दो अलग-अलग स्याहियों में संपत्ति का विवरण — सुप्रीम कोर्ट ने विशिष्ट निष्पादन (Specific Performance) की डिक्री रद्द की
भूमिका
सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में एक महत्वपूर्ण निर्णय में कहा कि जब बिक्री अनुबंध (Agreement to Sell) में दो संपत्तियों का विवरण दो अलग-अलग स्याहियों (inks) में लिखा गया हो, तो यह अनुबंध की सत्यता और विश्वसनीयता पर गंभीर संदेह उत्पन्न करता है। अदालत ने कहा कि ऐसे मामलों में, विशिष्ट निष्पादन (Specific Performance) का आदेश देना उचित नहीं है क्योंकि यह एक विवेकाधीन राहत (discretionary relief) है, जिसे केवल उन्हीं परिस्थितियों में दिया जा सकता है जब अनुबंध स्पष्ट, प्रामाणिक और संदेह से परे हो।
इस निर्णय ने न केवल संपत्ति के लेन-देन में पारदर्शिता की आवश्यकता पर जोर दिया है, बल्कि यह भी स्पष्ट किया है कि न्यायालयों को ऐसे अनुबंधों में सावधानी और विवेक से काम लेना चाहिए, जिनमें कोई भी संशयजनक परिस्थिति हो।
मामले की पृष्ठभूमि
यह मामला एक खरीदार (वादी) और संपत्ति स्वामी (प्रतिवादी) के बीच विवाद से संबंधित था। वादी का दावा था कि प्रतिवादी ने उसके पक्ष में एक विक्रय अनुबंध (agreement to sell) निष्पादित किया था, जिसके अनुसार दो संपत्तियाँ बेचने पर सहमति बनी थी। वादी ने यह भी कहा कि उसने अनुबंध की शर्तों के अनुसार पूरी राशि चुकाने की तैयारी कर ली थी, लेकिन प्रतिवादी ने अनुबंध का पालन करने से इनकार कर दिया।
प्रतिवादी का कहना था कि अनुबंध में हेरफेर (alteration) की गई है — और दो संपत्तियों का विवरण अलग-अलग स्याहियों से लिखा गया है, जो यह दर्शाता है कि बाद में किसी ने अनुबंध में परिवर्तन किया है। प्रतिवादी ने यह भी तर्क दिया कि उसने कभी भी दो संपत्तियाँ बेचने की सहमति नहीं दी थी, बल्कि केवल एक संपत्ति का सौदा हुआ था।
निचली अदालतों का निर्णय
निचली अदालत ने वादी के पक्ष में फैसला देते हुए विशिष्ट निष्पादन की डिक्री (decree for specific performance) पारित की। अदालत ने माना कि अनुबंध पर दोनों पक्षों के हस्ताक्षर मौजूद थे, इसलिए यह वैध है। अपीलीय अदालत ने भी इस निर्णय को सही ठहराते हुए कहा कि अलग-अलग स्याही से लिखा होना अपने आप में अनुबंध को अवैध नहीं बनाता।
सुप्रीम कोर्ट में अपील
प्रतिवादी ने इस निर्णय के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर की। उसका मुख्य तर्क यह था कि अनुबंध के महत्वपूर्ण अंशों में दो अलग-अलग स्याहियों का उपयोग किया गया है, जिससे स्पष्ट होता है कि बाद में उसमें परिवर्तन (alteration) किया गया। अतः यह दस्तावेज़ संदेहास्पद और अप्रामाणिक है, और इस पर आधारित विशिष्ट निष्पादन नहीं दिया जा सकता।
सुप्रीम कोर्ट का विश्लेषण
सुप्रीम कोर्ट ने मामले की गहन जांच करते हुए पाया कि अनुबंध में दो संपत्तियों का विवरण अलग-अलग स्याहियों से लिखा गया था और यह दोनों विवरण भिन्न व्यक्ति द्वारा जोड़े गए प्रतीत होते थे।
