“नाबालिग से शादी दुष्कर्म के आरोप से बचाव का आधार नहीं: बॉम्बे हाईकोर्ट का ऐतिहासिक फैसला, पॉक्सो अधिनियम के तहत दर्ज केस को रद्द करने से इंकार”
भूमिका
भारत में बाल विवाह और नाबालिगों के साथ यौन संबंध से संबंधित मामलों को लेकर न्यायपालिका समय-समय पर महत्वपूर्ण और संवेदनशील निर्णय देती रही है। हाल ही में बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर खंडपीठ ने एक अत्यंत अहम फैसला सुनाया है, जिसमें यह स्पष्ट किया गया कि नाबालिग से शादी करना दुष्कर्म (rape) के आरोप से बचने का कानूनी आधार नहीं हो सकता। अदालत ने पॉक्सो (Protection of Children from Sexual Offences Act, 2012) के तहत दर्ज मामले को रद्द करने से इंकार कर दिया।
यह फैसला न केवल कानूनी दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह सामाजिक रूप से भी बाल विवाह और बाल यौन शोषण की गंभीरता को उजागर करता है। इस निर्णय ने यह दोहराया है कि बच्चों के साथ किसी भी प्रकार का यौन संबंध, चाहे वह सहमति से हो या नहीं, कानूनन अपराध है।
मामले की पृष्ठभूमि
मामला महाराष्ट्र के अकोला जिले का है, जहाँ एक 29 वर्षीय व्यक्ति के खिलाफ पुलिस ने पॉक्सो अधिनियम, भारतीय न्याय संहिता (Bharatiya Nyaya Sanhita, BNS) और बाल विवाह निषेध अधिनियम, 2006 के तहत मामला दर्ज किया था।
आरोप यह था कि आरोपी ने 17 वर्षीय नाबालिग लड़की के साथ यौन संबंध बनाए और बाद में उससे शादी कर ली। दंपति का एक बच्चा भी है। इसके बाद, आरोपी और उसके परिवार ने अदालत में याचिका दायर की, जिसमें उन्होंने प्राथमिकी (FIR) को रद्द करने की मांग की।
उनका तर्क था कि लड़की ने “सहमति” से संबंध बनाए थे, और शादी तब पंजीकृत की गई जब वह 18 वर्ष की हो गई थी। उन्होंने यह भी कहा कि दोनों अब साथ रह रहे हैं और उनके बीच कोई विवाद नहीं है।
अदालत की कार्यवाही और प्रमुख तर्क
मामले की सुनवाई न्यायमूर्ति उर्मिला जोशी-फाल्के और न्यायमूर्ति नंदेश देशपांडे की खंडपीठ ने की।
अदालत ने कहा कि आरोपी द्वारा दी गई दलील कानूनी रूप से अस्वीकार्य है, क्योंकि पॉक्सो अधिनियम (POCSO Act, 2012) के तहत 18 वर्ष से कम उम्र की लड़की को “child” माना जाता है, और उसके साथ किसी भी प्रकार का यौन संबंध स्वतः दुष्कर्म (statutory rape) की श्रेणी में आता है — चाहे उसकी “सहमति” हो या न हो।
न्यायालय ने कहा कि आरोपी की यह दलील कि उसने लड़की से शादी की और अब उनका बच्चा है, पॉक्सो के प्रावधानों के तहत अप्रासंगिक (irrelevant) है। इसीलिए, अदालत ने एफआईआर रद्द करने से इंकार कर दिया।
न्यायालय के प्रमुख अवलोकन
- बाल विवाह अवैध है:
अदालत ने कहा कि बाल विवाह निषेध अधिनियम, 2006 के तहत 18 वर्ष से कम उम्र की लड़की के साथ विवाह अवैध और दंडनीय अपराध है। अतः ऐसा विवाह किसी भी प्रकार से कानूनी वैधता नहीं प्राप्त कर सकता। - सहमति अप्रासंगिक:
18 वर्ष से कम उम्र की लड़की की सहमति कानूनी मान्यता नहीं रखती। पॉक्सो अधिनियम की धारा 3, 4, और 5 के तहत, नाबालिग के साथ शारीरिक संबंध स्वतः अपराध माने जाते हैं। - पॉक्सो अधिनियम का उद्देश्य:
अदालत ने अपने आदेश में लिखा कि पॉक्सो अधिनियम का मूल उद्देश्य बच्चों को यौन शोषण, उत्पीड़न और अश्लीलता (pornography) से बचाना है। यह अधिनियम बच्चों को सुरक्षित वातावरण और न्यायिक संरक्षण प्रदान करने का एक मजबूत माध्यम है। - सामाजिक दायित्व पर टिप्पणी:
न्यायालय ने कहा कि समाज में ऐसे अपराधों के प्रति शून्य सहनशीलता (zero tolerance) की नीति अपनाई जानी चाहिए। बाल विवाह और यौन शोषण को “सांस्कृतिक या सामाजिक” औचित्य के आधार पर नहीं देखा जा सकता।
कानूनी प्रावधान और संदर्भ
- पॉक्सो अधिनियम, 2012 (Protection of Children from Sexual Offences Act):
- धारा 2(d): 18 वर्ष से कम उम्र के व्यक्ति को “child” कहा गया है।
- धारा 3-5: बच्चों के साथ यौन संबंध को गंभीर अपराध माना गया है।
- धारा 29: ऐसे मामलों में आरोपी पर दोष का अनुमान (presumption of guilt) लगाया जाता है।
- बाल विवाह निषेध अधिनियम, 2006:
- धारा 3: 18 वर्ष से कम उम्र की लड़की और 21 वर्ष से कम उम्र के लड़के का विवाह शून्य (voidable) है।
- धारा 9: बाल विवाह करवाने या उसमें भाग लेने वालों को दंडनीय माना गया है।
- भारतीय न्याय संहिता (BNS, 2023):
- धारा 64 (पूर्व IPC धारा 375): नाबालिग से सहमति से भी यौन संबंध बलात्कार (rape) माना जाएगा।
- धारा 65: यौन अपराधों से बच्चों की सुरक्षा के प्रावधानों को दोहराया गया है।
अदालत के निर्णय का महत्व
यह फैसला कई मायनों में मील का पत्थर (landmark judgment) है। अदालत ने यह स्पष्ट कर दिया कि:
- शादी का बहाना या बाल विवाह पॉक्सो अधिनियम से बचने का आधार नहीं हो सकता।
- ऐसे मामलों में “सहमति” का कोई महत्व नहीं है, क्योंकि कानून नाबालिग को सहमति देने में सक्षम नहीं मानता।
- नाबालिग से शादी करने के बाद भी आरोपी के खिलाफ दुष्कर्म का मामला जारी रहेगा।
- समाज में बाल विवाह को “परंपरा” या “सामाजिक रीति” के नाम पर कानूनी वैधता नहीं दी जा सकती।
सामाजिक परिप्रेक्ष्य और विश्लेषण
भारत में कई ग्रामीण और अर्ध-शहरी इलाकों में अब भी बाल विवाह की परंपरा जीवित है। ऐसे विवाह अक्सर सामाजिक दबाव, गरीबी, या सांस्कृतिक मान्यताओं के कारण किए जाते हैं।
लेकिन आधुनिक भारत में यह निर्णय एक सख्त चेतावनी है कि कानून किसी भी परिस्थिति में नाबालिगों के शोषण को बर्दाश्त नहीं करेगा।
यह फैसला उन सभी दलीलों को कमजोर करता है जो “सहमति” या “विवाह” के नाम पर पॉक्सो के प्रावधानों से बचने की कोशिश करती हैं।
महिला और बाल अधिकार संगठनों की प्रतिक्रिया
कई बाल संरक्षण संगठनों और महिला अधिकार कार्यकर्ताओं ने इस निर्णय का स्वागत किया है। उनका कहना है कि यह फैसला बच्चों की सुरक्षा को मजबूत करेगा और न्यायालयों में चल रहे कई ऐसे मामलों को दिशा देगा, जहाँ आरोपी “विवाह” का सहारा लेकर सजा से बचने की कोशिश करते हैं।
निष्कर्ष
बॉम्बे हाईकोर्ट का यह निर्णय भारतीय न्याय व्यवस्था की संवेदनशीलता और दृढ़ता दोनों को दर्शाता है। अदालत ने यह सुनिश्चित किया कि पॉक्सो अधिनियम के प्रावधानों को कमज़ोर नहीं किया जा सके और नाबालिगों की सुरक्षा सर्वोच्च प्राथमिकता बनी रहे।
इस फैसले से एक स्पष्ट संदेश गया है कि —
“शादी का आवरण यौन अपराधों को वैध नहीं बनाता। बाल विवाह अपराध है, और नाबालिग से शारीरिक संबंध दुष्कर्म है — चाहे कोई भी औचित्य प्रस्तुत किया जाए।”