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पिता की मृत्यु के बाद संपत्ति का बंटवारा — बिना वसीयत की स्थिति में बराबरी का अधिकार : हाई कोर्ट का महत्वपूर्ण निर्णय

पिता की मृत्यु के बाद संपत्ति का बंटवारा — बिना वसीयत की स्थिति में बराबरी का अधिकार : हाई कोर्ट का महत्वपूर्ण निर्णय


परिचय

भारत में परिवार और संपत्ति का गहरा संबंध है। जब किसी व्यक्ति की मृत्यु हो जाती है, तो उसका संपत्ति-वितरण (Inheritance) कई बार परिवार में विवाद का विषय बन जाता है। विशेषकर तब, जब वह व्यक्ति बिना वसीयत (Without Will / Intestate) के ही मृत्यु को प्राप्त करता है। ऐसे मामलों में कानून यह सुनिश्चित करता है कि मृत व्यक्ति की संपत्ति का उचित और न्यायपूर्ण बंटवारा हो।

इस संदर्भ में हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956 (Hindu Succession Act, 1956) अत्यंत महत्वपूर्ण कानून है, जो यह तय करता है कि हिंदू पुरुष या महिला की मृत्यु के बाद उसकी संपत्ति किस प्रकार और किन-किन उत्तराधिकारियों (Heirs) में विभाजित होगी।

हाल ही में एक महत्वपूर्ण हाई कोर्ट के निर्णय में यह स्पष्ट किया गया है कि —

“यदि पिता की मृत्यु बिना वसीयत के होती है, तो उनकी संपत्ति हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम की धारा 8 के अंतर्गत अनुसूची-1 (Schedule I) के अनुसार बाँटी जाएगी, और पुत्र, पुत्री, पत्नी तथा माता सभी को बराबर का हिस्सा प्राप्त होगा।”

यह निर्णय न केवल संपत्ति विवादों के समाधान के लिए महत्वपूर्ण है, बल्कि इससे महिलाओं के समान उत्तराधिकार अधिकारों को भी बल मिलता है।


विधिक पृष्ठभूमि (Legal Background)

हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956 एक केंद्रीय अधिनियम है, जो हिंदुओं, बौद्धों, जैनों और सिखों पर लागू होता है। इस अधिनियम का उद्देश्य है —

“हिंदू व्यक्ति की मृत्यु के बाद उसकी संपत्ति का न्यायसंगत, व्यवस्थित और समान रूप से वितरण सुनिश्चित करना।”

यदि कोई हिंदू पुरुष बिना वसीयत (Intestate) के मरता है, तो उसकी संपत्ति की उत्तराधिकार प्रक्रिया धारा 8 के अनुसार होती है।


धारा 8 — उत्तराधिकार का नियम (General Rules of Succession in the Case of Males)

धारा 8 कहती है कि —

“किसी हिंदू पुरुष की मृत्यु के पश्चात यदि उसने वसीयत नहीं बनाई है, तो उसकी संपत्ति निम्नलिखित उत्तराधिकारियों में बाँटी जाएगी —”

  1. सबसे पहले — अनुसूची-1 (Schedule I) में वर्णित उत्तराधिकारियों को,
  2. यदि वे नहीं हैं, तो अनुसूची-2 (Schedule II) में वर्णित उत्तराधिकारियों को,
  3. यदि वे भी नहीं हैं, तो संपत्ति राज्य सरकार के अधीन चली जाती है (Escheat)।

अनुसूची-1 (Schedule I) — प्रथम श्रेणी के उत्तराधिकारी (Class I Heirs)

अनुसूची-1 में जो उत्तराधिकारी शामिल हैं, उन्हें प्रथम श्रेणी के उत्तराधिकारी (Class I Heirs) कहा जाता है। इनमें शामिल हैं —

  1. पुत्र (Son)
  2. पुत्री (Daughter)
  3. विधवा (Widow)
  4. माता (Mother)
  5. पुत्र के पुत्र (Son’s son)
  6. पुत्र के पुत्र की पत्नी (Son’s widow)
  7. पुत्री के पुत्र और पुत्री की पुत्री (Daughter’s son & daughter’s daughter) आदि

ध्यान देने योग्य बात यह है:

यदि मृतक व्यक्ति की मृत्यु बिना वसीयत के होती है, तो पुत्र, पुत्री, पत्नी और माता सभी को संपत्ति में समान हिस्सा (Equal Share) मिलेगा।


