Women and Law (“महिला और विधि” या “महिला और कानून”) Part -2

51. महिलाओं के विरुद्ध तेजाब हमले और कानूनी प्रावधान
तेजाब हमले (Acid Attack) महिलाओं के विरुद्ध अत्यंत क्रूर अपराध है। इसे रोकने के लिए IPC की धारा 326A और 326B में विशेष प्रावधान किए गए हैं। 326A के अंतर्गत पीड़िता को स्थायी क्षति पहुँचाने पर 10 वर्ष से लेकर आजीवन कारावास की सजा और जुर्माना लगाया जा सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने तेजाब की बिक्री को नियंत्रित करने और पीड़िता के पुनर्वास के लिए राज्य सरकारों को दिशानिर्देश दिए हैं। इसके अतिरिक्त पीड़िता को मुआवज़ा और चिकित्सा सहायता भी दी जाती है।


52. महिला साक्षी की गवाही का महत्व
भारतीय साक्ष्य अधिनियम में महिला गवाह की गवाही को पुरुष गवाह की तरह ही महत्व दिया गया है। यदि कोई महिला पीड़िता है, जैसे कि बलात्कार या यौन शोषण की घटनाओं में, तो उसकी गवाही को पर्याप्त माना जाता है यदि वह विश्वसनीय है। सुप्रीम कोर्ट ने बार-बार यह स्पष्ट किया है कि महिला गवाह की गवाही को संदेह के नजरिये से नहीं देखा जाना चाहिए। यह विधिक सिद्धांत महिलाओं को सशक्त बनाता है।


53. महिलाओं के लिए समान नागरिक संहिता (Uniform Civil Code) का महत्व
समान नागरिक संहिता (UCC) सभी नागरिकों के लिए समान व्यक्तिगत कानून लागू करने की बात करता है, चाहे उनका धर्म कुछ भी हो। वर्तमान समय में विभिन्न धर्मों के अनुसार विवाह, तलाक, उत्तराधिकार आदि के अलग-अलग नियम हैं, जिनमें कई बार महिलाओं के साथ असमानता होती है। UCC लागू होने से महिलाओं को समान अधिकार मिलेंगे और लैंगिक न्याय सुनिश्चित होगा। यह भारत के धर्मनिरपेक्ष चरित्र को भी सशक्त करता है।


54. महिला यौन कर्मियों के अधिकार
सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि यौन कार्य (Sex Work) स्वयं में अपराध नहीं है, और यौन कर्मियों को भी अन्य नागरिकों की तरह सभी मौलिक अधिकार प्राप्त हैं। पुलिस द्वारा उनकी प्रताड़ना या अपमान गैरकानूनी है। यदि वे जबरन इस कार्य में लाई गई हों, तो तस्करी विरोधी कानूनों के तहत कार्यवाही होती है। यह निर्णय महिला यौन कर्मियों के सम्मान, गरिमा और मानवाधिकार की रक्षा की दिशा में एक बड़ा कदम है।


55. महिलाएं और साइबर स्टॉकिंग
साइबर स्टॉकिंग में कोई व्यक्ति इंटरनेट या डिजिटल माध्यमों से महिला का पीछा करता है, अश्लील मैसेज भेजता है या सोशल मीडिया पर उसका पीछा करता है। IPC की धारा 354D के अंतर्गत यह दंडनीय अपराध है। दोषी को पहली बार में 3 साल तक की सजा और पुनरावृत्ति पर 5 साल तक की सजा हो सकती है। महिलाएं साइबर क्राइम सेल में शिकायत कर सकती हैं और पहचान गोपनीय रखी जाती है।


56. महिला पत्रकारों की विधिक सुरक्षा
महिला पत्रकारों को कार्यस्थल के साथ-साथ फील्ड में भी सुरक्षा की आवश्यकता होती है। कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न अधिनियम, 2013 उन्हें सुरक्षित वातावरण देने हेतु लागू होता है। साथ ही मीडिया संगठनों द्वारा आंतरिक शिकायत समिति का गठन अनिवार्य है। कई राज्यों में प्रेस सुरक्षा कानून भी लागू हो रहे हैं। महिला पत्रकारों को संविधान के तहत अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और गरिमामय कार्य का अधिकार प्राप्त है।


