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किशोर न्याय अधिनियम Juvenile Justice Act

किशोर न्याय अधिनियम के तहत बच्चों के अधिकार और हाल के न्यायिक निर्णयों का विश्लेषण


भूमिका :
भारत का संविधान प्रत्येक बच्चे को समान अधिकार, सुरक्षा और सम्मानजनक जीवन जीने का अवसर प्रदान करता है। लेकिन समाज में बच्चों पर हो रहे अपराध, बाल शोषण, बाल श्रम और नाबालिग अपराधों की बढ़ती घटनाओं को देखते हुए “किशोर न्याय (बालकों की देखभाल और संरक्षण) अधिनियम, 2015” (Juvenile Justice (Care and Protection of Children) Act, 2015) अस्तित्व में आया। इसका उद्देश्य ऐसे बच्चों की सुरक्षा, पुनर्वास और सामाजिक पुनर्स्थापन करना है जो अपराधों में शामिल हैं या जिन्हें देखभाल और संरक्षण की आवश्यकता है। यह अधिनियम बच्चों के पुनर्वास को दंड से अधिक महत्व देता है, क्योंकि माना गया है कि बच्चा सुधार योग्य होता है, दंडनीय नहीं।


किशोर न्याय अधिनियम का उद्देश्य

इस अधिनियम का मूल उद्देश्य बाल अपराधियों को अपराधी न मानकर एक सुधार योग्य व्यक्ति के रूप में देखना है। यह अधिनियम यह सुनिश्चित करता है कि हर बच्चे को शिक्षा, पोषण, सुरक्षा और सम्मान के साथ जीवन जीने का अधिकार मिले।
इस अधिनियम के दो मुख्य वर्ग हैं –

  1. देखभाल और संरक्षण की आवश्यकता वाले बच्चे (Children in need of care and protection)
  2. कानून से टकराव में आए बच्चे (Children in conflict with law)

पहले वर्ग में ऐसे बच्चे आते हैं जिन्हें परिवार या समाज का सहारा नहीं मिला है, जबकि दूसरे वर्ग में वे बच्चे आते हैं जिन्होंने किसी अपराध को अंजाम दिया है।


मुख्य प्रावधान :

  1. धारा 2(12): 18 वर्ष से कम आयु का प्रत्येक व्यक्ति ‘किशोर’ कहलाता है।
  2. धारा 4 से 9: किशोर न्याय बोर्ड (Juvenile Justice Board) की स्थापना, जो बाल अपराधों के मामलों की सुनवाई करता है।
  3. धारा 27: बाल कल्याण समिति (Child Welfare Committee) – यह बच्चों के संरक्षण से संबंधित मामलों की सुनवाई करती है।
  4. धारा 21: 18 वर्ष से कम किसी भी बच्चे को मृत्युदंड या आजीवन कारावास नहीं दिया जा सकता।
  5. धारा 15: गंभीर अपराधों के मामलों में किशोर न्याय बोर्ड यह निर्धारित करेगा कि बच्चा ‘वयस्क की तरह मुकदमे का सामना’ कर सकता है या नहीं।
  6. धारा 39: पुनर्वास और सामाजिक एकीकरण पर बल दिया गया है, जैसे शिक्षा, परामर्श, और व्यावसायिक प्रशिक्षण।

किशोर न्याय अधिनियम, 2015 में किए गए प्रमुख संशोधन

2012 के निर्भया कांड के बाद देश में यह बहस उठी कि गंभीर अपराध करने वाले 16 से 18 वर्ष के किशोरों के साथ क्या वयस्क अपराधियों जैसा व्यवहार होना चाहिए। इसके परिणामस्वरूप 2015 का नया अधिनियम आया, जिसमें निम्न संशोधन किए गए—

  • 16 से 18 वर्ष तक के किशोर, यदि वे गंभीर या जघन्य अपराध करते हैं, तो उनके साथ वयस्क के समान कानूनी प्रक्रिया अपनाई जा सकती है (धारा 15)।
  • गोद लेने (Adoption) के प्रावधानों को और स्पष्ट किया गया।
  • बाल कल्याण समितियों को अधिक अधिकार दिए गए ताकि बच्चे की देखभाल और सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके।

