सार्वजनिक भूमि से 90 दिन में हटे अतिक्रमण : इलाहाबाद हाईकोर्ट का सख्त आदेश — लापरवाह अधिकारियों पर होगी कार्रवाई, बिना भेदभाव हटें कब्जे
प्रस्तावना
सार्वजनिक भूमि (Public Land) नागरिकों के साझा उपयोग के लिए होती है — सड़कों, फुटपाथों, नालों, तालाबों, और ग्राम सभा की जमीनों का उद्देश्य सामुदायिक हित की पूर्ति है। किंतु उत्तर प्रदेश सहित पूरे देश में इन सार्वजनिक भूमियों पर अतिक्रमण (Encroachment) एक गंभीर समस्या बन गई है। चाहे वह फुटपाथ पर व्यापारिक कब्जे हों, सड़क किनारे निर्माण हों या ग्राम सभा की भूमि पर अवैध बस्तियां — ये न केवल कानून का उल्लंघन हैं बल्कि नागरिक जीवन की गुणवत्ता को भी प्रभावित करते हैं।
इसी संदर्भ में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण निर्णय देते हुए प्रदेश सरकार और प्रशासनिक अधिकारियों को कठोर निर्देश जारी किए हैं कि सार्वजनिक भूमि से 90 दिनों के भीतर अतिक्रमण हटाया जाए, और इस कार्य में लापरवाही बरतने वाले अधिकारियों पर विभागीय कार्रवाई की जाए।
मामले की पृष्ठभूमि
यह आदेश न्यायमूर्ति प्रवीण कुमार गिरि की एकलपीठ ने झांसी के निवासी मुन्नीलाल उर्फ हरिशरण द्वारा दायर एक जनहित याचिका (Public Interest Litigation) पर सुनवाई करते हुए दिया।
याचिका में आरोप लगाया गया था कि झांसी जिले में सार्वजनिक भूमि — विशेष रूप से राजस्व अभिलेखों में दर्ज सार्वजनिक मार्ग — पर अवैध कब्जा कर लिया गया है, और स्थानीय राजस्व अधिकारी तथा ग्राम प्रधान जानबूझकर कार्रवाई से बच रहे हैं।
याचिकाकर्ता ने यह भी कहा कि जब उन्होंने शिकायत दर्ज कराई तो संबंधित लेखपाल ने झूठी रिपोर्ट प्रस्तुत कर अतिक्रमण से इनकार कर दिया। इस पर न्यायालय ने कठोर टिप्पणी करते हुए कहा कि ऐसी लापरवाही केवल ‘उदासीनता’ नहीं बल्कि षड्यंत्र और दुष्प्रेरण के समान है।
मुख्य आदेश और निर्देश
हाईकोर्ट ने विस्तृत आदेश पारित करते हुए कई महत्वपूर्ण दिशानिर्देश जारी किए हैं —
1. 90 दिनों में कार्रवाई का आदेश
- यदि कोई तहसीलदार या तहसीलदार (न्यायिक), उत्तर प्रदेश राजस्व संहिता, 2006 की धारा 67 के अंतर्गत अतिक्रमण हटाने की कार्रवाई कारण बताओ नोटिस की तिथि से 90 दिनों के भीतर नहीं करता है,
और देरी का कोई पर्याप्त कारण नहीं बताता है,
तो यह कदाचार (Misconduct) माना जाएगा। - ऐसे अधिकारी के खिलाफ उत्तर प्रदेश सरकारी सेवक (आचरण) नियम, 1999 के तहत विभागीय कार्रवाई कर दंडित किया जाए।
2. ग्राम प्रधान, सचिव और लेखपाल की जिम्मेदारी तय
- न्यायालय ने कहा कि ग्राम प्रधान, भू-प्रबंधक समिति के अध्यक्ष होने के नाते, ग्राम पंचायत की संपत्ति के संरक्षक (Custodian) हैं।
- सार्वजनिक भूमि पर हुए किसी भी अतिक्रमण की सूचना तहसीलदार को देना उनका कानूनी दायित्व है।
- यदि ग्राम प्रधान, सचिव या लेखपाल इस कर्तव्य में लापरवाही करते हैं तो यह षड्यंत्र और दुष्प्रेरण के समान अपराध माना जाएगा।