57. महिला कैदियों के बच्चों के अधिकार
जेल में जन्मे या रह रहे बच्चों को शिक्षा, पोषण, स्वास्थ्य और देखभाल का अधिकार होता है। सुप्रीम कोर्ट और जेल नियमों के अनुसार, ऐसे बच्चों को विशेष सुविधा दी जानी चाहिए। 6 वर्ष तक के बच्चों को माँ के साथ जेल में रहने की अनुमति है, लेकिन उनके लिए क्रेच, पौष्टिक भोजन और खेलने की व्यवस्था अनिवार्य है। यह बच्चों की भलाई और विकास को ध्यान में रखते हुए किया गया है।


58. महिला उपभोक्ताओं के अधिकार
महिलाएं उपभोक्ता के रूप में भी कई बार धोखा, शोषण या भ्रामक विज्ञापन का शिकार होती हैं। उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 2019 के तहत उन्हें उचित जानकारी, गुणवत्तापूर्ण वस्तु, शिकायत करने का अधिकार और मुआवज़ा पाने का अधिकार है। महिला उपभोक्ता फोरम में शिकायत दर्ज कर सकती हैं। यह विधिक प्रावधान उन्हें आर्थिक क्षेत्र में सशक्त बनाता है।


59. विधिक दृष्टिकोण से बलात्कारी से विवाह का दबाव
कुछ मामलों में बलात्कारी से विवाह कराने का सामाजिक दबाव देखा गया है, लेकिन कानूनन यह अमान्य है। सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट कहा है कि बलात्कार अपराध है और पीड़िता को विवाह के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता। ऐसा विवाह महिला की गरिमा और स्वतंत्रता का हनन है। कानून का उद्देश्य पीड़िता को सुरक्षा, मुआवज़ा और न्याय दिलाना है, न कि उसे और उत्पीड़न देना।


60. महिला उत्पीड़न की रोकथाम में पंचायतों की भूमिका
ग्राम पंचायतें ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाओं की सुरक्षा और न्याय की पहली इकाई होती हैं। पंचायतें बाल विवाह रोकने, घरेलू हिंसा की जानकारी देने, पीड़िता को सहायता दिलाने और पुलिस से संपर्क कराने में भूमिका निभा सकती हैं। महिला सरपंच और सदस्य यदि सक्रिय हों तो महिलाओं के विरुद्ध अपराधों की रोकथाम अधिक प्रभावी हो सकती है।


61. भारतीय सेना और महिलाओं की भागीदारी
हाल के वर्षों में महिलाओं की सेना में भागीदारी बढ़ी है। सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के अनुसार महिलाओं को स्थायी कमीशन का अधिकार मिला। अब महिलाएं लड़ाकू भूमिकाओं में भी प्रवेश पा रही हैं। यह निर्णय महिलाओं की क्षमता, समानता और देश सेवा के अधिकार को सम्मान देता है। यह महिला सशक्तिकरण और लैंगिक समानता का प्रतीक है।


62. महिला और तलाक के बाद पुनर्विवाह का अधिकार
कानून में महिलाओं को तलाक के बाद पुनः विवाह करने का पूरा अधिकार है। हिंदू विवाह अधिनियम, विशेष विवाह अधिनियम और मुस्लिम पर्सनल लॉ में तलाक प्राप्त महिला पुनर्विवाह कर सकती है। समाजिक स्तर पर इसे लेकर कुछ पूर्वाग्रह हो सकते हैं, लेकिन विधिक दृष्टिकोण से यह महिला की स्वतंत्रता और गरिमा का प्रतीक है।


63. महिलाओं के विरुद्ध ऑनर किलिंग (इज्ज़त के नाम पर हत्या) और कानून
ऑनर किलिंग वह सामाजिक अपराध है जिसमें परिवार या समाज लड़की के विवाह या प्रेम संबंध से नाराज़ होकर उसकी हत्या कर देता है। IPC की धाराओं के अंतर्गत यह हत्या का गंभीर अपराध है। सुप्रीम कोर्ट ने इसे मानवाधिकारों का उल्लंघन बताया है और सरकारों को ऐसे मामलों में त्वरित कार्रवाई और कठोर सजा सुनिश्चित करने के निर्देश दिए हैं।