बच्चों के अधिकार (Rights of Children under JJ Act):

  1. जीवन और गरिमा का अधिकार (Right to Life and Dignity):
    प्रत्येक बच्चे को सम्मानजनक जीवन जीने का अधिकार है। किसी भी बच्चे को शारीरिक या मानसिक यातना नहीं दी जा सकती।
  2. सुरक्षा का अधिकार (Right to Protection):
    बच्चे को शोषण, उपेक्षा, उत्पीड़न और किसी भी प्रकार की हिंसा से बचाने का दायित्व राज्य का है।
  3. शिक्षा का अधिकार (Right to Education):
    अधिनियम यह सुनिश्चित करता है कि सुधार गृहों या बाल गृहों में रहने वाले प्रत्येक बच्चे को शिक्षा का अवसर मिले।
  4. पुनर्वास का अधिकार (Right to Rehabilitation):
    अपराध करने वाले बच्चों को सुधार के अवसर दिए जाते हैं जैसे – परामर्श, व्यावसायिक प्रशिक्षण, मनोवैज्ञानिक सहायता आदि।
  5. गोपनीयता का अधिकार (Right to Privacy):
    अधिनियम की धारा 74 के अनुसार, किसी भी किशोर का नाम, पता या पहचान मीडिया में प्रकाशित नहीं की जा सकती।

हाल के न्यायिक निर्णय (Recent Judicial Pronouncements):

1. Shilpa Mittal v. State (NCT of Delhi), (2020) 2 SCC 787

सुप्रीम कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि ‘जघन्य अपराध’ की श्रेणी में वही अपराध आएंगे जिनमें न्यूनतम सजा सात वर्ष या उससे अधिक हो। इस निर्णय ने यह सुनिश्चित किया कि किशोरों को मनमाने ढंग से “जघन्य अपराध” के दायरे में न लाया जाए।

2. State of Madhya Pradesh v. Anoop Singh, (2021) SCC Online SC 1147

इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि किशोर अपराधी को सुधार गृह भेजना दंड नहीं बल्कि उसके पुनर्वास की प्रक्रिया है। न्यायालय ने यह भी कहा कि बच्चों की मनोवैज्ञानिक स्थिति को ध्यान में रखे बिना कठोर दंड देना न्यायसंगत नहीं होगा।

3. Jitendra Singh v. State of Uttar Pradesh (2022)

इस निर्णय में इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने कहा कि किसी भी बच्चे की उम्र का निर्धारण करते समय स्कूल रिकॉर्ड, जन्म प्रमाण पत्र और मेडिकल रिपोर्ट को प्राथमिकता देनी चाहिए।

4. XYZ v. State of Maharashtra (2023)

बॉम्बे हाईकोर्ट ने यह कहा कि 17 वर्षीय आरोपी को बलात्कार के गंभीर मामले में वयस्क के रूप में ट्रायल देने से पहले उसकी मानसिक परिपक्वता का मूल्यांकन विशेषज्ञों द्वारा किया जाना चाहिए।

5. Delhi High Court Judgment (2024)

दिल्ली उच्च न्यायालय ने हाल ही में एक मामले में कहा कि किशोर न्याय बोर्ड को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि बच्चे को कानूनी सहायता, मनोवैज्ञानिक परामर्श और सामाजिक पुनर्वास का अवसर दिया जाए, क्योंकि यही अधिनियम का मूल उद्देश्य है।


किशोर अपराधों की वर्तमान स्थिति :

राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) की रिपोर्ट के अनुसार, 2023 में किशोर अपराधों में लगभग 7% की वृद्धि दर्ज की गई। इनमें से अधिकांश अपराध चोरी, हमला और नशे से संबंधित थे। विशेषज्ञों का मानना है कि सामाजिक असमानता, पारिवारिक टूटन और नशे की लत इसके प्रमुख कारण हैं।