हाई कोर्ट का निर्णय — समान अधिकारों की पुष्टि

हाल ही में एक हाई कोर्ट ने अपने महत्वपूर्ण निर्णय में यह स्पष्ट किया कि —

“पिता की मृत्यु बिना वसीयत के होने की स्थिति में, संपत्ति का बंटवारा केवल पुत्रों तक सीमित नहीं रहेगा। पुत्रियों, पत्नी और माता को भी समान हिस्सा प्राप्त होगा।”

अदालत ने कहा कि हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956 की धारा 8 और अनुसूची-1 के अनुसार संपत्ति का वितरण “प्राकृतिक उत्तराधिकार” (Natural Succession) के रूप में होता है।

इसलिए —

  • किसी भी प्रकार की पारिवारिक या परंपरागत रीतियों का हवाला देकर महिलाओं को संपत्ति से वंचित नहीं किया जा सकता।
  • पिता की संपत्ति का समान बंटवारा सुनिश्चित किया जाएगा, और यह अधिकार कानूनी और मौलिक दोनों है।

न्यायालय के शब्दों में

अदालत ने अपने आदेश में कहा:

“धर्म, जाति या परंपरा के नाम पर महिलाओं को उत्तराधिकार से वंचित करना संविधान के अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार) और 15 (भेदभाव निषेध) का उल्लंघन है। हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम का उद्देश्य परिवार में समान अधिकारों को सुनिश्चित करना है।”

इस प्रकार अदालत ने स्पष्ट किया कि —

  • यदि पिता की मृत्यु बिना वसीयत के होती है,
  • तो संपत्ति का बंटवारा कानूनी उत्तराधिकारियों के बीच समान रूप से किया जाएगा।

उदाहरण द्वारा समझें

उदाहरण 1:
रामलाल की मृत्यु बिना वसीयत के होती है। उनके पीछे — पत्नी (सीता), पुत्र (मोहन), पुत्री (गीता), और माता (कौशल्या) हैं।

👉 तो संपत्ति 4 बराबर हिस्सों में बाँटी जाएगी:

  1. पत्नी सीता — ¼ हिस्सा
  2. पुत्र मोहन — ¼ हिस्सा
  3. पुत्री गीता — ¼ हिस्सा
  4. माता कौशल्या — ¼ हिस्सा

अर्थात, सबको समान हिस्सा मिलेगा।


उदाहरण 2:
यदि पिता की मृत्यु के समय उनकी पत्नी नहीं रहीं, परंतु माता जीवित हैं और दो बेटे व एक बेटी हैं,
तो तीनों संतान और माता — चार हिस्सों में बराबर संपत्ति प्राप्त करेंगे।


महत्वपूर्ण न्यायिक दृष्टांत (Judicial Precedents)

  1. Prakash v. Phulavati (2016) 2 SCC 36
    — सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि 2005 के संशोधन के बाद पुत्री को भी सह-अधिकार (Coparcenary Right) प्राप्त है और वह पिता की संपत्ति में पुत्र के समान अधिकार रखती है।
  2. Vineeta Sharma v. Rakesh Sharma (2020) 9 SCC 1
    — सर्वोच्च न्यायालय ने स्पष्ट किया कि पुत्री का अधिकार जन्म से होता है, पिता की मृत्यु पर निर्भर नहीं।
    — पिता की संपत्ति का समान बंटवारा पुत्र और पुत्री में होगा, चाहे पिता की मृत्यु संशोधन से पहले ही क्यों न हुई हो।
  3. S. Ramesh v. S. Venkataraman (Madras HC, 2022)
    — अदालत ने कहा कि बिना वसीयत के मृत्यु के मामलों में “Class I Heirs” को समान हिस्सेदारी मिलनी चाहिए, और कोई भी परंपरा या रीत-रिवाज इस अधिकार को सीमित नहीं कर सकते।

वसीयत (Will) बनाम बिना वसीयत (Intestate) स्थिति में अंतर

बिंदु वसीयत के साथ (Testate) बिना वसीयत (Intestate)
नियमन का आधार वसीयत में दिए गए निर्देश हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम
निर्धारण का अधिकार मृत व्यक्ति तय करता है कि संपत्ति किसे मिलेगी कानून तय करता है कि संपत्ति कैसे बाँटी जाएगी
संभावित विवाद कम अधिक
उदाहरण पिता ने वसीयत में पुत्री को घर दिया पिता ने वसीयत नहीं बनाई, तो सबको बराबर हिस्सा मिलेगा