64. महिला अधिकारों की रक्षा में न्यायपालिका की भूमिका
भारतीय न्यायपालिका ने कई ऐतिहासिक निर्णयों के माध्यम से महिला अधिकारों की रक्षा की है – जैसे विशाखा बनाम राजस्थान मामला, निर्भया केस, ट्रिपल तलाक निषेध, और स्थायी कमीशन के निर्णय। न्यायपालिका न केवल कानूनों की व्याख्या करती है, बल्कि समयानुकूल बदलाव और संवैधानिक मूल्यों के अनुसार दिशा भी देती है।


65. महिला अधिकारों से संबंधित प्रमुख अंतरराष्ट्रीय संधियाँ
भारत ने महिलाओं से संबंधित कई अंतरराष्ट्रीय संधियों पर हस्ताक्षर किए हैं, जैसे – CEDAW (Convention on the Elimination of All Forms of Discrimination Against Women)। यह संधियाँ लैंगिक भेदभाव समाप्त करने, समान अवसर और हिंसा से सुरक्षा की दिशा में वैश्विक स्तर पर प्रयास करती हैं। भारत अपने राष्ट्रीय कानूनों में इन संधियों के अनुरूप कई सुधार कर चुका है।


66. घरेलू हिंसा अधिनियम, 2005 का उद्देश्य
घरेलू हिंसा अधिनियम, 2005 (Protection of Women from Domestic Violence Act) का उद्देश्य महिलाओं को घर के भीतर हिंसा से संरक्षण देना है। यह केवल शारीरिक नहीं, बल्कि मानसिक, यौन, आर्थिक और मौखिक हिंसा को भी शामिल करता है। इस अधिनियम के तहत पीड़िता को सुरक्षा, निवास, भरण-पोषण और क्षतिपूर्ति पाने का अधिकार है। यह अधिनियम न केवल पत्नी बल्कि सह-निवासी महिलाओं को भी संरक्षण प्रदान करता है।


67. महिला सशक्तिकरण में कानूनों की भूमिका
कानून महिला सशक्तिकरण का महत्वपूर्ण साधन है। संविधान द्वारा प्रदत्त समानता, दहेज निषेध, मातृत्व लाभ, घरेलू हिंसा, यौन उत्पीड़न, संपत्ति अधिकार आदि से संबंधित कानून महिलाओं को समाज में स्वतंत्र, आत्मनिर्भर और सुरक्षित जीवन जीने का अवसर देते हैं। इन कानूनों ने महिलाओं को न्याय प्रणाली से जोड़कर उन्हें सशक्त बनाया है।


68. कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न अधिनियम, 2013 की मुख्य विशेषताएँ
इस अधिनियम की उत्पत्ति सुप्रीम कोर्ट के “विशाखा निर्णय” से हुई। यह कानून महिलाओं को कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न से सुरक्षा प्रदान करता है। प्रत्येक संस्था में आंतरिक शिकायत समिति बनाना अनिवार्य है। यदि यौन उत्पीड़न का प्रमाण मिलता है, तो आरोपी को दंड और पीड़िता को क्षतिपूर्ति मिलती है। यह अधिनियम महिला गरिमा की रक्षा करता है।


69. महिला पुलिस की आवश्यकता और भूमिका
महिला पुलिस बल पीड़िताओं की समस्याओं को बेहतर समझ सकता है। बलात्कार, छेड़छाड़, घरेलू हिंसा जैसे मामलों में महिला पीड़िता महिला पुलिस के साथ अधिक सहज महसूस करती है। इसके अतिरिक्त महिला पुलिस बल अपराध नियंत्रण, महिला हेल्पलाइन, विशेष अभियानों और सामाजिक कार्यों में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।


70. महिलाओं को वसीयत में अधिकार
भारतीय विधि में महिलाएं न केवल वसीयत कर सकती हैं, बल्कि वसीयत की उत्तराधिकारी भी बन सकती हैं। हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम और भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम के तहत महिला को माता-पिता, पति या भाई की वसीयत में समान अधिकार प्राप्त है। मुस्लिम कानून में भी महिला को वसीयत से लाभ प्राप्त हो सकता है।


