IndianLawNotes.com

“EMI भरे जाने पर भी संयुक्त नाम वाले संपत्ति पर पतिकर्ता को एकल अधिकार नहीं मिलेंगे: दिल्ली उच्च न्यायालय का महत्वपूर्ण न्यायनिर्णय”

“EMI भरे जाने पर भी संयुक्त नाम वाले संपत्ति पर पतिकर्ता को एकल अधिकार नहीं मिलेंगे: दिल्ली उच्च न्यायालय का महत्वपूर्ण न्यायनिर्णय”


प्रस्तावना

भारत में अधिकारों और संपत्ति के बंटवारे से जुड़े मामलों में अक्सर यह मतविभाजन देखने को मिलता है कि कौन-कौन से तत्व वास्तविक मालिकाना हक तय करते हैं। खासतौर पर विवाह-सम्बंधित संपत्तियों में, पति-पत्नी के बीच संपत्ति का स्वामित्व, उपयोग, लाभ (benefits) और बंटवारा विवादों का मूल कारण बन जाते हैं।

हाल ही में, दिल्ली हाईकोर्ट ने एक अहम फैसले में यह स्थापित किया कि यदि संपत्ति संयुक्त नाम (joint names) में पंजीकृत (registered) है तो अकेले EMIs भरने का दावा पति को एकल स्वामित्व (exclusive ownership) का अधिकार नहीं देता। इस निर्णय ने संपत्ति अधिकारों, विवाह विभाजन के दावों और संपत्ति के वास्तविक मालिकाना हक की धारणा को पुनः परिभाषित किया है।


विवाद का मूल तथ्य (Facts of the Case)

परिस्थितियाँ इस प्रकार थीं:

  • दंपती की शादी 1999 में हुई थी।
  • साल 2005 में पति और पत्नी ने मिलकर (jointly) एक फ्लैट खरीदा, जिसमें दोनों के नाम पर संपत्ति रजिस्टर्ड की गई थी।
  • सभी EMIs (Equated Monthly Instalments) केवल पति ने भरी थीं।
  • पत्नी ने दावा किया कि संपत्ति की बिक्री से मिली राशि (surplus amount) का 50% हिस्सा उसका Stridhan है। Stridhan वह संपत्ति होती है जो पत्नी को वैवाहिक कानूनी व्यवस्था में उसे व्यक्तिगत रूप से अधिकारिकता के साथ दी जाती हो।
  • दंपती अलग रहने लगे 2006 के बाद, तलाक अधीन कार्यवाही चल रही थी।
  • बैंक ने फ्लैट को बेच दिया क्योंकि ऋण (loan) समय पर नहीं चुकाया गया था। वहाँ एक राशि बैंक में जमा थी, जिसे पति ने निकालने के लिए NOC की मांग की थी। महिला-पक्ष ने इसे चुनौती दी।

दिल्ली हाईकोर्ट का निर्णय

न्यायमूर्ति अनिल खेतरपल और न्यायमूर्ति हरीश वैद्यनाथन शंकर की पीठ ने निम्नलिखित मुख्य बिंदुओं के आधार पर फैसला सुनाया:

  1. संयुक्त नाम का महत्व (Joint Registration):
    जब संपत्ति पति और पत्नी दोनों के नामों पर पंजीकृत है, तो यह कानूनी रूप से सह-स्वामित्व (co-ownership) की स्थिति उत्पन्न करता है। केवल एक पक्ष द्वारा EMIs भरे जाने से वह सह-स्वामित्व समाप्त नहीं हो जाता।
  2. EMIs भरने का दावा पर्याप्त नहीं:
    यह कहा गया कि EMIs भरना एक वित्तीय योगदान है, लेकिन वह आमतौर पर अर्थ है कि व्यक्ति ने नकद प्रवाह (cash flow) प्रदान किया है; लेकिन यह स्वचालित रूप से मालिकाना अधिकारों (proprietary rights) को असमान नहीं कर देता। संपत्ति के नामों की स्थिति, पंजीकरण, पेमेंट ट्रांजेक्शन्स, बैंक खाते आदि कई कारक देखे जाने चाहिए।
  3. PBPT Act की धारा 4 (Section 4 of Prohibition of Benami Property Transactions Act):
    अदालत ने कहा कि पति का दावा कि वह ‘वास्तविक मालिक’ है (real owner), जबकि नाम पत्नी का हो – यह Benami Property Transactions Act, 1988 की धारा 4 के अंतर्गत विवादास्पद है। धारा 4 यह निर्धारित करती है कि कोई व्यक्ति ऐसा दावा नहीं कर सकता कि वह वास्तविक मालिक है जब संपत्ति किसी अन्य व्यक्ति के नाम पर पंजीकृत हो।
  4. Stridhan की परिभाषा और सीमा:
    अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि Stridhan उन संपत्तियों के लिए होता है जो विवाह से पहले, या विवाह के दौरान ऐसे तरीके से दान-गिफ्ट, या परिजन द्वारा ऐसी स्थिति में दिये जाते हों कि उनका स्वामित्व त्यो पत्नी को विशेष रूप से मिले। वह संपत्ति जो पति-पत्नी ने मिलकर खरीदी, उन संयुक्त योगदानों से प्राप्त हुई, या पति द्वारा EMIs से, वह Stridhan नहीं हो सकती।
  5. सह-स्वामित्व की कानूनी धारणा (Presumption of Equal Ownership):
    सार्वजनिक या निजी न्यायिक निर्णयों की श्रृंखला में यह माना गया है कि जब किसी संपत्ति का नाम दोनों पति-पत्नी के नामों पर है, तो कानून सह-स्वामित्व मान्य करेगा जब तक कि कोई ठोस अनुबंध या दस्तावेज न हो जिसमें अलग-अलग स्वामित्व की अनुमति हो। इस मामले में ऐसा कोई दस्तावेज नहीं था।
  6. फायदे का बंटवारा (Share in Surplus):
    चूंकि संपत्ति संयुक्त नामों पर थी, और बैंक खाते में जो राशि जमा थी वह भी दोनों नामों से जुड़ा था, अदालत ने पत्नी को उस राशि का 50% हिस्सा मिलना न्यायोचित ठहराया।

