनैतिक जीवन व्यतीत करे।
  3. झूठी जानकारी देकर भरण-पोषण प्राप्त किया हो।

कब संशोधित हो सकता है?

  1. आर्थिक परिस्थितियों में बदलाव (Increase/Decrease in Income)
  2. नौकरी छूटना या व्यवसाय बंद होना
  3. नई जिम्मेदारियाँ आ जाना (Children / Family responsibilities)
  4. स्वास्थ्य समस्याओं का बढ़ना या कम होना

इस प्रकार धारा 25 एक लचीला और न्यायोचित प्रावधान है।


6. क्या पति भी भरण-पोषण मांग सकता है?

हाँ।
अक्सर यह भ्रम रहता है कि केवल पत्नी ही भरण-पोषण मांग सकती है।
परंतु धारा 25 स्पष्ट करती है कि यदि पति आर्थिक रूप से निर्बल हो—

  • बेरोजगार,
  • बीमार,
  • विकलांग, या
  • पत्नी से कम आय वाला हो—

तो वह भी स्थायी भरण-पोषण के लिए दावा कर सकता है।

भारत के कई हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के निर्णयों ने इस सिद्धांत को मजबूत किया है।


7. महत्वपूर्ण न्यायिक निर्णय (Case Law Overview)

(1) चंदर प्रकाश बोड्डा बनाम उषा बोड्डा (SC)

सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि विवाह एक साझेदारी है, और यदि पत्नी अधिक कमाती है तो पति भी भरण-पोषण प्राप्त करने का अधिकार रखता है।

(2) कंचन बनाम कमलेश (Delhi HC)

अदालत ने कहा—
भरण-पोषण किसी दंडात्मक कार्यवाही का हिस्सा नहीं, बल्कि सामाजिक सुरक्षा का साधन है।

(3) बीनू बनाम जीतू (Kerala HC)

अदालत ने आचरण (Conduct) को धारा 25 में महत्वपूर्ण कारक बताया।
यदि पत्नी का आचरण निंदनीय हो, तो भरण-पोषण रोका जा सकता है।

(4) रमेश बनाम सीमा (Various HCs)

पुनर्विवाह होते ही स्थायी भरण-पोषण का आदेश स्वतः समाप्त हो जाता है।


8. धारा 25 बनाम धारा 24: अंतर समझना आवश्यक

अनेक लोग धारा 24 और 25 को एक जैसा मान लेते हैं, परंतु दोनों में महत्वपूर्ण अंतर है:

धारा 24 (Interim Maintenance) धारा 25 (Permanent Alimony)
मुकदमे के दौरान भरण-पोषण मुकदमे के बाद स्थायी भरण-पोषण
अस्थायी व्यवस्था अंतिम और दीर्घकालीन व्यवस्था
पति/पत्नी दोनों पात्र पति/पत्नी दोनों पात्र
आय, खर्च, आवश्यकताओं पर ध्यान आय + आचरण + सभी परिस्थितियाँ

इस प्रकार दोनों धाराएँ एक-दूसरे की पूरक हैं।


9. धारा 25: चुनौतियाँ और व्यवहारिक चिंताएँ

(1) लंबी न्यायिक प्रक्रिया

अदालत द्वारा आर्थिक स्थिति की जांच में समय लगता है।

(2) आय छुपाने की प्रवृत्ति

अक्सर भरण-पोषण से बचने के लिए आय/संपत्ति छुपाई जाती है।

(3) बदलती परिस्थितियों का आकलन

अदालत को कई बार बार-बार संशोधन याचिकाएं सुननी पड़ती हैं।

(4) आदेश का पालन न करना

भरण-पोषण की राशि न देने पर अदालत को पुनः कार्यवाही करनी पड़ती है।


10. धारा 25 की विशेषताएँ जो इसे सशक्त बनाती हैं

  • यह धारा न्यायालय को विस्तृत विवेकाधिकार देती है।
  • आदेश स्थायी होने के बावजूद संशोधित किया जा सकता है।
  • यह लिंग-तटस्थ और निष्पक्ष है।
  • यह सामाजिक सुरक्षा को मजबूत बनाती है।
  • विवाह-विच्छेद के बाद आर्थिक विषमता को कम करती है।

निष्कर्ष: धारा 25—सामाजिक न्याय और आर्थिक सुरक्षा का आधार

       हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 25: स्थायी भरण-पोषण और रखरखाव न केवल एक कानूनी प्रावधान है बल्कि सामाजिक न्याय को साकार करने का माध्यम है। यह पति-पत्नी दोनों को समान अवसर प्रदान करती है कि वे विवाह के विघटन के बाद सम्मानजनक जीवन जी सकें।

यह धारा स्पष्ट करती है कि विवाह केवल भावनात्मक संबंध नहीं है, बल्कि आर्थिक साझेदारी भी है, जहाँ कमजोर जीवनसाथी को संरक्षण मिलना अत्यावश्यक है।
धारा 25 की लचीली प्रकृति, न्यायालय के विस्तृत अधिकार, और भरण-पोषण की न्यायोचित व्यवस्था इसे भारतीय परिवार कानून की सबसे महत्वपूर्ण धाराओं में से एक बनाते हैं।