71. महिलाओं के विरुद्ध मानव तस्करी और कानूनी उपाय
मानव तस्करी (Human Trafficking) में महिलाओं को वेश्यावृत्ति, जबरन श्रम या अवैध कार्यों में धकेला जाता है। IPC की धारा 370 और अनैतिक व्यापार (निवारण) अधिनियम, 1956 इस अपराध को रोकने हेतु लागू हैं। दोषियों को कठोर सजा दी जाती है। इसके अतिरिक्त पीड़िता के पुनर्वास और संरक्षण के लिए सरकारी योजनाएँ भी हैं।


72. महिला सशक्तिकरण में शिक्षा की भूमिका
शिक्षा महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाती है। एक शिक्षित महिला न केवल अपने अधिकारों के प्रति जागरूक होती है, बल्कि समाज को भी दिशा देती है। विधिक ज्ञान, स्वरोजगार, स्वास्थ्य, और निर्णय क्षमता शिक्षा के माध्यम से ही प्राप्त होती है। सरकार ने “बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ” जैसी योजनाओं से इस दिशा में प्रयास किया है।


73. महिला आयोग की भूमिका
राष्ट्रीय महिला आयोग (National Commission for Women) और राज्य महिला आयोग महिलाओं की समस्याओं पर कार्य करते हैं। ये आयोग महिला उत्पीड़न के मामलों में हस्तक्षेप, जांच, सिफारिश और रिपोर्ट प्रस्तुत करते हैं। साथ ही, कानूनों की समीक्षा कर सरकार को सुझाव देते हैं। यह संस्थाएं महिलाओं को न्याय दिलाने में सहायक हैं।


74. गर्भधारण पूर्व और प्रसव पूर्व निदान तकनीक अधिनियम, 1994
PCPNDT अधिनियम भ्रूण के लिंग परीक्षण और कन्या भ्रूण हत्या को रोकने हेतु लागू हुआ। यह अल्ट्रासाउंड केंद्रों को नियंत्रित करता है और दोषियों पर जुर्माना तथा कारावास का प्रावधान करता है। यह अधिनियम गिरते लिंगानुपात को रोकने और बालिकाओं के जीवन की रक्षा हेतु महत्त्वपूर्ण है।


75. महिला सुरक्षा में टेक्नोलॉजी की भूमिका
महिला सुरक्षा हेतु टेक्नोलॉजी जैसे मोबाइल एप्स (112 India, Raksha), CCTV निगरानी, GPS ट्रैकिंग, हेल्पलाइन नंबर आदि उपयोगी साबित हो रहे हैं। डिजिटल साक्ष्य न्याय प्रक्रिया में सहायक हैं। इससे अपराध की रोकथाम, निगरानी और त्वरित सहायता संभव होती है।


76. महिलाएं और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत हर नागरिक को जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार है। महिलाओं को अपनी शिक्षा, विवाह, कार्य और पहनावे का निर्णय लेने की स्वतंत्रता है। यदि कोई महिला की स्वतंत्रता का हनन करता है, तो वह विधिक कार्रवाई कर सकती है।


77. विधिक दृष्टिकोण से बाल विवाह और महिला अधिकार
बाल विवाह निषेध अधिनियम, 2006 के अनुसार, लड़की की विवाह योग्य आयु 18 वर्ष और लड़के की 21 वर्ष निर्धारित है। यदि लड़की का विवाह बाल्यावस्था में हुआ है, तो वह विवाह को निरस्त कर सकती है। यह अधिनियम लड़कियों के स्वास्थ्य, शिक्षा और अधिकारों की रक्षा करता है।


78. महिला आरक्षण विधेयक और उसका महत्व
महिला आरक्षण विधेयक, 2023 के तहत संसद और राज्य विधानसभाओं में महिलाओं के लिए 33% सीटें आरक्षित की गई हैं। यह निर्णय राजनीति में महिला भागीदारी को बढ़ावा देगा और निर्णय प्रक्रिया में उनकी भागीदारी सुनिश्चित करेगा। यह विधेयक ऐतिहासिक कदम है।


