वायु (प्रदूषण निवारण एवं नियंत्रण) अधिनियम, 1981 : एक विस्तृत अध्ययन
प्रस्तावना
भारत में औद्योगिकीकरण, नगरीकरण और परिवहन साधनों की वृद्धि के साथ-साथ वायु प्रदूषण की समस्या भी तेजी से बढ़ती गई। वायु प्रदूषण से मानव स्वास्थ्य, वनस्पति, जीव-जंतु, इमारतें तथा प्राकृतिक संसाधन गंभीर रूप से प्रभावित होते हैं। इस समस्या से निपटने हेतु भारत सरकार ने अंतरराष्ट्रीय पर्यावरणीय समझौतों और राष्ट्रीय नीतियों को ध्यान में रखते हुए “वायु (प्रदूषण निवारण एवं नियंत्रण) अधिनियम, 1981” (The Air (Prevention and Control of Pollution) Act, 1981) बनाया। इसका उद्देश्य वायु की गुणवत्ता बनाए रखना, प्रदूषण को रोकना और प्रदूषणकारी उद्योगों पर नियंत्रण स्थापित करना है।
अधिनियम की उत्पत्ति और पृष्ठभूमि
1972 में स्टॉकहोम में आयोजित संयुक्त राष्ट्र मानव पर्यावरण सम्मेलन (United Nations Conference on Human Environment) में भारत ने भाग लिया और पर्यावरण संरक्षण हेतु ठोस कदम उठाने का वचन दिया। इसी क्रम में पहले जल (प्रदूषण निवारण एवं नियंत्रण) अधिनियम, 1974 पारित हुआ और तत्पश्चात वायु प्रदूषण को नियंत्रित करने हेतु 1981 में यह अधिनियम अस्तित्व में आया।
यह अधिनियम 29 मार्च, 1981 को संसद द्वारा पारित किया गया और 16 मई, 1981 से लागू हुआ।
अधिनियम का उद्देश्य
- वायु प्रदूषण की रोकथाम और नियंत्रण।
- वायु की गुणवत्ता बनाए रखना और सुधारना।
- प्रदूषण नियंत्रण बोर्डों (केंद्रीय एवं राज्य) को अधिकार देना।
- प्रदूषणकारी उद्योगों और इकाइयों को नियंत्रित करना।
- नागरिकों के स्वास्थ्य और पर्यावरण की रक्षा करना।
प्रमुख परिभाषाएँ (Section 2)
- वायु (Air): वायुमंडल में उपस्थित सभी पदार्थ, परंतु इसमें जलवाष्प शामिल नहीं।
- वायु प्रदूषण (Air Pollution): वायु में ऐसे ठोस, तरल या गैसीय पदार्थों की उपस्थिति जो मानव जीवन, जीव-जंतु, वनस्पति या संपत्ति के लिए हानिकारक हों।
- वायु प्रदूषक (Air Pollutant): वे पदार्थ जो वायु प्रदूषण का कारण बनते हैं।
- प्रदूषण नियंत्रण क्षेत्र (Air Pollution Control Area): राज्य सरकार द्वारा अधिसूचित कोई भी क्षेत्र जहाँ वायु प्रदूषण नियंत्रण की विशेष आवश्यकता हो।
अधिनियम की संरचना
यह अधिनियम कुल 7 अध्यायों और 54 धाराओं में विभाजित है।
- अध्याय I – प्रारंभिक प्रावधान (Sections 1–2)
इसमें अधिनियम की परिभाषाएँ और प्रारंभिक जानकारी दी गई है। - अध्याय II – केंद्रीय एवं राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (Sections 3–15)
- केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) की स्थापना।
- राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (SPCBs) का गठन।
- इन बोर्डों की संरचना, कार्य एवं शक्तियाँ।
- अध्याय III – प्रदूषण नियंत्रण क्षेत्र (Sections 16–18)
- राज्य सरकार किसी भी क्षेत्र को “वायु प्रदूषण नियंत्रण क्षेत्र” घोषित कर सकती है।
- ऐसे क्षेत्र में औद्योगिक संयंत्र स्थापित करने हेतु बोर्ड से अनुमति आवश्यक होगी।
- अध्याय IV – बोर्डों की शक्तियाँ और कार्य (Sections 19–31A)
- वायु की गुणवत्ता के मानक निर्धारित करना।
- उद्योगों की स्थापना और संचालन हेतु “Consent to Establish” तथा “Consent to Operate” देना।
- प्रदूषणकारी इकाइयों का निरीक्षण करना।
- प्रदूषणकारी उद्योग को बंद करने या उसकी विद्युत/जल आपूर्ति काटने की शक्ति।
- अध्याय V – निधि, लेखा और लेखापरीक्षण (Sections 32–36)
- केंद्रीय और राज्य बोर्डों हेतु पृथक निधि का गठन।
- निधि का उपयोग प्रदूषण नियंत्रण कार्यों में किया जाएगा।
- वार्षिक लेखा-परीक्षण की व्यवस्था।
- अध्याय VI – दंड और प्रक्रिया (Sections 37–46)
- बिना अनुमति उद्योग स्थापित करने पर दंड।
- आदेशों का उल्लंघन करने पर कारावास और जुर्माना।
- लगातार अपराध करने पर अतिरिक्त दंड।
- कंपनियों द्वारा किए गए अपराध की जवाबदेही निदेशकों/प्रबंधकों पर होगी।
- अध्याय VII – विविध प्रावधान (Sections 47–54)
- अधिकारियों की सुरक्षा।
- शिकायत दर्ज करने का अधिकार।
- केंद्र सरकार को नियम बनाने की शक्ति।
केंद्रीय एवं राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के कार्य