बच्चों के पुनर्वास की दिशा में न्यायालय की भूमिका :

न्यायालयों ने हमेशा यह माना है कि किसी भी बच्चे को सज़ा के बजाय सुधार का अवसर मिलना चाहिए। किशोर न्याय बोर्ड को सलाह दी गई है कि वे बच्चों के मामलों में “सहानुभूति और संवेदनशीलता” के साथ व्यवहार करें। साथ ही, सरकार को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि सुधार गृहों में बच्चों के लिए शिक्षा, चिकित्सा और मनोवैज्ञानिक सहायता उपलब्ध हो।


किशोर न्याय अधिनियम के कार्यान्वयन में चुनौतियाँ :

  1. संसाधनों की कमी: सुधार गृहों और बाल कल्याण समितियों में पर्याप्त मानव संसाधन और ढाँचा नहीं है।
  2. प्रशिक्षण की कमी: कई अधिकारी अधिनियम की संवेदनशील प्रकृति को नहीं समझते।
  3. सामाजिक कलंक: अपराध करने वाले बच्चों को समाज पुनः स्वीकार नहीं करता।
  4. मनोवैज्ञानिक परामर्श का अभाव: बाल अपराधियों के मानसिक पुनर्वास की प्रक्रिया कमजोर है।

सुझाव और सुधार की दिशा :

  1. सुधार गृहों में शिक्षा और कौशल विकास पर बल दिया जाए।
  2. मनोवैज्ञानिक और सामाजिक परामर्श को अनिवार्य बनाया जाए।
  3. प्रत्येक ज़िले में सक्षम बाल कल्याण समिति और JJB की नियमित निगरानी हो।
  4. सामाजिक जागरूकता अभियान चलाकर बच्चों के अधिकारों की जानकारी दी जाए।

निष्कर्ष :

किशोर न्याय अधिनियम केवल एक कानूनी दस्तावेज़ नहीं, बल्कि बच्चों के प्रति समाज की संवेदनशीलता का प्रतीक है। यह अधिनियम बच्चों को दंड नहीं बल्कि “दूसरा अवसर” देने का संदेश देता है। न्यायालयों ने भी अपने निर्णयों से यह स्पष्ट किया है कि किसी भी बच्चे को सुधारने की संभावनाएँ समाप्त नहीं होतीं।
भारत जैसे युवा देश के लिए यह आवश्यक है कि बच्चों को अपराध की राह से हटाकर शिक्षा, सुरक्षा और संवेदना की राह पर लाया जाए — तभी सच्चे अर्थों में किशोर न्याय अधिनियम का उद्देश्य पूरा होगा।


Juvenile Justice Act (किशोर न्याय अधिनियम, 2015) से संबंधित 10 Short Answer Questions

प्रश्न 1. किशोर न्याय अधिनियम, 2015 का उद्देश्य क्या है?

किशोर न्याय (बालकों की देखभाल और संरक्षण) अधिनियम, 2015 का मुख्य उद्देश्य उन बच्चों की सुरक्षा, पुनर्वास और सामाजिक पुनर्स्थापन सुनिश्चित करना है जो अपराध में शामिल हैं या जिन्हें देखभाल की आवश्यकता है। यह अधिनियम इस विचार पर आधारित है कि बच्चा स्वभावतः सुधार योग्य होता है और उसे दंड नहीं बल्कि मार्गदर्शन की आवश्यकता होती है। अधिनियम यह सुनिश्चित करता है कि 18 वर्ष से कम आयु के बच्चों को किसी भी प्रकार की क्रूर सज़ा न दी जाए, बल्कि उन्हें सुधार गृहों, शिक्षा और परामर्श के माध्यम से समाज में पुनः स्थापित किया जाए। इसके अलावा, यह कानून गोद लेने, देखभाल और संरक्षण की व्यवस्थाओं को भी विधिक मान्यता देता है।


प्रश्न 2. ‘कानून से टकराव में आए बच्चे’ (Child in Conflict with Law) से क्या तात्पर्य है?

