“इन-हाउस काउंसल बनाम प्रैक्टिसिंग एडवोकेट: कानूनी गोपनीयता की सीमाएँ और सुप्रीम कोर्ट का दृष्टिकोण”
प्रस्तावना
किसी भी व्यवसाय-संस्थानी (Corporate) सेटिंग में, जब सलाहकार कानूनी मामलों पर सलाह देते हैं — विशेष रूप से इन-हाउस काउंसलर (In-House Counsel) के रूप में — तब यह प्रश्न उठता है कि क्या उनकी ओर से प्राप्त सलाह या उनसे हुई संवाद (communication) कानूनी तौर पर गोपनीय (privileged) मानी जा सकती है। दूसरे शब्दों में, क्या वह संवाद अभियोजन, न्यायालय या अन्यत्र प्रस्तुत करने से मना किया जा सकता है क्योंकि उसे “एडवोकेट–क्लाइंट संरक्षण” (advocate-client privilege) मिलता है? भारत में इस विषय पर स्पष्ट एवं व्यापक सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) निर्णय की कमी है; लेकिन उपलब्ध प्रावधान, नियम तथा न्यायिक निर्णय यह संकेत देते हैं कि केवल ऐसे व्यक्ति जिनका नाम स्टेट बार काउंसिल (State Bar Council) में एडवोकेट के रूप में पंजीकृत है और जो “प्रैक्टिसिंग एडवोकेट” (practising advocate) हैं, उन्हें ही कानूनी गोपनीयता का लाभ मिल सकता है। इन-हाउस काउंसलर, जो पूर्ण-कालीन (full-time) कर्मचारी के रूप में एक कंपनी या संगठन में कार्यरत हैं, अक्सर इस लाभ से बाहर माने गए हैं।
इस लेख में हम इस विषय की पृष्ठभूमि, कानूनी आधार, मुख्य न्यायिक प्रवृत्तियाँ, इन्-हाउस काउंसल की चुनौतियाँ और सुझावों का विश्लेषण करेंगे।
कानूनी आधार
- Indian Evidence Act, 1872 (IEA) के सेक्शन 126–129:
- धारा 126: “प्रोफेशनल कम्युनिकेशन” — कोई वकील/अटॉर्नी, … जब तक उसके क्लाइंट की स्पष्ट सहमति न हो, उस संवाद को खुलासा नहीं कर सकता।
- धारा 127: वकील के क्लर्क, इंटरप्रेटर, कर्मचारी से संबंधित संवाद को भी शामिल करती है।
- धारा 129: “लीगल प्रोफेशनल एडवाइज़र” के साथ हुई निजी बातचीत की रक्षा।
इन धाराओं से यह स्पष्ट है कि कानूनी गोपनीयता का लाभ सुनिश्चित रूप से उस संवाद को प्राप्त हैं जो “क्लाइंट और उसके वकील/अटॉर्नी” के बीच हुआ है, जहाँ वकील पंजीकृत और सक्रिय रूप से पेशेवर काम कर रहा हो।
- Advocates Act, 1961 तथा Bar Council of India Rules:
- Advocates Act के तहत “एडवोकेट” (Advocate) की परिभाषा और पंजीकरण का ढाँचा है।
- BCI Rules के Rule 49 में स्पष्ट तौर पर कहा गया है कि “एक एडवोकेट उसी समय तक प्रैक्टिस कर सकता है जब वह पूर्ण-कालीन वेतनभोगी (full-time salaried employee) न हो किसी व्यक्ति, सरकार, फर्म, कंपनी या अन्य संस्था का।”
- Rule 49 का मुख्य भाग:
“An Advocate shall not be a full-time salaried employee of any person, Government, firm, corporation or concern, so long as he continues to practise…”