कानूनी सिद्धांतों की व्याख्या

इस फैसले में लागू कई विधिक सिद्धांत हैं जो इस तरह के विवादों में मार्गदर्शक होते हैं:

  • संपत्ति पंजीकरण (Title Registration) का महत्व:
    संपत्ति के मालिकाना हक का सबसे मजबूत सुबूत उस पंजीकरण में निहित है जिसे स्टेट रिकॉर्ड्स ने स्वीकार किया हो। यदि नाम दोनों के हैं, तो नाम के अलावा किसी अन्य तथ्य को साबित करना होगा।
  • सह-स्वामित्व (Co-ownership):
    नामों में सह-स्वामित्व होने की स्थिति में, दोनों पक्षों के अधिकार समान माने जाते हैं जब तक कि अन्यथा न हो।
  • Benami Act की भूमिका:
    इस अधिनियम का उद्देश्य यह है कि कोई व्यक्ति एक अन्य के नाम पर संपत्ति स्थायी तरीके से न रख सके और बाद में दावा कर सके कि वह वास्तविक मालिक है। यह अधिनियम ‘Benami’ स्वामित्व की प्रवृत्ति को रोके। इस निर्णय में PBPT Act की धारा 4 विशेष रूप से उद्धृत हुई।
  • Stridhan की सीमाएँ:
    हिंदू कानून में Stridhan का विशेष स्थान है, लेकिन हर संपत्ति को Stridhan नहीं माना जा सकता। जिसने संपत्ति को उपहार स्वरूप दिया हो, या गिफ्ट‐संरचना का हिस्सा हो, वही Stridhan बन सकती है।

सामाजिक व व्यवहारिक प्रभाव

इस फैसले के अनेक सामाजिक और व्यवहारिक निहितार्थ हैं:

  1. पत्नी के अधिकारों की पुष्टि:
    यह निर्णय दिखाता है कि न्यायालय संपत्ति अधिकारों में पति-पत्नी के बीच नाम और कानूनी स्वामित्व को महत्वपूर्ण मानता है। आर्थिक योगदान अकेले आपका दावा नहीं ठहराते जब नाम संयुक्त हो।
  2. विवाहों में वित्तीय पारदर्शिता की आवश्यकता:
    पति-पत्नी को चाहिए कि संपत्ति लेन-देनों के समय स्पष्ट दस्तावेज रखें, जैसे कि ये पता हो कि किसने कितना योगदान किया, क्या कोई अलग अनुबंध है आदि।
  3. तलाक / वैवाहिक विवाद मामलों में संपत्ति विवादों की सुलझान:
    इस दिशा में फैसले यह सुनिश्चित करते हैं कि संपत्ति विवाद बढ़ने पर न्यायालयों को यह सुनिश्चित करना होगा कि संपत्ति नाम, दस्तावेज, पंजीकरण, और आर्थिक योगदान को संतुलित तरीके से देखा जाए।
  4. PBPT अधिनियम की जागरूकता:
    आम लोगों के बीच Benami Transactions Act तथा Benami Property Transactions Act (PBPT) की सीमाएँ और प्रभाव अब और अधिक ज्ञात होंगे, ताकि कोई “पछले दरवाजे” से संपत्ति का दायित्व अस्वीकार न कर सके।

निष्कर्ष

दिल्ली हाईकोर्ट का यह निर्णय यह स्पष्ट करता है कि:

  • संयुक्त नामों पर पंजीकृत संपत्ति को एक पक्ष द्वारा EMIs भरने से एकल स्वामित्व नहीं मिलता
  • नाम में संयुक्तता एक मजबूत कानूनी दस्तावेज है, और उसे पलटने के लिए पर्याप्त ठोस और स्पष्ट प्रमाण होना चाहिए।
  • Section 4 PBPT Act का सन्दर्भ इस बात की पुष्टि करता है कि ‘वास्तविक मालिक बनने’ के दावे को कानूनी बाधाएँ हैं, यदि नाम संयुक्त हो।
  • यदि पति-पत्नी ने एक संपत्ति मिलकर खरीदी है और नाम दोनों के हैं, तो दोनों को स्वामित्व में हिस्सा मिलता है, भले ही EMIs की भारवाही में से एक अधिक योगदान करे।