केंद्रीय बोर्ड (CPCB):
- वायु की गुणवत्ता के राष्ट्रीय मानक निर्धारित करना।
- अनुसंधान और पर्यावरण शिक्षा को प्रोत्साहन देना।
- प्रदूषण नियंत्रण उपकरणों और विधियों का प्रचार करना।
- राज्य बोर्डों को मार्गदर्शन देना।
राज्य बोर्ड (SPCB):
- अपने राज्य में वायु प्रदूषण की रोकथाम हेतु मानक तय करना।
- उद्योगों से अनुमति पत्र जारी करना।
- प्रदूषणकारी उद्योगों की जांच करना।
- जनजागरूकता और तकनीकी सहायता प्रदान करना।
अधिनियम की प्रमुख शक्तियाँ
- राज्य सरकारें वायु प्रदूषण नियंत्रण क्षेत्र घोषित कर सकती हैं।
- किसी भी औद्योगिक इकाई को प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड से अनुमति प्राप्त करनी होती है।
- बोर्ड किसी भी उद्योग के उपकरण या प्रक्रियाओं का निरीक्षण कर सकता है।
- प्रदूषणकारी इकाई की बिजली/जल आपूर्ति बंद करने का आदेश दे सकता है।
- नियमों के उल्लंघन पर दंडात्मक कार्यवाही कर सकता है।
दंडात्मक प्रावधान
- बिना अनुमति उद्योग स्थापित करने पर –
- कारावास: न्यूनतम 1 वर्ष 6 माह से लेकर अधिकतम 6 वर्ष तक।
- जुर्माना: अदालत द्वारा निर्धारित।
- आदेश का पालन न करने पर प्रत्येक दिन अतिरिक्त जुर्माना।
- कंपनी द्वारा अपराध होने पर निदेशक या प्रबंधक भी उत्तरदायी होंगे।
अधिनियम के अंतर्गत दायित्व
- कंपनियों का दायित्व: प्रदूषण नियंत्रण नियमों का पालन करना।
- नागरिकों का दायित्व: प्रदूषण रोकने के लिए बोर्ड की सहायता करना।
- सरकार का दायित्व: पर्याप्त संसाधन और सुविधाएँ उपलब्ध कराना।
अधिनियम की विशेषताएँ
- वायु प्रदूषण नियंत्रण हेतु पहली व्यापक कानूनी व्यवस्था।
- केंद्रीय एवं राज्य स्तर पर दोहरे बोर्डों की व्यवस्था।
- प्रदूषणकारी उद्योगों को दंडित करने की कठोर प्रावधान।
- वायु गुणवत्ता मानक निर्धारित करने की व्यवस्था।
- प्रदूषणकारी इकाई को बंद कराने तक की शक्ति।
अधिनियम की सीमाएँ
- कई बार राजनीतिक और प्रशासनिक दबाव के कारण बोर्ड अपने अधिकारों का पूर्ण उपयोग नहीं कर पाते।
- दंडात्मक प्रावधान कठोर होने के बावजूद व्यावहारिक क्रियान्वयन कमजोर।
- बढ़ते शहरीकरण और वाहनों से होने वाला प्रदूषण इस अधिनियम के दायरे में पर्याप्त रूप से नियंत्रित नहीं।
- जनसहभागिता और जागरूकता की कमी।
न्यायिक दृष्टिकोण
भारतीय न्यायपालिका ने वायु प्रदूषण नियंत्रण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
- एम.सी. मेहता बनाम भारत संघ (Oleum Gas Leak Case, 1986): सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि प्रदूषण करने वाले उद्योग “पूर्ण उत्तरदायी” होंगे।
- एम.सी. मेहता बनाम भारत संघ (Taj Trapezium Case, 1997): ताजमहल क्षेत्र में प्रदूषणकारी उद्योगों को हटाने का आदेश।
- सुभाष कुमार बनाम बिहार राज्य (1991): न्यायालय ने कहा कि शुद्ध वायु और जल का अधिकार, अनुच्छेद 21 के अंतर्गत मौलिक अधिकार है।
पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, 1986 से संबंध
1984 के भोपाल गैस त्रासदी के बाद पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, 1986 पारित हुआ। यह एक व्यापक कानून है, जबकि वायु अधिनियम केवल वायु प्रदूषण तक सीमित है। दोनों कानून मिलकर भारत में प्रदूषण नियंत्रण की कानूनी व्यवस्था को मजबूत करते हैं।
निष्कर्ष
वायु (प्रदूषण निवारण एवं नियंत्रण) अधिनियम, 1981 भारत में पर्यावरण कानून की दिशा में एक ऐतिहासिक कदम है। इसके माध्यम से केंद्र और राज्य सरकारों ने वायु गुणवत्ता सुधारने, प्रदूषणकारी उद्योगों को नियंत्रित करने और नागरिकों के स्वास्थ्य की रक्षा हेतु मजबूत व्यवस्था स्थापित की।
यद्यपि व्यावहारिक स्तर पर कई चुनौतियाँ जैसे क्रियान्वयन की कमजोरी, संसाधनों की कमी और जनजागरूकता का अभाव अभी भी मौजूद हैं, फिर भी यह अधिनियम वायु प्रदूषण नियंत्रण के क्षेत्र में भारत की कानूनी नींव है। न्यायपालिका की सक्रियता और नागरिक सहयोग से ही इस अधिनियम के उद्देश्यों को पूर्ण किया जा सकता है।
वायु (प्रदूषण निवारण एवं नियंत्रण) अधिनियम, 1981 – संबंधित 10 प्रश्न और उत्तर
1. वायु अधिनियम, 1981 का मुख्य उद्देश्य क्या है?
