शीर्षक:
“UP गैंगस्टर्स एक्ट जैसे कठोर कानूनों का मनमाने ढंग से प्रयोग नहीं किया जा सकता: सुप्रीम कोर्ट का Lal Mohd. & Anr बनाम उत्तर प्रदेश राज्य एवं अन्य में महत्त्वपूर्ण निर्देश”
🔷 भूमिका:
भारतीय दंड प्रक्रिया में असाधारण कानूनों का उपयोग केवल विशेष परिस्थितियों में किया जाना चाहिए, जहाँ उनकी आवश्यकता हो और पर्याप्त आधार हो। सुप्रीम कोर्ट ने Lal Mohd. & Anr बनाम State of U.P. & Ors वाद में एक महत्त्वपूर्ण निर्णय देते हुए यह स्पष्ट किया कि उत्तर प्रदेश गैंगस्टर्स एंड एंटी-सोशल एक्टिविटीज (प्रिवेन्शन) एक्ट, 1986 जैसे कठोर कानूनों का प्रयोग रोजमर्रा की सामान्य आपराधिक घटनाओं में नहीं किया जा सकता।
न्यायालय ने इस प्रकार के कानूनों को “अत्यधिक शक्तिशाली” और “असाधारण प्रकृति” का बताते हुए कहा कि इन्हें सिर्फ और सिर्फ विधिक विवेक और प्रासंगिक परिस्थितियों के आधार पर ही लागू किया जाना चाहिए, अन्यथा यह न्याय का दुरुपयोग और व्यक्तियों के मौलिक अधिकारों का हनन बन सकता है।
🔷 प्रकरण की पृष्ठभूमि:
इस मामले में याचिकाकर्ता Lal Mohd. और अन्य के विरुद्ध UP Gangsters Act, 1986 के तहत कार्यवाही की गई थी। याचिकाकर्ता का आरोप था कि उनके विरुद्ध सामान्य आपराधिक कानूनों के तहत ही आरोप लगाए गए थे, जिनमें ऐसा कुछ नहीं था जो इस कठोर कानून के अंतर्गत लाया जाए।
याचिकाकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट में यह आग्रह किया कि गैंगस्टर्स एक्ट का प्रयोग केवल उन्हें परेशान करने और प्रताड़ित करने के उद्देश्य से किया गया, जबकि न तो उनके विरुद्ध संगठित अपराध का कोई साक्ष्य था और न ही कोई गैंग जैसी संरचना।
🔷 प्रमुख प्रश्न:
- क्या सामान्य प्रकृति के आपराधिक मामलों में UP गैंगस्टर्स एक्ट का प्रयोग उचित है?
- क्या कठोर कानूनों का उपयोग केवल अभियोजन की सुविधा के लिए किया जा सकता है?
- क्या ऐसा प्रयोग व्यक्ति के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है?
🔷 सुप्रीम कोर्ट का निर्णय एवं दिशा-निर्देश:
सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट रूप से कहा:
“Extraordinary laws like the UP Gangsters Act cannot be invoked mechanically or as a tool for harassment. Such legislations must be applied with caution, keeping in mind the gravity, nature, and pattern of the alleged offence.”
✅ न्यायालय की महत्वपूर्ण टिप्पणियाँ:
- कठोर कानूनों का प्रयोग ‘अंतिम उपाय’ (last resort) होना चाहिए, न कि प्रतिशोध या उत्पीड़न का माध्यम।
- ऐसे कानून जिनमें आरोपी को जमानत से वंचित किया जा सकता है, संपत्ति जब्त की जा सकती है, या अन्य कठोर उपाय हो सकते हैं — उनका प्रयोग बिना पर्याप्त तर्क और विवेक के नहीं किया जा सकता।
- पुलिस और प्रशासन को न्यायिक संतुलन एवं संवैधानिक मर्यादाओं का पालन करना चाहिए।
🔷 UP गैंगस्टर्स एक्ट की प्रकृति:
- यह अधिनियम संगठित अपराधों और समाज विरोधी तत्वों को नियंत्रित करने हेतु बनाया गया है।
- इसके अंतर्गत आरोपी को “गैंग” का सदस्य सिद्ध किया जाना आवश्यक है, तथा यह भी आवश्यक है कि उसका आपराधिक कृत्य संगठित हो, ना कि केवल व्यक्तिगत।
- सामान्य IPC की धाराओं के अंतर्गत किए गए अपराध, यदि संगठित या गैंग संरचना में न हों, तो इस अधिनियम का प्रयोग अनुचित माना जाएगा।
🔷 इस निर्णय का विधिक प्रभाव:
यह निर्णय न केवल उत्तर प्रदेश बल्कि भारत के अन्य राज्यों में भी कठोर विशेष अधिनियमों (जैसे MCOCA, TADA, UAPA आदि) के प्रयोग पर न्यायिक नियंत्रण और मर्यादा स्थापित करता है। अब प्रशासन ऐसे कानूनों का उपयोग करते समय विवेक और कानूनी मानकों का पालन करने के लिए बाध्य होगा।
🔷 संवैधानिक दृष्टिकोण:
- सुप्रीम कोर्ट ने Article 21 — जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार — की रक्षा करते हुए कहा कि
“किसी भी कानून का प्रयोग ऐसा नहीं होना चाहिए कि वह व्यक्ति को बिना उचित प्रक्रिया के उसके मौलिक अधिकारों से वंचित कर दे।”
🔷 निष्कर्ष:
Lal Mohd. & Anr बनाम State of U.P. & Ors में सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट कर दिया कि UP गैंगस्टर्स एक्ट जैसे असाधारण कानूनों का प्रयोग केवल उन्हीं मामलों में किया जाना चाहिए, जो वास्तव में संगठित और गंभीर प्रकृति के हों।
इन कानूनों का मनमाना, रुटीन और यांत्रिक प्रयोग अस्वीकार्य है, क्योंकि यह न केवल न्याय के मूल सिद्धांतों का उल्लंघन करता है बल्कि व्यक्ति की संवैधानिक गारंटी को भी नुकसान पहुँचाता है।