- ऐसे प्रधान जो अपने पद का दुरुपयोग करते हैं या कर्तव्यों का पालन नहीं करते, उन्हें पंचायत राज अधिनियम के तहत पद से हटाया जाए।
3. लापरवाह अधिकारियों पर अवमानना कार्रवाई
- कोर्ट ने चेतावनी दी कि जो अधिकारी अतिक्रमण हटाने की प्रक्रिया में उदासीनता दिखाएंगे, उनके खिलाफ आपराधिक अवमानना (Contempt of Court) की कार्यवाही हाईकोर्ट में की जा सकती है।
- इससे यह सुनिश्चित किया जाएगा कि न्यायालय के आदेशों की अवहेलना न हो।
4. पुलिस प्रशासन का सहयोग आवश्यक
- हाईकोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि राजस्व अधिकारियों को पुलिस अधिकारियों का पूर्ण सहयोग प्राप्त होना चाहिए।
- यदि कहीं अतिक्रमण हटाने में विरोध या अवरोध होता है तो पुलिस बल आवश्यकतानुसार कार्रवाई कर सके।
5. डीएम और एसडीएम को निगरानी की जिम्मेदारी
- कोर्ट ने झांसी के जिलाधिकारी (DM) को निर्देश दिया कि वे उपजिलाधिकारी (SDM) की अध्यक्षता में एक विशेष टीम गठित करें,
जो याची की शिकायत की जांच करे और 90 दिनों के भीतर पूरी प्रक्रिया समाप्त करे। - यदि जांच में यह पाया जाता है कि राजस्व अभिलेखों में दर्ज सार्वजनिक मार्ग पर अतिक्रमण है,
तो उस लेखपाल के खिलाफ कठोर कार्रवाई की जाए जिसने पहले गलत रिपोर्ट दी थी।
6. वार्षिक रिपोर्टिंग की व्यवस्था
- सभी विभागीय आयुक्त, जिलाधिकारी, अध्यक्ष/सचिव/प्रभारी अधिकारी को निर्देश दिया गया कि
वे हर वर्ष मुख्य सचिव, उत्तर प्रदेश सरकार को यह रिपोर्ट भेजें कि- कितने अतिक्रमण हटाए गए,
- किन अधिकारियों पर कार्रवाई की गई, और
- क्या सुधारात्मक कदम उठाए गए।
अदालत की महत्वपूर्ण टिप्पणियाँ
- “सड़क पर अतिक्रमण से जीवन नर्क के समान हो जाता है।”
– न्यायालय ने यह टिप्पणी करते हुए कहा कि सार्वजनिक मार्ग और फुटपाथ नागरिकों के आवागमन के लिए हैं, न कि निजी या व्यावसायिक उपयोग के लिए। - “फुटपाथ पर व्यापारिक गतिविधियां अस्वीकार्य हैं।”
– अदालत ने निर्देश दिया कि फुटपाथों का उपयोग किसी भी प्रकार की व्यावसायिक गतिविधि या निजी निर्माण के लिए नहीं किया जा सकता।
संबंधित अधिकारी इन स्थानों को बाधा-मुक्त (Obstacle-free) रखें। - “कानून सबके लिए समान है।”
– न्यायालय ने स्पष्ट किया कि अतिक्रमण हटाने की कार्रवाई बिना किसी भेदभाव के (Without Discrimination) की जाए। चाहे अतिक्रमण किसी राजनीतिक व्यक्ति, व्यापारी, या आम नागरिक द्वारा किया गया हो — कार्रवाई समान रूप से होनी चाहिए।
जनहित याचिकाओं की बढ़ती संख्या पर चिंता
हाईकोर्ट ने यह भी गंभीर चिंता व्यक्त की कि सार्वजनिक भूमि पर अतिक्रमण से संबंधित जनहित याचिकाएं (PILs) की संख्या तेजी से बढ़ रही है।
इससे स्पष्ट होता है कि प्रशासनिक स्तर पर कार्रवाई में निष्क्रियता और उदासीनता व्याप्त है।
इस स्थिति को सुधारने के लिए कोर्ट ने आदेश दिया कि —