79. महिला कैदियों के लिए पुनर्वास योजनाएं
जेलों में महिला बंदियों के लिए कौशल विकास, शिक्षा, योग, और परामर्श सेवाओं की व्यवस्था होती है। इन योजनाओं का उद्देश्य जेल से बाहर आने पर उन्हें आत्मनिर्भर और सम्मानजनक जीवन जीने में मदद करना है। सरकार और NGOs मिलकर इस दिशा में कार्य कर रहे हैं।


80. महिलाओं के लिए निशुल्क कानूनी सहायता की प्रक्रिया
जिला विधिक सेवा प्राधिकरण के माध्यम से महिलाओं को निःशुल्क कानूनी सहायता प्रदान की जाती है। पीड़िता आवेदन देकर अधिवक्ता, कानूनी सलाह और वाद सहायता प्राप्त कर सकती है। यह सेवा महिलाओं को न्याय तक पहुंच आसान बनाती है।


81. ट्रिपल तलाक और महिला अधिकार
सुप्रीम कोर्ट ने 2017 में ट्रिपल तलाक को असंवैधानिक घोषित किया। 2019 में पारित कानून के तहत ट्रिपल तलाक को अपराध बना दिया गया है, और दोषी को तीन वर्ष तक की सजा का प्रावधान है। यह कानून मुस्लिम महिलाओं की गरिमा और न्याय सुनिश्चित करता है।


82. महिलाओं के लिए स्वरोजगार योजनाएं
महिला उद्यमिता को बढ़ावा देने हेतु “स्टैंड अप इंडिया”, “महिला ई-हाट”, “प्रधानमंत्री मुद्रा योजना” आदि लागू हैं। ये योजनाएं ऋण, प्रशिक्षण और विपणन सहायता देकर महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाती हैं।


83. विधिक दृष्टिकोण से सेक्सुअल कंसेंट की अवधारणा
कानून के अनुसार, किसी महिला की सहमति के बिना यौन संबंध बनाना बलात्कार की श्रेणी में आता है। सहमति स्वतः, स्पष्ट और बाध्यतारहित होनी चाहिए। IPC की धारा 375 में इसकी स्पष्ट व्याख्या है। यह प्रावधान महिलाओं की स्वतंत्रता और सम्मान की रक्षा करता है।


84. महिलाओं के विरुद्ध ऑनलाइन उत्पीड़न
सोशल मीडिया पर महिलाओं को धमकाना, अश्लील मैसेज भेजना, फोटो मॉर्फिंग आदि साइबर अपराध IPC और IT अधिनियम के तहत दंडनीय हैं। महिला साइबर हेल्पलाइन और पोर्टल पर शिकायत कर सकती है। पहचान गुप्त रखी जाती है।


85. महिला अधिकारों पर धार्मिक नियमों का प्रभाव
कई धार्मिक परंपराएं महिलाओं के अधिकारों को सीमित करती हैं। परंतु संविधान धार्मिक स्वतंत्रता को सीमित करते हुए समानता और गरिमा को प्राथमिकता देता है। न्यायालयों ने समय-समय पर धार्मिक प्रथाओं के विरुद्ध महिलाओं के पक्ष में निर्णय दिए हैं।


86. विधिक दृष्टिकोण से पति द्वारा पत्नी की वैवाहिक बलात्कार की समस्या
भारतीय कानून में वैवाहिक बलात्कार (Marital Rape) को अपराध नहीं माना गया है, यदि पत्नी की उम्र 18 वर्ष से अधिक हो। परंतु महिलाओं के अधिकार कार्यकर्ता इसे असंवैधानिक मानते हैं और इस पर पुनर्विचार की मांग कर रहे हैं। कई उच्च न्यायालयों ने इसे हटाने की सिफारिश की है।