‘कानून से टकराव में आया बच्चा’ वह होता है जो 18 वर्ष से कम आयु का है और जिस पर किसी अपराध का आरोप लगाया गया है या उसने कोई अपराध किया है। ऐसे बच्चों के लिए विशेष रूप से किशोर न्याय बोर्ड (Juvenile Justice Board) की स्थापना की गई है, जो न केवल अपराध की जांच करता है बल्कि यह भी सुनिश्चित करता है कि बच्चे के साथ मानवीय व्यवहार हो। अधिनियम के अनुसार, बच्चे के मामले की सुनवाई बाल-मित्र वातावरण में होनी चाहिए और उसे अपने पक्ष में वकील की सहायता मिलनी चाहिए। इस प्रकार, कानून का उद्देश्य उसे सुधारना है, न कि दंडित करना।


प्रश्न 3. ‘देखभाल और संरक्षण की आवश्यकता वाले बच्चे’ (Child in Need of Care and Protection) कौन होते हैं?

ऐसे बच्चे जो अपने माता-पिता या परिवार के संरक्षण से वंचित हैं, सड़क पर जीवन जीते हैं, या जिनका शारीरिक या मानसिक शोषण हुआ है, उन्हें ‘देखभाल और संरक्षण की आवश्यकता वाले बच्चे’ कहा जाता है। किशोर न्याय अधिनियम की धारा 2(14) में इनकी परिभाषा दी गई है। ऐसे बच्चों की सुरक्षा और पुनर्वास के लिए बाल कल्याण समिति (Child Welfare Committee) की स्थापना की गई है। समिति का कर्तव्य होता है कि बच्चे को उचित देखभाल, शिक्षा और पुनर्वास गृह उपलब्ध कराया जाए ताकि वह सम्मानपूर्वक जीवन जी सके।


प्रश्न 4. किशोर न्याय बोर्ड (Juvenile Justice Board) की भूमिका क्या है?

किशोर न्याय बोर्ड (JJB) का गठन धारा 4 के अंतर्गत किया गया है, जिसमें एक न्यायिक मजिस्ट्रेट और दो सामाजिक कार्यकर्ता होते हैं, जिनमें से एक महिला होनी चाहिए। यह बोर्ड उन मामलों की सुनवाई करता है जहाँ बच्चे पर अपराध का आरोप हो। बोर्ड का कार्य केवल अपराध की जांच करना नहीं, बल्कि बच्चे के मनोवैज्ञानिक, पारिवारिक और सामाजिक पहलुओं को समझकर उचित सुधारात्मक कदम उठाना भी है। बोर्ड यह निर्णय करता है कि क्या बच्चे का ट्रायल वयस्क की तरह होना चाहिए या नहीं। इसका उद्देश्य दंड नहीं, बल्कि पुनर्वास है।


प्रश्न 5. बाल कल्याण समिति (Child Welfare Committee) के कार्य क्या हैं?

बाल कल्याण समिति (CWC) का गठन धारा 27 के अंतर्गत किया गया है। इसका कार्य उन बच्चों की देखभाल और संरक्षण करना है जो अनाथ हैं, परित्यक्त हैं या शोषण के शिकार हैं। समिति बच्चे की स्थिति का मूल्यांकन करती है और उसके लिए पुनर्वास की व्यवस्था करती है जैसे कि पालक देखभाल, गोद लेना, या सुधार गृह में भेजना। समिति यह सुनिश्चित करती है कि बच्चे को शिक्षा, चिकित्सा और मनोवैज्ञानिक सहायता प्राप्त हो। इसके निर्णय न्यायिक शक्ति रखते हैं और यह बच्चों के कल्याण के लिए सर्वोच्च संस्था है।


प्रश्न 6. धारा 15 के अंतर्गत 16 से 18 वर्ष के किशोरों के साथ क्या प्रावधान हैं?