धारा 10 — संपत्ति के वितरण का तरीका (Distribution among Class I Heirs)

हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम की धारा 10 के अनुसार, यदि कई Class I उत्तराधिकारी हैं, तो संपत्ति इस प्रकार बाँटी जाएगी —

  • प्रत्येक पुत्र और पुत्री को समान हिस्सा,
  • प्रत्येक विधवा को समान हिस्सा,
  • मृत पुत्र के बच्चे को उसके हिस्से के अनुसार हिस्सा।

इस प्रावधान का उद्देश्य है कि परिवार की सभी पीढ़ियों को न्यायसंगत अधिकार मिले।


“प्राकृतिक उत्तराधिकार” (Natural Succession) का सिद्धांत

अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि संपत्ति का बंटवारा “प्राकृतिक उत्तराधिकार” के अनुसार होगा।
इसका अर्थ है कि —

  • संपत्ति अपने-आप Class I Heirs में समान रूप से बाँट दी जाएगी।
  • किसी अतिरिक्त प्रक्रिया या अदालत के आदेश की आवश्यकता नहीं, जब तक विवाद न हो।
  • यदि कोई विवाद होता है, तो सिविल अदालत द्वारा संपत्ति विभाजन (Partition) किया जा सकता है।

महिलाओं के अधिकार की पुष्टि

यह निर्णय महिलाओं के लिए एक ऐतिहासिक पुष्टि है कि —

“वे केवल बेटी या पत्नी के रूप में नहीं, बल्कि परिवार की बराबर उत्तराधिकारी हैं।”

पहले परंपरागत समाज में बेटियों को अक्सर यह कहकर वंचित किया जाता था कि “उन्हें शादी में दहेज दिया गया है।”
परंतु अब कानून स्पष्ट है —

  • विवाह के बावजूद बेटी को पिता की संपत्ति में बराबर हिस्सा मिलेगा।
  • मां और पत्नी को भी पुत्र के बराबर अधिकार प्राप्त हैं।

व्यवहारिक दृष्टि से संपत्ति का बंटवारा कैसे करें

  1. कानूनी उत्तराधिकारियों की पहचान करें।
    — सभी Class I Heirs (पुत्र, पुत्री, पत्नी, माता आदि) की सूची बनाएं।
  2. संपत्ति का मूल्यांकन करें।
    — अचल संपत्ति (भूमि, मकान) और चल संपत्ति (बैंक बैलेंस, गहने, निवेश) का विवरण तैयार करें।
  3. सबकी सहमति से विभाजन करें।
    — यदि परिवार में सहमति है, तो रजिस्ट्री कार्यालय में विभाजन पत्र (Partition Deed) तैयार कराएँ।
  4. विवाद की स्थिति में सिविल कोर्ट जाएँ।
    — अदालत संपत्ति का न्यायसंगत बंटवारा करवाएगी।

संपत्ति विभाजन के कानूनी दस्तावेज

  • उत्तराधिकार प्रमाणपत्र (Succession Certificate) — बैंक या चल संपत्ति प्राप्त करने के लिए आवश्यक।
  • विरासत दाखिल (Mutation Entry) — भूमि रिकॉर्ड में नाम दर्ज करवाने के लिए।
  • विभाजन पत्र (Partition Deed) — संपत्ति को आपसी सहमति से बाँटने का दस्तावेज।

निष्कर्ष

हाई कोर्ट का यह निर्णय एक मील का पत्थर (Landmark Ruling) है, जिसने एक बार फिर यह सिद्ध किया कि —

“संपत्ति का अधिकार पुरुषों और महिलाओं दोनों के लिए समान है।”

यदि पिता की मृत्यु बिना वसीयत के होती है, तो उसकी संपत्ति हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956 की धारा 8 और अनुसूची-1 के अनुसार बाँटी जाएगी।
इसमें पुत्र, पुत्री, पत्नी और माता सभी को बराबर हिस्सा प्राप्त होगा।

यह निर्णय न केवल न्याय की दृष्टि से, बल्कि सामाजिक समानता और पारिवारिक सौहार्द की दिशा में भी एक बड़ा कदम है।


संक्षेप में:

“बिना वसीयत के मृत्यु पर पिता की संपत्ति का समान वितरण होगा — पुत्र, पुत्री, पत्नी और माता सभी को बराबर अधिकार।”