87. महिलाओं के विरुद्ध सैक्सुअल हैरेसमेंट के ऑनलाइन रिपोर्टिंग प्लेटफॉर्म
महिलाएं यदि साइबर स्पेस में यौन उत्पीड़न का शिकार होती हैं, तो वे “साइबर क्राइम रिपोर्टिंग पोर्टल” (www.cybercrime.gov.in) पर ऑनलाइन शिकायत दर्ज करा सकती हैं। यह गृह मंत्रालय द्वारा संचालित पोर्टल है, जिसमें यौन उत्पीड़न, मॉर्फ्ड इमेज, साइबर स्टॉकिंग आदि की शिकायतें गोपनीय रूप से दर्ज की जा सकती हैं। इसमें ‘महिला और बच्चों के लिए विशेष’ सेक्शन भी होता है। इससे पीड़िता को घर बैठे न्याय तक पहुंच का अवसर मिलता है।


88. महिलाओं के लिए मुफ्त कानूनी परामर्श और सहायता केंद्र
भारत में राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण (NALSA) के तहत महिलाओं को मुफ्त कानूनी सहायता उपलब्ध कराई जाती है। प्रत्येक जिले में ‘जिला विधिक सेवा प्राधिकरण’ (DLSA) के अंतर्गत महिला हेल्प डेस्क और परामर्श केंद्र होते हैं। यहाँ महिलाएं अपने कानूनी अधिकारों की जानकारी ले सकती हैं और योग्य वकीलों की सहायता से न्याय प्राप्त कर सकती हैं।


89. विधिक दृष्टिकोण से महिला की निजता का अधिकार
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 21 प्रत्येक नागरिक को जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार देता है, जिसमें निजता का अधिकार भी शामिल है। सुप्रीम कोर्ट के निर्णय (केएस पुट्टस्वामी केस, 2017) में स्पष्ट किया गया कि निजता मौलिक अधिकार है। महिलाएं अपनी पहचान, शरीर, व्यक्तिगत जानकारी और डिजिटल गतिविधियों की गोपनीयता के लिए कानूनी सुरक्षा की अधिकारी हैं।


90. कार्यस्थल पर महिला के लिए अनिवार्य सुविधाएं
मातृत्व लाभ अधिनियम और फैक्ट्री अधिनियम के अनुसार, कार्यस्थल पर महिलाओं के लिए क्रेच सुविधा, स्वच्छ शौचालय, सुरक्षित परिवहन, पर्याप्त विश्राम अवकाश, और सुरक्षित वातावरण अनिवार्य है। इन नियमों का पालन न करने पर संस्था के विरुद्ध कानूनी कार्यवाही हो सकती है। ये प्रावधान महिला कर्मचारियों के सम्मान और गरिमा की रक्षा हेतु हैं।


91. महिलाओं के खिलाफ यौन शोषण मामलों में ‘वन स्टॉप सेंटर’ की भूमिका
सरकार ने प्रत्येक जिले में ‘सखी वन स्टॉप सेंटर’ स्थापित किए हैं, जहाँ यौन हिंसा, घरेलू हिंसा, तस्करी आदि की शिकार महिलाओं को चिकित्सा, विधिक सहायता, परामर्श और आश्रय एक ही छत के नीचे प्रदान किया जाता है। यह केंद्र महिलाओं के लिए त्वरित राहत और पुनर्वास का महत्त्वपूर्ण साधन बन चुके हैं।


92. विधिक दृष्टिकोण से महिला की गर्भपात की स्वतंत्रता
गर्भपात से संबंधित महिला के अधिकार मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेगनेंसी (MTP) अधिनियम, 1971 और उसके संशोधनों में निहित हैं। 2021 में हुए संशोधन के अनुसार अब महिलाएं 24 सप्ताह तक गर्भपात करवा सकती हैं (कुछ विशेष स्थितियों में)। महिला की सहमति और स्वास्थ्य प्राथमिकता है, जो उसकी शारीरिक स्वतंत्रता को कानूनी रूप से संरक्षित करती है।


93. महिलाओं के लिए लिंग-तटस्थ कानूनों की आवश्यकता
आज भी अधिकांश कानून पुरुष और महिला के भेद पर आधारित हैं। लिंग-तटस्थ कानून महिलाओं के साथ-साथ सभी लिंगों को समान सुरक्षा और अधिकार देते हैं। घरेलू हिंसा, यौन उत्पीड़न, साइबर अपराध आदि में लिंग-तटस्थ दृष्टिकोण अपनाने से न्याय अधिक निष्पक्ष और समावेशी होगा।