किशोर न्याय अधिनियम की धारा 15 के अनुसार, यदि 16 से 18 वर्ष के किसी किशोर पर जघन्य अपराध (Heinous Offence) का आरोप है, तो किशोर न्याय बोर्ड यह जांच करता है कि क्या वह बच्चा वयस्क की तरह मुकदमे का सामना करने के लिए मानसिक और शारीरिक रूप से सक्षम है। यदि बोर्ड को लगता है कि वह अपराध की प्रकृति समझने में सक्षम है, तो उसे सत्र न्यायालय में वयस्क के रूप में ट्रायल के लिए भेजा जा सकता है। यह प्रावधान निर्भया कांड के बाद आया था ताकि गंभीर अपराधों में न्याय सुनिश्चित हो सके।


प्रश्न 7. बच्चों की गोपनीयता (Privacy) की सुरक्षा कैसे की गई है?

किशोर न्याय अधिनियम की धारा 74 के अनुसार, किसी भी बच्चे की पहचान को सार्वजनिक करना निषिद्ध है। इसका अर्थ है कि बच्चे का नाम, पता, फोटो या कोई भी विवरण मीडिया, सोशल मीडिया या किसी अन्य माध्यम में प्रकाशित नहीं किया जा सकता। इस प्रावधान का उद्देश्य बच्चे को सामाजिक कलंक से बचाना और उसके पुनर्वास में सहायता करना है। यदि कोई व्यक्ति इस नियम का उल्लंघन करता है, तो उसके खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जा सकती है। न्यायालयों ने भी कई बार कहा है कि बच्चे की गोपनीयता उसकी सुरक्षा से जुड़ी है।


प्रश्न 8. पुनर्वास (Rehabilitation) का क्या महत्व है?

किशोर न्याय अधिनियम में पुनर्वास को सबसे प्रमुख स्थान दिया गया है। इसका उद्देश्य बच्चे को अपराध की दुनिया से निकालकर समाज में पुनः स्थापित करना है। इसके लिए शिक्षा, व्यावसायिक प्रशिक्षण, परामर्श और मनोवैज्ञानिक सहायता दी जाती है। पुनर्वास गृहों में बच्चों को ऐसा वातावरण प्रदान किया जाता है जिससे उनमें आत्मविश्वास और सामाजिक जिम्मेदारी का विकास हो सके। यह सिद्धांत अधिनियम का हृदय है क्योंकि इसका उद्देश्य दंड नहीं बल्कि सुधार है।


प्रश्न 9. हाल का एक महत्वपूर्ण न्यायिक निर्णय बताइए।

Shilpa Mittal v. State (NCT of Delhi) (2020) एक महत्वपूर्ण निर्णय है। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि केवल वही अपराध “जघन्य अपराध” कहलाएंगे जिनकी न्यूनतम सज़ा सात वर्ष या उससे अधिक है। इससे पहले कई मामलों में कम सज़ा वाले अपराधों को भी जघन्य श्रेणी में रख दिया जाता था। यह फैसला किशोरों के हित में था क्योंकि इससे यह सुनिश्चित हुआ कि किसी बच्चे को केवल गंभीर अपराधों के लिए ही वयस्क की तरह ट्रायल दिया जा सके।


प्रश्न 10. किशोर न्याय अधिनियम के कार्यान्वयन में क्या प्रमुख चुनौतियाँ हैं?

किशोर न्याय अधिनियम के क्रियान्वयन में कई चुनौतियाँ हैं। सबसे बड़ी समस्या है सुधार गृहों और बाल कल्याण समितियों में संसाधनों की कमी। कई जगह पर्याप्त प्रशिक्षित अधिकारी नहीं हैं। बच्चों को उचित परामर्श, शिक्षा और चिकित्सा सुविधाएँ नहीं मिल पातीं। समाज में अपराधी बच्चों को पुनः स्वीकार करने की मानसिकता भी कमजोर है। इसके अतिरिक्त, कानून के प्रति जागरूकता का अभाव और आर्थिक असमानता भी एक बड़ी समस्या है। इन चुनौतियों को दूर किए बिना अधिनियम का वास्तविक उद्देश्य पूरा नहीं हो सकता।