- सभी जिलाधिकारी और उपजिलाधिकारी यह सुनिश्चित करें कि
कोई भी व्यक्ति यदि अतिक्रमण की सूचना देता है, तो
60 दिनों के भीतर तहसीलदार को उसकी जानकारी दी जाए और
कार्रवाई की रिपोर्ट तैयार की जाए। - यदि ऐसा नहीं किया जाता, तो संबंधित अधिकारी पर कदाचार (Misconduct) का आरोप लगाकर
राजस्व संहिता नियमों के अंतर्गत विभागीय कार्रवाई शुरू की जाए।
कानूनी पृष्ठभूमि
धारा 67, उत्तर प्रदेश राजस्व संहिता, 2006
यह धारा सरकारी या सार्वजनिक भूमि पर अतिक्रमण हटाने से संबंधित है।
इसके अंतर्गत —
- यदि कोई व्यक्ति ग्राम सभा, सरकारी या सार्वजनिक भूमि पर कब्जा कर लेता है,
तो तहसीलदार उसे नोटिस जारी कर सकता है और
निर्दिष्ट समय में भूमि खाली करने का आदेश दे सकता है। - आदेश की अवहेलना करने पर बलपूर्वक कब्जा हटाया जा सकता है
और कब्जाधारी से क्षतिपूर्ति वसूल की जा सकती है।
उत्तर प्रदेश सरकारी सेवक नियम, 1999
यह नियम सरकारी अधिकारियों के आचरण, अनुशासन और दंड की प्रक्रिया निर्धारित करता है।
कोर्ट के आदेश के अनुसार,
यदि कोई अधिकारी 90 दिनों में अतिक्रमण हटाने में विफल रहता है,
तो यह इन नियमों के तहत अनुशासनात्मक अपराध (Disciplinary Offence) माना जाएगा।
निर्णय का व्यापक प्रभाव
- प्रशासनिक जवाबदेही (Administrative Accountability):
यह आदेश सरकारी अधिकारियों की जिम्मेदारी तय करता है और कार्य में देरी या लापरवाही को दंडनीय बनाता है। - नागरिक हितों की सुरक्षा:
अतिक्रमण हटने से सड़कें, फुटपाथ और सार्वजनिक स्थल नागरिकों के उपयोग के लिए उपलब्ध रहेंगे। - स्थानीय शासन में पारदर्शिता:
ग्राम प्रधानों और लेखपालों की जवाबदेही तय होने से ग्रामीण स्तर पर शासन अधिक पारदर्शी और उत्तरदायी बनेगा। - कानून के शासन (Rule of Law) की पुष्टि:
यह आदेश इस सिद्धांत को पुनः स्थापित करता है कि कोई भी व्यक्ति कानून से ऊपर नहीं है।
निष्कर्ष
इलाहाबाद हाईकोर्ट का यह निर्णय प्रशासनिक लापरवाही और सार्वजनिक भूमि पर बढ़ते अतिक्रमण के विरुद्ध एक सख्त चेतावनी है। न्यायालय ने यह स्पष्ट संदेश दिया है कि सार्वजनिक संपत्ति पर किसी भी प्रकार का कब्जा अस्वीकार्य है, चाहे वह ग्रामीण क्षेत्र हो या शहरी।
फुटपाथ, सड़क, और सार्वजनिक भूमि नागरिकों के अधिकार हैं, न कि निजी लाभ का साधन।
अतः, अब प्रशासन पर यह नैतिक और कानूनी दायित्व है कि वह 90 दिनों के भीतर अतिक्रमण हटाकर न्यायालय के आदेश का पालन करे,
और जो अधिकारी या जनप्रतिनिधि इस कार्य में उदासीनता या मिलीभगत दिखाते हैं,
उन पर विभागीय और आपराधिक दोनों प्रकार की कार्रवाई सुनिश्चित की जाए।
लेखक टिप्पणी:
यह फैसला न केवल झांसी जिले तक सीमित है, बल्कि पूरे प्रदेश के लिए एक नज़ीर (Precedent) बन गया है। यदि इस आदेश का सख्ती से पालन हुआ, तो ग्रामीण और शहरी दोनों स्तरों पर सार्वजनिक भूमि के संरक्षण में ऐतिहासिक सुधार देखने को मिल सकता है।