- उस नियम में अपवाद भी है: “परंतु यह नियम उस Law Officer पर लागू नहीं होगा जो केंद्र या राज्य सरकार या किसी सार्वजनिक निगम द्वारा नामित हो और जिसे राज्य बार काउंसिल के नियमों के तहत पंजीकृत होने का अधिकार प्राप्त हो, भले ही वह पूर्ण-कालीन वेतनभोगी हो।”
यह प्रावधान इस बात को रेखांकित करता है कि वक्त प्रैक्टिसिंग एडवोकेट होना चाहिए, न कि सिर्फ “कंपनी में कानूनी विभाग में वेतनभोगी सलाहकार” होना।
- विश्लेषण:
इन प्रावधानों को मिलाकर यह परिणाम निकलता है कि कानूनी गोपनीयता (attorney-client privilege) का लाभ स्वत: सभी कानूनी सलाह देने वालों को नहीं मिलता। विशेष रूप से, यदि कोई व्यक्ति इन-हाउस काउंसलर के रूप में पूर्ण-कालीन वेतनभोगी के रूप में कार्य कर रहा है, और उसे यह नहीं दिखाना कि वह पंजीकृत एडवोकेट है एवं नियमित न्यायालयीन या विधिक पैरवी कर रहा है — तो उसकी स्थिति “प्रैक्टिसिंग एडवोकेट” की तरह नहीं मानी जा सकती।
न्यायिक प्रवृत्तियाँ एवं इन्-हाउस काउंसलर की स्थिति
- प्रमुख निर्णय: Satish Kumar Sharma v. Bar Council of Himachal Pradesh (2001) 2 SCC 365
इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि पूर्ण-कालीन वेतनभोगी कर्मचारी, जो किसी विद्युत बोर्ड (HPSEB) में “Law Officer” के पद पर थे, उन्हें एडवोकेट के रूप में पंजीकरण के बावजूद विज्ञापित नहीं माना गया — क्योंकि उन्होंने मुख्य रूप से न्यायालयीन पैरवी नहीं की थी और वह पूर्ण-कालीन कर्मचारी थे।
उसके अनुसार:“The test … is whether such person is engaged to act or plead on behalf of his employer in a court of law as an advocate.”
इस निर्णय से यह सिद्ध हुआ कि सिर्फ पंजीकरण होना और “कंपनी के इन-हाउस कानून विभाग” में काम करना पर्याप्त नहीं है। - उच्च न्यायालयों में प्रवृत्तियाँ:
- Municipal Corporation of Greater Bombay v. Vijay Metal Works (1982 Bom 6) में बॉम्बे हाई कोर्ट ने कहा कि यदि इन-हाउस काउंसलर वास्तव में “क्लाइंट के लिए कानूनी सलाह दे रहा है”, तो संवाद को रक्षा मिल सकती है।
- Larsen & Toubro Ltd. v. Prime Displays (P) Ltd. (2002) में बॉम्बे हाई कोर्ट ने माना कि यदि इन-हाउस काउंसलर, वेतनभोगी हो कर भी, लिटिगेशन-उन्मुख कानूनी सलाह दे रहा हो, तो संभावित रूप से गोपनीयता मिल सकती है।
परंतु सुप्रीम कोर्ट स्तर पर अभी तक ऐसा कोई स्पष्ट निर्णय नहीं हुआ है कि सभी इन-हाउस काउंसलर को गोपनीयता का लाभ स्वतः प्राप्त हो।
- विश्लेषणात्मक निष्कर्ष:
- गोपनीयता का लाभ मुख्यतः “प्रैक्टिसिंग एडवोकेट” को मिलता है, अर्थात् वह व्यक्ति जिसने स्टेट बार काउंसिल में पंजीकरण लिया हो, कोर्ट में पैरवी कर रहा हो, अपनी स्वतंत्र कानूनी प्रैक्टिस (litigation or non-litigation) कर रहा हो।
- इन्-हाउस काउंसलर जो पूर्ण-कालीन कर्मचारी हैं — वेतनभोगी, कंपनी के लिए काम कर रहे हैं, उनकी मुख्य जिम्मेदारी पैरवी नहीं बल्कि कंपनी-विभागीय कार्य, सलाह, अनुपालन-कार्य हो सकती है — उनकी स्थिति अस्पष्ट है।
- यदि वे केबल कानूनी सलाह दे रहे हों, और उनकी भूमिका “वकील-क्लाइंट” समबन्धी हो, तथा न सिर्फ कंपनी-विषयक प्रशासनिक काम हो — तब कुछ हाई कोर्ट्स ने कहा है कि गोपनीयता मिल सकती है। लेकिन यह सुप्रीम कोर्ट द्वारा सुनिश्चित नहीं हुआ है।
इन्-हाउस काउंसलर को गोपनीयता न मिलने के कारण
- नियामकीय और पंजीकरण संबंधी कारण
- Advocates Act एवं BCI Rules के अनुसार “एडवोकेट” को राज्य बार काउंसिल में पंजीकृत होना आवश्यक है। इन-हाउस काउंसलर अक्सर इस पंजीकरण के अंतर्गत नहीं आते या उनका मुख्य कार्य न्यायालयीन पैरवी नहीं होता।
- BCI Rule 49 में स्पष्ट किया गया है कि एक एडवोकेट “पूर्ण-कालीन वेतनभोगी कर्मचारी” नहीं हो सकता यदि वह प्रैक्टिस करता है। इस कारण इन-हाउस काउंसलर का पूर्ण-कालीन वेतनभोगी होना उन्हें इस नियम के अंतर्गत ही बाह्य कर देता है।
- स्वतंत्रता एवं हित-संघर्ष (Independence & Conflict of Interest) का प्रश्न
- एडवोकेट-क्लाइंट गोपनीयता का मूल आधार यह है कि वकील अपने क्लाइंट के लिए स्वतंत्र तथा समर्पित हों — अर्थात् क्लाइंट के हितों को सर्वोपरि रख सकें। यदि कोई व्यक्ति कंपनी का कर्मचारी है, वेतनभोगी है, पदाधिकारियों के अधीन है, तो यह स्वायत्तता और समर्पण प्रश्न के नीचे आ जाता है।
- सुप्रीम कोर्ट ने Satish Kumar Sharma मामले में इस दृष्टिकोण को अपनाया कि वेतनभोगी कर्मचारी और मुख्यतः प्रशासनिक जिम्मेदारियों में लगे व्यक्ति को “एडवोकेट” माना जाना कठिन है।
- गोपनीयता की सीमाएँ एवं अपराध/धोखाधड़ी अपवाद
- IEA धारा 126 आदि में यह प्रावधान है कि यदि संवाद अपराध या धोखाधड़ी के उद्देश्य से किया गया हो, तो गोपनीयता नहीं मिलेगी।
- यदि इन-हाउस काउंसलर ने सलाह के साथ-साथ प्रशासनिक/वाणिज्यिक निर्णयों में भाग लिया हो, तो यह “कानूनी सलाह” (legal advice)- संवाद की श्रेणी से बहिर्गृह हो सकता है।
- अंतर्राष्ट्रीय तुलना
- वैश्विक स्तर पर भी इन-हाउस काउंसलर को गोपनीयता देना अलग-अलग देशों में भिन्न है — जैसे यूके में इन-हाउस सलाहकार को कुछ स्थितियों में लाभ मिलता है, लेकिन भारतीय संदर्भ में अभी तक स्पष्ट मानक नहीं बन पाया है।
जब इन-हाउस काउंसलर को गोपनीयता मिल सकती है — किन परिस्थितियों में?