94. महिला अधिकारों की रक्षा में सामाजिक संगठनों की भूमिका
NGO, महिला संगठन और स्वंयसेवी संस्थाएं महिला सशक्तिकरण में सक्रिय भूमिका निभाती हैं। ये संगठन जागरूकता अभियान, कानूनी सहायता, पुनर्वास, प्रशिक्षण और नीति सुधार के लिए सरकार को सुझाव देते हैं। उदाहरण: SEWA, Jagori, Breakthrough जैसे संगठन महिलाओं के अधिकारों की रक्षा में प्रभावशाली कार्य कर रहे हैं।


95. अल्पसंख्यक महिलाओं के लिए विशेष योजनाएं
सरकार अल्पसंख्यक महिलाओं के लिए ‘नई रोशनी’, ‘नई मंज़िल’, ‘सीखो और कमाओ’ जैसी योजनाएं चला रही है। इनका उद्देश्य शिक्षा, प्रशिक्षण और रोजगार के माध्यम से सामाजिक-आर्थिक सशक्तिकरण करना है। इन योजनाओं में मुस्लिम, सिख, ईसाई, बौद्ध और पारसी महिलाएं सम्मिलित होती हैं।


96. विधिक रूप से महिला को संपत्ति में बराबरी का अधिकार
हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, 2005 के संशोधन के अनुसार पुत्री को पैतृक संपत्ति में पुत्र के समान अधिकार प्राप्त है, चाहे उसका विवाह हो गया हो या नहीं। मुस्लिम कानून में भी महिला को पिता, पति और बच्चों की संपत्ति में निर्धारित हिस्सा मिलता है। यह लैंगिक समानता की दिशा में महत्त्वपूर्ण कानूनी प्रावधान है।


97. विधिक दृष्टिकोण से महिला की शादी की वैध उम्र
वर्तमान में हिंदू विवाह अधिनियम और विशेष विवाह अधिनियम के तहत महिला की विवाह की न्यूनतम आयु 18 वर्ष है। 2021 में सरकार ने इसे बढ़ाकर 21 वर्ष करने का प्रस्ताव संसद में रखा, जिससे बाल विवाह और स्वास्थ्य संबंधित समस्याएं कम हो सकें। विवाह की न्यूनतम उम्र का उल्लंघन कानूनन दंडनीय है।


98. महिलाओं के विरुद्ध अपराधों की शीघ्र सुनवाई हेतु फास्ट ट्रैक कोर्ट
महिलाओं के खिलाफ यौन अपराधों की त्वरित सुनवाई हेतु देशभर में फास्ट ट्रैक कोर्ट्स (FTC) स्थापित किए गए हैं। ये अदालतें बलात्कार, यौन उत्पीड़न, दहेज हत्या, एसिड अटैक जैसे मामलों की शीघ्र सुनवाई करती हैं। इससे पीड़िता को समयबद्ध न्याय और दोषियों को सजा सुनिश्चित होती है।


99. विधिक दृष्टिकोण से महिलाओं को मतदान का अधिकार
भारत में महिलाओं को पुरुषों के समान ही सार्वभौमिक मताधिकार प्राप्त है। संविधान के अनुच्छेद 326 के तहत प्रत्येक 18 वर्ष से अधिक उम्र की महिला को बिना भेदभाव मतदान करने का अधिकार है। यह महिला की राजनीतिक समानता और लोकतांत्रिक भागीदारी का प्रतीक है।


100. महिलाओं के लिए डिजिटल वित्तीय समावेशन की योजना
‘जन धन योजना’, ‘डिजिटल साक्षरता मिशन’ और ‘महिला शक्ति केंद्र’ जैसे कार्यक्रम महिलाओं को बैंकिंग, बीमा और डिजिटल वित्तीय सेवाओं से जोड़ते हैं। इसका उद्देश्य महिलाओं को आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बनाना और वित्तीय निर्णयों में भागीदारी को बढ़ाना है। इससे महिला सशक्तिकरण को डिजिटल आधार मिलता है।