अदालत ने कहा कि —
“जब किसी दस्तावेज़ में दो अलग-अलग स्याहियों या हस्तलेख का प्रयोग होता है, विशेष रूप से जब यह मुख्य शर्तों या संपत्ति के विवरण से संबंधित हो, तो यह गंभीर संदेह उत्पन्न करता है कि क्या वह परिवर्तन दस्तावेज़ के निष्पादन के बाद किया गया।”
सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि विशिष्ट निष्पादन का आदेश तभी दिया जा सकता है जब अनुबंध साफ-सुथरा, सुसंगत, और बिना किसी शक के वैध प्रतीत हो। यह एक समानुपातिक और विवेकाधीन राहत है, न कि अधिकार स्वरूप मिलने वाली। अतः अदालतों को इस राहत को देने से पहले अनुबंध की सत्यता का सावधानीपूर्वक परीक्षण करना चाहिए।
अदालत का निर्णय
अदालत ने पाया कि अनुबंध में किए गए परिवर्तन को लेकर वादी कोई संतोषजनक स्पष्टीकरण नहीं दे सका। यह भी स्पष्ट हुआ कि जिन हिस्सों में अलग स्याही का उपयोग हुआ था, वे संपत्ति विवरण से संबंधित थे — जो अनुबंध का सबसे महत्वपूर्ण भाग था।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जब अनुबंध का मूल स्वरूप संदिग्ध हो, तो उसके आधार पर विशिष्ट निष्पादन की डिक्री नहीं दी जा सकती। इसलिए, निचली अदालतों द्वारा पारित डिक्री रद्द कर दी गई।
कानूनी सिद्धांतों की व्याख्या
अदालत ने अपने निर्णय में यह दोहराया कि विशिष्ट निष्पादन का अधिकार सिविल प्रक्रिया संहिता (CPC) या विशिष्ट राहत अधिनियम, 1963 (Specific Relief Act) के तहत पूर्ण अधिकार (absolute right) नहीं है।
धारा 20 के अनुसार, यह एक विवेकाधीन राहत है, जिसे अदालत केवल तभी देती है जब उसे यह विश्वास हो कि:
- अनुबंध वैध और निष्कपट है।
- अनुबंध की शर्तें स्पष्ट और संदेह से परे हैं।
- अनुबंध में कोई धोखाधड़ी, दबाव या अनुचित प्रभाव नहीं है।
- न्याय और समानता दोनों का संतुलन बना रहे।
निर्णय के प्रभाव
यह निर्णय भविष्य में संपत्ति से संबंधित विवादों के लिए एक महत्वपूर्ण मिसाल (precedent) साबित होगा। अब यह स्पष्ट हो गया है कि:
- यदि किसी अनुबंध में बाद में काट-छांट या स्याही परिवर्तन पाया जाता है, तो अदालत उस अनुबंध को संदेह की दृष्टि से देखेगी।
- खरीदार को यह सिद्ध करना होगा कि अनुबंध में कोई परिवर्तन उसके निष्पादन के बाद नहीं किया गया।
- विशिष्ट निष्पादन की डिक्री स्वचालित रूप से नहीं दी जा सकती; यह न्यायालय के विवेक पर निर्भर करती है।
निष्कर्ष
सुप्रीम कोर्ट का यह निर्णय न्यायिक सतर्कता और दस्तावेज़ों की शुद्धता की दिशा में एक मजबूत कदम है। यह फैसला यह संदेश देता है कि संपत्ति से संबंधित अनुबंधों में पारदर्शिता, सटीकता और प्रामाणिकता अत्यंत आवश्यक हैं।
अलग-अलग स्याहियों में लिखे गए या संशोधित दस्तावेज़ न केवल पक्षकारों के बीच विवाद उत्पन्न करते हैं, बल्कि न्यायालय की दृष्टि में उनकी वैधता पर भी प्रश्नचिह्न लगा देते हैं। इसलिए, यह निर्णय आने वाले मामलों में अनुबंध निर्माण और उसकी व्याख्या के लिए एक महत्वपूर्ण मार्गदर्शक सिद्धांत के रूप में कार्य करेगा।