हालाँकि सामान्यतः इन-हाउस काउंसलर को स्वचालित रूप से गोपनीयता नहीं मिलती, पर कुछ परिस्थितियों में यह संभावना बन जाती है:
- यदि इन-हाउस काउंसलर वास्तव में पंजीकृत एडवोकेट हो, और उनकी मुख्य भूमिका क्लाइंट-कंपनी के लिए अदालतों या वैधानिक प्रक्रियाओं में पैरवी करना हो।
- यदि संवाद स्पष्ट रूप से “कानूनी सलाह” (legal advice) के लिए है, न कि व्यवसायिक/प्रशासनिक निर्णयों के लिए।
- यदि संवाद कंपनी-विभागीय नहीं बल्कि न्याय-लिटिगेशन-उन्मुख (litigation or potential litigation) सेट-अप में हुआ हो।
- यदि दस्तावेजों/संचार में स्पष्ट रूप से यह दिखाया जा सके कि संवाद “एडवोकेट–क्लाइंट” संरचना के अंतर्गत था।
इन परिस्थितियों में हाई कोर्ट्स-टाइप निर्णय कुछ हद तक मानते आए हैं कि गोपनीयता मिल सकती है।
सुझाव एवं व्यवहार-दृष्टिकोण
कंपनियों, सलाहकारों और कानूनी विभागों को निम्नलिखित सुझाव दिए जा सकते हैं ताकि यदि संभव हो तो गोपनीयता का लाभ सुनिश्चित किया जा सके या जोखिम कम किया जा सके:
- पंजीकरण एवं भूमिका स्पष्ट करें: यदि संभव हो, कंपनी के इन-हाउस काउंसलर को पंजीकृत एडवोकेट बनाना, तथा यह सुनिश्चित करना कि उनकी भूमिका “पैरवी/क्लाइंट के लिए कानूनी सलाह देना” हो।
- अलग कानूनी विभाग सुनिश्चित करें: सलाह एवं निर्णय-निर्माण विभाग से स्पष्ट विभाजन रखें — यह दिखना चाहिए कि संवाद कानूनी सलाह-उन्मुख है, न कि सामान्य व्यवसायी निर्णय-उन्मुख।
- डॉक्यूमेंटेशन रखें: संवाद, ई-मेल, मेमो आदि में स्पष्ट लिखित रूप से यह उल्लेख हो कि यह “कानूनी सलाह के लिए” है तथा केवल सलाहार्थ है।
- बाहर के वकील (External Counsel) की भूमिका: यदि विवाद/लिटिगेशन संभावित हो, तो कंपनी-बाह्य वकील को सलाह देना शुरू करें — यह गोपनीयता की स्थिति को मजबूत करता है।
- गोपनीयता नीति (Privilege policy) अपनाएँ: कंपनी के भीतर कानूनी विभाग तथा प्रबंधन के बीच स्पष्ट गोपनीयता नीति बनानी चाहिए — कि कौन-सा संवाद कानूनी सलाह के अंतर्गत है और कौन-सा नहीं।
- प्रशिक्षण एवं जागरूकता: इन-हाउस व अन्य संबंधित कर्मचारियों को इस विषय पर प्रशिक्षण देना कि “गोपनीयता” तभी बनती है जब शर्त-संपूर्ण प्रक्रिया हो।
समापन
भारत में इस विषय में सुप्रीम कोर्ट द्वारा पूर्णरूपेण स्पष्ट मानक स्थापित नहीं हुआ है कि किसे और कब कानूनी गोपनीयता मिलेगी, विशेष रूप से इन-हाउस काउंसल के संदर्भ में। लेकिन उपलब्ध प्रावधान, नियम तथा न्यायिक प्रवृत्तियाँ यह संकेत करती हैं कि केवल प्रैक्टिसिंग एडवोकेट, यानी पंजीकृत अधिवक्ता, जिनकी गतिविधि नियमित रूप से न्यायालयीन या वैधानिक पैरवी-प्रकिया में हो, उन्हें ही गोपनीयता का व्यापक लाभ मिलता है। इन-हाउस काउंसलर की स्थिति इससे भिन्न और जोखिमयुक्त है क्योंकि वे पूर्ण-कालीन कर्मचारी होते हैं, पंजीकरण का प्रश्न उपस्थित होता है, और उनकी भूमिका अक्सर प्रशासनिक/वाणिज्यिक होती है।