अधिनियम का मुख्य उद्देश्य वायु प्रदूषण की रोकथाम और नियंत्रण, वायु की गुणवत्ता बनाए रखना और प्रदूषणकारी उद्योगों पर नियंत्रण स्थापित करना है। इसके तहत केंद्रीय और राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्डों को अधिकार दिए गए हैं।
2. वायु प्रदूषण (Air Pollution) किसे कहते हैं?
वायु में ऐसे ठोस, तरल या गैसीय पदार्थों की उपस्थिति जिसे मानव स्वास्थ्य, वनस्पति, जीव-जंतु या संपत्ति के लिए हानिकारक माना जाए, वायु प्रदूषण कहलाता है।
3. केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) की मुख्य भूमिकाएँ क्या हैं?
CPCB का कार्य वायु गुणवत्ता मानक निर्धारित करना, अनुसंधान और पर्यावरण शिक्षा को प्रोत्साहन देना, राज्य बोर्डों को मार्गदर्शन देना और प्रदूषण नियंत्रण उपकरणों के प्रचार-प्रसार का कार्य करना है।
4. राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (SPCB) किस प्रकार कार्य करता है?
राज्य बोर्ड वायु प्रदूषण रोकने हेतु मानक तय करता है, उद्योगों से अनुमति पत्र जारी करता है, प्रदूषणकारी इकाइयों का निरीक्षण करता है और जनजागरूकता एवं तकनीकी सहायता प्रदान करता है।
5. “वायु प्रदूषण नियंत्रण क्षेत्र” क्या है?
किसी विशेष क्षेत्र को राज्य सरकार द्वारा अधिसूचित किया जाता है, जहाँ वायु प्रदूषण नियंत्रण की विशेष आवश्यकता होती है। इस क्षेत्र में उद्योग स्थापित करने के लिए बोर्ड की अनुमति अनिवार्य होती है।
6. अधिनियम के अंतर्गत कौन-कौन दंडात्मक प्रावधान हैं?
बिना अनुमति उद्योग स्थापित करने पर कारावास (1 वर्ष 6 माह – 6 वर्ष) और जुर्माना। आदेश न मानने पर अतिरिक्त जुर्माना। कंपनी के अपराध की जिम्मेदारी निदेशक/प्रबंधक पर भी होगी।
7. अधिनियम में बोर्डों की शक्तियाँ क्या हैं?
बोर्ड उद्योगों के निरीक्षण, प्रदूषण नियंत्रण उपाय लागू कराने, बिजली/जल आपूर्ति बंद कराने और आदेशों के उल्लंघन पर दंड लगाने का अधिकार रखते हैं।
8. अधिनियम की न्यायिक मान्यता में कौन-कौनसे मामले प्रमुख हैं?
- एम.सी. मेहता बनाम भारत संघ (Oleum Gas Leak Case, 1986)
- एम.सी. मेहता बनाम भारत संघ (Taj Trapezium Case, 1997)
- सुभाष कुमार बनाम बिहार राज्य (1991)
9. वायु अधिनियम और पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम 1986 में क्या अंतर है?
वायु अधिनियम केवल वायु प्रदूषण तक सीमित है, जबकि पर्यावरण अधिनियम व्यापक कानून है जो जल, भूमि, वन और जैव विविधता सहित सम्पूर्ण पर्यावरण संरक्षण को नियंत्रित करता है।
10. वायु अधिनियम की सीमाएँ क्या हैं?
क्रियान्वयन में राजनीतिक/प्रशासनिक दबाव, संसाधनों की कमी, जनजागरूकता की कमी और बढ़ते शहरीकरण व वाहनों से होने वाले प्रदूषण को पूरी तरह नियंत्रित न कर पाना मुख्य सीमाएँ हैं।